१.समस्या क्या थी ?
स्वभाव से मैं अत्यंत अंतर्मुख, शर्मिला, तनावग्रस्त था और लोगों के साथ घुल-मिलकर नहीं रह पाता था ।
समस्या कब से आरंभ हुई यह ठीक से बता पाना कठिन है, किंतु मैं यह कह सकता हूं कि मेरी यह समस्या किशोरावस्था में आरंभ हुर्इ थी। मुझे बहुत ही विचित्र-सी संवेदनाएं होती थीं, जैसे कि मैं कोई भयानक दुर्घटना देख रहा हूं और मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं है । निम्नांकित कुछ घटनाएं (प्रसंग) हैं, जो कि मेरे लिए अत्यंत विचित्र-सी हैं :
- सडक पर चलते समय मुझे कभी-कभी ऐसा लगता था कि मैं बहुत ही लंबा हो गया हूं और कभी-कभी ऐसा लगता था कि मैं अपने शरीर से बाहर आ गया हूं ।
- बहुधा ऐसा होता था कि मैं सडक पर चल रहा हूं और अचानक मेरे मन में अपने निकट वाले व्यक्ति को (जिससे मैं परिचित भी नहीं हूं) पीटने अथवा उसे धकेलने के बुरे विचार अथवा कुछ लैंगिक विचार आते थे ।
- कभी-कभी किसी की हत्या करने जैसे अत्यंत अनिष्ट विचार भी मेरे मन में आते थे ।
- एक दिन मैं मॉडलिंग में अपने अभिनय की बारी आने की प्रतीक्षा में बैठा था । उस समय जब मैं अचानक पीछे मुडा, तो मेरे पीछे बैठी लडकी भय से चिल्ला पडी और दो मीटर पीछे हट गर्इ । उसने अपनी सहेलियों को बताया कि जब उसने मेरी आंखें देखीं, तो उसे बहुत भय लगा । (सामान्यतः, सिरियाक अत्यंत शांत स्वभाव के हैं ।) अनेक बार, जब मैं दर्पण में स्वयंको देखता, तो बहुत क्रोध आता ।
मुझे सिगरेट पीने का व्यसन भी था । मैं दिन में एक अथवा डेढ पैकेट सिगरेट पीता था । जब मैं किसी पार्टी में जाता था, तब सिगरेट के साथ बहुत मद्यपान भी करता था । कई बार मुझे मद्यपान की इच्छा अथवा आवश्यकता नहीं होती थी, तब भी मैं स्वयं को मद्यपान करते हुए पाता था।
एक और अनुभव कई बार होता था कि मुझे अचानक से थकान हुई है, मानो मेरी पूरी शक्ति किसी ने खींच ली है । मैं अपने कंधों पर बहुत भार अनुभव करता था; जैसे कि मैं किसी अन्यके कष्टों को ढो रहा हूं और बहुत ही निराशा का अनुभव करता था।
मुझे लगता था कि मेरे साथ कोई अनहोनी घटना हो रही है । पहले मैं सोचता कि मुझे कोई रोग हुआ है । इसके पश्चात लगा कि मैं थोडा सा पागल हो गया हूं । मुझे समझमें नहीं आ रहा था कि मेरी समस्याओं का समाधान क्या है । मनोविशेषज्ञके पास जानेकी मेरी इच्छा नहीं होती थी ।
२. निर्णायक घडी
फरवरी १९९९ में मैं योया के (जो अब मेरी पत्नी हैं) और उसकी मां दाना के संपर्क में आया । एक दिन मिलान (इटली) के एक रेस्टॉरंट में हम रात्रि भोज के लिए गए थे । दाना मेरे दाईं ओर बैठी थीं । उन्हें मेरे सर्व ओर एक कष्टदायी विद्युत प्रवाह दिखने के कारण, अचानक अस्वस्थता लगने लगी । उन्होंने मेरे दाएं कंधे को स्पर्श करने का प्रयत्न किया और अनुभव किया कि जो विद्युत प्रवाह उन्होंने अनुभव किया था, वह उन्हें जला रहा है । उन्हें लगा कि कुछ विचित्र घटित हो रहा है । इसके पश्चात उन्होंने मेरे माथे से १० सेंमी. की दूरी पर हाथ रखा । (कुछ दिनों के उपरांत उन्होंने मुझे बताया कि मेरे माथे पर उन्होंने हाथ क्यों रखा, इसका कारण वे स्वयं नहीं जानती हैं ।) उसी क्षण अनाकलनीय क्रोध मुझ पर सवार हुआ । मैं मेज से उठकर सीधा स्नानगृह में गया । मुझे इतना क्रोध आ रहा था कि दर्पण तोड दूं ।
