विषय सूची
SSRF शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं के लिए इन आध्यात्मिक उपचारों के साथ ही अन्य परंपरागत उपचारों को जारी रखने का परामर्श देता है ।
आध्यात्मिक उपचार की प्रभावकारिता को प्रभावित करनेवाले कारक अनेक पहलुओं पर निर्भर करते हैं और परिवर्तित भी होते हैं । इन विविध पहलुओं के मध्य का पारस्परिक संबंध जटिल है तथा आध्यात्मिक उपचार की प्रभावकारिता को प्रभावित करनेवाले कारक की कुंजी व्यक्ति की साधना की मात्रा तथा गुणात्मकता में है । केवल अतींद्रिय संवेदनक्षमता अथवा छठवीं इंद्रिय से युक्त व्यक्ति ही अन्य की समस्या के विविध कारकों की भूमिका को समझ सकता है ।
विभिन्न पहलू निम्नलिखित हैं :
आध्यात्मिक उपचार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से है ? |
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१. प्रभावित व्यक्ति |
२. उत्तरदायी कारक अर्थात मूल आध्यात्मिक कारण का प्रकार |
३. कष्ट |
४. प्रयुक्त आध्यात्मिक उपचार |
५. आध्यात्मिक उपचारक |
१. प्रभावित व्यक्ति
अ. व्यक्ति का प्रारब्ध
व्यक्ति के कष्ट के ठीक होने की गति तथा मात्रा इस बात पर निर्भर करते हैं कि उसका कष्ट सौम्य, मध्यम अथवा तीव्र प्रारब्ध में से किस कारण से है । तीव्र प्रारब्ध की स्थिति में व्यक्ति को निर्धारित समय के लिए उसे भोगना ही पडता है । प्रभावित व्यक्ति सबसे पहले तो आध्यात्मिक उपचार करने का विचार भी नहीं कर पाता अथवा वह उपचार उसके लिए अनुपलब्ध हो सकता है । यदि उसे बताया भी जाए तो भी वह हठी रहेगा और कहेगा कि उसे इन सबमें विश्वास नहीं है । आध्यात्मिक उपचार की विविध पद्धतियों द्वारा स्वस्थ होने की संभावना पर प्रारब्ध का प्रभाव पर सारणी देखें ।
आ. व्यक्ति की साधना तथा आध्यात्मिक स्तर
व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर तथा उसके द्वारा की जा रही साधना यह निश्चित करने हेतु एकमात्र महत्वपूर्ण कारक है कि व्यक्ति ईश्वर से कितना संरक्षण प्राप्त कर सकता है । यदि व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर न्यून भी है किंतु उसमें ईश्वर-प्राप्ति की तीव्र इच्छा है तो ईश्वर उसे कष्ट पर विजय प्राप्त करने में सहायता करते हैं क्योंकि वह कष्ट उसकी साधना में अवरोध बन सकता है । कष्ट पर विजय प्राप्त करने से हमारा तात्पर्य है कष्ट का दूर हो जाना अथवा न्यून हो जाना अथवा व्यक्ति को उसे झेलने का सामर्थ्य मिलना और इस प्रकार उससे अप्रभावित रहना ।
हममें से जो लोग साधना कर रहे हैं, जो कि
- अध्यात्म के छः मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार है तथा
- साधना को बढाने हेतु निरंतर प्रयासरत हैं
उन्हें आध्यात्मिक उपचार के उपायों का पूर्णतः तथा स्थायी रूप से शीघ्र लाभ प्राप्त होने का अवसर अधिक होगा ।
इ. आध्यात्मिक उपचार के उपाय पर विश्वास
