१. प्रस्तावना
हममें से प्रत्येक के मन में कभी न कभी यह विचार आता है कि मृत्यु के पश्चात क्या हम अपने बिछुडे हुए पितरों और प्रियजनों से मिल सकेंगे । इस लेख का उद्देश्य उन कारकों और सिद्धांतों का वर्णन करना है जो ये निर्धारित करते हैं कि हम मृत्यु पश्चात किसे मिल सकते हैं और किसे नहीं ।
२. मृत्यु के पश्चात हम कहां जाते हैं ?
कृपया हमारा लेख, मृत्यु के पश्चात हम कहां जाते हैं, देखें ।
जैसा कि आप देख रहे हैं, मृत्यु के पश्चात हम १३ सूक्ष्म और अदृश्य लोकों में जा सकते हैं । वर्तमान समय में लगभग ५ प्रतिशत व्यक्ति ही स्वर्ग और महर्लोक जैसे सकारात्मक लोकों में जाते हैं । ऐसा इसलिए है क्योंकि ब्रह्मांड के प्रथम सकारात्मक लोक अर्थात स्वर्ग में जाने के लिए व्यक्ति का समष्टि आध्यात्मिक स्तर ५० प्रतिशत अथवा व्यष्टि आध्यात्मिक स्तर ६० प्रतिशत होना चाहिए (ऐसे लोग विश्व की जनसंख्या के ५ प्रतिशत हैं)। अधिक जानकारी के लिए हमारा लेख : आध्यात्मिक स्तर के अनुसार विश्व की जनसंख्या का विभाजन देखें ।
एक अन्य लोक भी है जिसके विषय में बताना अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है, यह समझने के लिए कि मृत्युके पश्चात हमारा क्या होता है । मृत्यु के पश्चात हम जिस लोक में जाते हैं उसे मृत्युलोक कहते हैं । यह भूलोक और अन्य १३ सूक्ष्म लोकों के मध्य का एक लोक है जहां मृत्यु के पश्चात लिंगदेह अंतिम गंतव्य लोक पर पहुंचने से पूर्व कुछ समय के लिए रुकती है ।
अधिक जानकारी के लिए कृपया लेख मृत्युलोक देखें ।
३. कुछ सिद्धांत जो यह निर्धारित करते हैं कि मृत्यु के पश्चात हम अपने मृत पूर्वजों में से किन पूर्वजों से मिल सकते हैं
- समान लोक : एक ही लोक में रहनेवाले सूक्ष्म शरीर अपने संबंधियों को सुगमता से मिल सकते हैं । उदाहरण के लिए भूलोक में स्थान प्राप्त दो संबंधियों के सूक्ष्म शरीर एक दूसरे से मिल सकते हैं ।
- सूक्ष्म से सूक्ष्मतर लोक : सूक्ष्म लोक के एक व्यक्ति के लिए अधिक सूक्ष्म लोक में रह रहे व्यक्ति से मिलना संभव नहीं होता । भूलोक के पश्चात भुवलोक अधिक सूक्ष्म है । भुवलोक का सूक्ष्म शरीर स्वर्ग अथवा पहले पाताल के सूक्ष्म शरीरों से नहीं मिल सकता ।
- सूक्ष्म से स्थूललोक की ओर : अधिक सूक्ष्मलोक का सूक्ष्म शरीर उससे निम्न सूक्ष्म लोक में अर्थात स्थूल लोक में जा सकता है । उदाहरण के लिए तीसरे पाताल का सूक्ष्म शरीर अस्थायी रूप से पहले पाताल में जा सकता है । ऐसा गमन सूक्ष्म शरीर की आवश्यकता अथवा आध्यात्मिक शक्ति पर निर्भर करता है ।
- उच्चतर सूक्ष्म लोक :
- महर्लोक जैसे उच्च सूक्ष्म लोक के सूक्ष्म शरीरों का आध्यात्मिक स्तर इतना अधिक होता है कि उनमें परिवार के सदस्यों से मिलने की इच्छा का पूर्णतः अभाव होता है । उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य आध्यात्मिक उन्नति होता है ।
- स्वर्ग में स्थान प्राप्त सूक्ष्म शरीरों को अत्यधिक सुख अनुभव होता है और सामान्यतः वे स्वर्ग के सूक्ष्म सुख में लीन रहते हैं । परिणामस्वरूप संबंधियों से मिलने की इच्छा उनको प्रभावित नहीं करती ।
- मृत्युलोक अथवा भूलोक पर गमन :किसी भी सूक्ष्मलोक के सूक्ष्म शरीर मृत्युलोक अथवा भूलोक पर जा सकते हैं ।
- एक उच्च आध्यात्मिक शक्ति की अनिष्ट शक्ति शांति भंग करने के उद्देश्य से निम्न लोक से अस्थायी रूपमें उच्च सकारात्मक लोकों जैसे स्वर्ग इत्यादि में जा सकती है ।
४. मृत्यु के पश्चात हम अपने पूर्वजों को कैसे पहचानते हैं ?
