विषय सूची
- १. अनुभव एवं अनुभूति की परिभाषा
- २. अनुभव एवं अनुभूति की तुलना तथा हम इसे कैसे अनुभव करते है
- ३. छठवीं इंद्रिय क्या है एवं हम अनदेखे जगत को कैसे समझ सकते हैं ?
- ४. पंच सूक्ष्म ज्ञानेंद्रियों एवं पंचमहाभूतों से संबंधित अनुभूतियां
- ५. अनुभूति एवं आध्यात्मिक स्तर
- ६. अनुभूतियों का महत्त्व क्या है ?
- ७. अनुभूतियों को लिखने का क्या महत्त्व है ?
- ८. साधना को वृद्धिंगत करने में अनुभूतियों की क्या सीमाएं हैं ?
- ९. साधना करने के पश्चात भी कभी-कभी क्यों हमें अनुभूतियों नहीं होतीं ?
- १०. अनुभूतियों के उदाहरण
१. अनुभव एवं अनुभूति की परिभाषा
स्पिरिचुअल सायन्स रिसर्च फाउंडेशन (SSRF) के अनुसार ‘अनुभव’ वह है जो पांच इंद्रियों, मन एवं बुद्धि के माध्यम से प्राप्त किया गया हो I उदाहरणार्थ, अपने प्रिय व्यंजन को खाने का अनुभव, अपने बच्चे के लिए प्रेम का अनुभव, अपनी बुद्धि द्वारा कार्यालय में समस्या को सुलझाना, आदि, ‘अनुभव’ की श्रेणी में आते हैं । पांच इंद्रियों, मन एवं बुद्धि की समझ से जो परे है, उसका अनुभव एक ‘अनुभूति’ निर्मित करती है । यदि कोई व्यक्ति पांच इंद्रियों, मन एवं बुद्धि से ऐसी घटना का अनुभव करता है जिसका कारण मानवजाति की सकल बुद्धि से परे है, वह भी अनुभूति ही है |
२. अनुभव एवं अनुभूति की तुलना तथा हम इसे कैसे अनुभव करते है
अनुभव | अनुभूति | |
---|---|---|
क्या अनुभव हुआ | एक महिला गुलाबो के गुच्छे से गुलाबो की सुगंध लेती है । | एक महिला चंदन की अनुपस्थिति मे चन्दन की सुगंध लेती है । |
स्रोत | प्रत्यक्ष एवं स्थूल आयाम से । | अप्रत्यक्ष एवं स्थूल आयाम से । |
माध्यम जिसके द्वारा ये अनुभव किया गया । | पंच ज्ञानेन्द्रियों, मन अवं बुद्धि द्वारा अनुभव किया गया । इस उदाहरण में, गंध की सूक्ष्म इंद्रिय द्वारा, अर्थात नाक । | छटवी इंद्रिय से अनुभव किया गया, अर्थात सूक्ष्म इन्द्रियों द्वारा जो कि पांच ज्ञानेन्द्रियों, सूक्ष्म मन एवं सूक्ष्म बुद्धि है । इस उदाहरण में, गंध की सूक्ष्म इंद्रिय द्वारा । |
हम पंच ज्ञानेंद्रियों, मन एवं बुद्धि द्वारा स्थूल जगत का अनुभव करते हैंI । पंच ज्ञानेंद्रियां, मन एवं बुद्धि को हम अच्छी तरह जानते हैं, इनके अनुरूप ही हममें पांच सूक्ष्म इंद्रियां, एक सूक्ष्म मन एवं एक सूक्ष्म बुद्धि भी होती है, जो विकसित अथवा सक्रिय होने पर हमें सूक्ष्म जगत अथवा सूक्ष्म आयाम को अनुभव करने में सहायता करती है । I सूक्ष्म जगत का यह अनुभव ‘अनुभूति’ कहलाता हैI ।
