दाह संस्कार, शव को गाडना और मृतशरीर का गिद्धों द्वारा खाया जाना आदि का आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य क्या है ?

१. परिचय

प्रतिवर्ष विश्‍व में ५० लाख से अधिक लोगों की मृत्यु होती है । अंतिम संस्कार के लिए मुख्यरूप से दो विधियां अपनाई जाती है – दाह संस्कार अथवा शव को गाडना । मुंबई में पारसी लोगों का एक छोटा-सा समुदाय, अपने मृत लोगों को Towers of silence में गिद्धों द्वारा खाए जाने के लिए खुला छोड देते हैं । पुराने समय में कुछ सभ्यताओं में मृत शरीर को कुछ लेप लगाकर ममी बनाकर सुरक्षित किया जाता था । आध्यात्मिक शोध विधियों द्वारा हमने, मृत्यु पश्‍चात हमारे पूर्वजों को सहायता करने के दृष्टिकोण से, आधुनिक समय के अंतिम संस्कार पद्धतियों की जांच की है ।

यह एक लोकप्रिय धारणा ये है कि मृत्यु के पश्‍चात आत्मा प्रकाश की ओर जाती है अथवा मृत व्यक्तिके प्रियजन दूसरी ओर उसका स्वागत करने के लिए उसकी प्रतीक्षा कर रहे होते हैं । एक सूक्ष्मदेह, जिसने अभी-अभी स्थूल शरीर का त्याग किया है, उसका वास्तविक अनुभव जानने के लिए हम आपसे निम्नलिखित ३ लेख पढने का अनुरोध करते हैं ।

इन लेखों को पढने के उपरांत, हम समझ सकते हैं कि किस प्रकार हमारे पूर्वज मृत्यु के उपरांत कष्ट की स्थिति में हो सकते हैं और उनकी सहायता कैसे की जा सकती है ।

एक अन्य प्रचलित धारणा के अनुसार हमारे पूर्वज पृथ्वी पर हमारी सहायता करने की स्थिति में होते हैं । यद्यपि सत्य इससे सर्वथा भिन्न है । हमारे अधिकतर पूर्वजों को स्वयं सहायता की अत्यधिक आवश्यकता होती है । इनकी सहायता यदि कोई कर सकता है, तो वे हैं पृथ्वी पर उनके वंशज । उनके पास अपने वंशजों का ध्यान आकृष्ट करने का केवल एक ही मार्ग है, उन्हें कष्ट देना ।

अनेक प्रकार के ये कष्ट तबतक होते हैं, जबतक वंशज ऐसी स्थिति में न पहुंच जाए कि उनके पास साधना के अतिरिक्त कोई विकल्प न बचे । जिसका उपयोग आगे पूर्वजों के कष्ट अल्प करने में हो ।

इस लेख को आगे समझने के लिए कृपया ये लेख पढें :

मृतकों के अंतिम संस्कार की विधि उनके सूक्ष्म-जगत् में आनेवाले कष्टों को अल्प करने में योगदान कर सकती है ।

कभी कभी लोग अंतिम संस्कार की विभिन्न विधियों के लाभ एवं हानि का मूल्यांकन पर्यावरण पर पडने वाले इसके प्रभाव के आधार पर करते हैं । यह एक मापदंड है । जब अंतिम संस्कार अध्यात्मिक दृष्टिसे हानिकारक विधि द्वारा किया जाता है तब यह आध्यात्मिक वातावरण के लिए अत्यधिक अहितकर होता है एवं इससे पूर्वजों के सूक्ष्म देहों को और अधिक कष्ट होता है ।

२. मृत्यु के पश्‍चात भौतिक शरीर की स्थिति

जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तब केवल स्थूल शरीर का त्याग होता है, परंतु मन, बुद्धि एवं अहंकार से मिलकर बना सूक्ष्मदेह जिसमें सभी इच्छाएं और संस्कार हैं, उसका अस्तित्व बना रहता है । मन, बुद्धि एवं अहंकार व्यक्ति का व्यक्तित्व निर्धारित करते हैं । स्वभाव के यह गुण वैसे ही बने रहते हैं और भौतिक शरीर की मृत्यु से व्यक्ति में किसी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं आता ।

