विषय सूची
१. आत्म-विश्लेषण की प्रस्तावना
हम सभी का एक स्वभाव होता है और हम सभी में स्वभाव दोष भी विविध मात्रा में होते हैं, किसी में अल्प तो किसी में अधिक । खंड २.१ – आत्म जागरूकता व्यक्तित्व विकास का प्रथम चरण है, में हमने एक अच्छा व्यक्ति बनने हेतु स्वभाव दोषों के प्रति आत्म जागरूक होना कितना महत्वपूर्ण है, इस पर चर्चा की । यद्यपि स्वयं को समझना सरल नहीं है तथा व्यक्तित्व और मन को समझने में अनेक माह लग सकते हैं, इसलिए स्वभाव दोषों को दूर करने के लिए स्वयं को ही कार्य करना पडेगा । स्वयं का तटस्थता से विश्लेषण करना बहुत कठिन हो सकता है तथा इस क्षमता को विकसित होने में थोडा समय लग सकता है एवं इसमें व्यक्ति को स्वयं के प्रति निष्पक्ष और ईमानदार रहने की आवश्यकता होती है । यह व्यक्ति के मन की वास्तविक अवस्था को समझने के लिए उसकी तडप से भी संबंधित है ।
पिछले अध्याय में, हमने आपसे विभिन्न घटनाओं तथा परिस्थितियों में आपसे जहां चूकें हुई अथवा प्रतिकूल प्रतिक्रिया हुई उसे किस प्रकार लिखना है इसे साझा किया था । यह स्वयं के विषय में जानकारी एकत्रित करने का प्रथम चरण है ।
एक बार विभिन्न चूकें लिखने के उपरांत, आप अपनी चूकों का विश्लेषण कैसे करना है इस विषय में अगले चरण के लिए तैयार रहते हैं । इस अध्याय में तथा अगले कुछ अध्यायों में हम इन अगले चरणों को समझेंगे । हम चूक की तीव्रता/गंभीरता को समझने के साथ उसके मूल कारण का विश्लेषण तथा आकलन कैसे करना है इसकी रूपरेखा प्रदान करेंगे ।
इस लेख में, हम एम एस एक्सेल में बनी डाउनलोड की जा सकने वाली स्वभाव दोष निर्मूलन सारणी के स्तंभ D, E तथा F के अनुसार चूकों का विश्लेषण कैसे करते है इस पर चर्चा करेंगे ।
२. स्तंभ D – चूक की तीव्रता कैसे निर्धारित करें ?
स्तंभ D में ड्रॉप डाउन सूची को समझाने से पूर्व हम आपको तीव्रता को कैसे निर्धारित किया जा सकता है इसके विविध मापदंडों से संबंधित कुछ पृष्ठभूमि जानकारी देना चाहेंगे । मापदंड आगे दिए गए अनुसार है :
१. स्वभावगत गुण अथवा विशेषता की प्रवृति : इस प्रकरण में यह स्वभाव दोष की प्रवृति से संबंधित है ।
२. दोषों की प्रबलता/तीव्रता : यह दोष की तीव्रता से सबंधित है
३. स्वभाव दोष की गति : यह स्वभाव दोष व्यक्ति को कितने शीघ्र क्रिया अथवा प्रतिक्रिया करवा सकता है इससे संबंधित है । यह प्रतिक्रिया की अवधि से भी संबंधित हो सकता है ।
४. स्वभाव दोष कितने समय तक रहता है ? क्या यह मूल अथवा द्वितीयक अवांछनीय विशेषता है ?:
- मूल अवांछनीय स्वभावगत विशेषता का संबंध उस स्वभाव दोष से है जो अनेक वर्षों से जैसे कि व्यक्ति की किशोरावस्था से व्याप्त है । ये प्रायः वे विशेषताएं होते हैं जो व्यक्ति के स्वभाव में दृढ हो जाते हैं ।
- द्वितीयक अवांछनीय विशेषता किसी महत्वपूर्ण घटना जैसे किसी प्रिय को खो देना अथवा परीक्षा में विफल होने अथवा मानसिक अवस्था जैसे निराशा के उपरांत प्रकट हो सकता है । किंतु यदि व्यक्ति इन दोषों पर विजय प्राप्त नहीं कर पाता है तो समय के साथ यह द्वितीयक दोष उसके व्यक्तित्व का भाग ही माने जाएंगे । (संदर्भ: ट्रांसिएंट कैरेक्टरिस्टिक्स इन हिप्नोथेरेपी एक्कोर्डिंग टू द पर्सनालिटी डिफेक्ट मॉडल ऑफ साईकोथेरेपी I)
५. हमारे आस पास के लोगों तथा समाज पर पडने वाला प्रभाव ।
