HIN_johnathan

अपने नष्टप्राय जीवन के पुनर्निर्माण हेतु मैंने वर्ष २००९ में योग, ध्यान-साधना, वैकल्पिक चिकित्सा, ज्योतिष इत्यादि का अध्ययन आरंभ किया । उस समय मैं खराब संबंध, नशीले पदार्थों का सेवन तथा मदिरापान इत्यादि से गंभीर रूप से पीडित था । मैं प्रतिदिन ढाई डिब्बे सिगरेट पीता था, मेरे पास कभी पैसे नहीं रहते थे । मुझे स्मरण है कि किस प्रकार एक दिन संध्या समय अपने कंधों पर पहाड सा भार लिए हुए मैं सोच रहा था कि, यदि आजीवन मुझे ऐसे ही रहना है, तो यह जीवन ही निरर्थक है ।

उस समय मैं धर्म, नास्तिकता/तर्कवाद, मादक पदार्थ, परस्त्री-संबंध, संगीत, विज्ञान, चिकित्सा, मार्शल आर्ट -इस प्रकार के सर्व उपाय कर चुका था जिससे मैं अवसाद तथा व्यसन के नागपाश से मुक्त होकर स्वयं को एक तर्कसंगत मानसिक अवस्था पा सकूं । मुझे नहीं पता कि मैं इस स्थिति में कैसे पहुंचा, और यही जीवन की घोरतम विडंबना थी । ना तो मुझे यह समझ में आ रहा था कि यह कैसे आरंभ हुआ, ना ही इसका कोई अंत दिखाई दे रहा था । (जीवन दुखभरा है, इस विचार से मैंने समर्पण कर दिया थाI)

इसके पश्चात मैंने ध्यान, योगाभ्यास, प्राणायाम और रेकी जैसे शक्तिनिष्ठ अभ्यास आरंभ किए । मैंने सोचा कि कदाचित ऐसा करके मैं अपने तनावग्रस्त मन को शांत रख पाऊंगा । साथ ही इन विषम परिस्थितियों एवं मुझे विवश करनेवाले व्यक्तियों से मुक्ति पा सकूंगा । इसका आंशिक प्रभाव अवश्य हुआ और मेरी विपन्नता ध्यान के सम्मिश्रण से मैं उस गड्ढे में गिरने से बच पाया जो मैंने स्वयं ही अपने लिऐ खोद लिया था । परंतु यह केवल आंशिक तथा ऊपरी था । मेरे अंदर जो हलाहल(विष)प्रवेश कर रहा था वह आंशिक रूप से क्षरित हुआ परंतु मेरी प्रसन्नता में कोई वृद्धि नहीं हुई। शनै:शनै:मेरे परिवार, मित्रगण, सहकर्मी इत्यादि से मैं अकारण ही दूर होता गया । काऊंसलिंग के उपरांत भी मैं निरंतर समस्याग्रस्त रहता था। यह सब मैंने मित्रों एवं परिवार से छिपाकर रखा क्योंकि मुझे लगता था कि वे मेरी सहायता करने में असमर्थ रहेंगे और मैं किसी को भी चिंतामें नहीं डालना चाहता था ।

jonathan-photo-beforeवर्ष २०१२ में मैंने निरंतर मदिरापान आरंभ कर दिया । यह मेरे निकटस्थ व्यक्तियों के लिए कोई गुप्त बात नहीं थी । मुझसे प्रेम करनेवाले कई लोग बहुधा मुझे एक रात में १५-२० पेग पीकर बहुत बुरी अवस्था को प्राप्त होते देखने लगे थे । अनेक बार मैं दोपहर में उठता और पीते-पीते संध्या छ:बजे तक अचेत हो जाता, रात में उठकर पुन:पीना आरंभ कर देता तथा पुन:अचेत हो जाता । अनेक बार मैंने स्वयं को सडक पर गिरने से चोटिल होते पाया । एक बार मैंने स्वयं को रक्तरंजित पाया और मुझे कुछ भी ज्ञात नहीं था । संभवतः पिछले रात मुझे किसी कार ने दुर्घटनाग्रस्त कर दिया था । अनेक बार मैंने अपने मोबाइल पर हास्यास्पद संदेश देखे जिन्हें मैंने पिछले रात स्वयं ही भेजा था । संबंधों में निरंतर गिरावट आने लगी । मैं अनेक झगडों में छोटी छोटी बातों में उलझते उलझते रह गया । पिछले रात के अत्यधिक नशे के कारण मैंने अपने घर को तहस नहस किया हुआ पाया । अपने व्यवहार के कारण मेरा अत्यधिक लज्जित होना एक सामान्य बात हो गई थी । मैं एक आविष्ट  व्यक्ति की भांति व्यवहार करने लगा और अचेतावस्था में मृत्यु की संभावना निरंतर बढती जा रही थी ।

