विषय सूची
१. प्रस्तावना
अध्यात्म क्या है, इसका ज्ञान न होने पर भी बचपन से ही मेरा झुकाव अध्यात्म की ओर था । मेरे अंर्तमन में सदैव यह भाव था कि ईश्वर मेरा योगक्षेम वहन करेंगे ।
एक हिंदू परिवार में मेरा पालन-पोषण हुआ, जहां प्रतिदिन परंपरागत विधियों का पालन एवं ईश्वर की पूजा-आराधना होती थी । मैं ११ वर्ष की आयु से ही उपवास करती थी एवं मुझे ईश्वर के प्रति अनन्य प्रेम था, विशेषकर प्रभु श्री राम (परमात्मा के स्वरूप) को मैंने सदा अपने निकट पाया । जब मेरी आयु १२ वर्ष की थी तब से मैं संस्कृत में श्री रामरक्षा स्तोत्र का एवं आध्यात्मिक ग्रंथों का पठन करने लगी । संतों के प्रति मेरे मन में सम्मान था एवं १२ वर्ष की आयु में मैने ‘श्री राम’ का नामस्मरण करना प्रारंभ किया ।
हमारे परिवार में मेरे छोटे भाई को सदा कोई न कोई स्वास्थ्य संबंधी समस्या होती एवं जीवन में भी अनेक समस्याएं थीं । मेरी युवावस्था में हमारा परिवार अनेक संकटों का सामना करता रहता, उदा. घर में दरारें पडना, साईकिल चोरी होना, मेरे छोटे भाई का अनेक दिनों तक गायब हो जाना और मेरी माता की स्वास्थ संबंधी समस्याएं ।
साधारणतया मैं ईश्वर से अच्छा जीवन एवं शैक्षणिक सफलता के लिए प्रार्थना करती थी । वर्ष १९९७ में मेरे छोटे भाई के मस्तिष्क का महत्त्वपूर्ण शल्यकर्म हुआ, जिसका प्रभाव उसकी दृष्टि पर हुआ । चिकित्सकों का कहना था कि यह सौभाग्य है कि वह जीवित है । मेरे जीवन का यह एक महत्त्वपूर्ण मोड था । मैं ईश्वर से अनेक प्रश्न करती, उदा. हमारे साथ ही ऐसा क्यों हो रहा है ? मेरे माता-पिता भावनात्मक एवं आर्थिक रूप से टूट चुके थे । मुझे इस घटना ने इतना विक्षुब्ध कर दिया कि मैं ईश्वर से प्रार्थना करती कि हे प्रभु मेरे छोटे भाई की रक्षा करें चाहे तो उसके बदले मेरे प्राण ले लें, मुझे कष्ट भुगतने दें किंतु उसे छोड दें । अपने छोटे भाई को अपूर्ण दृष्टि से बाधित देखकर मैं अत्यंत व्यथित थी, क्योंकि उसे निरंतर किसी की सहायता लेनी पडती । मैं उसके भविष्य को लेकर अत्यंत चिंतित होती । अपने माता-पिता को दु:खी देखना मेरे लिए अत्यंत कठिन होता । वर्ष १९९६ में जब मेरी आयु १८ वर्ष थी, मैंनें अपनी शिक्षा (इलेक्ट्रोनिक्स इंजीनियरिंग में स्नातक ) का खर्च स्वयं उठाने के लिए पूर्णकाल नौकरी करना प्रारंभ कर दिया । प्रतिदिन मैं प्रात: ६ बजे उठकर आधी रात्रि के उपरांत (यदा-कदा २-३ बजे प्रात:काल) सोती ।
२. मेरे मन के प्रश्न :
मेरे छोटे भाई के शल्यकर्म के उपरांत, मैं विचार करने लगी कि निश्चित कुछ तो ऐसा हो रहा है; जिसके संबंध में हमें जानकारी नहीं है । मेरे मन में अनेक प्रश्न रहते थे । कुछ प्रश्न मेरे स्मरण में हैं, जैसे ‘मेरे छोटे भाई को ही समस्याएं क्यों हैं ?’ ‘मुझे अथवा मेरे बडे भाई को समस्याएं क्यों नहीं हैं ?’ ‘लोगों के अलग-अलग धर्म, विश्वास, आस्था एवं मार्ग क्यों हैं ?’ ‘क्या उन्नति मात्र अपने प्रयत्न करने से ही होती है ?’ ‘क्या अपना सब कुछ स्वयं के हाथों में है ?’ ‘क्या कोई मृत्यु को रोक सकता है ?’