उपर्युक्त चित्र में, एक महिला गुलाब के गुच्छे को सूंघती है एवं गुलाब की सुगंध का अनुभव करती हैI । यहां सुगंध के लिए निश्चित स्रोत, जैसे कि गुलाब का गुच्छा, होने के कारण यह एक अनुभव होगा । I अन्य चित्र में हम देखते हैं कि एक महिला अपने कामकाजी दिन के आरंभ के संदर्भ में विचार करते हुए सुबह की कॉफी पी रही हैI । अकस्मात एवं बिना किसी स्पष्ट कारण के उसे चंदन की तीव्र सुगंध आती है ।सुगंध कहां से आ रही है यह ज्ञात न होने के कारण वह पहले तो इसे टाल देती है एवं कॉफी पीते रहती है ।कार्यालय में भी उसे पूरा दिन सुगंध आते रहती है । वह आसपास के अन्य लोगों से पूछती है कि क्या उन्हें भी सुगंध आ रही है, परंतु किसी को भी वैसी सुगंध नहीं आ रही होती है । यह एक अनुभूति होगी । इस प्रसंग में, महिला ने वास्तव में सूक्ष्म आयाम में उत्पन्न सुगंध को ग्रहण किया एवं गंध की अपनी सूक्ष्म ज्ञानेंद्रिय के माध्यम से सुगंध का अनुभव कियाI ।
हममें से कई लोगों ने ऐसा अनुभव किया होगा जैसे बिना किसी स्पष्ट स्रोत के सुगंध आना, परंतु उचित जानकारी न होने के कारण इसे टाल दिया होगा । I अनुभूति को अन्य चार सूक्ष्म ज्ञानेंद्रियों रस, स्पर्श, शब्द एवं रूप तथा सूक्ष्म मन एवं सूक्ष्म बुद्धि द्वारा भी अनुभव किया जा सकता है । हमें प्राप्त यह अतिरिक्त अंतर्दृष्टि हमारी छठवीं इंद्रिय कहलाती है । जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, यदि कोई व्यक्ति पंच ज्ञानेंद्रियों, मन एवं बुद्धि द्वारा किसी घटना का अनुभव कर सकता है परंतु उसका कारण मानव जाति की स्थूल बुद्धि से परे है, तब भी यह एक अनुभूति ही होती है ।
• उदाहरण के रूप में, जब कोई वस्तु किसी निश्चित बाह्य कारण के हिलती है और कोई भी अपनी स्थूल आंखों (जो सूक्ष्म दृष्टि नहीं है) से उसे देख सकता है । सामान्य भाषा में इन अनुभवों को अपसामान्य विषय के रूप में जाना जाता है । इन अनुभवों को ‘सूक्ष्म आयाम की अनुभूति’ कहते हैं ।
• अन्य उदाहरण एक माता का लेते हैं, जिसका पुत्र एक भयंकर दुर्घटना के कारण अतिदक्षता विभाग में संकटमय स्थिति में पडा है I चिकित्सक सभी प्रयास कर चुके हैं, लेकिन बालक कोई प्रतिसाद नहीं दे रहा है । चिकित्सक उसकी माता को कोई भी आश्वासन नहीं दे रहे हैं । Iउसकी सभी आशाएं समाप्त होने पर, वह ईश्वर से तीव्र उत्कंठा से एवं निरंतर अपने अचेत पुत्र के स्वस्थ होने के लिए प्रार्थना करती है । तब चमत्कारिक रूप से एवं बिना किसी चिकित्सीय स्पष्टीकरण के, अगले दिन ही बालक में उल्लेखनीय सुधार होता है । समय पर बालक में निरंतर सुधार होता है एवं वह संकट से बाहर हो जाता है । यहां बालक की स्थिति एवं माता की प्रार्थना दोनों ही स्थूल रूप में हैं, परंतु आधुनिक विज्ञान को चुनौती देने वाले सुधार का कारण बुद्धि द्वारा स्पष्ट नहीं होता । इस प्रकार के अनुभव भी अनुभूतियों की श्रेणी में आते हैं ।
३. छठवीं इंद्रिय क्या है एवं हम अनदेखे जगत को कैसे समझ सकते हैं ?