मैं एक दिन भी मदिरा के बिना नहीं रह पाता था । मुझे ज्ञात ही नहीं हुआ कि कैसे मैं मदिरा पान की इस अवस्था में इतने भयानक रूप से लिप्त हो गया, मैं नहीं पीने का निश्चय करके भी पुन:पीने लगता । मुझे भोजन से विरक्ति कैसे हो गई, क्यों मैं स्वयं को मदिरालय से दूर नहीं रख पाता था, संतुष्टि मुझसे विमुख क्यों हो गई थी, मुझे इन सब का कोई भान नहीं था ।

अकस्मात एक चमत्कार हुआ, और यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है । मेरा परिवार इससे बिलकुल अनभिज्ञ था कि मेरे साथ क्या हो रहा था क्योंकि मैं अपनी समस्याओं को छिपाने में प्रवीण था और माता-पिता से अच्छे संबंध पुरानी बात थे । परंतु एक दिन मुझे मेरी मां का संदेश मिला जिसमें उन्होंने मेरे अत्यधिक मदिरा पान के संदर्भ में चिंता प्रकट की थी ।

मैंने उन्हें अपनी कुशलता के विषय में बताया और अपना संगणक खोला । किसी प्रकार मैं स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाऊंडेशन के जालस्थल (website) पर आया । संयोगवश वहां व्यसनाधीनता पर एक लेख उपलब्ध था जिसमें उसके आध्यात्मिक कारणों और उपचार का वर्णन था । इसका वाचन करने पर, इतने वर्षों के उपरांत मुझमें पहली बार आशा का संचार हुआ । यह ग्रीष्म ऋतु २०१३ के मध्य था । मैंने त्वरित यथाशक्ति SSRF द्वारा बताएं गए समस्त सुझावों का अनुकरण आरंभ कर दिया ।

मूल अभ्यास के रूप में उन्होंने मुझे नामजप करने का सुझाव दिया क्योंकि यह ध्यान की अपेक्षा  निरंतर किया जा सकता था । नामजप से तनाव का ह्रास होता है तथा प्रसन्नता एवं एकाग्रता में वृद्धि के साथ-साथ व्यसन से रक्षा होती है । विभिन्न आध्यात्मिक उपचारों  के साथ  इसे करना था ।

मुझे त्वरित लाभ हुआ । SSRF अपने शोध कुछ इस प्रकार प्रस्तुत करता कि वैसी आध्यात्मिक विवेचना मैंने अन्यत्र कहीं नहीं देखी थी । यह आधुनिक युग के अस्पष्ट और अनुपादेय सुझावों जैसे  सदैव प्रसन्न विचार रखो तथा लम्बी श्वास लो, से बिलकुल भिन्न पद्धति थी । यह निश्चित कारणों तथा प्रभावों के साथ साथ उपायों की निश्चित  पद्धतियों से परिपूर्ण वास्तविक विज्ञान था । मैं अपने ह्रदय में जान गया था कि यदि मैं SSRF द्वारा बताएं अनुसार निरंतर करता रहूं तो मैं समस्याओं से पूर्णतया मुक्त हो सकता हूं ।

SSRF के साथ साधना आरंभ करने के नौ मास पश्‍चात, यहां जैसा मुझे कहा गया था तथा जो मैं कर सकता था, उन सबका परिपालन करने पर जो लाभ तथा हानि हुई वह निम्न प्रकार है:

लाभ:

  • मैंने धूम्रपान छोड दिया
  • मद्यपान को लगभग त्याग दिया
  • नशीली औषधियों का परित्याग किया
  • हर समय दुःख में नहीं रहता
  • पूरे विश्व में मेरे मित्र है
  • हाल ही मुझे दो अच्छी नौकरियों के अवसर प्राप्त हुए
  • शारीरिक स्वास्थ्य अधिक उत्तम हुआ
  • अवसाद पूर्णतया समाप्त हो गया
  • चिंता ८०  प्रतिशत तक समाप्त हो गई
  • उद्देश्य का निश्चित भान हुआ
  • निश्चित लक्ष्य मिला
  • लोगों के प्रति प्रीति में वृद्धि हुई
  • अधिक उपयोगी
  • अपेक्षाकृत अधिक एकाग्र
  • अधिक रचनात्मक
  • वस्तुतः मेरी प्रत्येक आवश्यकता पूर्ण होना
  • SSRF के मार्गदर्शन में मेरे जीवन के प्राय: प्रत्येक पक्ष में कई गुना अधिक सुधार हुआ है I