हम केवल इसी बात को ही ध्यान में नहीं रखते कि गुण अथवा दोष में गुणवत्ता (प्रवृति) तथा मात्रा (प्रकटीकरण की आवृति) होती है अपितु यह भी ध्यान में रखते हैं कि इसमें गति अथवा बल भी होता है । अतः कुछ गुणों की गति का निर्धारण समय के कारक से किया जा सकता है । आइए उपर्युक्त दिए तथ्यों से संबंधित कुछ उदाहरणों पर दृष्टि डालते है जिससे इसे समझना अधिक सरल हो जाएगा ।
उदाहरण १: एक व्यसनी (शारीरिक स्तर पर)
मापदंड | विवरण |
---|---|
स्वभावगत विशेषता की प्रवृति | मद्यपान करना |
स्वभावगत विशेषता की मात्रा | एक दिन में शराब के ८ पेग पीता है |
स्वभावगत विशेषता की गति | आधे घंटे में ८ पेग पीता है |
मूल अथवा द्वितीयक | यह लत पिछले २० वर्षों से उसमें है – अतः इसे ‘मूल’ माना जाएगा क्योंकि यह उसके स्वभाव में दृढ हो चुका है । |
दूसरों पर प्रभाव | अधिक । कभी-कभी यह हिंसक व्यवहार हेतु प्रवृत हो जाता है |
उदाहरण २: एक क्रोधी व्यक्ति (मानसिक स्तर पर)
मापदंड | विवरण |
---|---|
स्वभावगत विशेषता की प्रवृति | चिडचिडापन |
स्वभावगत विशेषता की मात्रा | अत्यधिक चिडचिडा |
स्वभावगत विशेषता की गति | जब उसे क्रोध आता है तो वो कई घंटों तक निरंतर चिडचिडा रहता है |
मूल अथवा द्वितीयक | द्वितीयक – उसमें चिडचिडापन एक वर्ष पहले उत्पन्न हुआ जब उसकी नौकरी छूट गर्इ थी तथा अभी तक उसे दूसरी नहीं मिली । |
दूसरों पर प्रभाव | अधिक – मित्रों तथा परिवार के साथ घर की भी शांति भंग होना । |
किसी के स्वभाव की कुछ विशेषताएं दूसरों को मान्य अथवा अवमान्य हो सकती है । उदाहरण के लिए किसी की बुद्धिमत्ता अथवा यह ज्ञान कि मद्य स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है इससे मद्य के प्रति ‘आसक्ति’ कम अथवा परिवर्तित हो सकती है ।
जैसा कि आप उपर्युक्त उदाहरणों से देख सकते हैं कि व्यक्ति अपने कृत्यों तथा प्रतिक्रियाओं की तीव्रता, गति तथा प्रभाव का विश्लेषण तथा निर्धारण कर सकता है । इसे अपने दैनिक स्वभाव दोष सारणी में लिखने हेतु हमने दैनिक स्वभाव दोष सारणी टेम्पलेट स्प्रेडशीट में स्तंभ D दिया है । आप जो चूकें स्तंभ C में वर्गीकृत करेंगे उसके आधार पर अर्थात अयोग्य कृत्य, अयोग्य प्रतिक्रियाएं अथवा जहां कहीं अयोग्य कृति अथवा प्रतिक्रिया होती है (अर्थात दोनों) उसके अनुसार ही स्तंभ C का ड्रॉप डाउन विकल्प भी नीचे दिए अनुसार परिवर्तित होगा ।
प्रतिक्रिया | कृति | दोनों (कृति तथा प्रतिक्रिया) |
---|---|---|
कुछ मिनट | प्रासंगिक | कम तीव्र |
कुछ घंटे | कभी कभी | अधिक तीव्र |
१ दिन | प्रायः | |
कुछ दिन | दीर्घकालिक | |
कुछ सप्ताह | ||
कुछ महीनों |
स्वभाव दोषों के कारण हुई चूकों की तीव्रता का विश्लेषण करने पर व्यक्ति उचित प्रकार से यह निर्णय ले सकता है कि उसे किस स्वभाव दोष को प्राथमिकता देकर उस पर कार्य करना है । यह इस बात का भी सूचक है कि इसे स्वभाव दोष पर विजय प्राप्त करने में कितना समय लग सकता है । नीचे दिए गए चित्र में हम यह समझेंगे कि किस स्वभाव दोष पर पहले कार्य करना चाहिए तथा इसका निर्णय कैसे लेते हैं ।
जिन स्वभाव दोषों की तीव्रता अधिक है तथा जिसके कारण दूसरे लोग प्रभावित होते हैं उन्हें जितना शीघ्र हो सके दूर करना चाहिए । कुछ प्रकरणों में, किसी के स्वभाव दोष का प्रभाव लाखों लोगों को प्रभावित कर सकता है । परिणामस्वरूप उस व्यक्ति का नकारात्मक प्रारब्ध (कर्म) शीघ्रता से बढता है । उदाहरण जब एक भ्रष्ट नेता अपने व्यक्तिगत लाभ के लोभ के कारण राष्ट्र की संपति चुराता है तब इसका प्रभाव कहीं अधिक होगा ।
