SSRF शारीरिक एवं मानसिक रोगों के उपचार के लिए आध्यात्मिक उपचार के उपायों के साथ साथ परम्परागत चिकित्सीय उपचार को जारी रखने की सलाह देता है I पाठकों को सलाह दी जाती है कि वे अपने विवेक से ही किसी आध्यात्मिक उपचार को करें I
इस प्रश्न के उत्तर के लिए विभिन्न दृष्टिकोणों से कई घटकों एवं विश्लेषण पर विचार करने की आवश्यकता है । इन विभिन्न दृष्टिकोणों के मध्य परस्पर क्रिया जटिल है एवं किसी भी एक घटक को पृथक रूप से नहीं देखा जा सकता I
आध्यात्मिक उपचार के उपायों की प्रभावशीलता को प्रभावित करनेवाले घटक – कृपया संदर्भ हेतु यह लेख देखें ।
आध्यात्मिक उपचार द्वारा व्यक्ति के स्वस्थ होने की संभावना जांचते समय निम्नलिखित कुछ दृष्टिकोण ध्यान में रखना चाहिए :
१. प्रारब्ध, साधना एवं कैंसर के वैकल्पिक उपचार
जीवन को संकट में डालनेवाले रोग जैसे कैंसर निश्चित रूप से पूर्वनिधार्रित (प्रारब्ध) घटना है । प्रारब्ध से हमारा तात्पर्य जीवन के उस भाग से है जिसे हमें अपने पूर्व कर्मों के कारण भोगना पडता है एवं यह जन्म से ही पूर्वनिर्धारित होता है । प्रारब्ध सुखदायी अथवा दुःखदायी हो सकता है ।
कृपया प्रारब्ध एवं विशेष रूप से जीवन की समस्याओं के आध्यात्मिक मूल कारणों के संदर्भ में लेख देखें I
जब हम कहते है कि कैंसर प्रारब्ध के कारण हुआ है, तो इसका अर्थ है कि कैंसर का मूल कारण आध्यात्मिक (अर्थात् प्रारब्ध) है । अतः यह मात्र योग्य साधना द्वारा पूर्णतया ठीक हो सकता है जो कि कैंसर के वैकल्पिक उपचार का मूलभूत प्रकार है । कृपया ध्यान दें यहां साधना से हमारा तात्पर्य अध्यात्म के छः मूलभूत सिद्धांतों के अनुरूप होने से है ।
प्रारब्ध की तीव्रता के अनुसार साधना करने की आवश्यकता होगी । साधना :
- प्रारब्ध को प्रभावहीन कर देती है जिससे कैंसर ठीक हो जाता है, अथवा
- यह व्यक्ति को प्रारब्ध से संरक्षण प्रदान करता है जिससे व्यक्ति को कैंसर होने पर उसके कारण होनेवाले कष्ट को भोगना नहीं पडता ।
यदि कैंसर इन कारणों से है :
- सौम्य प्रारब्ध : सौम्य प्रारब्ध के कारण कैंसर होने की स्थिति में, किसी भी प्रकार की अपरिवतर्नशील स्थिति आने के पूर्व प्रारंभिक चरणों में ही कैंसर का पता चल जाता है, यह प्रायः सौम्य होता है, अन्य अंगों में नहीं फैलता एवं अच्छा पूर्वानुमान लग जाता है (अर्थात पुनः स्वस्थ होने का अवसर) । सौम्य प्रारब्ध पर विजय प्राप्त करने के लिए एवं कैंसर से ठीक होने के लिए नियमित रूप से मध्यम साधना (एक दिन में ४-५ घंटे) करने की आवश्यकता होती है ।
- मध्यम प्रारब्ध : मध्यम प्रारब्ध के कारण कैंसर होने की स्थितियों में, रोग का पता अगले चरण में चलता है, जब जैविक परिवर्तन पूर्णतया स्थापित हो जाते हैं I मध्यम प्रारब्ध के कारण होनेवाले कैंसर से ठीक होने हेतु नियमित रूप से तीव्र साधना (एक दिन में १०-१२ घंटे) करने की आवश्यकता होती है ।
- तीव्र प्रारब्ध : ऐसे प्रकरण में कैंसर प्रायः असाध्य प्रकार का होता है, ठीक न होने वाले परिवर्तन स्थापित होने के उपरांत इसका पता चलता है एवं इसका पूर्वानुमान लगाना कठिन है । ऐसे रोग से ठीक होने के लिए, दीर्घ काल तक तीव्र साधना करने की एवं संत अथवा ईश्वर की कृपा की आवश्यकता होती है ।
तीव्र प्रारब्ध के प्रकरण में, जब तक कोई ठोस कारण न हो (उदा. व्यक्ति ईश्वर-प्राप्ति के लिए तीव्र साधना कर रहा है एवं उपचार से जीवनकाल में वृद्धि होने पर आध्यात्मिक उन्नति की अधिक संभावना है), तब तक संत प्रायः प्रारब्ध के साथ हस्तक्षेप नहीं करते |
२. अन्य मूलभूत आध्यात्मिक कारण कौनसे हैं जो किसी के प्रारब्ध के कारण होते हैं ?
