विषय सूची
- १. आत्मजागरूकता के महत्त्वकी प्रस्तावना
- २. आत्मजागरूकता क्या है ?
- ३. आत्मजागरूकता कैसे बढाएं -स्वयं का निरीक्षण कर
- ४. आत्मजागरूकता कैसे बढाएं – कोई हमारे बारे में अपना अभिप्राय देता है अथवा हमारी चूकें बताता है
- ५. आत्मजागरूकता कैसे बढाएं – अन्यों की चूकों का निरीक्षण करना तदोपरांत स्वयं का निरीक्षण करना
- ६. हमारे सपने भी हमें हमारे बारे में बता सकते हैं
- ७. सारांश
१. आत्मजागरूकता के महत्त्वकी प्रस्तावना
हमारे पहले खंड में हमने, व्यक्तित्व कैसे बनता है और स्वभाव दोष व्यक्ति की मनुष्य के रूप में बढने तथा विकसित होने की क्षमता को क्यों घटा देते हैं, इन बिंदुओं पर चर्चा की । हमारे दुखी होने का सर्वाधिक प्रमुख कारण हमारे स्वभाव दोष हैं । यदि प्रारब्ध के कारण किसी को कष्ट झेलना है, तो उस व्यक्ति के स्वभाव दोष उसे दुखी होने के महत्त्वपूर्ण कारणों में से एक होता है । और अधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि जिस भी साधना मार्ग का अनुसरण करनेवाला कोई भी व्यक्ति, यदि आध्यात्मिक विकास करना चाहे तो उसके स्वभाव दोष उसके विकास करने की क्षमता को अति सीमित कर देते हैं । अच्छे मानसिक स्वास्थ्य तथा स्थिरता (अर्थात, अल्प स्वभाव दोषोंवाला हो) का अनुभव करनेवाले व्यक्ति के लिए साधना कर तीव्र गति से आध्यात्मिक प्रगति करना तथा एक आदर्श व्यक्तित्ववाला बनना अधिक सरल हो जाता है ।
२. आत्मजागरूकता क्या है ?
आत्म सुधार, व्यक्तिगत विकास अथवा आध्यात्मिक प्रगति के उच्चतर लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु समर्पित व्यक्ति के लिए स्वयं को समझना आवश्यक है । ऐसा इसलिए क्योंकि यदि व्यक्ति स्वयं की कमियों को समझता है तो ही वह उसमें सुधार करने के प्रयासों में अपना ध्यान एकाग्र कर पाएगा ।
आत्मजागरूकता की परिभाषा :
१. आत्मजागरूकता एक क्षमता है, जिससे व्यक्ति आत्मविश्लेषण कर पाता है तथा
२. इसमें अपनी क्षमता, गुण, कमियां, दोष, धारणा, विचार, विश्वास, आदर्श, प्रतिसाद, प्रतिक्रियाएं, वृत्ति, भावनाएं तथा प्रेरणा को समझना सम्मिलित हैं ।
३. इस प्रकार आत्मविश्लेषण में व्यक्ति अन्यों द्वारा कैसा समझा जाता है, यह भी सम्मिलित है, तथा
४. व्यक्ति के व्यवहार, प्रतिसाद तथा आचरण के आधार पर अन्य लोग उससे किस प्रकार प्रभावित होते हैं ।
मनोवैज्ञानिक आत्मजागरूकता को प्रायः दो प्रकार में विभाजित करते हैं, सार्वजनिक अथवा निजी ।
