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१. C १ पद्धति की स्वसूचना की प्रस्तावना
वर्ष २००५ में, राष्ट्रीय विज्ञान संस्था (National Science Foundation ) ने लोगों में प्रतिदिन आने वाले विचारों की संख्या से संबंधित शोध के विषय में एक लेख प्रकाशित किया था । उसमें यह अनुमान था कि एक सामान्य व्यक्ति के मन में प्रतिदिन १२,००० से ६०,००० की संख्या में विचार आते हैं । उनमें से ८० प्रतिशत नकारात्मक होते हैं तथा उनमें से ९५ प्रतिशत विचार पिछले दिन ही आए होते हैं तथा उनमें से भी, ८० प्रतिशत नकारात्मक होते हैं । (nsf.gov, २००५, Antanaityte, tlexinstitute.com में उल्लेखित)
इस शोध के आधार पर, नकारात्मक विचारों की प्रतिशत मात्रा चिंताजनक है तथा यह इस बात का भी संकेत है कि विश्व अपनी वर्तमान नकारात्मक स्थिति में क्यों है । इसका कारण यह है कि प्रत्येक अयोग्य कृति के मूल में स्वभावदोष एवं अहम् से उत्पन्न हुआ अयोग्य विचार होता है । ऐसे नकारात्मक विचार हमारी कृतियों, संबंधों, विश्व को देखने के दृष्टिकोण एवं वातावरण को भी प्रभावित करते हैं । इसके साथ ही, अनिष्ट शक्तियां लोगों में नकारात्मक विचारों के हानिकारक प्रभाव को बढा देती हैं । मिट्टी एवं जल पर आध्यत्मिक शोध का लेख देखें, जो कि समाज में व्याप्त नकारात्मकता का एक संकेत है ।
प्रत्येक व्यक्ति के मन में आनेवाले विचारों की मात्रा के साथ, हमारा मन जापान के टोक्यो में शिबूया क्रॉसिंग के समान एक व्यस्त जेबरा क्रॉसिंग के समान है (बाईं ओर दिखाए गए) । हमारे विचार उन लाखों लोगों के समान है जो क्रासिंग पर अविरत आते जाते रहते हैं ।
हमारे मन में तीव्र गति से दौडनेवाले विचारों की कोई एक लहर काे भी पकड पाना अथवा उस पर ध्यान देना कठिन होता है । ऐसा तब होता है जब हमें किसी महत्वपूर्ण कार्य पर ध्यान केंद्रित करना हाेता है, तब हमें भान हाेता है कि कुछ विचार हमारा ध्यान निरंतर खींचते रहते हैं और हमें विचलित करते रहते हैं । हमें उस समय अपने विचारों का तीव्रता से भान भी होता है जब वे किन्हीं तनावग्रस्त परिस्थितियों के कारण तीव्रता से पुनः पुनः आते हैं तथा हम निराश होकर साेचते हैं कि ये सब कब समाप्त होंगे ।
दिन भर हमारे मन में अविरत चलने वाले विचार हमारी ऊर्जा नष्ट करते हैं । विशेषरूप से, जब मन में नकारात्मक विचार तथा भावनाएं पुनः पुनः आते रहते हैं, एेसे समय में इससे बहुत थकान अनुभव हो सकता है । यह तो सामान्य जानकारी है ।
किंतु जो बात सामान्य लोगों को नहीं पता वह यह है कि हमारे सभी विचार एवं भावनाएं, जिनमें नकारात्मक विचार एवं भावनाएं भी सम्मिलित है, वे हमारे अंतर्मन में व्याप्त संस्कारों से उत्पन्न होती हैं, तथा प्रत्येक को उसका अद्वितीय व्यक्तित्त्व प्रदान करती है । हमारे मन में गहराई से जमे हुए यह संस्कार अनेक जन्मों से एकत्रित एवं संचित हुए होते हैं । वे निरंतर विचारों के रूप में बाह्य मन को संवेदना भेजते हैं । हममें से अधिकतर के लिए, यह संवेदनाएं सागर की लहरों समान निरंतर होती हैं जो कि सतत तट पर आती रहती हैं ।
