वर्ष १९८५ में मेरे पिता के देहांत के उपरांत मुझे अत्यधिक कष्ट हुआ । मैंने हिंसक प्रवृत्ति के अपने परिजनों से सारे संबंध समाप्त करने का निर्णय लिया, जिनसे मुझे पूरा जीवन यातना ही मिली । मैं अपने पिता के देहांत से शोकाकुल थी और मुझे पता था कि अपनी सुरक्षा और अपने आस्तत्व के लिए मेरा हिंसा से मुक्त होना आवश्यक था । मुझे हृदय से अनुभव होता था कि आत्मा के स्तर पर पिता की दृष्टि मुझ पर है । इस कारण जीवन में आनेवाली कठिनाईयों की मुझे चिंता नहीं थी । जीवन के उस काल में मुझे पितृदोष (पूर्वजों के कारण होनेवाले कष्ट) के संदर्भ में पता नहीं था । इसलिए र्इश्वर का हाथ थामने के स्थान पर मैंने अपने पिता की आत्मा को दृढता से थाम रखा था । मैं दु:ख के दुष्चक्र में उलझ गई थी । इसलिए दशकों तक अपमानजनक संबंधों, आर्थिक कठिनाईयां, भय के दौरों से पीडित रहने के उपरांत जब मेरा परिचय स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाऊंडेशन (SSRF) से हुआ तब मुझे र्इश्वर की कृपा मिली ।
जब जून २०१२ में मेरी नौकरी छूट गई तब तीव्र गति से मेरे जीवन की अधोगति होने लगी । फेसबुक के माध्यम से मैं SSRF से परिचित हुई किंतु मैं अपने दृष्किोण में परिवर्तन करने हेतु तैयार नहीं थी । उस समय भी मुझे पितृदोष (पूर्वजों के कारण होनेवाले कष्ट) के संदर्भ में ज्ञान न था और मुझे लगा कि अपने पिता की आत्मा से बद्ध रहकर मैं योग्य कर रही हूं । मैं उन्हें छोडकर जाने देने के लिए तैयार नहीं थी ।
अक्टूबर २०१३ में मैं दूसरे नगर चली गई और नई नौकरी आरंभ की । मैं जानती थी कि मुझे साधना में परिवर्तन करने की आवश्यकता है । मेरा हेतु एक नया जीवन आरंभ करना था, इसके लिए मुझे कुछ त्याग करना था जिससे मैं कुछ नया आरंभ कर सकूं । मुझे किसका त्याग करना है, इसका मुझे पता नहीं था । तब नवंबर २०१३ में फेसबुक के माध्यम से पुनः SSRF के संपर्क में आई । मैं समझ गई कि यह मेरे लिए दूसरा अवसर है । अंतत: भगवान की कृपा से SSRF के मार्गदर्शन में मैंने साधना आरंभ की और अल्प कालावधि में ही मेरे जीवन में परिवर्तन होने लगा ।
SSRF के मार्गदर्शन में मैं पिछले चार माह से साधना कर रही हूं और अनेक बार मैंने कृपा का अनुभव किया है । मैंने नामस्मरण और सत्संग में जाना आरंभ किया । मेरी साधना में अब निम्न सूत्र सम्मिलित हैं :-
२. सत्सेवा के माध्यम से समय का त्याग करना
३. सुबह हठयोग साधना करना
४. अति साधारण जीवनशैली अपनाकर धन का त्याग करना तथा SSRF website से ग्रंथ खरीदना
मेरी साधना अब मेरी जीवनशैली बन गई है । मैं पूर्णकालीन नौकरी करती हूं । मेरा पुत्र १८ वर्ष का है जिसका पालन-पोषण मैंने अपने दायित्व से किया है ।
SSRF के मार्गदर्शनानुसार साधना करने की अल्प कालावधि में मैंने स्वयं में अनेक परिवर्तन अनुभव किए हैं ।
शारीरिक परिवर्तन