अपने चाचाजी द्वारा दिया एक आध्यात्मिक ग्रंथ मैंने पढना प्रारंभ किया; किंतु उसे आगे नहीं पढ सकी, क्योंकि मेरा परिवार मुझे अपनी पढाई पर ध्यान देने के लिए कहता था एवं उनकी इच्छा थी कि मैं ऐसे ग्रंथों का अध्ययन न करूं । उन्हें ऐसा लगता कि यदि मैं इसका अध्ययन करती रही तो मैं व्यावहारिक जीवन से बहुत दूर निकल जाऊंगी । मैं प्रतिदिन स्तोत्र का पठन करती और नामस्मरण भी करती । साथ ही मेरी जीवन शैली अधिकतर सात्त्विक हो, इसके लिए भी प्रयासरत रहती । मुझे प्राय: ऐसे स्वप्न आते जिनमें सर्प मुझे कष्ट देते, किंतु मुझे कभी हानि नहीं पहुंचाते । (कालांतर में मुझे SSRF के माध्यम से ज्ञात हुआ कि ये पूर्वजों की अतृप्ति के कारण होनेवाले कष्ट के सूचक थे ।)
३. अमरीका में जीवन शैली में परिवर्तन :
मेरा विवाह वर्ष १९९९ में हुआ एवं मैं अपने पति के साथ अमरीका आ गर्इ । मेरे जीवन में अत्यधिक परिवर्तन हुआ और मैं सौंदर्य श्रृंगार सामग्री का प्रयोग करने लगी, विभिन्न प्रकार के वस्त्र पहनने लगी (काले वस्त्रादि पहनना) और विभिन्न सौंदर्य पद्धतियों एवं विभिन्न केश रचना में मेरी रुचि होने लगी । मुझे वहां के वातावरण से समायोग करना कठिन प्रतीत होता तथा अपने देश के लिए लालायित रहती ।
एक सकारात्मक बात यह हुई कि मुझे पुस्तकालय से प्राप्त आध्यात्मिक साहित्य के अध्ययन हेतु अधिक समय मिलता ।
वर्ष २००२ में मेरे पुत्र का जन्म हुआ । SSRF की एक साधिका की सहेली हमारे घर आयीं और उन्होंने SSRF के जालस्थल से अवगत कराया । जब भी समय मिलता अपनी जिज्ञासा को शांत करने अथवा मेरे मन में आए प्रश्न का उत्तर पाने के लिए मैं उस जालस्थल (website) पर उपलब्ध लेखों का वाचन करती । अमरीका आने पर भी मैं ईश्वर की दैनंदिन उपासना, स्तोत्रपठन एवं नामस्मरण पहले जैसे ही करते रही । मैं नौकरी ढूंढ रही थी । स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त करने हेतु मुझे विश्वविद्यालय में अपनी शिक्षा चालू रखनी थी । वर्ष २००४ से २००६ की कालवधि में मैंने कैलीफोर्निया में स्नातकोत्तर शिक्षा पाठ्यक्रम में प्रवेश लिया और पुन: पूर्णकालीन काम आरंभ किया । अतिव्यस्तता, छोटा बच्चा, नौकरी, अनचाहे घरेलू कार्य आदि एवं स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण मैं अति उच्च तनाव से ग्रस्त रहने लगी । मेरा दैनंदिन स्तोत्र पठन बंद ही हो गया (यहांतक कि मैं स्तोत्र के शब्द भी भूल जाती) । मेरी दैनंदिन ईश्वर उपासना भी बंद हो गई । दिन में नामस्मरण करना अति कठिन हो गया जो अपने देश में सहजता से हो जाता था ।