स्वसूचना विषय पर लिखे लेखों की हमारी श्रृंखला में, हमने विविध पद्धतियां बतायी हैं, जो हमारे अंतर्मन में विद्यमान दोषों के संस्कारों को पूरी सक्रियता से समाप्त करने में हमारी सहायता कर सकती है । यद्यपि, C १ पद्धति की स्वसूचना एक अलग दृष्टिकोण से है । नकारात्मक संस्कारों को समाप्त करने के स्थान पर, यह नकारात्मक विचारों को बाह्यमन में पहुंचने से रोककर उन्हें नियंत्रित करने का प्रयास करती है । इस लेख में हम समझेंगे कि यह विचारों को कैसे रोकती है तथा मन की इस शक्तिशाली उपचारक पद्धति का प्रयोग कैसे किया जाता है ।
२. C १ स्वसूचना पद्धति की परिभाषा
C १ पद्धति की स्वसूचना को ‘मंत्र अथवा नामजप पद्धति’ भी कहा जाता है । इसका प्रयोग नकारात्मक विचारों को बाह्यमन में प्रवेश करने से रोकने अथवा अवरूध्द करने हेतु किया जाता है । इस पद्धति में ऐसे विचारों को रोकने हेतु ईश्वर के नामजप का उपयोग किया जाता है । ईश्वर के नामजप में अद्भुत सकारात्मक शक्ति होती है, जो नकारात्मक विचारों को समाप्त कर सकती है । कुछ समय तक इस पद्धति का उपयोग करने पर, अवचेतन मन में एक सकारात्मक ‘नामजप केंद्र’ बनाने में सहायता करती है, तथा यह केंद्र बाह्यमन की ओर निरंतर सकारात्मक संवेदनाएं प्रक्षेपित करने लगता है ।
जब व्यक्ति एकाग्रता से नामजप करता है, तब केवल नामजप की संवेदना ही बाह्यमन तक जाती है क्योंकि यह सबसे शक्तिशाली संवेदना होती है । ईश्वर के नामजप से उत्पन्न संवेदनाओं की तुलना में अन्य सभी नकारात्मक संवेदनाएंन्यून हो जाती है; फलस्वरूप वे बाह्यमन में प्रवेश करने की अपनी शक्ति को खो देती है । इस प्रकार, नामजप की सहायता से, हम अपने मन में नकारात्मक विचारों अथवा भावनाओं को आने से रोक सकते हैं ।
यह कैसे कार्य करती है, इसका उदाहरण देखते हैं, मान लेते हैं कि हमारे पास रस्सी का एक टुकडा है । यदि हम उसके निकट उससे अधिक बडी रस्सी रख दें तो पहले वाले रस्सी के टुकडे का महत्त्व समाप्त हो जाएगा । उसी प्रकार, ‘जब नामजप केंद्र’ अधिक प्रधान हो जाता है, तब उसके साथ बाह्यमन पर दूसरे संस्कारों का प्रभाव कम हो जाता है । अतः, C १ पद्धति की स्वसूचना का नियमित रूप से अभ्यास करने से तथा इस प्रकार नामजप में वृद्धि करने से, अंतर्मन आधात्मिक रूप से शुद्ध बन जाता है तथा स्वभाव दोषों के संस्कारों पर विजय प्राप्त करना सरल हो जाता है । C १ पद्धति की स्वसूचना अत्यधिक विचारों को न्यून करती है, फलस्वरूप हम शांत एवं नियंत्रण में रहने लगते हैं ।
३. C १ पद्धति की स्वसूचना को बनाने का प्रारूप
जब हमारा मन खाली होता है अथवा किसी आवश्यक कार्य में लिप्त नहीं होता है उस समय C १ पद्धति की स्वसूचना का उपयोग मन को सकारात्मकता की ओर मोडने के लिए किया जाता है । स्वसूचना मन को ईश्वर का नामजप करने अथवा सकारात्मक वाक्य अथवा उक्ति को दोहराने के लिए स्वयं को लीन करने का निर्देश देती है ।