इस प्रसंग के दो अथवा तीन दिन पश्चात मैं योया के साथ उसके घर गया । दाना ने मुझे बताया कि उन्होंने मेरे क्रोध तथा उस दिन मुझे क्या हुआ था, इसके विषय में प.पू. डॉ. आठवले जी से पूछा है । इसपर उन्होंने कहा कि मेरे कष्ट का कारण मेरे पूर्वजों की सूक्ष्म-देह हैं और मुझे इस समस्या के समाधान के लिए भगवान दत्तात्रेय का नामजप करना चाहिए ।
उसी क्षण मुझे भीतर से लगा कि मैं इसी उत्तर की प्रतीक्षा में था । मुझमें प्रेरणा जगी कि अपनी इस विचित्र वैचारिक एवं मानसिक अवस्था से निकलने के लिए मुझे यह नामजप अवश्य करना है । मैं इसका स्पष्टीकरण नहीं दे पाऊंगा कि यह मेरे लिए नई-सी कल्पना होते हुए भी मुझमें भगवान दत्तात्रेय का नामजप करने की इतनी उत्सुकता क्यों थी । परंतु मुझे इतना स्मरण है कि उस समय मेरे मन में विचार था, नामजप करने से मुझे कोई हानि नहीं होगी ।
मैंने यह नाम पहली बार ही सुना था । इसलिए मैं उसका उच्चारण ठीक से नहीं कर पा रहा था । अतः मैंने दाना को मेरे लिए कागज (कागद) के टुकडे पर लिख कर देने के लिए कहा । तदुपरांत मैं एकांत में नामजप करने के उद्देश्य से स्नानगृह में चला गया । बैठने के पश्चात जब मैंने कागद अपने हाथ में लिया, तो मुझे कुछ विचित्र-सा लगने लगा और नामजप का ठीक से उच्चारण करने में कठिनाई होने लगी । अतः मैंने ईश्वर से प्रार्थना की, ‘हे ईश्वर नामजप कैसे करना है, मैं नहीं जानता । कृपया आप ही मेरे लिए नामजप कीजिए ।’
मेरी प्रार्थना का मुझे तुरंत उत्तर मिला और नामजप अपने आप भीतर से आरंभ हुआ । मुझे प्रतीत हुआ कि मेरे भीतर यह नामजप तीव्र गतिसे वलयाकार घूमते हुए कार्य कर रहा है ।
कुछ मिनटों के पश्चात मैं उठा । मुझे चक्कर आने जैसा लगा । मैं अपने पैरों पर खडा भी नहीं हो पा रहा था । गहनता से नामजप करते हुए जब मैं वहां से निकलने लगा, तो लगा जैसे किसी ने मुझे स्नानगृह के दरवाजे में कील से जड दिया है । सहायता के लिए मैं चीख पडा । दाना शीघ्र आईं और दरवाजे से बाहर आने में मेरी सहायता की और मुझे प्रेमपूर्वक कुछ बताया।
मुझमें विद्यमान सूक्ष्मदेहों में से एक ने दाना से प्रत्युत्तर दिया, ‘देखो, मैं कितना शक्तिमान हूं ।’
मुझे लगा कि जैसे मैं ८ मीटर लंबा हूं । उस समय किसी ने मुझसे कहा कि मुझमें ८ अनिष्ट शक्तियां हैं और उनमें से एक सबसे बलवान है ।
मैंने दाना को यह सब बताया । दाना ने लेटने में मेरी सहायता की ।
३. साधना द्वारा समस्याओं पर विजय प्राप्त करने का दृढ निश्चय
दो दिन पश्चात योया सायं काल में मेरे साथ रही । उस रात में मुझे लग रहा था कि मेरे भीतर के पितर की सूक्ष्मदेह के मन में योया के प्रति बुरे विचार हैं । इसलिए प्रातः होते ही मैंने योया को उसके घर पहुंचा दिया ।
योया के घर से वापस लौटते समय, पितर की इस सूक्ष्मदेह के साथ लडने की मुझे तीव्र इच्छा हुई । मैंने मन में दृढ निश्चय किया कि जब तक ये पितर मेरे शरीर से निकल नहीं जाते, तब तक मैं प्रयत्न करता रहूंगा । उस समय मैं मेट्रो रेल में (भूमिगत रेल) था और मुझे गुस्सा आया । कुछ लोग मुझ से दूर हटे । मेरा क्रोध इतना तीव्र था कि रेल में जिस लोहे की सलाख को मैंने पकडा था, मुझे लगा कि मैं उसे तोड सकता हूं । भीतर से मैं समझ गया था कि जैसे ही मैंने पितर से लडने का निश्चय किया था, वह क्रोधित हुआ था । मैं डरा हुआ था ।