हानि : २२ वर्ष पूर्व मैंने SSRF के मार्गदर्शन में साधना आरंभ नहीं की ।

SSRF की सहायता से मैं प्रतिकूल परिस्थितियां आरंभ होने के पहले उसे अनुभव कर पाने लगा । असहाय अनुभव करने की अपेक्षा कम से कम प्रतिकूलता को घटाने में सक्षम होने लगा । पूरे माह मद्यपान करने की अपेक्षा मैं एक माह में दो सप्ताह मद्यपान करने लगा I तदोपरांत एक माह में तीन दिन मद्यपान करने लगा तथा फिर दो दिन और इसी प्रकार यह कम होता गयाI

यह एक प्रक्रिया थी, परंतु सुधार निरंतर तथा प्रत्यक्ष हो रहा था और उत्साहवर्धक एवं परिणामकारी भी था । इसके अतिरिक्त एसएसआरएफ के लोग सदैव मेरी सहायता को तत्पर थे और कभी भी मेरी समस्याओं के आधार पर मुझे अच्छा अथवा बुरा नहीं कहा । कभी कभी समस्याग्रस्त होने पर भी लज्जा के कारण मैं सहायता की याचना नहीं कर पाता था । मुझे स्पष्ट स्मरण है कि एक बार साहस कर मैंने अपने सहसाधक को बताया कि विगत सप्ताह अत्यधिक मदिरापान किया था । और उसका उत्तर, जेटी, जब तुम कठिनाई में हो तो तुम्हें अन्य साधकों से सहायता लेनी ही चाहिए,  यह बात मेरे अंतर्मन को स्पर्श कर गई थी ।

हाथों पर दैवी कणों की आध्यात्मिक अनुभूति -४ अप्रैल २०१४

जब मैं एकाग्रचित्त होकर नामजप करने बैठा तो मेरे सिर से अत्यधिक उष्मा(गर्मी)सृजित होने लगी और मेरे मन में अपने हाथों को देखने का विचार आया कि कहीं वहां दैवी कण तो प्रकट नहीं हो रहे ।

आरंभ में कुछ नहीं दिखा परंतु शनै:शनै:मेरी आंखों के सम्मुख दैवी कण प्रकट होने लगे थे । जब मैंने प्रार्थना की कि कैसे भी अन्य साधकों को दिखाने हेतु मैं उनका छायाचित्र ले सकूं, तो वे कण आलोकित हो उठे और मैं उनका चित्र ले पाया)।

SSRF मेरा परिवार और मेरे जीवन का आधार बन गया । उनके बिना अबतक या तो मैं मृत्यु को प्राप्त हो गया होता या अति दयनीय अवस्था में कहीं पडा होता । यदि आप अध्यात्म और नामजप के प्रति उत्सुक हैं परंतु आरंभ नहीं कर पा रहे हैं, तो ऐसे में एसएसआएफ निस्संदेह आपकी सहायता करेगा । यदि आप पूर्व से ही योग, ध्यान इत्यादि के माध्यम से साधना कर रहे हैं परंतु आपको इनके योग्य लाभ नहीं प्राप्त हो रहे  हैं, तो ऐसे में एसएसआएफ निस्संदेह आपकी सहायता करेगा । यदि आपके जीवन में असीम निराशा भर गई है और आपं स्वयं को निराश्रय तथा निरुपाय पा रहे हैं, तो एसएसआएफ निस्वार्थ आपकी सहायता करेगा ।

सर्वोत्तम बात यह है कि वे किसी प्रतिफल की अपेक्षा नहीं रखते । आपको कुछ व्यय भी नहीं करना है और ना ही कोई क्रेडिट कार्ड का नंबर बताना है । आप अपना वास्तविक परिचय भी गुप्त रख सकते हैं । उनका एक ही उद्देश्य है, उनके पास आनेवालों के जीवन में प्रगति हो और इसमें वे अद्वितीय हैं ।

सभी को हार्दिक प्रेम ! इसे पढने के लिए धन्यवाद !

ईश्वर के चरणों में कृतज्ञता,

जे.टी., यू.एस.ए