हमारे कर्मों का कारण और लेन-देन की क्रियाविधि

. प्रस्तावना 

पिछले लेखों में बताए अनुसार हमारे जीवन के ६५% कर्म प्रारब्ध के अनुसार होते हैं । यह हमारे जीवन का वह भाग है जिस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता । हमारे आसपास के लोगों के साथ हम जो लेन-देन निर्माण करते हैं, उसके द्वारा हम अपने इस खाते में वृद्धि करते हैं, जिसे हमें इस जन्म में अथवा आगे के जन्मों में चुकाना होता है

अधिकतर प्रसंगों में हम अपने अवचेतन मन(subconscious mind) में विद्यमान दृढ संस्कारों के अनुरूप कर्म अथवा विचार करते हैं, जिसका ज्ञान हमारे चेतन मन (conscious mind) को नहीं होता । हमारा आचरण और हमारी निर्णय प्रक्रिया; हमारे प्रारब्ध और लेन-देन के अनुसार होते हैं । लेन-देन कैसे कार्य करता है ? निम्नलिखित उदाहरण से स्पष्ट होगा कि लेन-देन हमारे निर्णयों को किस प्रकार से प्रभावित करता है ।

सर्वप्रथम हमें हमारे अस्तित्व के विभिन्न पहलुओं को समझ लेना होगा, जो किसी कर्म अथवा निर्णय प्रक्रिया के लिए आवश्यक होते हैं । इनमें से कुछ पहलुओं से आधुनिक विज्ञान अनभिज्ञ है ।

. मनुष्य में निर्णय प्रक्रिया के लिए आवश्यक घटक

निर्णय प्रक्रिया में अंतर्भूत होनेवाले मनुष्य के विविध अंग निम्नांकित आकृति में प्रातिनिधिक स्वरूप में दर्शाए हैं । इनमें से कुछ अंग सूक्ष्म हैं इसलिए उन्हें स्थूल नेत्रों से देख पाना संभव नहीं होता । यह वर्तुल सूक्ष्म अथवा कारण देह का प्रातिनिधिक स्वरूप है, जिसमें मन और बुद्धि अंतर्भूत है । संवेदनाएं, भावनाएं और इच्छाएं अर्थात मन तथा निर्णय करने और कार्यकारणभाव समझने की क्षमता अर्थात बुद्धि । मन और बुद्धि को स्थूल नेत्रों से देखना संभव नहीं है ।

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उपर्युक्त आकृति से आप समझ सकते हैं कि अवचेतन मन के निम्नांकित पांच केंद्रोंमें विभिन्न प्रकारकी स्मृतियां संग्रहित की जाती हैं :

२.१ बोध और विवेचन केंद्र

इस केंद्र में संवेदना का बोध होकर उसका अर्थ स्पष्ट किया जाता है ।

.२ लेन-देन केंद्र

यह केंद्र सर्व प्रकार के लेन-देन का लेखा-जोखा रखता है और उन्हें पूर्ण करने का प्रयत्न भी करता है । उदा. व्यक्ति ‘अ’ दूसरे व्यक्ति ‘ब’ पर आक्रमण करता है, तब व्यक्ति ‘ब’ के अवचेतन मन में विद्यमान लेन-देन केंद्र में इस प्रसंग की स्मृति संजोर्इ जाती है । समय आने पर व्यक्ति ‘आ’ को उसका अवचेतन मन व्यक्ति ‘अ’ पर आक्रमण करने की सूचना देता है अथवा वैसी स्थिति निर्माण करने का प्रयत्न करता है अथवा अनुपातित मात्रा में व्यक्ति ‘अ’ को कष्ट पहुंचाने का प्रयत्न करता है ।

.३ वासना और इच्छा केंद्र

इस केंद्र में सभी वासनाएं और इच्छाएं संग्रहित होती हैं ।

.४ रुचि-अरुचि केंद्र

यह केंद्र बाह्यमन को रुचि और अरुचियों की संवेदनाएं भेजता है ।

.५ स्वभाव-विशेषता केंद्र

व्यक्ति के स्वभाव-विशेषताएं इस केंद्र में संग्रहित होते हैं ।

३. लेन-देन केंद्र अपना प्रभाव किस प्रकार से डालता है, इसका एक उदाहरण

मन में विद्यमान विविध केंद्रों का कार्य समझने के लिए एक कुत्ते का उदाहरण देखेंगे, जो व्यक्ति के पास दुम हिलाता हुआ आता है ।

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अब कल्पना करें कि लेन-देन केंद्र को छोडकर मन में विद्यमान प्रत्येक केंद्र कुत्ते की ओर से आनेवाली संवेदना को सकारात्मक प्रतिसाद देता है । केवल लेन-देन केंद्र ही नकारात्मक प्रतिसाद देता है । अब अंतिम परिणाम क्या होगा ? इस घटना में अंतिम क्रिया / प्रतिक्रिया नकारात्मक ही होगी । इसका कारण यह है कि लेन-देन केंद्र को अन्य सभी केंद्रों द्वारा प्रेषित संवेदनाओं को नकारने का अधिकार होता है और वह अन्य केंद्रों के कुल मिलाकर ३५% बल की तुलना में ६५% बल लगाता है । इसलिए कभी-कभी हम अपने पूर्वकालीन जीवन में लिए गए किसी मूर्खतापूर्ण निर्णय का ध्यान आने पर कहते हैं कि “मैंनेउस समय क्या सोचकर ऐसा किया होगा ?” लेन-देन ही इसका उत्तर है, जो आपके पास उत्तम बुद्धि होने के पश्चात भी आपके लिए विचार करता है और आप को संकट में लाता है । विवाह, गंभीर दुर्घटनाएं और छोटी-सी बात के लिए ठगे जाने जैसी जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाओं का मूल लेन-देन केंद्र में ही होता है ।