अनुभूतियों एवं हमारे ज्ञात जगत की तुलना में अनंत ऐसे सूक्ष्म जगत को हम किस प्रकार अनुभव करते हैं, इस पर अधिक गहन स्पष्टीकरण के लिए हमारा सुझाव है कि आप छठवीं इंद्रिय पर लेख पढे I
४. पंच सूक्ष्म ज्ञानेंद्रियों एवं पंचमहाभूतों से संबंधित अनुभूतियां
विश्व पांच मूलभूत पंचतत्त्वों (पंचमहाभूतों) से बना है । ये मूलभूत पंचतत्त्व देखे नहीं जा सकते; परंतु संपूर्ण सृष्टि इनसे निर्मित है । जैसे जैसे हम साधना में प्रगति करते हैं, हमारी छठवीं इंद्रिय सक्रिय होती है एवं हमें स्थूलतम से सूक्ष्मतम स्तर के मूलभूत पंचतत्त्वों का उत्तरोत्तर अनुभव होना प्रारंभ हो जाता है । इसप्रकार हम पृथ्वी, जल (आप), अग्नि (तेज), वायु एवं आकाश इन तत्वों को क्रमशः गंध, रस, रूप, स्पर्श एवं नाद से संबंधित अपनी सूक्ष्म इंद्रियों द्वारा अनुभव करने में समर्थ होते हैं ।
निम्नलिखित सारणी उन सकारात्मक एवं नकारात्मक अनुभूतियों का उदाहरण देती है जिन्हें हम अपनी छठवीं इंद्रिय अर्थात पांच सूक्ष्म इंद्रियों द्वारा समझ सकते हैं ।
छठवीं इंद्रिय सूक्ष्म ज्ञानेंद्रिय | सम्मिलित पंच महाभूत | अनुभूति से संबंधित उदाहरण सकारात्मक अनुभूति नकारात्मक अनुभूति |
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गंध | पृथ्वी तत्व | निश्चित स्रोत की अनुपस्थिति में चंदन की सुगंध आना अकारण घर के आस पास मूत्र की गंध आना |
रस | आप तत्व | वास्तव में कुछ डाले बिना मुंह में मिठास की अनुभूति होना मुंह में कडवे स्वाद का अनुभव होना |
रूप | तेज तत्व | देवता का रूप दिखना अथवा प्रभामंडल देखना भूत को देखना |
स्पर्श | वायु तत्व | किसी की अनुपस्थिति में मस्तक पर हाथ रखे जाने का अनुभव होना अनिष्ट शक्ति (दैत्य, दानव, भूत आदि) द्वारा रात्रि में आक्रमण किया जाना |
शब्द | आकाश तत्व | घंटी एवं शंख की अनुपस्थिति में घंटी एवं शंख की ध्वनि सुनाई देना किसी की अनुपस्थिति में आस पास भयानक स्वर सुनाई देना |
जब व्यक्ति सूक्ष्म ज्ञानेंद्रियों से कुछ अनुभव करता है, उदाहरणार्थ गंध, तब उसका स्रोत इष्ट शक्ति जैसे देवता की अथवा अनिष्ट शक्ति जैसे भूत की भी हो सकता है ।
५. अनुभूति एवं आध्यात्मिक स्तर
जैसे-जैसे हमारा आध्यात्मिक स्तर बढता है, हम उच्च एवं अधिक सूक्ष्म-स्तर की अनुभूति को प्राप्त करने में समर्थ होते हैं ।
यदि छठवीं इंद्रिय को पूर्णतया केवल आध्यात्मिक स्तर के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए, तब संबंधित व्यक्ति की पांचों सूक्ष्म इंद्रियों में से प्रत्येक का अनुभव करने में समर्थ होने के लिए आवश्यक न्यूनतम आध्यात्मिक स्तर कितना होना चाहिए यह नीचे दी गई सारणी में दिखाया गया है । उदाहरणार्थ, ४० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर पर व्यक्ति गंध की सूक्ष्म इंद्रिय की अनुभूति ले सकता है I
यद्यपि यह आलेख आध्यात्मिक स्तर एवं विभिन्न सूक्ष्म इंद्रियों द्वारा अनुभव के प्रकार, इनके मध्य सीधे संबंध को समझाने के लिए मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है, निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है :
