पैरानोइड व्यक्तित्व/पैरानोइड (भ्रांतिमय) विकार के कारण उत्पन्न निराशा दूर करना

SSRF द्वारा प्रकाशित प्रकरण-अध्ययनों (केस स्टडीस) का मूल उद्देश्य है,  उन शारीरिक अथवा मानसिक समस्याओं के विषय में पाठकों का दिशादर्शन करना,  जिनका मूल कारण आध्यात्मिक हो सकता है । यदि समस्या का मूल कारण आध्यात्मिक हो,  तो यह ध्यान में आया है कि सामान्यतः आध्यात्मिक उपचारों का समावेश करने से सर्वोत्तम परिणाम मिलते हैं । SSRF शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं के लिए इन आध्यात्मिक उपचारों के साथ ही अन्य परंपरागत उपचारों को जारी रखने का परामर्श देता है । पाठकों के लिए सुझाव है कि वे स्वविवेक से किसी भी आध्यात्मिक उपचारी पद्धति का पालन करें ।

१. प्रस्तावना

इस प्रकरण अध्ययन में, हम राऊल (वास्तविक नाम नहीं है)की निराशा के मूल कारण को साझा करेंगे । यह उसके शंकालु स्वभाव के कारण था; क्योंकि वह मानसिक उन्माद व्यक्तित्व विकार अथवा संविभ्रम विकार से पीडित था । साधना के कारण उसके परिवर्तित सकारात्मक जीवन की यात्रा का वृतांत उसके ही शब्दों में आगे दिया गया है ।

२. विवाह पूर्व जीवन

लगभग १० वर्ष पूर्व, मैं एक लडकी के साथ संबंध में था । उस समय मुझे लगता था कि मैं उससे अत्यधिक प्रेम करता हूं। जब हम साथ थे, मुझे भान हुआ कि मैं उसपर अत्यधिक अधिकार जताने लगा हूं तथा उसे लेकर मुझमें शंकालु वृत्ति उत्पन्न होने लगी है । पहले कभी ऐसा हुआ हो, यह मुझे स्मरण नहीं है । मेरा शंकालु स्वभाव इस सीमा तक बढ गया कि मुझे निरंतर उसके चरित्र पर संदेह होता । यद्यपि उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया था जिससे मुझे ये सब सोचने की आवश्यकता पडे, तब भी मेरा मन ऐसे विचारों से भरा रहता कि वह मेरे पीठ पीछे क्या कर रही होगी, । कुछ विचार इस प्रकार के होते वह किन पुरुषों से मिल रही होगी ?, कहीं उसने अत्यधिक आकर्षक कपडे तो नहीं पहन रखे होंगे ?, कहीं मेरे पीठ पीछे वह किसी और के साथ संबंध तो नहीं रख रही ? क्या वह मेरे प्रति ईमानदार है ? इत्यादि । ये नकारात्मक विचार अविरत मेरे मन में चलते रहते और मैं सबसे अधिक बुरेकी कल्पना करने लगता, जिससे और अधिक अशांत हो जाता । चूंकि हम अलग-अलग नगरों में रह रहे थे, इसलिए ये स्थान की दूरी स्थिति को और भी जटिल बना देती, क्योंकि मुझे लगता था कि दूर रहने के कारण मैं उस पर दृष्टि नहीं रख पाता । नकारात्मक विचारों की बौछार से मैं स्वयं को असहाय अनुभव करता, जो मेरे साथी की विश्वसनीयता तथा नैतिकता पर प्रश्नचिन्ह लगा देता । इन सबको रोकने का कोई उपाय मुझे नहीं सूझता ।

परिणामस्वरूप, हम जब भी बात करते अथवा मिलते, मैं उससे उसकी गतिविधियों एवं कहीं आने-जाने के विषय में अनेक प्रश्न करते रहता । इससे प्रायः तर्क-वितर्क होता, जो लंबे समय तक चलता । निःसंदेह, इससे हम दोनों थक जाते और मैंने पाया कि मैं निराशा की स्थिति में जा रहा हूं । मेरी शंका तथा अधिकार जताने के नकारात्मक भंवर के कारण मैंने ऐसे कृत्य किए हैं जिन पर मुझे तनिक भी अभिमान नहीं था । मैंने उस पर जासूसी करना आरंभ किया, दूसरे ईमेल आईडी से मैं उसे मेल करता, जिससे मैं उसकी सत्यनिष्ठा के बारे में जान सकूं तथा उसके व्यक्तिगत ईमेल को भी पढने का प्रयास करता । मेरा जीवन तनाव तथा अनावश्यक विचारों से भरा था । मेरा अधिकांश समय अपनी असहाय स्थिति के कारण हो रहे मानसिक संताप में ही व्यर्थ जाता । ऐसा वर्षों तक चलता रहा और एक दिन हमारे संबंध टूट गए ।