जिन्हें आध्यात्मिक उपचार में विश्वास अल्प है अथवा बिलकुल भी नहीं है, उनकी तुलना में जिनको इसमें विश्वास है वे शीघ्र तथा पूर्ण रूप से लाभांवित होंगे । यद्यपि जिन्हें इन पर विश्वास नहीं भी है उन्हें भी आध्यात्मिक उपचार के उपायों का लाभ मिलेगा भले ही वह पूरा न मिले ।
ई. आध्यात्मिक उपचार करने की नियमितता तथा तीव्रता
आध्यात्मिक उपचारों को करने की नियमितता तथा तीव्रता उपचार की गति निश्चित करती है ।
उ. आध्यात्मिक उपचार वैज्ञानिक दृष्टि से अथवा अचूकता से कैसे किया जाता है
यदि आध्यात्मिक उपचार के उपाय को योग्य आध्यात्मिक पद्धति से न किया जाए तो उसका प्रभाव घट जाएगा अथवा नगण्य हो जाएगा । यह आध्यात्मिक उपचार के उपायों तथा उनके योग्य क्रियान्वयन हेतु अध्यात्मशास्त्र का अध्ययन करने के महत्त्व पर बल देता है ।
ऊ. कष्ट के प्रारंभ होने के उपरांत कितने शीघ्र आध्यात्मिक उपचार को किया जाता है
जिस कष्ट का मूल कारण आध्यात्मिक आयाम में है उसके प्रारंभ होने के उपरांत आध्यामिक उपचार जितना शीघ्र आरंभ किया जाएगा उतना ही अच्छा परिणाम मिलेगा ।
ए. क्या आध्यात्मिक उपचार स्वतः किया जाता है अथवा संत के मार्गदर्शन से
स्वतः किए गए आध्यात्मिक उपचार की तुलना में एक संत द्वारा बताए गए समान आध्यात्मिक उपचार अधिक अच्छे परिणाम देगा । ऐसा इसलिए क्योंकि संतों द्वारा बताए गए आध्यात्मिक उपचार के पीछे उनका संकल्प होता है । साथ ही संत द्वारा सुझाए गए विशिष्ट उपाय को तुरंत करने पर उसका परिणाम अत्यंत प्रभावकारी होता है ।
ऐ. प्रभावित व्यक्ति के चारों ओर काली शक्ति के आवरण की मात्रा
व्यक्ति के चारों ओर काली शक्ति का आवरण जितना अधिक होगा उतना ही अधिक समय आध्यात्मिक उपचार को फलीभूत होने में लगेगा । वस्तुतः प्रारंभ में उपचार काले आवरण को दूर करने का कार्य करता है जिससे कि आध्यात्मिक उपचार का प्रभाव व्यक्ति तक पहुंच सके ।
२. उत्तरदायी कारक
१. प्रभावित करने वाले पूर्वज अथवा अनिष्ट शक्ति की शक्ति
कष्ट के लिए उत्तरदायी एवं प्रभावित करने वाले पूर्वज अथवा अनिष्ट शक्ति की शक्ति यदि अल्प है तो आध्यात्मिक उपचार व्यक्ति के कष्ट को तुरंत तथा अधिक पूर्णता से ठीक कर देगा । इसप्रकार प्रारंभ में एक व्यक्ति आध्यात्मिक उपचार के प्रति प्रभावशून्य प्रतीत हो सकता है । इसका एक कारण यह हो सकता है कि उसे आक्रांत करनेवाली अनिष्ट शक्ति अथवा पूर्वज की शक्ति अधिक हो और इसलिए वह आध्यात्मिक उपचार के प्रभाव का प्रतिरोध कर सकती है ।
२. एक अथवा अधिक उत्तरदायी कारक
यदि कष्ट केवल एक ही आध्यात्मिक उत्तरदायी कारक के कारण है तो कष्ट पर आध्यात्मिक उपचार का अच्छा प्रभाव पडता है । उदाहरण के लिए यदि व्यक्ति को पितृदोषों के कष्ट के कारण पामा (एक्जीमा) है तो ‘श्री गुरुदेव दत्त’ का नाम जप आरंभ करने पर पामा एक ही सप्ताह में ठीक हो सकता है, जैसा मेलबोर्न में हमारी एक कार्यशाला में उपस्थित एक व्यक्ति (प्रतिभागी) के प्रकरण में हुआ था । किंतु यदि यही प्रकरण किसी अनिष्ट शक्ति द्वारा किए गए आक्रमण के कारण होता तो वह जटिल हो सकता था और आध्यात्मिक उपचार से इस प्रकार के शीघ्र परिणाम भी न मिलते ।
