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१. योगवर्ग और आध्यात्मिक उन्नति – एक प्रस्तावना

आजकल संपूर्ण विश्‍व में योगवर्ग एवं योगाभ्यास करना बहुत लोकप्रिय हो रहा है। अनेक योगाभ्यास वर्गों में हमारे प्राचीन योगियोंद्वारा विकसित अनेक योगमुद्राएं (आसन) एवं श्‍वसन व्यायाम (प्राणायाम) सिखाए जाते हैं जिनसे हमारे शरीर में विद्यमान प्राणशक्ति का नियमन होता है । योगवर्ग में जाकर योगाभ्यास सीखने पर होने वाली आध्यात्मिक उन्नति को ध्यान में रखकर हमने यह निश्‍चय किया है कि हम आपको योगासन एवं प्राणायाम संबंधी जानकारी देंगे ।

२. योगासन और प्राणायाम हमारी प्राणशक्ति एवं देहको शुद्ध करते हैं

SSRF द्वारा की गई आध्यात्मिक खोज यह कहती है कि जब कोई व्यक्ति योगिक आसन एवं प्राणायाम करने लगता है, तो उसे उसकी आध्यात्मिक उन्नतिके मार्ग में आनेवाली कुछ सीमाओंसे जूझना पडता है।

निम्नलिखित सारणी योगिक आसनों एवं प्राणायामद्वारा हमारी स्थूल देह की विभिन्न सूक्ष्म देहों में होनेवाली औसत आध्यात्मिक उन्नति दर्शाती है ।

योगासन एवं प्राणायाम द्वारा विभिन्न देहों में होनेवाली शुद्धि *

योगासन प्राणायाम
विभिन्न देह (अधितम शुद्धि) अधिकतम संभव शुद्धि आवश्यक वर्ष अधिकतम संभव शुद्धि आवश्यक वर्ष

अन्नमय कोष (२०%)

२०%

१०

२०%

प्राणमय कोष (३०%)

७%

१०

३०%

मनोमय कोष (१००%)

५%

१०

१०%

बुद्धि (१००%)

२%

१०

२%

अहंकार (१००%)

१%

१०

१%

* शुद्धि का तात्पर्य है- संबंधित कोष में सात्त्विकता की बढी हुई मात्रा

उपरोक्त सारणी में आप देख सकते हैं कि योगासन एवं प्राणायाम क्रमश: अन्नमय कोष (भौतिक शरीर) तथा प्राणमय कोष की शुद्धि करते हैं, अर्थात उनमें स्थित सत्त्व गुण की वृद्धि करते हैं । उदाहरण के लिए; योगासन से सत्त्व गुण की वृद्धि के फलस्वरूप अन्नमय कोष २०% तक आध्यात्मिक दृष्टिसे शुद्ध होगा, और इस प्रक्रिया में लगभग १० वर्ष लगेंगे ।

३. द्रुतगतिसे आध्यात्मिक उन्नति साध्य करने के लिए उच्चस्तर की साधना की आवश्यकता

मन, बुद्धि और सूक्ष्म अहंकार जैसे अधिक सूक्ष्म कोषों में सत्त्वगुण की वृद्धि करने के लिए अधिक सूक्ष्म साधना करने की आवश्यकता होती है । इसके अतिरिक्त अन्नमय कोष एवं अन्य सूक्ष्म कोषों की जितनी शुद्धि आसनों एवं प्राणायाम से उपार्जित की जाती है वह आध्यात्मिक साधना के अन्य मार्गों का अनुसरण कर भी प्राप्त की जा सकती है ।

४. योगासन और प्राणायाम कदाचित प्रारब्धभोग को प्रभावित न कर सकें

यहां पर यह उल्लेख करना आवश्यक है कि शारीरिक शुद्धि और प्रारब्धभोग का कोई संबंध नहीं है । उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति के भाग्य में एक अपघात लिखा हुआ है या उसकी मांसपेशियोंका क्षय होने वाला है, तो योगासनों से उसे परावृत्त नहीं कर सकते । फिर भी शारीरिक शुद्धि प्रारब्धभोगों का सामना करने की सहन शक्ति हमें प्रदान कर सकती है ।

५. देहावसान के उपरांत स्वर्गप्राप्ति के लिए आवश्यक आध्यात्मिक शुद्धि

देहावसान के उपरांत उच्चलोकों (स्वर्ग, महर्लोक, जनलोक, तपोलोक अथवा सत्यलोक) की प्राप्ति, आध्यात्मिक उन्नति का मुख्य उद्देश्य है । सूक्ष्म स्वर्ग लोक,जो कि उपरोक्त सकारात्मक लोकों में सबसे निचले स्तर पर है, उसे भी प्राप्त करने के लिए हमारी स्थूल देह के प्रत्येक कोष (सूक्ष्म देह) की आध्यात्मिक शुद्धि न्यूनतम ५०% होनी चाहिए । लेख देखें – हम अपनी मृत्यु के उपरांत कहां जाते हैं ?

६. सारांश

  • सांसारिक जीवन में अन्नमय कोष एवं प्राणमय कोष को स्वस्थ बनाने के लिए योगासन-प्राणायाम बहुत उपयोगी हैं । स्वस्थ शरीर के माध्यम से हम परमतत्त्व के प्रति अपनी सत्सेवा अर्पित कर सकते हैं ।
  • यदि योगासन-प्राणायाम को अन्य आध्यात्मिक साधनाओं का समपूरकत्व प्राप्त हो जाए, तो अन्यमय कोष एवं अन्य कोषों की शुद्धि शीघ्र हो सकती है जिससे इसी जीवनकाल में व्यक्ति की शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति हो सकती है । इस प्रकार कोई व्यक्ति परमात्मा में विलीन होने के लिए आवश्यक उन्नति कर सकता है, जो हमारे जीवन का उद्देश्य है ।