SSRF का सुझाव है कि, भौतिक एवं मानसिक व्याधियों के उपचार में परंपरागत औषधोपचार के साथ-साथ आध्यात्मिक उपचार का प्रयोग करना चाहिए ।
वाचकों को हमारा परामर्श है कि आध्यात्मिक उपचारों का प्रयोग वे अपने विवेकानुसार करें ।
१. पवित्र विभूति के रख-रखाव की प्रस्तावना
SSRF द्वारा निर्मित अगरबत्तियों से बनी पवित्र विभूति आध्यात्मिक उपचार का एक अच्छा साधन है ।
कृपया देखें ‘‘SSRF द्वारा निर्मित अगर बत्तियों की राख को पवित्र विभूति क्यों कहते हैं’’
यह विभूति चूंकि आध्यात्मिक स्तर पर कार्यरत होती है इसलिए इसकी प्रभावात्मकता, इसकी सात्त्विकता एवं इसे कितनी श्रद्धा तथा सम्मान से रखा जाता है, के समानुपाती होती है ।
इस दृष्टिकोण से SSRF द्वारा निर्मित अगरबत्तियों से बनी पवित्र विभूति के रख-रखाव हेतु क्या करना चाहिए और क्या नहीं इसके लिए कुछ सूचनाएं निम्नलिखित हैं ।
२. विभूति के रख-रखाव के संदर्भ में क्या करें
आध्यात्मिक स्तर पर
- आदर : इसे अत्यंत आदर के साथ प्रयोग में लाएं । SSRF द्वारा निर्मित अगरबत्तियों में एक विशिष्ट सुगंध होती है जिसका चयन आध्यात्मिक शोध के आधार पर किया है । अत: जब उन्हें प्रज्जवलित किया जाता है तब वे एक विशिष्ट देवता के तत्त्व को आकर्षित करती हैं । फलस्वरूप उनसे प्राप्त राख भी उस दैवी चैतन्य से पूरित होती है ।
- इसे रखने का स्थान : इसे ईश्वर के सानिध्य में पूजाघर में रखें जिससे इसकी सात्त्विकता बनी रहे ।
- अतिरिक्त सुरक्षा हेतु : पवित्र विभूति की अधिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उसे रखने के पात्र के ढक्कन पर देवता के नामजप की पट्टी अथवा देवता का चित्र भी चिपका सकते हैं ।
- इसका प्रयोग दाएं हाथ से करें : आध्यात्मिक दृष्टि से सर्वोत्तम यही है कि विभूति का प्रयोग दाएं हाथ से किया जाए । सामान्यतया बाएं हाथ का उपयोग करनेवालों के लिए भी इसका प्रयोग दाएं हाथ से करना श्रेयस्कर है; क्योंकि दायां हाथ आध्यात्मिक शक्ति तंत्र (जिसे कुंडलिनी भी कहा जाता है) की सूर्य नाडी से संबद्ध है ।
भौतिक स्तर पर
यदि विभूति में कोई अन्य पदार्थ मिश्रित हो जाए अथवा उसका रख-रखाव योग्य पद्धति से नहीं किया गया तो पवित्र विभूति किसी साधारण भौतिक वस्तु के समान अशुद्ध अथवा दूषित हो सकती है । यदि वह भौतिक स्तर पर अशुद्ध हो जाती है तो उसे आध्यात्मिक उपचार हेतु प्रयोग में नहीं लाया जा सकता, जैसे खुले घाव में लगाने अथवा तीर्थ बनाने में ।
- भंडारण : जैसे ही अगरबत्ती जलकर समाप्त हो, इसकी राख को स्वच्छ, सूखे डब्बे अथवा पात्र में रखें । यह कार्य तीन घंटों के भीतर ही कर लेना चाहिए अन्यथा विभूति की सात्त्विकता घट जाने की आशंका रहती है अथवा वह भौतिक स्तर पर भी अशुद्ध हो सकती है । यदि तीन घंटे से अधिक समय हो जाए तो इसे विभूति के मुख्य संचय में मिश्रित नहीं करना चाहिए ।
- न्यूनतम संपर्क : जब भी पवित्र विभूति का डिब्बा खोला जाता है उसके भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों स्तरों पर अशुद्ध होने की आशंका होती है । यदि संचय की मात्रा अधिक है तो उसमें से थोडीसी विभूति दैनिक प्रयोग हेतु निकाल कर अलग रख लें जिससे भौतिक संपर्क न्यूनतम हो ।
- स्वच्छता : पवित्र विभूति को स्पर्श करने से पहले अपने हाथ स्वच्छ धो लें ।
३. विभूति के भंडारण में क्या न करें
आध्यात्मिक स्तर पर
- रजोधर्म के समय : स्त्रियों में रजोधर्म के पांच दिन अथवा जबतक रज-स्राव होता है तबतक उनकी देह में रजोगुण में वृद्धि हो जाती है । यदि कोई स्त्री उन दिनों पवित्र विभूति के संपर्क में आती है, तो विभूति की सूक्ष्म सात्त्विकता घट जाती है । अत: हमारा सुझाव है कि पवित्र विभूति के संचय पात्र को वे उन दिनों स्पर्श न करें ।
किंतु यदि कोई स्त्री अकेले रहती हो तो अपने उपयोग हेतु विभूति की थोडी सी मात्रा उन दिनों के लिए अलग से रख सकती है जिससे उसे मुख्य भंडार को स्पर्श करने की आवश्यकता नहीं पडेगी एवं विभूति की शुद्धता के घट जाने की आशंका भी नहीं रहेगी ।
- जन्म एवं मृत्य : जन्म अथवा मृत्यु के उपरांत १२ दिनोंतक पवित्र विभूति के मुख्य भंडार को परिवार के लोग स्पर्श न करें । ऐसा करना इस लिए आवश्यक है क्योंकि उन दिनों परिवार के लोगों में रज-तम बढा हुआ होता है ।
- काली शक्ति द्वारा दूषित होना : पवित्र विभूति का भंडारण अधिक कालतक नहीं करना चाहिए, इससे उस पर काला आवरण आ सकता है । ऐसी अनुशंसा की जाती है कि SSRF द्वारा निर्मित अगरबत्तियों से बनी पवित्र विभूति को तीन मास से अधिक भंडार में न रखें । इसके उपरांत उसका प्रवाहित जल में विसर्जन कर दें । यदि बहता जल उपलब्ध नहीं है तो बाग में मिट्टी के नीचे उसे गाड दें ।
- अनिष्ट शक्ति से प्रभावित व्यक्ति : यदि घर में एक से अधिक लोग हों एवं उनमें से यदि कोई अनिष्ट शक्ति (भूत, राक्षस, शैतान आदि) से तीव्र रूप से प्रभावित हैं तो वे विभूति के मुख्य संचय पात्र का स्पर्श न करें क्योंकि स्पर्श करने से उसकी सात्त्विकता न्यून हो सकती है ।
- पवित्र विभूति के संचय पात्र को शौच के उपरांत अथवा घर के बाहर से घर में आने पर बिना हाथ-पैर धोए स्पर्श न करें; क्योंकि व्यक्ति घर के बाहर तथा शौचालय में बढे हुए रज-तम के सान्निध्य में आता है ।