१. सार्वजनिक आत्मजागरूकता : यह प्रकार तब प्रदर्शित होता है जब व्यक्ति को भान होता है कि वह अन्यों के सामने कैसा दिखेगा । सार्वजनिक आत्मजागरूकता प्रायः वैसी परिस्थितियों में उभरती है, जब व्यक्ति ध्यान का केंद्र बन जाता हैं, जैसे प्रेसेंटेशन देते समय अथवा अपने मित्र मंडली से बात करते समय । इस प्रकार की आत्मजागरूकता प्रायः लोगों को सामजिक नियमों में सीमित रहने हेतु बाध्य करती है । जब हमें भान रहता है कि कोई हमे देख रहा है, हमारा मूल्यांकन कर रहा है, तब हम प्रायः सामाजिक रूप से स्वीकार्य तथा इच्छित आचरण करने का प्रयास करते हैं । संक्षेप में, हम हमारा सर्वोत्तम आचरण दर्शाते हैं, जो संभवतः हमारे वास्तविक व्यक्तित्व का प्रतिबिंब न हो । सार्वजनिक आत्मजागरूकता से मूल्यांकन का तनाव भी हो सकता है, इससे व्यक्ति इस बात से (व्यथित), तनावग्रस्त अथवा चिंतित हो जाता है कि अन्य लोग उसे कैसा समझते हैं ।
२. निजी आत्मजागरूकता : यह तब होता है, जब व्यक्ति स्वयं के कुछ पहलुओं से अवगत तो होता है;किंतु केवल निजी स्तर पर । उदाहरण के लिए, अपना मुख दर्पण में देखना निजी आत्मजागरूकता का एक प्रकार है ।, जब किसी महत्त्वपूर्ण परीक्षा के लिए अध्ययन करना भूल जाने पर हमारेे पेट दर्द होने लगता है अथवा आप जिसे पसंद करते हैं, उसे देखने पर हृदय में भावनाओं के उठने का भान होना भी निजी आत्मजागरूकता के अच्छे उदाहरण हैं । अपने परिवार के लोग तथा मित्र हमारे व्यक्तिगत जीवन के कुछ पहलुओं से परिचित होते हैं क्योंकि हम उनके समक्ष कुछ नहीं छिपाते । इसलिए, हमारी सहायता करने और हमारे मूल्यांकन करने में सहायता करने के लिए वे महत्वपूर्ण योगदान देते हैं I
जैसे-जैसे हम स्वयं के बारे में तथा अन्य हमें कैसा समझते हैं, यह अधिक जानने का प्रयास करते हैं, हम अपने गुण विशेषताओं के और अधिक पहलुओं को बारीकी से सीखते हैं । इसलिए तब हम अपने स्वभाव दोषों को दूर करने की बेहतर स्थिति में होते हैं तथा हमारी शक्ति किसमें है, यह समझ पाते हैं । अगले अनुच्छेद में, हम स्वयं-कीआत्म जागरूकता बढाने के लिए कुछ मार्ग देखेंगे ।
३. आत्मजागरूकता कैसे बढाएं -स्वयं का निरीक्षण कर
अपने व्यक्तित्व को समझने के लिए हमें अपने मन की प्रकृति को समझने की आवश्यकता है । मन दो भागों से मिलकर बना है -चेतन मन तथा अवचेतन मन । अवचेतन मन विशाल है और इसमें विद्यमान संस्कारों को ढूंढ पाना तथा उनका विश्लेषण करना सरल नहीं है । ऐसा होने पर भी दिन में प्रायः कुछ घटनाओं तथा परिस्थितियों में मन में बवंडर मचता है और वह नकारात्मक प्रतिक्रिया देता है । परिणामस्वरूप व्यक्ति को कुछ मात्रा में अधीरता तथा भावनाएं जैसे असुरक्षा, डर अथवा क्रोध इत्यादि का अनुभव होता है । हममें से अधिकतर लोग अपने दैनिक जीवन में परिश्रम करते रहते हैं । हम रूककर यह आत्मविश्लेषण नहीं करते कि हमारे मन में उस परिस्थिति में वैसी भावना क्यों आई थी । वास्तव में, व्यक्ति के दैनिक जीवन की उन परिस्थितियों में मन की स्थिति से तथा घटनाओं