अपने भौतिक शरीर के साथ आसक्ति की अवधारणा

मृत्युलोक, यह लेख पढने से ज्ञात होगा कि जब व्यक्ति की मृत्यु होती है, तब वह मृत्यु पश्‍चात के सभी अनुभवों से अपरिचित होता है । भले ही उसकी मृत्यु हो चुकी है फिर भी वह जिस लोक से आया है और जिस शरीर को जानता है उसे पकड कर रखता है । जब शरीर को ममी बनाने हेतु लेप लगाकर अथवा अंतिम संस्कारों में विलंब होने के कारण शीतगृह में पूर्णतः सुरक्षित रखा जाता है, तब उसकी यह आसक्ति और भी अधिक बढ जाती है । सूक्ष्मदेह अपने स्थूलशरीर के साथ संबंध बनाकर रखता है और इसे छोडने में और आगे की यात्रा की ओर बढने में कठिनाई अनुभव करता है क्योंकि वह अपना पिछला घर अर्थात अपना स्थूल शरीर नहीं छोड पाता ।

मृतशरीर के आसपास के स्पंदन, जो नकारात्मक स्पंदनों को आकृष्ट करते हैं :

मृत्यु के समय मृतशरीर से त्याज्य (excretory)  वायु बाहर फेंकी जाती हैं । यह त्याज्य वायु शरीर द्वारा उत्सर्जित (expel) की जानेवाली सडने की प्रक्रिया से निर्मित नियमित वायु होती है । सड रहे शरीर से निकल रही वायु के स्पंदन तथा तरंगें नकारात्मक होते हैं । अत:इससे निकटवर्ती वातावरणमें तमोगुण बढ जाता है । अनिष्ट शक्तियां (भूत, प्रेत,  पिशाच इत्यादि) इन नकारात्मक स्पंदनों की ओर आकृष्ट होकर मृत शरीर के आसपास के वातावरण में प्रवेश करती हैं ।

सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्रों की श्रृंखला उन साधकों द्वारा चित्रित की गई है, जिनकी छठवी इंद्रिय विकसित है जिससे वे मृतक के सूक्ष्म-देह के साथ मृत शरीर के आसपास के वातावरण में हो रही अदृश्य गतिविधियों को देखने में सक्षम होते हैं ।

दाह संस्कार, शव को गाडना और मृतशरीर का गिद्धों द्वारा खाया जाना आदि का आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य क्या है ?

मृत्यु के समय शरीर से ब्रह्मांड में उत्सर्जित होने की प्रक्रिया के समय अनिष्ट शक्तियां पंचप्राण पर नियंत्रण कर मृतदेह पर आक्रमण करती हैं । वे मृतदेह पर धुएं के रूप में काली शक्ति छोडती हैं, जो उसे लपेटकर उस पर काला आवरण बनाती है । यह अदृश्य धुआं है परंतु छठवी इंद्रिय (अतिंद्रिय संवेदी क्षमता) द्वारा इसे देखा जा सकता है । अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों के कारण मृतदेह में काली तरंगों का संक्रमण (transmission) होता है और मृतदेह काली तरंगों से आवेशित (charge) हो जाता है ।

स्थूल शरीर, पंचप्राण और पंच-उपप्राणों पर नियंत्रण प्राप्त करने के पश्‍चात अनिष्ट शक्तियां अपना ध्यान मृत व्यक्ति के सूक्ष्मदेह पर नियंत्रण प्राप्त करने पर केंद्रित करती हैं ।