यदि प्रारब्ध, पूर्वज अथवा भूत (दानव, दैत्य, अनिष्ट शक्तियां इत्यादि) के माध्यम से कैंसर उत्पन्न कर रहा है, तो इस आध्यात्मिक पहलू का रोगनिदान एवं इसका वैकल्पिक (आध्यात्मिक) उपचार उचित उपाय के प्रभाव को बढाने के लिए एवं रोग ठीक होने की कालावधि को घटाने में सहायता करता है । ऐसी स्थितियों में, साधना के साथ उस आध्यात्मिक पहलू को दूर करने के लिए साधना के साथ निर्देशित विशिष्ट आध्यात्मिक उपचार करने पडते हैं ।
तीव्र प्रारब्ध अथवा अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, राक्षस इत्यादि) के कारण जिसे कैंसर है उसके रोगनिदान में विलंब हो सकता है, जिससे ठीक होने की संभावना न्यून हो जाती है ।
३. व्यक्ति के साधना प्रारंभ करने पर
यह व्यक्ति के साधना प्रारंभ करने के समय पर निर्भर करता है कि व्यक्ति पूर्णतया प्रारब्ध के रोग से बच सकता है अथवा प्रारब्ध के रोग की तीव्रता कुछ सीमा तक अल्प हो सकती है । प्रारब्ध की तीव्रता की तुलना में की गई साधना की गुणवत्ता एवं मात्रा के सीधे अनुपात में कष्ट की तीव्रता में कमी होगी ।
निम्न उदाहरण देखते हैं :
- जॉन को पेट का कैंसर है I
- जनवरी २००४ में कैंसर आरंभ हुआ एवं सितंबर २००४ में उसे “द्वितीय चरण के कैंसर” का पता चला ।
- जनवरी २००७ में कैंसर “तृतीय चरण में आगे बढा ।
- आध्यात्मिक मूल कारण मध्यम प्रारब्ध है । अन्य कोई आध्यात्मिक घटक स्थिति को जटिल नहीं कर रहा |
- जॉन को अपने जीवन काल में प्रारब्धानुसार कष्ट/दुःख की १०० र्इकाइयां भुगतनी हैं इसमें कैंसर का योगदान १० र्इकार्इ होगा ।
हम साधना आरंभ करने का समय एवं उसकी तीव्रता के संबंध में विभिन्न संभावित परिदृश्यों के प्रभाव को देखते है I
परिदृश्य | संभावित परिणाम |
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अ. व्यक्ति ने वर्ष २००० से साधना आरंभ की एवं निरंतर मध्यम साधना करता रहा । | व्यक्ति को कैंसर होता है परंतु वह केवल प्रथम चरण तक सीमित रहता है क्योंकि सितंबर २००५ से पहले ही उसका पता चल जाता है एवं तुरंत उचित चिकित्सीय उपचार किया जाता है । जीवन प्रत्याशा बढ जाती है एवं जीवन की गुणवत्ता में बहुत सुधार आता हैI कष्ट का अनुभव मात्र ३ र्इकार्इ है । |
ब. व्यक्ति ने सन २००० में तीव्र साधना आरंभ की एवं निरंतर जारी रखी I | सबसे पहले तो व्यक्ति को कैंसर हो ही नहीं सकता I |
स. व्यक्ति ने सन २००६ में तीव्र साधना आरंभ की एवं निरंतर जारी रखी I | कैंसर तृतीय चरण तक नहीं बढ पाएगा एवं कष्ट की कुछ र्इकाइयां कम हो जाएंगी । |
उपर्युक्त जानकारी से आप देखेंगे कि रोकथाम सदैव सर्वोत्तम विकल्प हैI उसी प्रकार, सदैव सावधानी रखना एवं तीव्रता के उच्च स्तरों पर प्रगतिशील रूप से निरंतर साधना करना अधिक श्रेष्ठ है । इससे हमारा प्रारब्ध प्रभावहीन हो जाता है एवं अपने जीवन के उद्देश्य को पूर्ण करते हुए हम आध्यात्मिक रूप से प्रगति करते हैं ।
४. क्या कैंसर के वैकल्पिक उपचारों के प्रयास करने से पूर्व अंग अधःपतन हुआ है ?