३. यदि कष्ट का कारण पूर्णरूप से शारीरिक अथवा मानसिक आयाम में है
यदि कष्ट का कारण पूर्णरूप से शारीरिक अथवा मानसिक आयाम में है, तो आध्यात्मिक उपचार का प्रभाव उतना प्रभावशाली नहीं भी होता जितना कि आध्यात्मिक आयाम के कारणवाले प्रकरण में होता है । उदाहरण के लिए यदि व्यक्ति को पितृदोषों के कारण व्यसन की लत है तो वह एक सप्ताह में व्यसन से मुक्ति का अनुभव कर सकता है जैसा कि हमारी दुबई की कार्यशाला में एक प्रतिभागी के प्रकरण में हुआ था । यदि उनका व्यसन शारीरिक अथवा मानसिक कारण से होता तो उपचार का परिणाम इतना प्रभावशाली नहीं होता ।
तथापि पूर्ण विचार किया जाए तो कष्ट के पूर्ण रूप से शारीरिक अथवा मानसिक आयाम में होने पर भी आध्यात्मिक उपचार से व्यक्ति को लाभ मिलता है । यह शारीरिक अथवा मानसिक उपचार की प्रभावकारिता को बढाने के रूप में कार्य करता है । इसके साथ ही व्यक्ति के चारों ओर आया काली शक्ति का आवरण भी दूर हो जाता है । इस प्रकार यह व्यक्ति के स्वास्थ्यलाभ और परंपरागत चिकित्सा के प्रभाव को बढाने हेतु सहायक होता है ।
४. उत्तरदायी कारक ने एक ही बार प्रभावित किया है अथवा निरंतर प्रभावित कर रहा है
यदि आध्यात्मिक उत्तरदायी कारक से व्यक्ति एक ही बार प्रभावित हुआ है तो आध्यात्मिक उपचार के परिणाम सीमित अवधि में ही शीघ्र तथा अधिक पूर्ण रूप से प्राप्त होंगे । किंतु यदि उत्तरदायी कारक व्यक्ति को निरंतर प्रभावित कर रहा है तब आध्यात्मिक उपचार भी निरंतर करने की आवश्यकता होगी जब तक कि उत्तरदायी कारक सक्रिय है ।
एक व्यक्ति का उदाहरण लेते है जो एक प्रेतबाधित घर में जाने के उपरांत असामान्य व्यवहार दर्शाता है तथा वहां की काली शक्ति से प्रभावित हो जाता है । ऐसी स्थिति में थोडे समय के आध्यात्मिक उपचार से ही उसे लाभ प्राप्त होगा ।
किंतु यदि वह प्रेतबाधित घर में किसी अनिष्ट शक्ति द्वारा आविष्ट हो जाता है तथा उसके उपरांत असामान्य व्यवहार दर्शाता है, तब उसे कष्ट के लक्षणों को दूर करने के लिए आध्यात्मिक उपचार को दीर्घकाल तक निरंतर करते रहना होगा और कष्ट से मुक्ति के लिए वास्तव में लंबा समय लगेगा ।
३. कष्ट
१. एक अथवा अनेक कष्ट
यदि व्यक्ति को एक ही कष्ट है जैसे अनिष्ट शक्ति के आक्रमण के कारण हुआ पामा, तो यह अनेक कष्टों जैसे पामा के साथ असामान्य व्यवहार इत्यादि को दूर होने की तुलना में शीघ्रता से दूर होगा ।
२. प्रतिवर्ती अथवा अपरिवर्तनीय क्षति
अध्यात्मशास्त्र के छः मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार निरंतर साधना करना सबसे उत्तम आध्यात्मिक उपचार है ।
अन्य आध्यात्मिक उपचार उपायों में से निम्न ब्रह्मांडीय तत्त्वों पर आधारित उपचारों की अपेक्षा उच्च ब्रह्मांडीय तत्त्वों से संबंधित उपचार शीघ्रता से परिणाम देते हैं ।