- यदि किसी व्यक्ति को सूक्ष्म गंध की अनुभूति होती है, तब इसका अर्थ यह नहीं कि उसका आध्यात्मिक स्तर ४० प्रतिशत है । तीव्र साधना जैसे ईश्वर के नाम का जप, संतों का संग, आदि के कारण आध्यात्मिक स्तर अथवा क्षमता में तात्कालिक अथवा क्षणिक वृद्धि कारण यदा-कदा ऐसी स्थिति निर्मित हो सकती है ।
- अनुभव में योगदान करने के लिए अन्य कारक भी हो सकते हैं । उदाहरणार्थ, यदि अनिष्ट शक्ति (दानव, दैत्य, भूत आदि) व्यक्ति को भयभीत करने के लिए घर के आस पास मूत्र की गंध का अनुभव कराना चाहता है तो वह ऐसा होने के लिए अपनी आध्यात्मिक शक्ति का प्रयोग कर सकता है । ऐसे प्रसंग में लक्षित व्यक्ति के आध्यात्मिक स्तर में वृद्धि होना आवश्यक नहीं है ।
- इसका अर्थ यह नहीं है कि ४० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर वाले सभी लोग सूक्ष्म-गंध का अनुभव करेंगे । व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर कई विशेषताओं का निवल कृत्य है; इनमें से एक छठवीं इंद्रिय है “। संदर्भ लेख आध्यात्मिक स्तर पढें ।
- इसका अर्थ यह भी नहीं कि ये लोग सूक्ष्म गंधों की उपलब्ध सभी विविधताओं को १०० प्रतिशत तक अनुभव कर सकते हैं अथवा वे इसे हर समय एवं किसी भी समय अनुभव कर सकते हैं ।
- इसका अर्थ यह भी नहीं कि ४० प्रतिशत अथवा इससे अधिक आध्यात्मिक स्तर का व्यक्ति आवश्यक रूप से सूक्ष्म सुगंध का अनुभव करेगा । व्यक्ति पंच ज्ञानेंद्रियों द्वारा अनुभव किए बिना भी संतपद (अर्थात ७०% आध्यात्मिक स्तर) को प्राप्त कर सकता है । ऐसे अनुभव प्राप्त न होने का एक कारण यह भी हो सकता है कि उस व्यक्ति ने इन अनुभवों को पूर्व जन्म में ही अनुभव कर लिया हो एवं अब इनकी आवश्यकता न हो । तथापि सभी संतों के पास छठवीं इंद्रिय होती है जो सूक्ष्म मन एवं सूक्ष्म बुद्धि से संबंध रखती हैI ।
आप आलेख से भी यह देख सकते हैं कि स्पर्श एवं शब्द से संबंधित सूक्ष्म ज्ञानेंद्रिय का अनुभव केवल उच्च आध्यात्मिक स्तर पर कर सकते हैं । इसका कारण यह है कि ये पंच ज्ञानेंद्रियों में सूक्ष्मतर है ।
६. अनुभूतियों का महत्त्व क्या है ?
निम्नलिखित बिंदु अनुभूतियों के महत्त्व एवं मुख्य लाभ संक्षेप में प्रस्तुत करते हैं :
६.१ अध्यात्मशास्त्र के सैद्धांतिक पहलू में विश्वास एवं श्रद्धा का सृजन
पृष्ठ के शीर्ष पर उद्धरण के संदर्भ अनुसार बौद्धिक एवं सैद्धांतिक ज्ञान का शाब्दिक महत्त्व मात्र २ प्रतिशत है यद्यपि ९८ प्रतिशत महत्त्व उन शब्दों के अनुभव करने में है । जब व्यक्ति अध्यात्मशास्त्र के मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार योग्य साधना करता है, तब वह आध्यात्मिक प्रगति करता है एवं उसे अनुभूति होती है । साधना, पुस्तकों से प्राप्त सैद्धांतिक ज्ञान एवं इससे प्राप्त अनुभूति के मध्य सेतु निर्माण करती है ।
सैद्धांतिक ज्ञान (बौद्धिक ज्ञान) केवल उनकी सहायता करता है जो अध्यात्मशास्त्र के विषय में कुछ विश्वास प्राप्त करने के लिए जिज्ञासा रखते हैं । यह आध्यात्मिक उन्नति के चरणों में आवश्यक चरण है । अनुभूति प्राप्त करने के साथ व्यक्ति की सैद्धांतिक ज्ञान में श्रद्धा निर्मित होती है ।
कृपया, आध्यात्मिक उन्नति के चरण, यह सन्दर्भ लेख देखें ।
इसी कारण सत्संग के समय अनुभूतियों की चर्चा की जाती है । सत्संग में भाग लेनेवाले साधकों को यह विश्वास हो जाता है कि आध्यात्मिक ज्ञान के संबंध में जो यहां समझाया जाता है वह मात्र जानकारी नहीं अपितु इसे वास्तव में अनुभव किया जा सकता है ।