पर नकारात्मक ढंग से प्रतिक्रिया देने के माध्यम से व्यक्ति की प्रकृति के बारे में जानने का एक झरोखा खुल जाता है (वास्तव में, व्यक्ति के दैनिक जीवन में, वैसी परिस्थितियों के माध्यम से, व्यक्ति का मन, परिस्थितियों तथा घटनाओं के प्रति नकारात्मक प्रतिक्रिया देकर अपने स्वभाव का झरोखा खोलता है तथा उसमें संस्कार प्रदान करता हैं I) । यदि कोई अपने दृष्टिकोण के प्रति सतर्क तथा निश्चित है, तब वह मन में खुले इस झरोखे का अनुसरण कर अपने अवचेतन मन तक पहुंच सकता है । परिणामस्वरूप, इस प्रक्रिया के द्वारा व्यक्ति आत्मजागरूक होने लगता है कि उसका मन कैसे कार्य करता है तथा विविध परिस्थितियों में कैसे प्रतिसाद देता है । इसे मेटाकोगनिशन कहते हैं, जिसका अर्थ है अपने विचार प्रक्रिया का भान होना तथा समझना । यह विशिष्ट प्रकार का स्व-विकास अपनी देह के प्रति भान होने तथा मानसिक स्थिति जिसमें विचार, कृत्य, धारणाएं, अनुभव तथा अन्यों के साथ बातचीत सम्मिलित है, से संबंधित है । इसलिए यह नकारात्मक भावनाओं तथा प्रतिक्रियाओं से निकलने का पहला चरण है ।
व्यक्ति सामान्यतः अवचेतन मन में स्वभाव दोषों के संस्कारों के कारण ही परिस्थितियों तथा घटनाओं में नकारात्मक ढंग से प्रतिसाद देता है ।
चलिए एक उदाहरण लेते हैं, एनेट के अधिकारी ने जब उसके सहकर्मी की प्रशंसा की तो वह व्याकुल हो गई । वह उस घटना को दिन भर सोचती रही जिससे उसकी व्याकुलता और बढ गई । उसके मन में नकारात्मक विचार आए, मैं जितना भी परिश्रम कर लूं, मुझ पर कभी ध्यान नहीं जाता । संक्षेप में, एनेट का दिन अच्छा नहीं गया । अच्छी नींद के उपरांत वह उसके बारे में भूल गई और वह अपने दैनिक जीवन में व्यस्त हो गई । इसके स्थान पर, यदि एनेट अपनी व्याकुलता की भावना के प्रति सतर्क हो गई होती तथा आत्मविश्लेषण किया होता कि उसे ऐसे क्यों लगा । तब वह अपने मन में झांक सकती थी और समझ सकती कि उसका कौनसा स्वभाव दोष प्रकट हुआ, जिसके कारण उसे व्याकुलता हुई । तद्नुसार, वह भविष्य में ऐसी घटनाओं के कारण होनेवाली व्याकुलता को टाल सकने में अधिक समाधानकारी बन सकेगी तथा स्थिर रह पाएगी ।
जैसे ही एनेट वैसी परिस्थितियों में अपने विचारों तथा भावनाओं को आत्मविश्लेषण करने में अधिक सत्तर्क हो जाएगी, तब वह आत्मजागरूक होने के अगले चरण में जाएगी । उदाहरण के लिए,
- उसे भान होने के पूर्व उसकी व्याकुलता कितने समय तक रही ?
- तब क्या वह उस पर रोक लगाने में सक्षम होगी तथा व्याकुलता के विचार को नियंत्रित कर पाएगी ?
- क्या वह स्वयं के बारे में तथा अपने स्वभाव दोषों को अधिक समझने के लिए और गहराई में जाने का प्रयास करती है ?
- इस प्रकार की व्याकुलता और कहां उत्पन्न होती है ?और कौन सम्मिलित होता है ?