एक सामान्य व्यक्ति का सूक्ष्मदेह सांसारिक इच्छाओं से भरे होने के कारण पृथ्वीलोक पर ही मंडराता रहता है । कुछ दिनोंतक सूक्ष्मदेह का भौतिक शरीर के साथ आसक्ति के रूप में तथा मृतदेह से वातावरण में कुछ दिनों तक उत्सर्जित होनेवाली प्राणशक्ति द्वारा सूक्ष्म संबंध रहता है । इसी सूक्ष्म संबंध का उपयोग कर अनिष्ट शक्तियां सूक्ष्मदेह को प्राप्त करती हैं । सूक्ष्मदेह की ओर काली शक्ति के भंवर संचारित कर ये सूक्ष्मदेह को फुसलाना प्रारंभ करती हैं । इस प्रकार यह मृत पूर्वज के सूक्ष्मदेह को अपने आक्रमण क्षेत्र में खींच लेती हैं ।

दाह संस्कार, शव को गाडना और मृतशरीर का गिद्धों द्वारा खाया जाना आदि का आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य क्या है ?

तदुपरांत वे सूक्ष्मदेह को काली तरंगों के जाल में फंसाती हैं । इससे सूक्ष्मदेह के मुक्त विचरण में कठिनाई उत्पन्न होकर मृत्यु पश्‍चात आगे की यात्रामें बाधा आती है । कुछ समय पश्‍चात अनेक अनिष्ट शक्तियां आक्रमण में सहभागी होती हैं और अधिक भंवर बनाते हुए सूक्ष्मदेह पर पूरा नियंत्रण प्राप्त करती हैं । इस प्रकार अनिष्ट शक्तियां योजनाबद्ध पद्धति से मृत पूर्वज के स्थूल एवं सूक्ष्मदेह पर पूरा नियंत्रण प्राप्त करती हैं ।

आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अंतिम संस्कार का मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए होना चाहिए :

  • अनिष्ट शक्तियों द्वारा होनेवाले आक्रमण को न्यून करना
  • सूक्ष्मदेह को स्थूलशरीर से आसक्ति छोडने में सहायता करना
  • मृत्युपरांत सूक्ष्मदेह की आगे की यात्रा को गति और संरक्षण प्रदान करना.

(पू.) श्रीमती अंजली गाडगीळ SSRF की साधिका हैं जिन्हें प्रगत छठवीं इंद्रिय प्राप्त है, इन्होंने सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्रों सहित दी गई निम्नलिखित जानकारी उपलब्ध कराई है । सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित यह जानकारी तथा चित्रांकन विश्‍वमन और विश्‍वबुद्धि से प्राप्त हुए हैं । जब मृतक पर निम्न संस्कार किए जाते हैं, उस समय की सूक्ष्म गतिविधियों का घटनाक्रम ये चित्रांकन अचूकता से दर्शाते हैं ।

३. शरीर का दाहसंस्कार

दाहसंस्कार मृतशरीर को जलाकर नष्ट करने की एक पद्धति है ।

सबसे पहले यह आवश्यक है कि दाहसंस्कार शीघ्रातिशीघ्र और सूर्यास्त से पहले कर देना चाहिए । यदि व्यक्ति की मृत्यु रात्रि में हुई है तो दाहसंस्कार करने के लिए सुबह होनेतक प्रतीक्षा कर सकते हैं । दाहसंस्कार की प्रक्रियामें गति लाकर हम मृतशरीर पर अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, पिशाच इ.)के होनेवाले प्रभाव को न्यून कर सकते हैं ।

निरीक्षण किए गए घटनाओं का अनुक्रम इस प्रकार है

१. दाहसंस्कार के अंतर्गत मूल अग्नितत्त्व के साथ विशेष मंत्रों के उच्चारण से मृतदेह के पंचप्राण, पंच-उपप्राण और त्याज्य वायु उत्सर्जित होकर वातावरण में विघटित हो जाते हैं ।

२. शरीर के जलने के कारण अग्नितत्त्व और मंत्रो द्वारा निर्मित सुरक्षा-कवच मृतशरीर को अनिष्ट शक्तियों द्वारा होनेवाले किसी भी प्रकार के आक्रमण से बचाता है ।