C १ पद्धति की स्वसूचना के कुछ विशिष्ट उदाहरण आगे दिए गए हैं ।
स्वसूचना: ‘जब मेरे मन में कोई आवश्यक विचार नहीं होंगे अथवा मैं किसी से बातचीत नहीं कर रहा होऊंगा, तब मैं दोहराना आरंभ करूंगा ।
स्वसूचना: ‘जब मैं किसी से बातचीत नहीं कर रहा होऊंगा अथवा मेरे मन मैं अनावश्यक विचार होंगे, तब मैं नामजप करना आरंभ करूंगा’ ।
४. C १ पद्धति की स्वसूचना का उपयोग एवं लाभ
इ१ पद्धति की स्वसूचना का मन पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पडता है । यह पद्धति इसलिए उपयोगी है क्योंकि यह :
- मन में आनेवाले अनेक विचार एवं भावनाओं को न्यून करने में सहायता करती है
- नकारात्मक एवं पुनः पुनः आनेवाले अनावश्यक विचारों को मन में आने से रोकती है
- नकारात्मक विचार के स्वरूप को तथा बारंबार आनेवाले विचारों को नष्ट करती है
- मन को सकारात्मक बनाए रखती है
- मानसिक ऊर्जा को संरक्षित करती है तथा तनाव को सहन करने की क्षमता में वृद्धि करती है तथा इसलिए यह सभी मानसिक रोगों में उपयोगी है ।
प्रतिदिन अनेक बार हम अकेले होते हैं । हम भले ही सांसारिक कार्यों जैसे भोजन बनाना, साफ सफाई करना, वाहन चलाना, स्नान करना इत्यादि कार्य में लिप्त रहते हैं । किंतु, हमारा मन सदैव सक्रिय रहता है । आंशिक रूप से, हमारा मन हम जाे कार्य कर रहे हाेते हैं उस पर केंद्रित होता है, किंतु उसी समय, यह अन्य अनावश्यक विचारों में मग्न रहता है । यहां तक कि जब हम किसी से बातचीत कर रहे होते हैं, तब भी हमारा मन और कहीं जा सकता है । इ१ पद्धति की स्वसूचना नामजप होने में सहायता करती है तथा फलस्वरूप मन को वर्तमान क्षण में रखती है ।
C १ पद्धति की स्वसूचना, प्रतिदिन दूसरे प्रकार की स्वसूचानाओं के साथ दी जा सकती है ।
५. C १ पद्धति की स्वसूचानों के कुछ और उदाहरण
C १ पद्धति की स्वसूचना को कैसे बना सकते है, इसके कुछ और उदाहरण आगे दिए गए है ।
- ‘जब मेरे मन में उत्कंठित, चिंताजनक, व्याकुल करनेवाले अथवा नकारात्मक विचार आएंगे, तब मैं ईश्वर का नामजप आरंभ करूंगा ।’
- ‘जब मेरे मन में चिंता, भय, अथवा व्याकुल करनेवाले अथवा नकारात्मक प्रसंग से संबंधित अनावश्यक विचार आएंगे, तब मैं ईश्वर का नामजप करना आरंभ करूंगा ।’
यहां अंत में हम ईश्वर का नामजप करना कहने के स्थान पर, स्वसूचना आगे दिए अनुसार भी बना सकते हैं ।
‘जब मेरे मन में उत्कंठित, चिंताजनक, व्याकुल करनेवाले अथवा नकारात्मक विचार आएंगे, तब मैं उसे रोकूंगा और मैं ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नामजप करना आरंभ करूंगा ।’
- जब मेरे स्वभावदोषों के कारण मुझसे कोई अनावश्यक विचार, भावना अथवा कृति होगी, तब मुझे उसका भान होगा ओर मैं नामजप करना आरंभ करूंगा ।
- जब मैं कोई आवश्यक कार्य नहीं कर रहा होऊंगा, तब मुझे उसका भान होगा और मैं ईश्वर का नामजप करना आरंभ करूंगा ।
