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कुल देवी देवता के स्थान पर मुझे अपने इष्ट देवता की उपासना करना अच्छा लगता है क्या यह उचित है ?
अपने इष्ट देवता का नामजप करना अनुचित नहीं है, परंतु साधना में शीघ्र उन्नति हेतु अपने कुल देवी-देवता अथवा धर्मानुसार संबंधित ईश्वरीय तत्व का नामजप श्रेयस्कर है ।
कुल देवी देवता ही हमारी आध्यात्मिक उन्नति के लिए श्रेष्ठ इसके निम्नलिखित कारण हैं :
१. कुल देवी देवता ही हमारी आध्यात्मिक उन्नति के लिए सर्वाधिक उपयोगी
- अध्यात्मशास्त्रानुसार, हमारा जन्म उसी धर्म में होता है जो हमारी आध्यात्मिक उन्नति के लिए सर्वोत्तम हो । जिस कुल में हमारा जन्म होता है उस कुल देवी-देवता ही हमारी आध्यात्मिक उन्नति के लिए श्रेष्ठ ईश्वरीय तत्त्व होते हैं (जैसा निम्न चित्र में दर्शाया गया है) । ईश्वर के सर्व तत्त्वों में परिवार के कुल देवी-देवता ही परिवारजनों के निकटतम तथा परिवार के सदस्यों की आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यधिक सुलभ होते हैं ।
- आध्यात्मिक उन्नति का अर्थ अपने सूक्ष्म शरीर में ईश्वर के सर्व तत्त्वों को आत्मसात करना है । हमारे सूक्ष्म शरीर द्वारा सर्व ईश्वरीय तत्त्वों के आत्मसात होने पर ही हमारी साधना पूर्ण होती है । अपने कुल देवी देवता के नामजप आध्यात्मिक उन्नति में प्रभावी रूप से सहायक होता हैं ।
- जब हम अपने जन्म के धर्मानुसार देवता का नामजप करते हैं अथवा अपने कुल देवी-देवता का नामजप करते हैं, तो यह हमें सर्व ईश्वरीय तत्त्वों को आकृष्ट करने की क्षमता देता है साथ ही उन्हें ३० प्रतिशत तक बढाता है ।
- यदि किसी अन्य देवता का नामजप किया जाए, तो केवल उस देवता द्वारा प्रतिनिधित्व किए जानेवाले तत्त्वों का संवर्धन होगा किन्तु वह आध्यात्मिक उन्नति में प्रभावी रूप से सहायक नहीं होगा । अतएव यह अपने कुल देवी देवता के नामजप की भांति अथवा जन्मगत धर्मानुसार देवता के नामजप की भांति प्रभावी नहीं होता ।
- जब कोई व्यक्ति ईश्वर के सभी तत्त्वों को ३० प्रतिशत तक आत्मसात कर लेता है तो गुरु (ईश्वर का सिखानेवाला तत्त्व) उसे ईश्वर के सभी तत्त्वों को १०० प्रतिशत तक आत्मसात कर लेने की स्थिति में ले जाते हैं ।
कुछ प्रसंगों में, हम देखते हैं कि कुछ व्यक्तियों में अपने कुल देवी देवता अथवा जन्म धर्मानुसार देवता से अलग किसी अन्य देवता के प्रति झुकाव होता है ।
उदाहरण स्वरूप, रोमन कैथॉलिक की आराध्य देवी ‘मदर मैरी’ हैं, तो भी व्यक्ति महात्मा बुद्ध के नामजप की ओर आकृष्ट हो सकता है । इसी प्रकार, एक हिंदू को अपने कुल देवी देवता के नामजप की अपेक्षा भगवान श्रीकृष्ण का नामजप करना अच्छा लग सकता है ।
किसी व्यक्ति की रुचि एक विशेष देवता के प्रति अथवा पूर्व जन्म में उस देवता की अपूर्ण साधना से अथवा इस जन्म में देवता की विशेषताओं, कार्य, वैभव इत्यादि के संदर्भ में सुन अथवा जानकर उत्पन्न हो सकती है ।
- कुल देवी देवता के नामजप तथा किसी अन्य देवता के नामजप के प्रभाव का अंतर एक सामान्य उदाहरण से स्पष्ट हो जाएगा । ‘विटामिन ए’ पूरक औषधि के सेवन करने से शरीर में केवल उसी विटामिन के अभाव की पूर्ति होगी । यदि एक सामान्य पुष्टिकर औषधि का (टॉनिक) सेवन किया जाए तो शरीर को हर प्रकार के खनिज एवं विटामिन की प्राप्ति होती है । यहां ‘विटामिन ए’ अपनी रुचि के देवता की भांति तथा कुल देवी देवता सामान्य पुष्टिकर औषधियों की भांति है ।
२. कुल देवी देवता के जप से न्यूनतम दुष्परिणाम (side effects)
ईश्वर का नाम अति शक्तिशाली एवं पवित्र है । प्रारंभिक अवस्था में जब हम ईश्वर का नामजप करते हैं, तो हमें थोडी असुविधा हो सकती है क्योंकि हम उसके चैतन्य को सहन नहीं कर पाते; यह कष्ट सिरदर्द अथवा वमन (उलटी) के रूप में हो सकती है ।
कुल देवी देवता अथवा जन्म धर्मानुसार देवता के पृथ्वी तत्त्व से संबंधित होने के कारण किसी भी प्रकार का कष्ट होने की संभावना न्यूनतम होती है । इसके विपरीत जब कोई ‘गायत्री मंत्र’ के समान तेज तत्त्व से संबंधित जप आरंभ करता है, तो उसे कष्ट होने की संभावना अधिक हो सकती है ।
३. कुल देवी देवता अथवा जन्मधर्मानुसार देवता से अनुभूतियां
- जब हम कुल देवी देवता अथवा जन्मधर्मानुसार साधना आरंभ करते हैं, तो हमें अनुभूतियां होती हैं ।
- अन्य सूक्ष्म तत्त्वों की तुलना में पृथ्वी तत्त्व से संबंधित अनुभूति होने की संभावना अधिक होती है, पृथ्वी तत्त्व से संबंधित अनुभूति में सूक्ष्म-सुगंध (जैसे चंदन की सुगंध) आती है । हमारे कुल देवी देवता अथवा जन्मधर्मानुसार देवता पृथ्वी तत्त्व से हैं, अत: साधना आरंभ करने के पश्चात अल्प समय में ही सूक्ष्म सुगंध की अनुभूति होती है इससे हमारी श्रद्धा वर्धन के साथ हमें साधना करते रहने की प्रेरणा भी मिलती है ।
- कुल देवी देवता अथवा जन्मधर्मानुसार देवता, इसके विपरीत, ईश्वर के दर्शन जो तेज तत्त्व से संबंधित है, उसकी प्राप्ति अनेक वर्षों की साधना के उपरांत ही संभव है । परिणामस्वरूप अनेक व्यक्ति मध्य में ही साधना छोड देने की संभावना होती है ।
संदर्भ हेतु कृपया हमारे अनुभाग – अनुभूतियां देखें ।