तब मैंने अचानक एक मृदु वाणी सुनी, ‘चिंता मत करो, मैं तुम्हारे साथ हूं ।’
मेट्रो से घर लौटते समय भी कुछ लोग मुझ से दूर हट गए । घर पहुंचते ही मैंने पलंग पर बैठकर नामजप करना आरंभ किया । कुछ ही क्षणों में, मैं गिर गया और मेरा शरीर ऐंठने लगा । कुछ समय पश्चात मैं पुनः उठकर बैठा और पुनः चक्कर आने तक नामजप करने लगा । मुझे ऐसी संवेदना का अनुभव हुआ कि मेरी देह पलंग से २०-३० सें.मी. ऊपर उठ गई है । मेरे मन में विचित्र से भय का निर्माण हुआ । मुझे मेरी स्थूलदेह का भान ही नहीं रहा, केवल सूक्ष्मदेह का आभास हो रहा था । ऐसा लगा जैसे मुझमें विद्यमान पितर की सूक्ष्मदेह को मुझसे हटाने के लिए आध्यात्मिक शल्यकर्म हो रहा है । इस संपूर्ण प्रक्रिया में मुझे कुछ भी वेदना नहीं हुई । यह दो दिन तक चलता रहा । इन दो दिनों में मैं नाममात्र सो पाया और अन्न ग्रहण कर पाया । तदुपरांत अचानक से मुझे लगा कि मुझमें विद्यमान मुख्य पितर की सूक्ष्मदेह मुझे छोडकर चली गई है ।
योया भी एक साधक है, जो SSRF के मार्गदर्शन में साधना करती है । उसके पास एक अद्भुत क्षमता है, जिसके द्वारा वह सूक्ष्म-जगत की गतिविधियों को देख पाती है और इस क्षमता के द्वारा उसने सूक्ष्म ज्ञान पर आधारित अनेक चित्र बनाए हैं । इन दो दिनों के मेरे अनुभवों को योया ने अपने सूक्ष्म ज्ञान के आधार पर चित्रित किया है । ये चित्र उन सूक्ष्म-स्तरीय गतिविधियों को दर्शाते हैं जो मुझमें हुए लक्षणीय परिवर्तन के सूचक हैं ।
दो दिन पश्चात मुझे अत्यधिक थकान का अनुभव हुआ । उस समय मैंने सिगरेट पीने का प्रयत्न किया, तो मैं आधी सिगरेट ही पी पाया और मुझे सिगरेट पीना बंद करना पडा ।
धीरे-धीरे मुझे अनुभव होने लगा कि मैं हलका होता जा रहा हूं । धूम्रपान करने की इच्छा न रहने के कारण मेरा धूम्रपान का व्यसन पूर्णतया बंद हुआ । इसी के साथ मेरे मन में नकारात्मक विचार आना बंद हुआ । अब मैं सब के साथ खुले मन से व्यवहार करने लगा ।
कुछ माह उपरांत मुझे पहले होने वाले कष्टों के कुछ लक्षण पुनः जागृत हुए । मुझे बताया गया कि मुझे पितरों की अनेक सूक्ष्मदेहों ने प्रभावित किया है । इसलिए मैंने आध्यात्मिक उपाय के रूप में प्रतिदिन ‘श्री गुरुदेव दत्त’ यह नामजप ३ माला (एक माला में १०८ मणि पिरोए होते हैं, इसलिए ३ माला अर्थात ३ x १०८ = ३२४ बार) जारी रखा । उसी वर्ष दिसंबर १९९९ में जब हम पहली बार गोवा में प.पू. डॉ. आठवले जी से मिले, तब पितरों की सूक्ष्मदेहों द्वारा दिए जाने वाले कष्ट तीव्र होने के कारण उन्होंने मुझे नामजप बढाकर ९ माला (९ x १०८ = ९७२) करने के लिए कहा । अगले कुछ माह में कई बार मैंने कष्ट अनुभव किए; परंतु इस समय अंतर यह था कि :
- मुझे इसका मूल कारण ज्ञात होने के कारण मैं न ही घबराया न ही मुझे तनाव आया ।
- इस पर उपाय के रूप में भगवान दत्तात्रेय का नामजप और मैं उसका अध्यात्मशास्त्रीय आधार जानता था ।