वह संबंध समाप्त होने के उपरांत भी मेरे जीवन में सुधार नहीं हुआ । मैं जिस भी लडकी, अर्थात सामान्यतः विपरीत लिंग के किसी भी व्यक्ति से अपने कार्यालय अथवा सामाजिक सभा में मिलता, सब पर शंका करने लगा । मेरा विवाह पर से विश्‍वास उठ गया और मैं सोचता कि सभी लडकियों की भावनाएं झूठी होती हैं । मेरा शंकालु स्वभाव तीव्रता से बढते जा रहा था और मेरा जीवन अत्यंत शोचनीय हो गया था ।

३. अपने नकारात्मक विचारों तथा निराशा को दूर करने के लिए उपाय ढूंढने का प्रयास करना

मैं जानता था कि मुझे सहायता की आवश्यकता है; किंतु कैसे लूं , यह समझ में नहीं आ रहा था । मैं किसी मानसोपचार विशेषज्ञ से मिलना नहीं चाहता था; क्योंकि मैं सोचता था कि वे तो केवल यही समझाने का प्रयास करेंगें कि सभी लडकियां बुरी नहीं होतीं । (प्रायः यह देखा गया है कि जीवन के प्रति संविभ्रम व्यक्तित्ववाले अल्प लोग ही चिकित्सक से भेंट करते हैं क्योंकि उनके स्वभाव में सहायता लेने की वृत्ति नहीं होती ।) एक दिन अंतिमतः मैंने अपने एक घनिष्ठ मित्र से खुलकर बात की । मैंने अपनी निराशाजनक दुर्दशा के संदर्भ में पूरा हृदय अपने मित्र के समक्ष खोलकर रख दिया, जिससे वह चकित था । उसने कहा कि ऐसे विचार उसे कभी नहीं आते । उसने मुझे कुछ दृष्टिकोण देने का प्रयास किया; किंतु कोई भी दृष्टिकोण विपरीत लिंग के साथ संबंध को लेकर मेरे आसपास बने शंकालु स्वभाव के गुब्बारे को भेद नहीं पाया, । मैं निराशा की गहरी खाई में डूबता जा रहा था । थोडे समय के लिए अपने मन को भटकाने तथा शंका के नकारात्मक विचारों की पकड से स्वयं को छुडाने के लिए मैंने प्रतिदिन सिनेमा देखने तथा समय-समय पर मद्यपान करने के पर्याय का चयन किया । किंतु वह मुक्ति भी अल्पकालिक थी क्योंकि वह कुछ घंटों के लिए ही रहती और ऐसा कोई बौद्धिक दृष्टिकोण नहीं था, जो मेरे नकारात्मक विचारों को परे रख सके ।

४. विवाह से पूर्व तथा उपरांत समस्या और बढ जाना

समय बीतता गया, और मैं अपनी भावी पत्नी से मिला । यद्यपि मैं वास्तव में उससे प्रेम करता था और उसने भी मुझे शंका करने का कोई भी कारण नहीं दिया था, तथापि नकारात्मक विचार पुनः विस्फुटित होने लगे और हमारा संबंध बिगडने लगा । मैं उस पर भी अत्यधिक अधिकार जताने तथा शंका करने लगा । मुझे उसका उसके घर से बाहर निकलना अथवा किसी पुरुष से बात करना सहन नहीं होता था । वह कहां है अथवा क्या कर रही है, इसकी जानकारी पांच मिनट के लिए भी न होने पर मेरी स्थिति अति विकट हो जाती । यह इतना बढ गया कि मैं उसके चचेरे भाई पर भी शंका करने लगा था और प्रतिदिन उससे निरर्थक प्रश्न कर उसे कष्ट देता । वह इन यातनाओं से इतनी तंग आ जाती कि कई बार हमारे संबंध टूटने पर आ जाते । हमारा विवाह तो हो गया; किंतु समस्या विवाह के उपरांत भी समाप्त नहीं हुई थी । मैं अपने जीवन से तथा शंका करने एवं अधिकार जताने के स्वभाव दोष से त्रस्त हो गया था । इन बढती समस्याओं  तथा हमारे विवाहोपरांत उत्पन्न अन्य अनेक व्यक्तिगत कारणों से मैं उस छोर पर पहुंच गया, जहां मैं अपना जीवन समाप्त करना चाहता था ।