३. पंचप्राण और पंच-उपप्राणों के संपूर्ण विघटन (disintegration) के कारण सूक्ष्मदेह का स्थूलशरीर के साथ शेष सूक्ष्म-बंधन टूट जाता है ।

४. अग्नितत्त्व और मंत्र सूक्ष्म देह की रज-तम स्पंदनों से शुद्धि कर इसके सर्व ओर संरक्षण-कवच प्रदान करते हैं ।

५. परिणामस्वरूप रज-तम स्पंदनों से शुद्ध हुआ सूक्ष्मदेह हलका और अधिक सात्त्विक हो जाता है । इससे पृथ्वीलोक से आगे की यात्रा हेतु गति मिलती है ।

दाह संस्कार, शव को गाडना और मृतशरीर का गिद्धों द्वारा खाया जाना आदि का आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य क्या है ?दाह संस्कार, शव को गाडना और मृतशरीर का गिद्धों द्वारा खाया जाना आदि का आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य क्या है ?

दाहसंस्कार का विश्‍लेषण दर्शाता है कि अंतिम संस्कार के प्रभावी होने के लिए आवश्यक सभी सूत्र दाहसंस्कार में पूरे किए जाते हैं ।

  • अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण न्यून करना
दाह संस्कार, शव को गाडना और मृतशरीर का गिद्धों द्वारा खाया जाना आदि का आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य क्या है ?
  • सूक्ष्म शरीर को स्थूल शरीर के साथ विद्यमान संबंध से मुक्त कराने में सहायक
दाह संस्कार, शव को गाडना और मृतशरीर का गिद्धों द्वारा खाया जाना आदि का आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य क्या है ?
  • मृत्यु पश्‍चात की यात्रा हेतु गति और सुरक्षा प्रदान करना
दाह संस्कार, शव को गाडना और मृतशरीर का गिद्धों द्वारा खाया जाना आदि का आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य क्या है ?

यदि मृतशरीर को पूर्णतः नहीं जलाया जाए, तो उस पर मांत्रिकों द्वारा आक्रमण होने की आशंका बनी रहती है ।

यह लेख भी पढें : दाहसंस्कार से प्राप्त राख बिखेर देने के पीछे आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य क्या है ?

४. दफनाना

शवपेटी को वेल्डिंग और रबड गास्केट (gasket) की सहायता से बनाया जाता है । इन्हें सील्ड पेटिकाएं कहते हैं । पेटी को इस प्रकार से बनाया जाता है कि इसमें हवा, पानी अथवा मिट्टी प्रवेश कर न सके । इससे त्याज्य वायु पेटी में बंद हो जाते हैं । मृतदेह से प्रक्षेपित होनेवाली कष्टप्रद तरंगों से पेटी में दबाव बढता है और इससे इन तरंगों का घनीकरण (materialisation) होकर मृतदेह के सर्व ओर काला आवरण निर्मित होता है । इस घनीकरण से कष्टप्रद, घर्षणात्मक (frictional) और उष्ण (गरम) तरंगें निर्मित होती हैं । ऐसी तरंगों से सूक्ष्म कष्टप्रद ध्वनि निर्मित होकर अनिष्ट शक्तियां (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) आकृष्ट होती हैं । अनिष्ट शक्तियां पेटी में प्रवेश कर मृतदेह के पंचप्राण और पंच-उपप्राणों पर नियंत्रण पाकर उसे काली शक्ति से आच्छादित करती हैं । मृत शरीर भूमि में दफनाए जाने से यह पाताल के कष्टप्रद स्पंदनों को आकृष्ट करता है, जो मृत देह पर काली तरंगों के धागों का गुंबज बनाते हैं । पंचप्राण और पंचउपप्राणों पर अपने नियंत्रण का उपयोग कर अनिष्ट शक्तियां सूक्ष्मदेह तक पहुंचती है । अनिष्ट शक्तियों की काली शक्ति से पूर्णतः आच्छादित होने के कारण समय बीतने के साथ-साथ सूक्ष्मदेह भारी होता जाता है । सूक्ष्मदेह पेटी की ओर खिंचकर उसमें बंदी बन जाता है और अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों का भक्ष्य (शिकार) बन जाता है ।