इसी समय, मैं बीमार पडी और मुझे सर्दी-खांसी भी हो गई; मुझे ठीक होने में कई सप्ताह लगे । जब मैने औषधियां लीं तो मुझ पर उनके दुष्प्रभाव (side-effects) भी हुए । एक औषधि के दुष्प्रभाव के रूप में मुझे नींद आती तो दूसरी के कारण मैं जागती रहती । ये दुष्प्रभाव कुछ सप्ताहों तक रहे किंतु उनका परिणाम बहुत दीर्घ काल तक रहा । औषधियों का हानिकारक प्रभाव मेरे मन पर भी हुआ । मुझे क्या हो रहा है यह समझने में भी मैं असमर्थ थी । मुझमें असुरक्षा की भावना दृढ होने लगी एवं हीन भावना बढने लगी, इसके साथ ही विश्वविद्यालय में मेरा अंकस्तर भी न्यून होने लगा । यद्यपि मैं अपनी क्षमतानुसार सुधार करने के सभी संभव प्रयत्न कर रही थी, तदापि कुछ भी सकारात्मक नहीं हो रहा था । मेरे पति के साथ मेरे झगडे बहुत बढ गए । मुझे ऐसा अनुभव होने लगा जैसे हमारे घर में कोई सूक्ष्म शक्ति है और मैं भयभीत हो गई । मैं यह भी समझ नहीं पाई कि मानसिक स्तर पर मैं कितनी अशांत हो गई थी । क्या वास्तविकता है और क्या मात्र स्वप्न है, मैं यह भी समझने में असमर्थ थी । मेरे पति तथा मेरे मित्र समझ नहीं पा रहे थे कि मेरे साथ क्या हो रहा है । कभी–कभी मुझे ऐसा आभास होता जैसे कार्य करते समय, विद्यालय में अथवा घर में भी कोई मेरा पीछा कर रहा है । (प्रकाशक की टिप्पणी : छठवां ज्ञानेंद्रिय के फलस्वरूप किसी को इस प्रकार से सूक्ष्म शक्ति का आभास हो सकता है ।)
४. अस्पष्ट घटनाएं :
१. कई बार मैं अथवा मेरे पति घर की चाबियां भूल जाते, जिससे हमें समस्याएं उत्पन्न हो जातीं । एक बार मैं कार की चाबी कार के भीतर ही भूल गई फलस्वरूप मैं कार के भीतर नहीं जा सकी ।
२. एक दिन मैं अचानक घर पर आई और देखा कि घर का दरवाजा खुला है, मैंने सोचा संभवत: मेरे पति घर से ही काम कर रहे हैं किंतु भीतर जाकर देखा, तो कोई भी नहीं था ।
३. उस कालखंड में मैं अपने पति एवं पुत्र पर बहुत क्रोधित रहती ।
४. मैं कई बार अपनी जांच हेतु अस्पताल गई, किंतु मुझे शारीरिक अथवा मानसिक रूप से कुछ भी नहीं हुआ है, यही जानकारी मिलती ।
५. एक रात्रि जब मैं गहरी नींद में थी, मुझे लगा जैसे घर से कोई बाहर जा रहा हो अतः मैं अचानक उठ बैठी । मैंने देखा मेरा पुत्र (जो तब २ वर्ष का था ) एवं मेरे पति गहरी नींद में दूसरे कक्ष में सो रहे थे किंतु घर का मुख्य दरवाजा खुला था ।
६. जब मैं घर में अकेली होती तो असामान्य घटनाएं होतीं और मुझे कुछ déjà vu अर्थात पूर्वानुभव भ्रांति होती, जैसे कुछ घटनाएं मेरे जीवन में पुनर्घटित हो रही हैं । (déjà vu एक फ्रेंच शब्द है जिसका अर्थ है – पूर्वानुभव भ्रांति (already seen) । जब व्यक्ति को लगता है कि वर्तमान नवीन घटना का वह पहले ही साक्षी रहा है, उसे देखा अथवा अनुभव किया है, तब उन भावनाओं की प्रतीति को déjà vu कहते हैं । उदा. किसी स्थान पर पहली बार जाने पर भी, ऐसा लगना कि ‘मैं पहले भी यहां आया हूं’ ।)
७. एक दिन टेलीविजन पर जो दृश्य दिखाया जा रहा था, ठीक उसी प्रकार की घटना मेरे साथ उस क्षण हो रही थी । मैं अचंभित हो गई और विचार करने लगी ‘ऐसा कैसे हो सकता है ‘ ?