५. साधना आरंभ करने के उपरांत स्वभावदोषों के कारण आई निराशा से निकलना

मैं इस निराशाजनक स्थिति से कैसे निकल सकता हूं, जब इस प्रश्न से मेरी बुद्धि पराजित हो गई, तब मैंने अध्यात्म की ओर मुडने का निर्णय लिया । मैंने ग्रंथों का अध्ययन करना तथा मंदिर जाना आरंभ किया । अपनी दुविधापूर्ण स्थिति से निकलने के लिए कोई दृष्टिकोण मिले, इस हेतु मैं संतों की जीवनी पढने लगा । एक दिन मेरे एक मित्र ने मेल के द्वारा मुझे स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाऊंडेशन के जालस्थल (वेबसाईट) से परिचय करवाया । मैं जालस्थल पर उपलब्ध लेखों को घंटों पढता रहता और मैं इस बात से सहमत हो गया कि साधना से ही मेरा जीवन मूलतः सुधर सकता है । मैं SSRF के कुछ साधकों से मिला और साधना आरंभ की । उन दिनों साधना के अंतर्गत मैं नमक-पानी उपचार (एक आध्यात्मिक उपचार) सत्संग में जाना तथा श्री गुरुदेव दत्त एवं ॐ नमो भगवते वासुदेवायका नामजप करता था । कुछ माह के उपरांत, मैंने कुलदेवता का नामस्मरण करना भी आरंभ कर दिया ।

कुछ माह के उपरांत, ईश्वर के नामस्मरण की साधना करने से मुझे स्वयं में शांति अनुभव होने लगी । मुझे अपने अत्यधिक अधिकार जताने तथा शंका करने के स्वभाव दोष में भी कमी होने का भान हुआ । निराशा की चादर अब हटने लगी थी और अब मैं जीवन के प्रति सामान्य रूप से उत्साहित अनुभव करने लगा । मैं कुछ वर्षों से नियमित रूप से साधना कर रहा हूं । अपनी पत्नी पर अत्यधिक अधिकार जताने तथा शंका करने के कष्टदायक अनुभव अब मुझे भूतकालीन बुरे स्वप्न की भांति प्रतीत होते हैं । अब जीवन हर प्रकार से अच्छा हो गया है । कभी-कभी सत्सेवा करते समय तो कभी साधकों के संगत (सत्संग) में आनंद की अनुभूति होती है ।

मेरे जीवन में इतना सकारात्मक मोड लाने तथा नकारात्मक विचारों एवं निराशा की पकड से मुझे मुक्त करवाने के लिए मुझमें ईश्वर के प्रति उत्कट कृतज्ञता का भाव है । मेरी उन लोगों से प्रार्थना है, जो मेरे ही समान समस्याओं  से पीडित हैं, उन्हें मेरे अनुभव से सहायता होगी । जो अपने जीवन की गुणवत्ता बढाना चाहते हैं उनसे मेरी विनम्र विनती है कि आप साधना अच्छे से करें, शेष भगवान करेंगे । परम पूजनीय डॉ.आठवलेजी के शब्दों में, यदि हम ईश्वर की ओर एक पग बढाते हैं, तो ईश्वर दस पग हमारी ओर आते हैं ।’’

SSRF की टिप्पणी

  • राऊल द्वारा अनुभव किए जा रहे मानसिक कष्ट मुख्यतः मानसिक प्रकार के, उसके स्वभावदोषों के कारण थे । समस्या को बढाने में अनिष्ट शक्ति का प्रभाव न्यूनतम था ।
  • जब राऊल ने साधना आरंभ की, तब आध्यात्मिक शक्ति निर्मित हुई, उसने उसके मन में विद्यमान शंकालु वृत्ति तथा अत्यधिक अधिकार जताने के स्वभाव दोष के संस्कारों को निष्क्रिय कर दिया । ईश्वर के नामजप की साधना ने उसके स्वभाव दोष अल्प करने में सहायता की । इस प्रक्रिया के संदर्भ में अधिक जानकारी हेतु नामजप कैसे कार्य करता है? यह ट्युटोरियल पढें ।