मेरी त्वचा नरम हो गई है; पहले मेरी त्वचा सूखी और खुरदुरी थी उसकी तुलना में अब ये मुलायम हो गई है । मेरा मुख सदैव खिला एवं निखरा हुआ ऐसे लगता है मानो मैंने कठोर व्यायाम किए हों, मेरे गाल लाल तथा चमकदार प्रतीत होते हैं । सौंदर्य प्रसाधन के उपयोग करने की मात्रा भी मैंने घटा दी है । पहले मेरे केश सूखे, निर्जीव और दुर्बल लगते थे और अब नरम, चमकदार एवं मुलायम लगते हैं । अब मुझे ड्रायर से केश सुखाने आदि के लिए अधिक समय नहीं देना पडता क्योंकि अब मैं केशों का प्रायः जूडा ही बनाती हूं । एक और परिवर्तन जो मुझे लगता है वह यह कि अपने युवावस्था के समान अब मेरा शरीर धीरे-धीरे पतला होते जा रहा है । (SSRF के संपादक की टिप्पणी: नामजप के कारण प्राप्त हुई ईश्वरीय शक्ति के कारण शरीर के स्तर पर ये परिवर्तन हुए ।)
अब मुझे शाकाहारी भोजन भाता है । मुझे ये रोचक लगता है कि अब मुझे गाय का दूध पीना अच्छा लगता है । जबकि पहले मुझे दूध पीना अच्छा नहीं लगता था । ऐसा हो गया है जैसे र्र्इश्वर ही मुझे बताते हैं कि क्या खाना है । जब मैं सात्त्विक भोजन करती हूं, तब मुझे अत्यधिक सकारात्मक शक्ति का अनुभव होता । (SSRF के संपादक की टिप्पणी : मारिसा में सत्त्वगुण बढने के कारण ये परिवर्तन हुए ।)
मानसिक परिवर्तन
जीवन के प्रति मेरा देखने का दृष्टिकोण भी विलक्षण रूप से परिवर्तित हो गया है । अधिकांश लोगों को सांसारिक वस्तुएं जैसे व्यवसाय, यात्रा एवं विलासिता के प्रति झुकाव होता है; किंतु उसमें अब मेरी रुचि नहीं रही । मैं अपने छोटेसे घर में अपने पुत्र तथा अपने पालतू कुत्ते के साथ सुखी हूं । अब मुझे गाडी चलाना भी अच्छा नहीं लगता । सभी जगह मुझे पैदल जाना अथवा बस से जाना अच्छा लगता है । अपनी नौकरी तथा अपनी छोटे वेतन से मैं संतुष्ट हूं । मुझे अनेकों बार ध्यान में आया है कि जीवन में आनंदित रहने के लिए मुझे अधिक भौतिक वस्तुओं की आवश्यकता नहीं है ।
मेरा रूपांतरण एक शांतिप्रिय तथा आभारी व्यक्ति के रूप में हो गया है । अब मैं भय, आतंक तथा चिंता में नहीं रहती । मेरी भावनिक अवस्था भी संतुलित है क्योंकि प्रेम तथा कृतज्ञता अब मेरे जीवन के केंद्रबिंदु हैं ।
आध्यात्मिक परिवर्तन
अन्य मेरे साथ कैसा भी व्यवहार करे मुझे उनके प्र्रति आंतरिक प्रेम प्रतीत होता है । उन लोगों के प्रति भी प्रेम प्रतीत होता है जिन्होंने पूर्व में मुझे अपमानित किया । नौकरी में भी, जब सहकर्मचारियों अथवा ग्राहकों के साथ मतभेद होता है, क्रोध करने के स्थान पर मैं शांति से बैठकर, परिस्थिति स्वीकार कर नामस्मरण करती हूं । मैं जानती हूं कि मैं परिपूर्ण नहीं हूं, कभी-कभी वैसे लोग जो भौतिक संसार में अत्यधिक लिप्त होते हैं उनके साथ मैं अधीर हो जाती हूं; ऐसा होने पर मैं तत्क्षण ही र्इश्वर से सहायता हेतु प्रार्थना करने लगती हूं तथा वैसे विचारों को अर्पण करती हूं । कई बार मुझे आनंद की अनुभूति हुई है और मैं उत्कंठा के साथ नामस्मरण कर सकती हूं ।
इतनी अल्प कालावधि में कैसे मेरा जीवन इतना बदल गया, मुझे यह कौतुकास्पद लगता है । बीता हुआ कल अत्यधिक दूर लगता है । अब मैं शांति, प्रेम तथा कृतज्ञता सहित जीवन व्यतीत कर रही हूं, इससे मेरे मन में र्इश्वर के प्रति ऋण चुकाने हेतु सत्सेवा करने की तीव्र उत्कंठा जागृत हुई है ।
– श्रीमती मारिसा डी टोम्मासो, यूएसए