योगिता आपटे वर्ष २००० से स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाऊंडेशन (SSRF) के मार्गदर्शन में साधना कर रही हैं । वे वर्ष २००३ से SSRF के गोवा के आश्रम में रह रही हैं । अपनी साधना के रूप में, वे अपना समय निःशुल्क रूप से ग्रंथों के संकलन विभाग में अर्पित करती हैं । इस प्रकरण अध्ययन में ग्रंथ विभाग में सेवा के समय उनके पानी के बोतल के जल में अनायास ही कडवा स्वाद आने की अनुभूति वे अपने ही शब्दों में बताती हैं ।
१ जुलार्इ २००५ के दिन, SSRF के गोवा के आश्रम में ग्रंथ संकलन विभाग में मैं अपने संगणक पर कार्य कर रही थी । मेरे बगल में बैठी साधिका ने मुझसे मेरी बोतल से जल पीने का आग्रह किया । मुझे उसके अनुरोध पर आश्चर्य हुआ, क्योंकि उसके स्वयं की जल से भरी बोतल को मैंने वहीं रखा देखा । मैंने उससे पूछा कि आपको मेरी बोतल से जल क्यों पीना है, जबकि आपकी बोतल में जल तो है ही । उसने बताया कि मेरी बोतल के जल में दुर्गंध आ गई है । मुझे ज्ञात था कि उसकी साधना में बाधा लाने हेतु अनिष्ट शक्तियां (भूत, प्रेत, पिशाच, राक्षस, इत्यादि) उस पर नियमित रूप से आक्रमण करती रहती हैं । मुझे लगा कि यह दुर्गंध अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण के फलस्वरूप उत्पन्न हुई होगी ।
मैंने उसकी ओर अपनी बोतल बढा दी । बोतल देते समय, मुझे विचार आया कि ‘मुझे वह जल नहीं पीना चाहिए’, क्योंकि वह जल भी अनिष्ट शक्तियों का लक्ष्य बन सकता है ।
मैं अपने सेवाकार्य में इतनी मग्न हो गर्इ कि मैं वह घटना पूर्णतः भूल गर्इ और अपनी बोतल से जल पी लिया । जैसे ही मैंने जल पिया, मुझे जल का स्वाद कडवा लगा । उस कडवे स्वाद के साथ ही मुझे उलटी जैसा लगने लगा, भारीपन लगने लगा तथा सिर में वेदना होने लगी ।
– योगिता आपटे, SSRF का गोवा आश्रम, भारत
अनुभूति का अध्यात्म शास्त्र
अध्यात्मप्रसार में व्यवधान उत्पन्न करना, अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, पिशाच, राक्षस, इत्यादि) का लक्ष्य होता है । अध्यात्मप्रसार से साधना होती है, जिसके फलस्वरूप वातावरण में सत्त्वगुण में वृद्धि होती है । जिस प्रकार मनुष्य को तमोगुण जैसे दुर्गंध इत्यादि से कष्ट होता है, तामसिक अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, पिशाच, राक्षस, इत्यादि) को सात्त्विकता से कष्ट होता है । साधकों की साधना में बाधा निर्मित करने के उद्देश्य से विविध पद्धतियों तथा साधनों के माध्यम से वे उन्हें कष्ट देने के लिए हर संभव प्रयास करती हैं । अनिष्ट शक्तियों द्वारा प्रयुक्त प्राथमिक अस्त्र है, काली शक्ति ।
र्इश्वर की समस्त रचना पंचतत्त्वों से मिलकर बनी है । अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, पिशाच, राक्षस, इत्यादि) द्वारा प्रयुक्त मूलभूत तत्त्व के आधार पर हम इस काली शक्ति का अनुभव विविध रूपों में करते हैं । उदाहरण – यदि अनिष्ट शक्तियों का प्रकटीकण पृथ्वीतत्त्व के माध्यम से हुआ हो, तब हमें यह दुर्गंध के रूप में अनुभव होगा । यदि वह आपतत्त्व के माध्यम से प्रकट हुर्इ हो तो हमें कडवा अथवा खट्टे स्वाद का अनुभव होगा ।
उपरोक्त प्रकरण में अनिष्ट शक्ति ने प्रथम पृथ्वीतत्त्व का प्रयोग कर साधिका के जल में दुर्गंध को निर्मित किय । जब उसने योगिता की बोतल से जल पिया, तो साधिका को कष्ट देनेवाली अनिष्ट शक्ति ने योगिता के जल को भी प्रभावित कर दिया । यहां अगले चरण में अनिष्ट शक्ति ने योगिता के जल को कडवा बनाने के लिए आपतत्त्व का प्रयोग किया ।
काली शक्ति से भरा जल पीने पर काली शक्ति व्यक्ति के शरीर में संचारित हो जाती है । कष्ट देने के लिए, काली शक्ति लक्ष्यित व्यक्ति के शरीर में तब शारीरिक तथा सूक्ष्म स्तर पर कार्य करती है । इस कष्ट के लक्षण भिन्न–भिन्न होते हैं, जैसे – उलटी, शरीर में भारीपन, विचार प्रक्रिया में अस्पष्टता, साधना हेतु उत्साह में कमी इत्यादि । परिणामस्वरूप, यह साधकों की साधना में किसी न किसी प्रकार से व्यवधान उत्पन्न करती ही है ।