भगवान दत्तात्रेय का नामजप करने पर मेरे कष्टों की मात्रा शीघ्रता से न्यून हो जाती थी । भगवान दत्तात्रेय के नामजप के साथ ही, जन्म से रोमन कैथोलिक होने के कारण मुझे मदर मेरी का नामजप करने के लिए भी कहा गया था । इन दो नामजपों में बताया गया अंतर मुझे अभी तक स्मरण में है – भगवान दत्तात्रेय के नामजप का कार्य मेरी विशिष्ट आध्यात्मिक समस्या को दूर करने के लिए दी गर्इ औषधि के रूप में था, तो मदर मेरी के नामजप का कार्य एक साधारण आध्यात्मिक बलवर्धक के रूप में था ।
कृपया हमारा नामजप संबंधी खंड पढें
यद्यपि आरंभ में मेरे मन में साधना के विषय में कर्इ आशंकाएं थीं, तब भी मैं प्रतिदिन नामजप साधना करता रहा । आरंभ में हुए कष्ट का मुझे सदैव स्मरण रहता है और इससे मुझे यही खरा मार्ग है यह विश्वास दृढ होने और आरंभ में होनेवाले कष्ट दूर होकर बहुत दिन होने के पश्चात भी मुझे इस मार्ग पर दृढता से बने रहने की शक्ति मिलती है ।
४. सारांश
- एक सामान्य आध्यात्मिक समस्या : सिरियाक को जीवन में विविध प्रकार की समस्याएं थीं, जिनमें से अधिकांश पितरों की सूक्ष्मदेहों के कष्ट के कारण थीं । यह एक अत्यंत सामान्यरूप में पायी जानेवाली समस्या है, जो कि लगभग संपूर्ण मनुष्यजाति को प्रभावित करती है । पितृदोष इस खंड में हमने इस विषय का विस्तृत विवेचन किया है ।
- आध्यात्मिक निदान करनेकी पद्धति : श्री. सिरियाक की समस्या के मूल कारण का निदान प.पू. .डॉ. आठवले जी ने उनसे मिलने के पूर्व ही सूक्ष्म स्तर पर किया । आध्यात्मिक विश्व संबंधी उत्तर प्राप्त करने की पद्धति का वर्णन ‘आध्यात्मिक शोध’ खंड में किया गया है ।
- स्वीकार करने पर : निम्नांकित बातों का स्वीकार करने का श्रेय श्री. सिरियाक को जाता है,
- पितरों की सूक्ष्मदेहों द्वारा होनेवाले कष्ट का निदान और
- भगवान दत्तात्रेय का नामजप करने का उपाय खुले मन से स्वीकार करना
- यह आध्यात्मिक उपाय उनके धर्म और संस्कृति के लिए पूर्णतः अपरिचित होते हुए भी, उसे तुरंत आचरण में लाने से इस समस्या का समाधान शीघ्रता से संभव हुआ ।
- उपाय का शीघ्र मिला परिणाम : शीघ्र मिले परिणाम का श्रेय निम्नांकित तथ्यों को दिया जा सकता है –
- उपाय की वैशिष्ठ्यपूर्ण अचूकता
- भगवान दत्तात्रेय के नामजप के उपाय के पीछे विद्यमान प.पू. डॉ. आठवले जी का संकल्प
- श्री. सिरियाक द्वारा उपाय को तुरंत तथा पूर्ण स्वीकार किया जाना
- तत्परता से आचरण में लाना (ज्ञात होने पर तत्परता से आरंभ करना ।)
- उपाय आरंभ करने पर अनुभव हुए कष्ट : नामजप आरंभ करने पर सिरियाक द्वारा तत्काल अनुभव हुए कष्ट दर्शाते हैं कि पितरों की सूक्ष्म-देहों को नामजप से प्रक्षेपित ईश्वरीय शक्ति से कष्ट होने लगे । यह भी निदान तथा उपाय की अचूकता का प्रमाण है ।
- उपाय से धूम्रपान तुरंत थमना : नामजप के उपाय आरंभ करने के उपरांत सिगरेट पीना संभव न हो पाना और तभी से धूम्रपान बंद हो जाना, यह दर्शाता है कि धूम्रपान का व्यसन वास्तव में पितरों की सूक्ष्मदेहों के कष्टों की अभिव्यक्ति थी । पितरों की सूक्ष्मदेहों ने श्री. सिरियाक के शरीर का उपयोग धूम्रपान का व्यसन पूर्ण करने के लिए किया था ।