अध्यात्म में बौद्धिक ज्ञान का महत्त्व केवल २% है और उस ज्ञान को अनुभव करने का महत्त्व ९८ % है । ये अनुभव अनुभूति कहलाते हैं और अध्यात्म शास्त्र में हमारे विश्वास को दृढ करते हैं । अनुभूतियां कई प्रकार की हो सकती हैं ।
पंचज्ञानेंद्रिय को कुछ ऐसी भी अनुभूतियां होती है जो किसी तर्क संगत कारण के बिना आती हैं ।
उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति किसी कमरे के खिडकी-दरवाजे बंद करके निर्विघ्न और शांत रूप से ध्यान लगा रहा है । अचानक उसे चंदन की उदबत्ती की सुगंध आने लगती है । वह आश्चर्यचकित होकर इधर उधर देखने लगता है कि सुगंध कहां से आ रही है । वह घर के आस-पास देखता है, खिडकी खोलकर देखता है । वह जहां जाता है यह सुगंध उसका पीछा करती है । यह ईश्वर की हमें उत्साहित करने की एक विधि है । अनुभूतियों की अधिक जानकारी के लिए हमारा लेख पढे ।
दूसरी ओर हम इसका अनुभव कर सकते हैं कि साधना के सिद्धान्त अथवा तत्त्व के अनुसार जीवन जीने से किस प्रकार देवताओं की सहायता हमें मिलती है । इसी के कारण हमारा उस सिद्धान्त पर विश्वास बढता है और हम उसे आत्मसात करते हैं ।