उदाहरण के लिए, इत्र के प्रयोग से किया गया आध्यात्मिक उपचार सबसे निम्नस्तर के तत्त्व से संबंधित है अर्थात पृथ्वीतत्त्व से संबंधित । यह उपचार आप-तत्त्व से संबंधित ‘नमक पानी के उपचार’ से निम्न स्तर का है ।
४. प्रयुक्त आध्यात्मिक उपचार
१. प्रयुक्त आध्यात्मिक उपचार के प्रकार
अध्यात्मशास्त्र के छः मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार निरंतर साधना करना सबसे उत्तम आध्यात्मिक उपचार है ।
अन्य आध्यात्मिक उपचार उपायों में से निम्न ब्रह्मांडीय तत्त्वों पर आधारित उपचारों की अपेक्षा उच्च ब्रह्मांडीय तत्त्वों से संबंधित उपचार शीघ्रता से परिणाम देते हैं ।
उदाहरण के लिए, इत्र के प्रयोग से किया गया आध्यात्मिक उपचार सबसे निम्नस्तर के तत्त्व से संबंधित है अर्थात पृथ्वीतत्त्व से संबंधित । यह उपचार आप-तत्त्व से संबंधित ‘नमक पानी के उपचार’ से निम्न स्तर का है ।
२. प्रयुक्त उपचार विशिष्ट निदान के अनुसार किया जा रहा है अथवा मात्र अनुमान से
उत्तरदायी कारक के विशिष्ट निदान के उपरांत आध्यात्मिक उपचार का प्रयोग शीघ्र एवं पूर्ण परिणाम देता है । इसका कारण यह है कि अतींद्रिय संवेदीग्रहण क्षमता अथवा छठवीं इंद्रिय के प्रयोग से हम यथार्थ उत्तरदायी कारक अथवा कारकों को सही ढंग से पहचान सकते हैं तथा समस्या उत्पन्न होने के पीछे की यथार्थ क्रियापद्धति का भी पता लगा सकते हैं । यह योग्य आध्यात्मिक उपचार के चयन हेतु मार्ग प्रशस्त करता है । यह शीघ्र तथा अधिक पूर्ण रूप से एवं स्थायी परिणाम देता है । तथापि यदि कोई ऐसे ही अथवा स्वेच्छा से किसी विशिष्ट आध्यात्मिक उपचार को करता है तो उसके १०० प्रतिशत प्रभावी होने की संभावना अल्प होगी । इसका कारण यह है कि समाज में अधिकतर लोगों की छठवीं इंद्रिय अविकसित है तथा इसलिए उत्तरदायी कारक का अचूक निदान संभव नहीं हो पाता । फलस्वरूप योग्य आध्यत्मिक उपचार प्राप्त नहीं हो पाता । तब भी आध्यात्मिक उपचार के उपाय करने से हमारे कष्ट की तीव्रता के घटने की संभावना बढ जाती है ।
३. एक अथवा अनेक उपचारों का उपयोग करना
यदि अनेक आध्यात्मिक उपचारों को सामूहिक रूप से किया जाए तो अधिक लाभ होता है । उदाहरण के लिए विभूति लगाना, नमक पानी का उपचार करना तथा ईश्वर का नामजप करना । इनमें से केवल एक ही उपचार को करने की अपेक्षा सभी को सामूहिक रूप से किया जाए तो अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे ।
४. आध्यात्मिक उपचार के लिए प्रयोग की जाने वाली वस्तुओं की उपलब्धता
उपचार के लिए सभी आवश्यक तथा प्रामाणिक वस्तुओं की उपलब्धता अच्छे परिणाम को सुनिश्चित करती है । उदाहरण के लिए गोमूत्र के आध्यात्मिक उपचार के लिए वर्णसंकर रहित गाय के स्वच्छ मूत्र के प्रयोग से अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे ।
५. उपचार के लिए प्रयुक्त वस्तुओं की शक्ति