ऐसे और इसी प्रकार के अन्य अनुभवों के कारण मुझे लगा मेरी मानसिक शक्ति का ह्रास हो रहा है; क्योंकि मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा था । मैं बहुत भयभीत रहने लगी और ऐसा लगता कि छोटे छोटे निर्णय लेने की भी मेरी क्षमता क्षीण होती जा रही है । उदा. बाहर जाते समय मुझे क्या परिधान करने चाहिए ? ‘मुझ पर कौन से वस्त्र अच्छे लगेंगे,’ ऐसे निर्णय लेने में, मुझे १५-२० मिनट लगते । एक बार जब मैं किसी शॉपिंग मॉल गई थी, वहां अकस्मात मुझे ऐसा लगा जैसे मैं बहुत थक गई हूं, एक पग चलना भी मेरे लिए कठिन हो गया और मुझे लगा मैं वहीं पर सो जाऊं ।
वर्ष २००२ में मैंने अपनी नौकरी छोड दी, अध्ययन भी अपूर्ण छोड दिया, क्योंकि जो मेरे साथ हो रहा था, वह मेरे लिए असहनीय हो गया था ।
ठीक ऐसे समय SSRF के जालस्थल ने मेरी सहायता की । मैं आध्यात्मिक समाधान की आंकाक्षा से उत्कंठावश विभिन्न आध्यात्मिक जालस्थल पर ऐसे प्रश्न जैसे; ‘ क्या भूतों का अस्तित्व है ?’ ‘मैं क्या अनुभव कर रही हूं ढूंढती और बहुधा मैं शोध करते हुए SSRF के जालस्थल पर पहुंच जाती, जहां प.पू. डॉ. आठवलेजी का छायाचित्र है और अनभिज्ञता से मैं उनके छायाचित्र से क्रोधित हो कर बात करने लगती ।
५. साधना का प्रारंभ :
वर्ष २००७ में अपनी नौकरी एवं स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम से लिए हुए अल्प अंतराल के फलस्वरूप मुझे कुछ शांति मिली । और मैं अपनी दैनंदिन साधना, नामस्मरण एवं नई नौकरी प्रारंभ कर सकी । वर्ष २००८ में हमने नया घर क्रय किया एवं हम दूसरे स्थान पर रहने लगे । वहां एक वर्ष के भीतर मैं गर्भवती हुई एवं शीघ्र ही SSRF के एक अन्य साधक के संपर्क में आई । जब मैं दूसरी बार मां बननेवाली थी तब मेरी साधना वर्ष २००९ में पुन: प्रारंभ हुई ।
SSRF से मुझे पूर्वजों के कष्ट और अनिष्ट शक्तियों से मुक्ति पाने के लिए कौनसा नामस्मरण करना चाहिए, भूत – प्रेतादि के संदर्भ में, Déjà vu (already seen) की जानकारी मिली । प्रारंभ में श्री गुरुदेव दत्त यह नामजप एकाग्रता से करना कठिन हुआ; किंतु कुछ समय उपरांत नामस्मरण अपने आप होने लगा । जुलाई २००९ के आरंभ से मैं SSRF के उत्तर अमेरीका में आयोजित सार्वजनिक सत्संग में प्रत्येक शुक्रवार को जाने लगी । मैं SSRF की लॉगइन सुविधा के माध्यम से अपने प्रश्न पूछती तथा तबसे मेरा जालस्थल का (वेबसाईट) अध्ययन यथार्थ रूप से प्रारंभ हुआ । सत्संग में मेरे बहुत से प्रश्नों के उत्तर मेरे बिना पूछे ही मिल जाते । (संपादक की टिप्पणी : ईश्वर का मार्गदर्शक तत्त्व इसी प्रकार कार्य करता है ।)