४.१ मरने के पश्चात हम क्या स्वरूप लेते हैं ?
मृत्युलोक में प्रवेश करने के पश्चात सूक्ष्म शरीर भूलोक की अपनी पहचान भूलने लगता है । जब यह मृत्युलोक को पार कर मुख्य सूक्ष्मलोक जैसे भुवलोक में पहुंचता है तो वहां यह निराकार रूप ले लेता है । यदि व्यक्ति को पृथ्वीलोक के जीवन और संबंधियों से तीव्र आसक्ति है, तो वह मृत्युलोक से आगे नहीं बढ पाता । यहां पर भी वे अपने पहले जन्म की भांति रूप धारण करते हैं । यह रूप इच्छाशक्ति के कारण उत्पन्न होता है । सूक्ष्म शरीर अनेक वर्षों तक मृत्यु लोक में फंसकर अपने पैतृक घर के चारों ओर मंडराते रहते हैं । परिणामस्वरूप वे लोग, जिनकी छठवीं इंद्रिय जागृत है, उनकी उपस्थिति को देख अथवा अनुभव कर सकते हैं ।
४.२ मिलनेकी प्रक्रिया
- उसी लोक में प्रवेश पानेपर : जब कोई सूक्ष्म शरीर किसी अन्य सूक्ष्म शरीर से (संबंधी अथवा मित्र से)मिलने की तीव्र इच्छा रखता है, तो इस एक ही विचार से उत्पन्न शक्ति उसे वही रूप प्रदान करती है जिसमें वह उस संबंधी को जानता था । उसी प्रकार, जब कोई रिश्तेदार मृत्युके पश्चात सूक्ष्म लोकमें प्रवेश करता है, तब वहां पहलेसे ही उपस्थित पूर्वज के सूक्ष्म शरीर की इच्छाओं के स्पंदनों के प्रक्षेपण के कारण, वह उनकी की ओर आकर्षित होने लगता है । हाल ही में मृत उस व्यक्ति के पूर्वज परिचित रूप में होने के कारण वह अपने उस पूर्वज को पहचान लेता है ।
- मृत्यु के समय : परिवार के सदस्यों में सामान्यतः मूल रज-तम-सत्त्व घटकों के स्तर पर अनुवांशिक समानताएं होती हैं । अतः मृत्युलोक और भुवलोक में रहनेवाले सूक्ष्म शरीरों के अति संवेदनशील होने के कारण वे मर रहे व्यक्ति में होनेवाले परिवर्तन को अनुभव कर सकते हैं । वे मृत शरीर के पंच उपप्राणों द्वारा उत्सर्जित ध्वनि और मृत शरीर द्वारा उत्सर्जित त्याज्य वायु की ओर खिंचे चले आते हैं । अतः वे पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश कर मरनेवाले व्यक्ति के निकट आ जाते हैं । इसलिए अनेक व्यक्तियों को मरते समय अपने मृत पूर्वज दिखाई देते हैं । यदि मरनेवाले व्यक्ति को किसी पूर्वज से मिलने की तीव्र इच्छा है अथवा पूर्वज को मरनेवाले व्यक्ति से मिलने की तीव्र इच्छा है तो पूर्वज की तीव्र इच्छाशक्ति के अनुसार वे भूत जैसा स्वरूप धारण करते हैं । इस प्रकार स्वयं की पहचान करवाने में वे मृत व्यक्ति की सहायता करते हैं ।
४.३ मिलने में संलग्न संभाव्य संकट :