अपनाए जाने वाले आध्यात्मिक उपचार की प्रभावकारिता भी उपचार हेतु प्रयुक्त वस्तुओं की शुद्धता एवं शक्ति द्वारा सुनिश्चित होती है । उदाहरण के लिए यदि विभूति को आध्यात्मिक उपचार के रूप में प्रयोग किया जाना है, तो पूजाघर में जलाई गई अन्य अगरबत्तियों से प्राप्त विभूति की तुलना में SSRF द्वारा निर्मित अगरबत्तियों से प्राप्त विभूति अधिक शक्तिशाली होगी ।
६. उपचार में प्रयुक्त होनेवाली वस्तुओं पर काले आवरण की मात्रा
आध्यात्मिक उपचारों के लिए प्रयोग की जाने वाली सभी वस्तुओं जैसे विभूति, तीर्थ इत्यादि को यदि रज-तम वातावरण में रखा गया हो तो उन पर रज-तम का आवरण आ जाता है । इसके साथ ही परिसर में विद्यमान अनिष्ट शक्तियां अथवा व्यक्ति को प्रभावित करने वाली अनिष्ट शक्ति उन पर अपनी काली शक्ति का आवरण निर्मित कर सकती है । दोनों ही प्रसंग में आध्यात्मिक उपचार की वस्तुओं की प्रभावकारिता अत्यधिक घट जाती है । इसलिए यह ध्यान रहे कि इन वस्तुओं को सात्त्विक वातावरण जैसे पूजाघर में रखा जाना चाहिए तथा रज-तम के प्रभाव, जैसे किसी दूसरे प्रभावित व्यक्ति के संपर्क में आने इत्यादि, से दूर रखा जाना चाहिए । इसके साथ ही हमारा यह भी सुझाव है कि प्रत्येक बार आध्यात्मिक उपचार करते समय इन वस्तुओं के प्रयोग से पूर्व इनके शुद्धिकरण का उपाय किया जाना चाहिए । यह मात्र ईश्वर से इनको शुद्ध करने के लिए प्रार्थना करने से अथवा जल मिश्रित गोमूत्र (गोमूत्र अर्क) अथवा तीर्थ इत्यादि छिडकने से हो सकता है ।
५. आध्यात्मिक उपचारक
१. उपचारक का आध्यात्मिक स्तर तथा शक्ति
यह आवश्यक है कि जो उपचारक आध्यात्मिक उपचार करते हैं उनका आध्यात्मिक स्तर न्यूनतम ५० प्रतिशत होना चाहिए । इस स्तर पर मन का लय होना आरंभ हो चुका होता है तथा इसलिए उपचारक वैश्विक इच्छा-शक्ति ग्रहण करना आरंभ कर देता है । चूंकि वो इस सूक्ष्म-शक्ति को प्राप्त कर सकता है, इसलिए उसकी आध्यात्मिक उपचार करने की क्षमता अत्यधिक बढ जाती है ।
दूसरी ओर जिन उपचारकों का आध्यात्मिक स्तर ५० प्रतिशत से अल्प होता है तथा साथ ही आध्यत्मिक उपचार करने की क्षमता न्यूनतम होती है, ऐसे उपचारकों की उच्चस्तरीय अनिष्ट शक्तियों द्वारा आविष्ट किए जाने की संभावना रहती है । इसलिए जो लोग उनसे उपचार करवाते है, उनको भी आविष्ट करनेवाले जीव द्वारा प्रभावित अथवा आविष्ट किए जाने की संभावना रहती है ।
विभूति फूंकने जैसे आध्यत्मिक उपाय के प्रकरण में, जहां विभूति जैसी अचेतन वस्तु का प्रयोग किया जाता है, वहां आध्यात्मिक उपाय की केवल ५ प्रतिशत प्रभावशीलता ही वस्तु अर्थात विभूति पर निर्भर करती है । शेष ९५ प्रतिशत प्रभावशीलता विभूति फूंकनेवाले उपचारक पर निर्भर करती है ।
२. उपचार का ज्ञान तथा समझ
