१. परिचय
बार-बार होते नृशंस हत्याकांड विश्व को भयभीत करते हैं । ये हत्याकांड श्रृंखलाबद्ध हत्याएं होती हैं अथवा सामूहिक नरसंहार की घटनाएं ।
श्रृंखलाबद्ध हत्यारे एवं सामूहिक नरसंहारक में अंतर होता है :
- सामूहिक नरसंहारक एक समय में एक ही स्थान पर अनेक लोगों की हत्या करते हैं । वे अधिकतर विद्यालय, विश्वविद्यालय तथा अल्पाहारगृह (रेस्टोरेंट) इत्यादि स्थानों पर इस विचार से आक्रमण करते हैं कि वहां हत्या का सर्वाधिक प्रभाव होगा । अधिकांशतः वे आत्महत्या अथवा पुलिस मुठभेड (एनकाऊंटर) में घटनास्थल पर ही मारे जाते हैं । कुछ प्रसंगों में ही हत्या करने के पश्चात वे आत्मसमर्पण करते हैं ।
- दूसरी ओर, श्रृंखलाबद्ध हत्यारे एक समय पर एक हत्या करते हैं तथा पहचाने जाने तथा पकडे जाने से बचने के लिए वे लंबा अंतराल रखते हैं ।
माना जाता है कि अमरीका में श्रृंखलाबद्ध हत्यारों की संख्या सर्वाधिक है ।
२. लोग श्रृंखलाबद्ध हत्यारे अथवा सामूहिक नरसंहारक क्यों बन जाते हैं ?
किसी भी समस्या के कारण एक अथवा तीन आयामों में हो सकते हैं, और वे हैं, शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक । आध्यात्मिक शोध से यह पता चला है कि किसी व्यक्ति के श्रृंखलाबद्ध हत्यारे तथा सामूहिक नरसंहारक बनने का कारण आध्यात्मिक आयाम में है । निम्नलिखित आलेख (चार्ट) व्यक्ति के श्रृंखलाबद्ध हत्यारे तथा सामूहिक नरसंहारक बनने के कारणों का विभाजन दर्शाता है ।
- मानसिक कारकों संबंधी जानकारी इंटरनेट पर विविध प्रकाशनों में उपलब्ध है ।
- आध्यात्मिक कारकों में मुख्य कारण है दूसरे पाताल की मध्यम स्तर की अनिष्ट शक्ति का भूतावेश । संदर्भ हेतु देखें हमारा खंड भूतों के प्रकार । कुछ प्रसंगों में ये लोग अनेक जन्मों से एक ही उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्ति द्वारा आविष्ट होते हैं ।
इस कारण यह कहना अत्यंत कठिन होता है कि सामूहिक नरसंहारक पर कब मारकाट की धुन सवार होगी; क्योंकि उसे आविष्ट करनेवाली अनिष्ट शक्ति यह कभी भी बिना किसी पूर्व सूचना के कर सकती है ।
क्या इसका अर्थ यह है कि श्रृंखलाबद्ध हत्यारे तथा सामूहिक नरसंहारक कर्म के स्तर पर अपने अपराधों से मुक्त होते हैं ?
कर्म के नियम के अनुसार, हमें अपने कर्मों तथा विचारों का फल सुख अथवा दुख के रूप में भुगतना होता है । अत्यंत जघन्य कृत्य जैसे किसी की हत्या करने पर उसे आध्यात्मिक स्तर पर इस जन्म में अथवा अगले जन्म में तीव्र भोग भुगतने होंगे । किंतु यदि कोई सूक्ष्म-जीव अथवा अनिष्ट शक्ति उस व्यक्ति के माध्यम से यह सब कर रही हो, तब क्या ? व्यक्ति को आविष्ट कर, अनिष्ट शक्ति उससे श्रृंखलाबद्ध हत्याएं तथा सामूहिकनरसंहार जैसे जघन्य अपराध करवाती है । क्या कर्म के नियम के अनुसार ऐसी स्थिति में भी आविष्ट व्यक्ति ही उत्तरदायी होगा ?
इसका उत्तर है हां । क्योंकि हमारी अपनी दुर्बलताओं के कारण अनिष्ट शक्ति हमारी चेतना में प्रवेश कर जाती है । इन दुर्बलताओं में पूर्व जन्मों में अत्यधिक मात्रा में अर्जित पाप, अयोग्य कृत्य, स्वभाव दोष, जैसे भय एवं क्रोध जिससे चिंता तथा तनाव उत्पन्न होते हैं, साधना का अभाव इत्यादि सम्मिलित हैं । यदि श्रृंखलाबद्ध हत्यारे तथा सामूहिक नरसंहारक मानसिक रूप से अपंग हों तब भी उनके अपराध से पापार्जन ही होता है । उनके मानसिक रूप से अपंग होने का कारण है वर्तमान अथवा पिछले जन्म में उनके द्वारा किए गए अति अनुचित कर्म । इसलिए अपराध करते समय पूर्ण भान ना होने पर भी वे अपने अपराधों के लिए उत्तरदायी होते हैं ।
एक सामान्य व्यक्ति की तुलना में आविष्ट एवं मानसिक रूप से अपंग व्यक्ति को कम पाप लगता है । सामान्य अर्थात जो अपने पूर्ण होश में हो और न किसी अनिष्ट शक्ति से आविष्ट हो और न ही मानसिक दृष्टि से अपंग ।
निम्नलिखित आलेख (चार्ट) संबंधित अंतर को दर्शाता है ।
हिटलर जैसे सामूहिक नरसंहारक ने पापार्जन के संबंधित पैमाने (स्केल) पर घातक रूप से १०० से अधिक पाप अर्जित किए होंगे ।
३. सारांश
समस्याओं के मूल आध्यात्मिक कारण का निराकरण केवल आध्यात्मिक माध्यमों से किया जा सकता है । साधना के मूलभूत छः सिद्धांतों के अनुसार की जानेवाली नियमित साधना ही अनिष्ट शक्तियों द्वारा आविष्ट करने से सुरक्षा प्राप्त करने का एकमात्र निश्चित मार्ग है । सामूहिक नरसंहारक तथा श्रृंखलाबद्ध हत्यारों के आक्रमण से सुरक्षा का एकमात्र निश्चित मार्ग भी साधना है ।