६.२ आध्यात्मिक उन्नति का बोधक
अनुभूतियां यह सुनिश्चित करती हैं कि हम साधकों ने योग्य साधना को अपनाया है एवं आध्यात्मिक प्रगति करने के कारण हम उत्तरोत्तर उच्च अनुभूतियों को प्राप्त कर रहे हैं । ये मील के पत्थर के रूप में कार्य करती हैं एवं हमारी आध्यात्मिक यात्रा में हमें प्रोत्साहित करती हैं I यदि हमें साधना त्यागनी पडे तब हमें अनुभूति नहीं भी हो सकती है I यदि हम साधना में उन्नति नहीं कर पाते तब हमें उच्च अनुभूतियां नहीं हो सकतीं । साधना में उन्नति न होने से हमारा तात्पर्य है, साधना की गुणवत्ता अथवा मात्रा में वृद्धि किए बिना वर्षों तक एक ही प्रकार की साधना करते रहना । यह ईश्वर का हमें बोध कराने का मार्ग है कि हमें अपनी साधना को बढाते रहना है ।
संदर्भ हेतु पढें लेख ‘साधना प्रतिदिन करनी चाहिए’ एवं ‘साधना के स्तर को निरंतर बढाना’
टिप्पणी : किसी विशिष्ट मार्ग के अनुसार साधना करते समय यदि हमें तीन वर्षों तक कोई भी अनुभूति न हो, तब हमें आध्यात्मिक उन्नत व्यक्ति अर्थात् संत से पूछना चाहिए कि हमारा चयन किया हुआ मार्ग सही है अथवा नहीं । यदि आप किसी संत से परिचित नहीं है, तब अपनी आध्यात्मिक यात्रा के पहले चरण में सुझाव के रूप में कृपया जन्म के कुल के अनुसार ईश्वर के नाम का जप यह लेख पढें I
६.३ ईश्वर की महानता को अंकित करने से अहं का कम होना
व्यक्ति की आध्यात्मिक यात्रा के प्राथमिक चरणों में, यदि उसे अन्य कई सह साधकों द्वारा वर्णित अनुभूतियां सुनने को मिलती हैं तब अनुभूतियों की विविधता एवं गहनता पूर्णतया असाधारण हो सकती है ।व्यक्ति को यह अनुभव होने लगता है कि वह ईश्वर, जो प्रत्येक व्यक्ति को श्रद्धा निर्माण करने के लिए अद्वितीय अनुभूतियां प्रदान करते हैं, उसकी तुलना में वह कितना नगण्य है । परिणामस्वरुप, ईश्वर की क्षमता से तुलना करने के उपरांत स्वयं की क्षमताओं के विषय में व्यक्ति का अहं क्षीण होने लगता है । अहं की न्यूनता आध्यात्मिक उन्नति के लिए एक प्राथमिक आवश्यकता है ।
७. अनुभूतियों को लिखने का क्या महत्त्व है ?
- अनुभूतियों को लेखन एवं प्रकाशन द्वारा अन्य साधक, साधना के परिणामस्वरूप होनेवाले विभिन्न अनुभूतियों को जान सकते हैं ।इसप्रकार यह साधकों को साधना करने के लिए अधिक उत्साह प्रदान करती है । I
- यह मन एवं बुद्धि पर साधना के महत्व को पुनः पुनः अंकित करता है एवं हमें अपनी साधना में दृढ रहने हेतु विश्वास दिलाता रहता है ।
- यदि हमें कोर्इ अद्भुत अनुभूति होती है, तब उसकी सत्यता में संदेह रहने की संभावना हो सकती है । किंतु यदि हमें ज्ञात हो कि अन्य किसी को भी मेरे ही समान अनुभूति हुर्इ है तब श्रद्धा निर्मित होती है । Iहमें यह विश्वास हो जाता है कि इसके पीछे कोई शास्त्र है, और इसप्रकार ये हमें अध्यात्मशास्त्र का अध्ययन करने के लिए प्रोत्साहित करती है |
- हम भी उस अनुभूति को अनुभूत करने के लिए साधना के दृष्टिकोण से उस साधक ने वास्तव में जो प्रयत्न किए उनका अध्ययन करके अपनी स्वयं की साधना को वृद्धिंगत कर सकते हैं ।
८. साधना को वृद्धिंगत करने में अनुभूतियों की क्या सीमाएं हैं ?