यह नियम जीवन की सभी घटनाओं में हम लागू कर सकते हैं । अपने बीते जीवन में झांकने पर हमें ध्यान में आएगा कि कुछ लोगों का आचरण हमारे साथ बिना किसी कारण अच्छा अथवा बुरा था । अब हमें स्पष्ट होगा कि ऐसा क्यों होता है ।

  • चरण १ : जब कुत्ता व्यक्ति की ओर आने लगता है, उसकी संवेदना व्यक्ति की आंखों में पहुंचती है । आंखों से वह व्यक्ति के मस्तिष्क में विद्यमान दृष्टि केंद्र तक पहुंचती है । मस्तिष्क में विद्यमान दृष्टि केंद्र से संवेदना दृष्टि से संबंधित सूक्ष्म-ज्ञानेंद्रिय के पास पहुंचती है ।
  • चरण २ : दृष्टि से संबंधित सूक्ष्म-ज्ञानेंद्रिय से यह संवेदना चेतन मन तक पहुंचती है । इस समय व्यक्ति को केवल यह ज्ञान होता है कि कोई उसकी ओर आ रहा है ।
  • चरण ३ : चेतन मन से संवेदना अवचेतन मन में चली जाती है और बोध एवं विवेचन केंद्र में पहुंचती है, जहां इसका विश्लेषण इस प्रकार से होता है : पास में आनेवाला प्राणी कुत्ता है । वह दुम हिला रहा है, अर्थात यह मित्रता व्यक्त कर रहा है ।
  • बोध और विवेचन केंद्र से संवेदना लेन-देन केंद्र में पहुंचती है । यदि कोई लेन-देन शेष रह गया है, तो संवेदना में परिवर्तन किया जाता है । उदा. यदि उस कुत्ते अथवा उसमें विद्यमान लिंगदेह ने व्यक्ति को उसके पूर्वजीवन (इस जन्म अथवा पूर्वजन्म) में कष्ट दिए हैं, तो उस कुत्ते को किसी भी प्रकार से कष्ट देने की दृष्टि से इस संवेदना मं परिवर्तन होता है ।
  • लेन-देन केंद्र से यह संवेदना वासना और इच्छा केंद्र में पहुंचती है, जहां उस व्यक्ति की इच्छानुसार उसमें परिवर्तन होता है । उदा. किसी को कुत्ते के साथ खेलने की इच्छा हो सकती है ।
  • वासना और इच्छा केंद्र से संवेदना रुचि-अरुचि केंद्र में जाती है । संवेदना की सुख अथवा दुःख देने की क्षमतानुसार उसमें क्रमशः रुचि अथवा अरुचि निर्माण होती है । रुचि-अरुचि केंद्र से संवेदना स्वभाव-विशेषता केंद्र में जाती है, जहां व्यक्ति के स्वभाव-विशेषता के अनुसार उसमें परिवर्तन होता है ।
  • स्वभाव-विशेषता केंद्र से संवेदना बुद्धि केंद्र में जाती है । बुद्धि केंद्र में संग्रहित ज्ञान के अनुसार उसमें परिवर्तन होता है । यहां अन्य केंद्रों द्वारा होने वाले प्रभावों के और अन्य कुछ घटकों (उदा. कुत्ते के साथ खेलने के लिए पर्याप्त समय है अथवा नहीं इ.) के विषय में भी विचार किया जाता है । बुद्धि केंद्र से निकलने वाली संवेदना का स्वरूप अंत में इस बात पर निर्भर होता कि कौन सा केंद्र संवेदना को सर्वाधिक मात्रा में परिवर्तित करने में सफल हुआ है । उदा. यदि रुचि-अरुचि केंद्र के अनुसार “कुत्ते के साथ खेलने की इच्छा’’; बुद्धि केंद्र के “कुत्ते के साथ खेलने के लिए पर्याप्त समय नहीं है”, इस निर्णय की तुलना में अधिक बलवान होगी, तो बुद्धि केंद्र के पास से पंचसूक्ष्म कर्मेंद्रियों के पास जाने वाली संवेदना होगी “कुत्ते के साथ खेलो” । इस प्रकार से बुद्धि केंद्र से निकलने वाली अंतिम संवेदना अन्य केंद्रों द्वारा लगाए गए बल के कुल परिणामों पर निर्भर होती है ।
  • पंचसूक्ष्म कर्मेंद्रियों से मस्तिष्क में विद्यमान विविध कार्मिक और हाइपोथैलेमिक केंद्रों में जानेवाली संवेदना के अनुसार बाह्यमन और व्यक्ति प्रतिसाद देता है । इस उदाहरण में यदि व्यक्ति के मन में पूर्वजन्म की किसी घटना के कारण कुत्ते के प्रति जन्मगत और अकारण भय का संस्कार होगा, तो यह व्यक्ति कुत्ते को नकारात्मक प्रतिसाद देगा और पत्थर उठाकर कुत्ते को भगाने का प्रयत्न करेगा ।