इस प्रकार दफनाने से सूक्ष्मदेह भूलोक में ही बंदी हो जाने से उनके भूत बनने की संभावना दाहसंस्कार किए गए शरीर से अधिक होती है । व्यक्ति द्वारा तुलनात्मक दृष्टि से एक सज्जन की भांति जीवन बिताए जाने पर भी,मात्र दफनाए जाने के कारण, उसकी इच्छा न होते हुए भी, उसके भूत बनने की आशंका कई गुना बढ जाती है ।

अन्य अनिष्ट शक्तियों के प्रभाव में वह ऐसे कृत्य करने को विवश हो जाता है, जिससे उसके पाप बढकर उसे ब्रह्मांड के नीचे के लोकों में धकेल दिया जाता है ।

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दफनाने का सूक्ष्म विश्लेषण दर्शाता है कि यह विधि अंतिम संस्कार के प्रभावी मापदंडों (effective criteria) को पूर्ण नहीं कर पाती ।

  • अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण न्यून करना
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  • सूक्ष्म शरीर को स्थूल शरीर के साथ विद्यमान संबंध से मुक्त कराने में सहायक
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  • मृत्यु पश्‍चात की यात्रा हेतु गति और सुरक्षा प्रदान करना
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५. मृत शरीर गिद्धों द्वारा खाया जाना

दाह संस्कार, शव को गाडना और मृतशरीर का गिद्धों द्वारा खाया जाना आदि का आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य क्या है ?

पारसी समुदाय अपने मृतकों के शरीर नष्ट होने हेतु ‘Tower of Silence’ नामक स्थान में रख देते हैं । छत न होने से यह आकाश के नीचे खुला ही होता है । सूर्य की किरणों से मृतशरीर का विघटन होता है और गिद्ध इत्यादि द्वारा खाया जाता है ।

मृत्यु के समय सूक्ष्मदेह की स्थूलशरीर के प्रति आसक्ति होने के कारण जब शरीर का गिद्धों द्वारा चीर-फाड किया जाता है तो उसे अत्यधिक दु:ख होता है । स्थूलशरीर का उपयोग सूक्ष्मदेह पर आक्रमण के लिए न हो, इसलिए इसका शीघ्राति शीघ्र पूर्णत: नष्ट होना आवश्यक है । केवल अग्नितत्त्व ही तुरंत ऐसा कर सकता है । पंचप्राण और पंच-उपप्राण शरीर को पूर्णरूप से छोडने में सामान्यत:कुछ दिन का समय लेते हैं । इस काल में अनिष्ट शक्तियां इनका उपयोग मृतपूर्वज के सूक्ष्मदेह को अपने अधीन करने के लिए कर सकती हैं । मृतशरीर को कुछ दिनो में नष्ट करने की शक्ति न तो सूर्य की किरणों और ना ही गिद्धों में होती है । आध्यात्मिक स्तर पर इससे भी अधिक कुछ हानिप्रद घटता है । इस विधि में गिद्धों द्वारा मृतशरीर पर आक्रमण किए जाने के कारण अनेक सूक्ष्म-मांत्रिक और अनिष्ट शक्तियां हड्डियों, मांस और रक्त की गंध की ओर आकृष्ट होते हैं । वे रक्त और हड्डियों का उपयोग नकारात्मक विधियों द्वारा सूक्ष्मदेह पर नियंत्रण पाने के लिए करते हैं । संपूर्ण शरीर गिद्धों को दिए जाने से अनिष्ट शक्तियां और मांत्रिक अत्यल्प समय में उस पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त कर लेते हैं । मृत्यु पश्‍चात उनके मांत्रिकों के दास बनने की आशंका अत्यधिक होती है, जिससे उन्हें बहुत भोगना पडता है । इस प्रकार इन सूक्ष्मदेहों को गति प्राप्त नहीं होती और वे सहजता से अनिष्ट शक्तियों के नियंत्रण में आकर पाताल लोक में जाते है । इसके अतिरिक्त अनेक अनिष्ट शक्तियां अपनी मांसाहार और मानव रक्त पीने की तीव्र इच्छा को गिद्धों के माध्यम से पूरा करती हैं । रक्त और मांस से उत्सर्जित सूक्ष्म कष्टप्रद गंध का सूक्ष्म-मांत्रिक घनीकरण करते हैं और नकारात्मक मंत्रों के उच्चारण द्वारा सूक्ष्मदेह को पुन:सूक्ष्म स्वरूप (जेनी जैसा)प्रदान कर उससे अनेक कुकृत्य करवाकर अन्यों को तीव्र कष्ट देते हैं ।