कभी-कभी उपचारक में आध्यात्मिक उपचार करने की क्षमता सहज ही अंतर्निहित होती है अथवा वे अपने अभिभावकों अथवा मार्गदर्शक से आध्यात्मिक उपचार की पद्धतियों को सीखते हैं । सामान्यतः यदि यह क्षमता विशिष्ट तथा आध्यात्मिक उपचार में उपायों के पीछे के अध्यात्मशास्त्र के गहरे ज्ञान और समझ से युक्त न हो, तो उपचारक की उपचार क्षमता अत्यंत सीमित हो जाती है ।
३. सूक्ष्म संवेदी तथा क्रियात्मक क्षमता
उच्चस्तरीय सूक्ष्म संवेदी क्षमता वाले उपचारक कष्ट के साथ उत्तरदायी कारक की भी पहचान करने में सक्षम होते हैं । (अपनी छठवीं इंद्रिय से असाधारण गतिविधि को ग्रहण करने की क्षमता की गहनता के संदर्भ में देखें) । उच्चस्तरीय सूक्ष्म संवेदी क्षमता से वास्तव में बचने का प्रयास कर रहे उत्तरदायी जीव को अनावृत करने में सहायता होती है । इससे विशिष्ट आध्यात्मिक उपचार की बेहतर योजना बनाने में भी सहायता होती है ।
उच्चतर सूक्ष्म क्रियात्मक क्षमता वाले उपचारक उच्चस्तरीय अनिष्ट शक्तियों से युद्ध करने में सक्षम होते हैं तथा सफलतापूर्वक उन पर विजय प्राप्त कर लेते हैं ।
४. गुरु की कृपा
जिस उपचारक ने गुरु अथवा संत की कृपा प्राप्त की हो उसके द्वारा किया गया आध्यात्मिक उपचार उस उपचारक की तुलना में शीघ्र तथा अधिक पूर्ण परिणाम देता है जिसने वही उपचार तथा उसी अनुभव एवं समान आध्यात्मिक स्तर के साथ गुरु अथवा संत की कृपा के बिना किया हो । इसका कारण यह है कि गुरु अथवा संत कृपा प्राप्त उपचारक के पीछे ईश्वरीय शक्ति होती है । इसलिए उसकी उपचार करने की शक्ति अत्यधिक होती है ।
५. यदि भूतावेश, उच्चस्तरीय अनिष्ट शक्ति द्वारा किया गया हो, तब उपचार में वृद्धि हो सकती है
कभी कभी उपचारक स्वयं ही उच्चस्तरीय अनिष्ट शक्ति जैसे सूक्ष्म स्तरीय-मांत्रिक द्वारा आविष्ट हो जाता है । ऐसा प्रायः उस स्थिति में होता है जब
- उपचारक का आध्यात्मिक स्तर ५० प्रतिशत से अल्प हो
- उपचारक ख्याति, बल तथा धन की लालसा के जाल में फंस गया हो
- उपचारक, संत अथवा गुरु के मार्गदर्शन में कार्य न कर अपने अनुसार कार्य करता हो
- उपचारक अपनी आध्यात्मिक शक्ति से अधिक बलवान अनिष्ट शक्ति को दूर करने करने का प्रयास कर रहा हो
ऐसे प्रकरणों में उपचारक अपनी स्वयं की क्षमता से अधिक अच्छे परिणाम देते हुए दिखाई दे सकता है । यह उपयोगी प्रतीत हो सकता है; किंतु वास्तव में कष्ट को दूर करने की आड में आविष्ट करनेवाली अनिष्ट शक्ति प्रभावित व्यक्ति में अत्यधिक काली शक्ति ्एकत्रित कर देती है ।
६. अन्य कारक
१. परिसर की सात्त्विकता
सात्त्विक परिसर में किया गया आध्यात्मिक उपचार शीघ्र तथा अच्छे परिणाम देता है, क्योंकि वातावरण के रज-तम को दूर करने के लिए शक्ति का व्यय नहीं होता । इसलिए घर में रज-तम के प्रभावों को दूर करने तथा घर के शुद्धिकरण के लिए उपाय करना अच्छा होगा ।
२. व्यक्ति की जीवनशैली
समान कष्ट पर समान आध्यात्मिक उपचार किए जाने पर एक सात्त्विक व्यक्ति एक असात्त्विक व्यक्ति की तुलना में अधिक शीघ्रता से उस उपचार के लाभ प्राप्त करेगा ।