४. आत्मजागरूकता कैसे बढाएं – कोई हमारे बारे में अपना अभिप्राय देता है अथवा हमारी चूकें बताता है
‘‘राऊल संगीत का स्वर धीमा करो’’ राऊल के पिता चिल्लाते हुए बोले । ‘‘इस घर में तुम्हारे साथ एक क्षण की भी शांति नहीं है, सतत इतने ऊंचे स्वर में संगीत चलता रहता है ।’’ राऊल मन ही मन चिढते हुए तथा क्रोध से संगीत की ध्वनि को धीमा करता है । अन्यों से अपने कृत्यों तथा अपने जीवन के बारे में नकारात्मक अभिप्रायसुनना कभी सरल नहीं होता । ऐसे समय में, वे मुझे क्यों नहीं समझ पाते, मैं वैसा नहीं हूं तथा मैं इसके बारे में नहीं सुनना चाहता ऐसे विचार प्रायः हमारे मन में आते है । मान लीजिए कि राऊल थोडे समय के लिए रूक जाता है और परिस्थिति पर ध्यानपूर्वक विचार करता है;संभवतः ऐसा करने से वह अन्य लोग उसे कैसा समझते हैं, इसके संदर्भ में एक-दो बातें सीख सकेगा । जब अन्य लोग हमें हमारे बारे में अपने विचार बताते हैं, चाहे वह कितना भी कठोर क्यों न हो, यह हमें इस बात का संकेत देता है कि हम अन्य लोगों द्वारा किस प्रकार से समझे जाते हैं । यदि किसी को हमारे कृत्य से कष्ट हुआ हो, तो उसका कारण प्रमुखता से हमारे स्वभाव दोष ही होंगे जिसके कारण हमसे हुए कृत्यों ने अन्यों को दुष्प्रभावित किया है ।
५. आत्मजागरूकता कैसे बढाएं – अन्यों की चूकों का निरीक्षण करना तदोपरांत स्वयं का निरीक्षण करना
जेरेमी तथा रूथ घर के कामों को लेकर वाद-विवाद कर रहे थे । रूथ इस बात का आग्रह कर रही थी कि जेरेमी घर पर पर्याप्त सहायता नहीं करता । और जेरेमी घर के कामों को न करने के बेकार के बहाने दिए जा रहा था । जब उसके मित्र मार्क ने यह तर्क-वितर्क सुना, तब उसे भान हुआ कि वह भी जेरेमी के समान ही करता था । एक तीसरे व्यक्ति के रूप में तथा भावनात्मक रूप से लिप्त न होते हुए, मार्क तटस्थता से देख सकता था कि जेरेमी के बेकार के बहाने बचकाने थे तथा तर्कसंगत नहीं थे और वह अपनी पत्नी रूथ को क्रोधित कर रहा था । इसे देखने का परिणाम यह हुआ कि मार्क ने मन में ही संकल्प लिया कि वह अपने आलस्य के दोष को दूर करेगा और बिना कोई बहाना बनाए घर पर अपनी पत्नी की सहायता करेगा ।
यह एक अच्छा उदाहरण है कि कैसे कोई किसी परिस्थिति जिसमें अन्य लोग सम्मिलित होते हैं, को देखकर स्वयं के बारे में एक बडी सीख लेते हैं । चूंकि परिस्थिति में व्यक्ति स्वयं भावनात्मक ढंग से लिप्त नहीं है, इसलिए वह अधिक तटस्थ है और इसलिए उसमें सीखने की क्षमता अधिक है ।
६. हमारे सपने भी हमें हमारे बारे में बता सकते हैं
कभी-कभी हमारे अवचेतन मन में विद्यमान दृढ संस्कार हमारे सपनों में इस सीमा तक उतर आते हैं कि हम उस सपने को स्मरण रख पाते हैं और अपने मन से सीख भी पाते हैं । एक साधिका को सपना आया कि उसे मंच पर जाकर भाषण देने में भय लग रहा था । वह पसीना-पसीना होकर जाग गई तथा अगले एक घंटे तक सोने के लिए नहीं जा सकी । इस प्रकार के सपने का महत्त्व आत्मविश्लेषण के लिए अनमोल है । क्योंकि इससे हमारे अवचेतन मन के भीतर गढे संस्कारों और सूक्ष्म दुर्बलताओं पर प्रकाश डाला जा सकता है ।
७. सारांश
- आत्मजागरूक होना स्वभाव दोष निर्मूलन में पहला चरण है ।
- अपनी चूकों का निरीक्षण कर, अन्यों से स्वयं के बारे में अभिप्राय पूछ कर, अन्यों की चूकों का निरीक्षण तटस्थता से करने तथा कुछ सपनों के माध्यम से आत्मजागरूकता निर्मित की जा सकती है ।
- जब कोई भावनात्मक रूप से अस्थिर, व्याकुल अथवा उदास हो, तब उसे गहराई से आत्मविश्लेषण करने हेतु सतर्क हो जाना चाहिए, क्योंकि ऐसे समय में जो स्वभाव दोष उभरे हैं उसके संदर्भ में सहज जानकारी मिलती है ।
- हमें अपने बारे में सीखने के लिए तत्पर होना चाहिए तथा अन्यों से अपने बारे में अभिप्राय ले पाने का साहस होना चाहिए । इससे हम तटस्थ होकर अपनी चूकों का निरीक्षण कर सकते हैं तथा अच्छे परिवर्तन के लिए व्यावहारिक समाधान ढूंढ सकते हैं ।