बाल्यावस्था में मेरे मन में उठनेवाले अनेक प्रश्नों का भी समाधान मिला एवं मुझे प्रारब्ध का सिद्धांत समझ में आने लगा । मुझे इस बात का बोध हुआ कि मुझे स्वप्न में सर्प क्यों दिखाई देते तथा केवल मेरे छोटे भाई का शल्यकर्म क्यों करना पडा । जब मैं साधना करने लगी एवं सत्संग में सिखाई गई बातें अपने जीवन में अपनाने लगी, तब अनेक अनुभूतियां हुईं, जिससे मेरी श्रद्धा बढने के साथ यह ज्ञात हुआ कि ईश्वर की ओर ले जानेवाला यह साधनामार्ग ही योग्य है । मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि यह वही है जिसकी मुझे अनेक वर्षों से प्रतीक्षा थी । आध्यात्मिक उपायों, सत्संग, सत्सेवा, घर की आध्यात्मिक शुद्धि इत्यादि के संबंध में जानकारी प्राप्त होने से मैं अत्यंत कृतार्थ हुई । इनसे मुझे मेरे और पति के मध्य होने वाले झगडे न्यून करने में आशातीत सफलता प्राप्त हुई । मैंने सात्त्विकता अंगीकार करने के प्रयत्न प्रारंभ किए जैसे; सात्त्विक भोजन, सात्त्विक वस्त्र परिधान करना (उदा. मैंने काले कपडे परिधान करना बंद कर दिया ) एवं सात्त्विक केशरचना भी अपनाई । मेरे पति भी सत्संग में उपस्थित रहने लगे तथा उन्होंने भी साधना प्रारंभ की ।
६. प.पू. पाण्डे महाराजजी से भेंट :
वर्ष २०१० में मेंरी भेंट अति उन्नत संत (प.पू. पाण्डे महाराजजी) से हुई । उस समय मेरे साथ हमारे २ बच्चे एवं मेरे पति भी थे । उन्होंने जब मुझसे पूछा कि मैं आनंदित क्यों नहीं हूं ? इतना सुनकर मेरे अश्रु निकल आए । मैं बिना कारण रोने लगी । मुझे उनकी ओर देखने की इच्छा ही नहीं हो रही थी । तदुपरांत मुझे एक साधक (जिनकी छठवीं ज्ञानेंद्रिय अति विकसित है) ने बताया कि मेरी दृष्टि एक अनिष्ट शक्ति से आविष्ट थी, जिसके कारण मैं संत की ओर क्यों नहीं देख पाई । मुझे यह भी ज्ञात हुआ कि किसी संत के पास पश्चात्ताप पूर्वक रोने से पापक्षालन होता है । उन्होंने मुझे अपने पास बैठने के लिए कहा और मुझे आलिंगन देकर कृतार्थ किया । मेरे प्रति उनके मन में विद्यमान प्रेम का मैंने अनुभव किया, उनके सान्निध्य में मुझे सौहार्द एवं सकारात्मक शक्ति अनुभव हुई । मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि पूरे विश्व के जिस सबसे सुरक्षित स्थान की मुझे खोज थी वह मुझे मिल गया । मुझे ऐसा लगता है उनकी उपस्थिति से मुझ पर आध्यात्मिक उपचार हुए । (संपादक की टिप्पणी: प.पू. पाण्डे महाराज एक ८६ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर के संत हैं एवं उनकी उपस्थिति में अपनेआप ही आध्यात्मिक उपचार होते हैं ।)
प.पू. पाण्डे महाराज ने मेरी एक वर्ष की बेटी एवं आठ वर्ष के बेटे की ओर देख कर कहा कि इस बच्चों का जन्म उच्च स्वर्गलोक से हुआ है । मुझे इस बात का आश्चर्य हुआ और अत्यंत कृतज्ञता की अनुभूति हुई कि ये बच्चे पहले से ही ब्रह्मांड के उच्च लोक के साधक हैं एवं हमारे परिवार में उनका जन्म आध्यात्मिक उन्नति करने के लिए हुआ है ।
मुझे मेरे क्रोध एवं अडियलपन के स्वभावदोषों का निर्मूलन करने हेतु प्रयास करने का परामर्श दिया गया था । मैंने साधना के स्वभावदोष निर्मूलन संबंधी चरण हेतु प्रयास आरंभ किए । मेरे क्रोध दोष के निर्मूलन होने में लगभग एक वर्ष की कालावधि लगी एवं धीरे-धीरे मुझे स्वयं के प्रति अच्छा लगने लगा । मुझे ऐसा लगने लगा SSRF द्वारा प्रतिपादित गुरुकृपायोगानुसार साधनामार्ग के इस पहलू पर प्रयास करने से मेरे स्वभावदोष वास्तव में न्यून हो रहे हैं ।