पूरा विचार किया जाए तो, अनुभूतियां साधना को वृद्धींगत करे अथवा उसमे सुधार लाए यह आवश्यक नहीं । यदि लोग किसी चमत्कार के साक्षी रहे हों तब भी यह आवश्यक नहीं कि वे साधना करना प्रारंभ कर दें । ३० प्रतिशत लोग अनुभूति होने के पश्चात भी सक्रिय रूप से साधना करना बंद कर देते हैं अथवा उसी आध्यात्मिक स्तर पर अटके रह जाते हैं । साधना को सक्रिय रूप से आगे बढाने के लिए, व्यक्ति को स्वयं में यह दृढ विश्वास विकसित करने की आवश्यकता है कि ‘मुझे इसी जन्म में आध्यात्मिक उन्नति करनी है ।’ इस विषय में अनुभूतियां बुद्धि की आवश्यक सहायता नहीं करतीं । इस वृत्ति को विकसित करने के लिए यह आवश्यक है कि अध्यात्मशास्त्र का अध्ययन हमें पोषक साधना के लिए एक रूपरेखा प्रदान करे | अध्यात्मशास्त्र के किसी भी अध्ययन को खुले मन से स्वीकार करने की आवश्यकता है जो पूर्वधारणाओं से पक्षपाती न हो ।
९. साधना करने के पश्चात भी कभी-कभी क्यों हमें अनुभूतियों नहीं होतीं ?
इसके निम्नलिखित कारण हैं :
- अनुभूतियां हमारी आध्यात्मिक प्रगति की सूचक हैं । तथापि साधना प्रारंभ करने के पश्चात शीघ्र ही हमारी आध्यात्मिक प्रगति न होना भी संभव है । इसका कारण यह है कि हमारी साधना का उपयोग पूर्णतया आध्यात्मिक प्रगति के लिए न होकर हमारे तीव्र नकारात्मक प्रारब्ध की प्रबलता अथवा संचित कर्मों को घटाने में व्यय हो सकता है । परिणामस्वरूप, प्रारंभिक अवस्था में आध्यात्मिक प्रगति नहीं होती एवं इसीलिए हमें अनुभूतियों नहीं होतीं । तथापि निरंतर साधना इस प्रारंभिक अवस्था से निकलने के लिए हमें समर्थ बनाती है ।
यहां हमने नकारात्मक प्रारब्ध शब्द का प्रयोग उस प्रारब्ध को दर्शाने के लिए किया है जिससे दुःख का अनुभव होता है । भयंकर दुर्घटना यह तीव्र प्रारब्ध का उदाहरण हो सकता है । अतः जब व्यक्ति साधना प्रारंभ करता है, तब प्रारंभिक साधना का प्रयोग इस विशिष्ट प्रारब्ध की प्रबलता को अल्प करने में हो सकता है, जैसे भयंकर दुर्घटना का होना । इस प्रकार साधक को दुर्घटना से पहले धीमे चलने का अथवा किसी अन्य दिशा में जाने का पूर्वाभास हो सकता है, इस प्रकार दुर्घटना की प्रबलता एवं तीव्रता कम हो सकती है | फलस्वरूप साधक कम अथवा बिना किसी क्षति के जीवित बच सकता है । ईश्वर पर श्रद्धा निर्माण करने अथवा हमारी श्रद्धा के अस्थिर होने पर, उसे सुदृढ करने के लिए ईश्वर अनुभूतियां प्रदान करते हैं । यदि हमारी श्रद्धा दृढ है तो हमें अनुभूतियों की आवश्यकता नहीं होती । अनुभूतियां हमारी श्रद्धा कैसे दृढ करती हैं इसके विषय में आध्यात्मिक उन्नति के चरण यह संदर्भ लेख देखें ।