- कुछ उदाहरणों में उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियां (भूत, प्रेत पिशाच इत्यादि) दिवंगत रिश्तेदारों का रूप ले सकती हैं और उस समय परिवार के मृत व्यक्ति के सूक्ष्म शरीर को संभ्रमित कर सकती हैं । इस संकट से वही बच सकता है, जिसने जीवितावस्था में पर्याप्त साधना की हो जिसके कारण वह ऐसी मायावी अनिष्ट शक्ति को पहचान पाए ।
- नरक लोक में रहनेवाले दिवंगत पूर्वज भी सूक्ष्म शरीरों को मार्ग से भटका सकते हैं, जिनकी मृत्यु हाल ही में हुई है ।
- मरणोपरांत ऐसे संकट से रक्षा हेतु यह आवश्यक है कि साधना के छ: मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार निरंतर साधना कर यथासंभव उच्च आध्यात्मिक स्तर प्राप्त किया जाए । मृत्यु के समय आध्यात्मिक स्तर जितना अधिक होगा, पाताल लोक के पूर्वजों अथवा दुष्टात्माओं से प्रभावित होने की संभावना उतनी ही अल्प होगी, इसके अतिरिक्त ईश्वरीय सुरक्षा भी प्राप्त होगी ।
५. एक बार पहचान होने के उपरांत क्या हम अन्य दिवंगत संबंधियों के साथ ही रहते हैं ?
सामान्यत:एक परिवार के सूक्ष्म शरीर अपनी समानताओं के कारण एक साथ ही रहते हैं ।
६. जीवनोपरांत जीवन में सगे संबंधियों-मित्रों से हम किस प्रकार वार्तालाप कर सकते हैं ?
यह वार्तालाप नादभाषा के माध्यम से न होकर मन के (मानसिक देह के)विचारों के माध्यम से होता है । किसी एक के मन के विचार अन्य ग्रहण करता है ।
७. क्या मरणोपरांत हम अपने पाले हुए प्राणियों से मिलते हैं ?
यदि दुष्कर्मों के परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति का पशु योनि में जन्म हुआ हो, तो उस योनि के जीवन के उपरांत मानव योनि में उसके जन्म लेने की संभावना बढ जाती है । क्योंकि पशु योनि के प्रारब्ध को भोगने एवं उसके वंशज द्वारा किए अंतिम संस्कारों की सहायता से मानव योनि में उसका पुनर्जन्म हो सकता है ।
किंतु पशु योनि में जन्मे ऐसे जीव, जो आरंभ से अन्य पशु योनि में जन्मे हों, उनके मानव जीवन में जन्म लेने की संभावना नहीं के बराबर होती है । क्योंकि पशु योनि में वह साधना नहीं कर सकता, किंतु कोई ऐसा पशु, जिसने संतों का सान्निध्य प्राप्त किया हो, प्रसाद इत्यादि का सेवन तथा ईश्वर के भजन और नामजप का श्रवण किया हो, ईश्वर के साक्षात्कार के दृढ संकल्प से प्रभावित होकर धीरे-धीरे मानव योनि में उद्भवित हो सकता है । इसके अतिरिक्त यदि कोई पशु किसी संत के साथ में रहता हो और उस संत ने उसकी आध्यात्मिक उन्नति का संकल्प किया हो, तो ऐसा पशु भी मानव जीवन प्राप्त कर सकता है ।
अत: मरणोपरांत अपने पालतू पशुओं से मिलने की संभावना न के बराबर ही है । यदि किसी पशु को देखकर कोई ऐसा अनुभव करता है, तो यह मांत्रिक द्वारा किया गया छल मात्र है, निरंतर साधना करके ही इन धोखों से बच सकते हैं ।