यदि कोई किसी कारणवश सबसे गंभीर स्वभाव दोष पर कार्य करने में असमर्थ हो तो निम्नतर स्वभाव दोष के साथ आरंभ किया जा सकता है तथा उपरांत में अधिक गहन दोषों पर विजय प्राप्त करने का प्रयास किया जा सकता है ।
३. स्तंभ E – दीर्घ समय तक रहने वाली समस्या
स्तंभ E में आपको यह समझने का अवसर मिलेगा कि जो घटना/प्रतिक्रिया हुई है, क्या वो आपके प्रकरण में दीर्घ समय तक रहने वाली समस्या के रूप में है । इसके विकल्प सामान्यतः ‘हां’ अथवा ‘ना’ में होंगे ।
उदाहरण के लिए, यदि आपने पिछले एक दशक से स्वयं में किसी प्रतिक्रिया का अनुभव किया हो जैसे ‘सहकर्मी की प्रशंसा होने पर ईर्ष्या की भावना होना’, तो स्तंभ ‘E’ में वह उस प्रतिक्रिया के लिए ‘हां’ को चिन्हित कर सकता है ।
स्तंभ B में वर्णित घटना के लिए ‘हां’ चिन्हित करने पर, आप अपनी स्वयं की आत्म जागरूकता पर प्रकाश डालते है कि सभवतः इस प्रकार की घटनाएं आपको अथवा दूसरों को अनेक वर्षों से किसी प्रकार कष्ट पहुंचाती आई है । यह स्तंभ पिछले स्तंभ D जो ‘तीव्रता’ के विषय में है उससे संबंधित है तथा यह स्वभाव दोष की तीव्रता अर्थात चूकें होना तथा उससे कितनी देर तक व्यक्ति त्रस्त रहता है यह समझने में सहायता करता है ।
वैकल्पिक रूप से, यदि यह दीर्घ समय तक रहने वाली समस्या नहीं है तो स्तंभ E में ‘नहीं’ को चिन्हित किया जा सकता है ।
४. स्तंभ F – चूक का भान किसने करवाया ?
इस स्तंभ में, आपको आपकी चूकों का भान किसने करवाया इसका विवरण देने का अवसर मिलेगा । इसमें मूलतः चयन हेतु दो विकल्प है – अन्य तथा स्वयं ।
यह ध्यान देने की बात है क्योंकि यह व्यक्ति को उसके आत्म जागरूकता के स्तर को समझने में सहायक है । यदि अन्य लोग आपकी चूकों को आपसे अधिक ध्यान दिला रहे है तो यहां ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि यह दर्शाता है कि आपको अपने कृत्यों तथा प्रतिक्रियाओं और दूसरों पर पडने वाले उसके प्रभावों का भान अल्प है ।
ऊपर बताए गए तथ्यों के साथ-साथ ड्रॉप डाउन से आप उन लोगों के समूहों का भी चयन कर सकते है जिन्होंने आपको आपकी चूकों का भान करवाया जैसे परिवार, मित्र, सहकर्मी, साधक तथा आपके अधिकारी । जो लोग आपसे प्रतिदिन मिलते हैं उनमें आपकी चूकों का निरीक्षण करने की संभावना अधिक होती है । यदि वे आप पर क्रोधित होते हों अथवा आपने कुछ किया हो अथवा न किया हो उस पर टिप्पणी करते हों तो सतर्क हो जाएं । यदि आप उनके इस प्रकार के मत को निष्पक्ष रूप से देखेंगे तो आपको दिखाई देगा कि वे वास्तव में आपको आपके ही बारे में ही कुछ बता रहे हैं । यदि आप उनके मत से असहमत भी होंगे तो भी यह उनकी दृष्टि में चूक ही मानी जाएगी । इसलिए उत्तम यही है कि इसे लिख लिया जाए तथा इस पर आत्मविश्लेषण किया जाए । एक बार आपको पीडीआर प्रक्रिया समझ आ जाने पर, आप आगे होकर अपने से प्रायः मिलने वाले लोगों से जो यह बता सकते हैं कि आपमें कहां सुधार की आवश्यकता है, उनसे इस विषय में कुछ भी पूछ सकते हैं । आप उनसे किसी विशिष्ट परिस्थिति का उदाहरण जिसमें उन्हें लगा हो कि आपमें यहां कमी रही थी उसे बताने को कह सकते है । जब आप सत्संग में सम्मिलित होना आरंभ होंगे तथा किसी प्रकार की सत्सेवा करेंगे तो जो साधक स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया से अधिक परिचित हैं उन्हें आपका निरीक्षण करने का अवसर मिलेगा तथा वे आपको सुधार के क्षेत्रों को पहचानने में आपकी सहायता करेंगे ।
अगला भाग देखें – आत्म विश्लेषक साधन – स्वभावदोष निर्मूलन सारणी (भाग २)