गिद्धों द्वारा खाए जाने का सूक्ष्म-विश्‍लेषण दर्शाता है कि यह प्रभावी अंतिम संस्कार विधि होने का कोई भी मापदंड पूरा नहीं करता और शव को गाडने से अधिक हानिप्रद है ।

  • अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण न्यून करना
दाह संस्कार, शव को गाडना और मृतशरीर का गिद्धों द्वारा खाया जाना आदि का आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य क्या है ?
  • सूक्ष्म शरीर को स्थूल शरीर के साथ विद्यमान संबंध से मुक्त कराने में सहायक
दाह संस्कार, शव को गाडना और मृतशरीर का गिद्धों द्वारा खाया जाना आदि का आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य क्या है ?
  • मृत्यु पश्‍चात की यात्रा हेतु गति और सुरक्षा प्रदान करना
दाह संस्कार, शव को गाडना और मृतशरीर का गिद्धों द्वारा खाया जाना आदि का आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य क्या है ?

६.पर्यावरण की दृष्टि से दाहसंस्कार और दफन में तुलना

ऊपरी तौर पर कफन में लिपटे व्यक्ति का दफन संस्कार अथवा मृतशरीर गिद्धों के खाने के लिए छोड देना, शवपेटी में दफन करने अथवा विद्युत शवदाहगृह अथवा चिता पर रखकर अंतिम संस्कार करने की अपेक्षा पर्यावरण के अधिक अनुकूल लगता है । परंतु हम हमारे अंतिम संस्कार के विधि का चुनाव करते समय केवल पर्यावरण के परिप्रेक्ष्य से नहीं देख सकते । अनिष्ट शक्तियों द्वारा होनेवाले आक्रमणों समान आध्यात्मिक दृष्टि से विचार करना भी आवश्यक है । अंतिम संस्कार की विधि का चुनाव करते समय आध्यात्मिक आयाम की उपेक्षा करने से और शरीर को वैसा ही रखा जाने से हमारे मृत प्रियजनों पर अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण की संभावना अत्यधिक बढ जाती है ।

७. सारांश

मृत शरीर नष्ट करने के अंतिम संस्कार की सभी विधियों में दाहसंस्कार सबसे अधिक लाभप्रद है । जिन लोगों ने अपेक्षाकृत अच्छा जीवन बिताया है,मात्र एक दफन विधि के कारण उनके मृत्यु पश्‍चात भूत बनने की संभावना बढती है । हमारी संस्कृति के अनुसार की जानेवाली अंतिम संस्कार विधि के प्रति हम भावनाशील होते हैं । अतः दफन विधि अथवा गिद्धों द्वारा खाए जाने के आध्यात्मिक दुष्परिणामों को देखते हुए किसी विशिष्ट अंतिम संस्कार के प्रति भावनाशील होने पर विचार किया जाना आवश्यक है ।