- जब मैं किसी से आवश्यक बातचीत नहीं कर रहा होऊंगा अथवा मेरे मन में अयोग्य विचार होंगे, तब मुझे यह भान होगा कि स्वभावदोषों के संस्कारों को दूर करने तथा अपने अंतर्मन में गुण निर्माण करने एवं उन गुणों को दृढ बनाने हेतु नामजप लाभदायक है । इसलिए, मैं ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ नाम जप आरंभ करूंगा ।
हम स्वसूचना के अंतिम भाग को बदलकर स्वसूचना में थोडा परिवर्तन भी कर सकते हैं । ईश्वर का नामजप कहने के स्थान पर, हम स्वसूचना के अंत में एक सकारात्मक वाक्य का भी उपयोग कर सकते हैं । इस प्रकार की स्वसूचना का उदाहरण नीचे दिया गया है ।
- ‘जब मैं पूर्व की घटनाओं के विषय में सोचता रहूंगा जो मुझे दुखी करती है, तब मैं यह दाेहराऊंगा कि मैं अब वर्तमान में हूं, मैं संतुष्ट और शांत हूं’ ।
- ‘जब मेरे मन में अनावश्यक विचार आएंगे, जो मुझे चिंतित करते हैं, तब मैं यह दाेहराऊंगा कि मैं निश्चिंत, प्रसन्न एवं तनावमुक्त हूं ।’
C १ पद्धति के लिए यह सुझाव है कि मन को कुछ दोहराने का निर्देश देते समय, ईश्वर का नामजप करने का निर्देश देना सर्वोत्तम होगा । सकारात्मक वाक्य से व्यक्ति को मानसिक लाभ प्राप्त होता है । किंतु जब यह ईश्वर का नामजप होगा तो व्यक्ति को स्वसूचना देने से मानसिक लाभ के साथ ही आध्यात्मिक लाभ भी प्राप्त होगा ।
ईश्वर के नामजप से उत्पन्न दैवी शक्ति अंतर्मन में नकारात्मक संस्कारों को समाप्त करती है । इसके साथ ही, नए नकारात्मक संस्कार नहीं उत्पन्न होते । फलस्वरूप, मन अधिक स्थिर हो जाता है तथा पूरा तनाव न्यून हो जाता है और हम शांत अनुभव करते है ।
६. नामजप कैसे कार्य करता है तथा इ१ पद्धति की क्रियाविधि कैसी होती है
अंतर्मन में विद्यमान सबसे प्रबल संस्कार तथा केंद्र, सर्वाधिक प्रबल विचारों का निर्माण करते हैं, और वे ही प्रबल विचार बाह्यमन में प्रवेश करते हैं । किसी भी समय में, बाह्यमन में केवल एक विचार को ही आने देने की क्षमता होती है तथा वही विचार सर्वाधिक प्रबल होता है ।
जब हम निरंतर ईश्वर का नामजप करते रहते हैं, तब मन में दूसरे संस्कारों एवं केंद्रों परअत्यल्प ध्यान जाता है । निरंतर उपेक्षित होने पर, दूसरे केंद्र की प्रबलता न्यून होने लगती है तथा अंततः वे नष्ट हाे जाते हैं ।
‘विक्षेपण विधि के माध्यम से नामजप कैसे कार्य करता है’, कृपया इस लेख का संदर्भ लें ।
७. निष्कर्ष
हमारे मन में पिछले अनेक जन्मों से संचित नकारात्मक संस्कारों को स्वयं के बल पर दूर करना कठिन होता है । ईश्वर का नामजप करना, ईश्वर की सहायता लेने तथा उनकी दैवी शक्ति प्राप्त करने समान है । फलस्वरूप, नकारात्मक संस्कारों की प्रबलता न्यून करना सरल हो जाता है । अपने स्वभाव में स्थायी परिवर्तन लाने हेतु स्वसूचाना एक आजमाई हुई और जांची हुई पद्धति है । C १ पद्धति की स्वसूचनाएं व्यक्ति की ऊर्जा को बचाती है तथा मन को सकारात्मक बनाए रखती है ।