मुझे यह मानने में कठिनाई हो रही थी कि मेरी सत्सेवा में आनेवाले सभी अवरोध अनिष्ट शक्तियों के कष्ट के कारण हैं । मुझे सदैव ऐसा लगता था कि मैं सत्सेवा करने के लिए सक्षम नहीं हूं, किंतु सहसाधकों से मुझे सदैव सहयोग मिलता था और सेवा करने से पहले आध्यात्मिक उपचार करने की प्रेरणा मिलती थी । आध्यात्मिक उपचार एवं नामस्मरण करने के उपरांत मेरे नकारात्मक विचारों का शमन होता था ।
साधना करने के फलस्वरूप मुझे स्वप्न में सर्पों का दिखना आरंभ के कुछ वर्षों मे ही पूर्णरूप से बंद हो गया । मेरी अधीरता, जो मेरे पैरों को गति से हिलाने के रूप में दिखती, वह भी बंद हो गई । मेरा मन शांत हुआ रात्रि में देर से सोना धीरे-धीरे बंद हो गया ।
7. SSRF के आध्यात्मिक शोध केंद्र से वर्ष २०१२ में मेरी पहली भेंट :
इस भेंट में मुझे सबसे बडी सीख मिली कि ईश्वर हमारे मन में विद्यमान प्रत्येक विचार को कैसे जानते हैं । मेरे मन में आया एक प्रश्न जो मैंने मन में ईश्वर से पूछा था, का उत्तर बिना किसी से पूछे ही मिल गया । जब मैंने देखा कि साधक कैसे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र के कार्य ईश्वर प्राप्ति के एकमात्र उद्देश्य से करते हैं तब कृतज्ञता वास्तव में क्या होती है, यह मुझे विदित हुआ । मुझे पूरे SSRF के आध्यात्मिक शोध केंद्र में सकारात्मक ऊर्जा की अनुभूति हुई । मुझे यह भी प्रतीत हुआ कि यह मेरा मानना है कि मैं ईश्वर से अलग हूं । मैंने यह दृढ संकल्प किया कि मैं ईश्वर की शरण में जाकर अपना सर्वस्व का त्याग कर दूंगी । (वास्तव में मेरा कुछ भी नहीं है, सब कुछ सदा उनका ही रहा है )। मुझे यह ज्ञात हुआ कि अहंकार वश मैं यह समझती रही कि मेरे मन में जो है वह किसी को ज्ञात नहीं है, किंतु अब मुझे ज्ञात हुआ कि ईश्वर सर्वज्ञ हैं ।
अपनी इस पहली यात्रा के छ: माह के उपरांत मैं SSRF के आध्यात्मिक शोध केंद्र की कार्यशाला में दिसंबर २०१२ में पुनः आई । यह अप्रत्याशित था किंतु अत्यंत आनंदपूर्ण था और स्वभावदोष निर्मूलन एवं अहं निर्मूलन प्रक्रिया अत्यंत गंभीरता पूर्वक हुई । इस कार्यशाला के उपरांत मुझे मेरे दृढ स्वभावदोषों की जानकारी हुई । मैने सीखा कि वास्तविक अंर्तमुखता क्या है और त्रुटियों को कैसे मान्य कर उन्हें कैसे सुधारना चाहिए । मैंने समझा कि शांति से प्रारब्ध को स्वीकार करना, साधना का ही एक अंग है, इतना ही नहीं मुझे यह भी ज्ञात हुआ कि कभी-कभी मेरी सोच कितनी हठयुक्त होती थी साथ ही कैसे मेरे स्वभावदोषों के कारण मुझे जीवन भर दुख प्राप्त हुए ।
८. कृतज्ञता :
ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं एवं SSRF द्वारा मेरी शंकाओं का समाधान कर मुझे ईश्वर से एकरूप होने के लिए जो मार्गदर्शन मिला उसकी मैं आभारी हूं । मैंने अपनी साधना के प्रयत्न आरंभ रखे हैं और चरण-दर चरण ईश्वर के समीप जाने के प्रयत्न निरंतर कर रही हूं ।
– सौ. वी.डी., यू.एस.ए.