यदि अंग की क्षति अथवा अधःपतन हुआ है तो लगभग सभी परिस्थितियों में कैंसर के वैकल्पिक उपचारों से परिवर्तनों को पलटा नहीं जा सकता । चाहे अंग क्षति का कारण मुख्य रूप से आध्यात्मिक आयाम से संबंधित हो । तथापि रोग की तीव्रता अल्प हो सकती है ।
५. कैंसर का उपचार करनेवाले चिकित्सक के साथ लेन-देन का संबंध
चिकित्सक के साथ हमारे लेन-देन का संबंध एक अन्य घटक है, जिसे ध्यान में रखना आवश्यक है । यदि लेन-देन नकारात्मक है तब, अनेक वर्षों का अनुभव होते हुए भी चिकित्सक रोगी की परिस्थिति के मुख्य पहलुओं को अनजाने में अनदेखा कर सकता है, इसप्रकार उसके कष्ट में और वृद्धि होती है । यदि लेन-देन बहुत सकारात्मक है तब उस चिकित्सक के संदर्भ में ऐसा प्रतीत होता है कि चिकित्सीय उपचार के रूप में उसने जादू की छडी घुमार्इ है ।
इसी कारण किसी-किसी प्रकरण में रोगी चिकित्सक की देखभाल में भी अधिक अस्वस्थ हो जाता है । बाह्य रूप से हम इसे चिकित्सक की लापरवाही मान सकते हैं । तथापि, अधिकतर परिस्थितियों में आध्यात्मिक स्तर पर यह नकारात्मक लेन-देन का संबंध हो सकता है । लेन-देन के संबंध के कारण ही हम अनेकों चिकित्सकों में से किसी निश्चित चिकित्सक का ही चयन करते हैं ।
६. सारांश
जीवन को संकट में डालनेवाले गंभीर रोग जैसे कैंसर का मूल कारण आध्यात्मिक है एवं ये प्रारब्धाधीन है ।
- वैकल्पिक आध्यात्मिक उपचारों द्वारा कैंसर के उपचार को प्रभावित करनेवाले घटक जटिल है एवं इस पर अलग-अलग दृष्टिकोण से विचार करने की आवश्यकता है । तब भी आधुनिक चिकित्सीय विज्ञान मात्र भौतिक एवं मनोवैज्ञानिक पहलुओं तक ही सीमित है ।
- आधुनिक उपचार के साथ साधना एवं आध्यात्मिक उपचारों को जोडने से स्वस्थ होने की संभावना बढती है, अथवा तीव्र प्रारब्ध के प्रकरण में रोग की तीव्रता को अल्प करने में सहायता करता है ।
- १०० प्रतिशत उपचार संभाव है, यदि दोनों :
१. आध्यात्मिक मूल कारण का १०० प्रतिशत विशिष्ट रोग निदान किया जाए ।
२. आवश्यक मात्रा में एवं आवश्यक समय के लिए १०० प्रतिशत विशिष्ट वैकल्पिक उपचारों को लागू किया जाता है ।
- अंत में सबसे महत्वपूर्ण बात, यदि हम देखे कि हम अपने जीवन को आध्यात्मिक उद्देश्य के परिप्रेक्ष्य में कैसे जीते है, तो अधिकतर प्रकरणों में लोगों में आध्यात्मिक प्रगति करने की इच्छा नहीं होती है । विशुद्ध आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य से, यदि गंभीर रोग के पश्चात व्यक्ति का जीवनकाल ४-५ वर्ष बढ भी जाए, तब भी इससे कोई अंतर नहीं पड़ता क्योंकि किसी भी परिस्थिति में वह अपने जीवन को सांसारिक कार्यों में व्यर्थ कर देगा । तथापि, यदि व्यक्ति सच्चा साधक है एवं भौतिक मृत्यु के पश्चात उच्च लोकों की प्राप्ति हेतु साधना करने के लिए उसे धरती पर कुछ और वर्षों की आवश्यकता हो तो ईश्वर स्वयं व्यक्ति का जीवनकाल बढा देते हैं I