१. प्रस्तावना
इस लेख में हमने विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों को एक तुलनात्मक अध्ययन द्वारा परिभाषित किया है I
२. एलोपैथी की परिभाषा
एलोपैथी अथवा एलोपैथिक औषधियों को रोग निदान के वैकल्पिक अथवा गैर पारंपरिक उपचारों के विपरीत, पारंपरिक एवं प्रमाणों के आधार पर किए जानेवाले चिकित्सीय उपचार के रूप में परिभाषित किया जाता है I सन १८४२ में सी.एफ.एस. हैनीमेन ने स्वयं द्वारा खोजी होमियोपैथी चिकित्सा प्रणाली तथा औषधि के सामान्य प्रयोग के मध्य भेद जानने के लिए, इस शब्द की रचना की थी I
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३. यूनानी औषधि की परिभाषा
यह शब्द हिप्पोक्रेट्स (Hippocrates), गैलेन (Galen) और अबू अली सीना (Avicenna) की शिक्षाओं पर आधारित यूनानी-अरबी औषधि का उल्लेख करता है । यह पद्धति चार देह द्रवों पर आधारित है : कफ (बलगम), रक्त (दम), पीला पित्त (सफरा ) और काला पित्त ( सौदा ) । यह पद्धति इस्लाम से अधिक प्रभावित है ।
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४. सूचीदाब (एक्यूप्रेशर) की परिभाषा
सूचीदाब (एक्यूप्रेशर) एक ऐसी तकनीक है जिसमें स्वास्थ्य लाभ के लिए हाथ, कोहनी अथवा विभिन्न उपकरणों द्वारा शरीर के विशेष बिंदु पर शारीरिक दबाव डाला जाता है I हमारे शरीर में शरीर के अंगों और विशिष्ट भागों से संबंधित लगभग ११०० बिंदु हैं I उपचारित एक्यूप्रेशर बिंदु, शरीर के प्रभावित भाग में हो भी सकते हैं एवं नहीं भी I विशिष्ट एक्यूप्रेशर बिंदुओं पर दबाव डालने से उस विशिष्ट भाग अथवा अंग में प्रवाहित उर्जा का असंतुलन सुधर जाता है I इस चिकित्सा में कोई औषधि अथवा शल्य चिकित्सा सम्मिलित नहीं है I
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५. मुद्रा की परिभाषा
इस चिकित्सा पद्धति में उंगलियों से विविध प्रकार की मुद्राएं बनाकर उनका शरीर के विशिष्ट कुंडलिनी चक्र अथवा शरीर के किसी अवयव से कुछ समय तक स्पर्श कराया जाता है । ये मुद्राएं शरीर के भीतर और बाहर ऊर्जा प्रवाहित करती हैं । यह ऊर्जाप्रवाह व्यक्ति के आध्यात्मिक स्तर पर निर्भर होता है I निम्न आध्यात्मिक स्तर के व्यक्ति में अधिकतर स्थूल शारीरिक उर्जा प्रवाहित होती है I उच्च आध्यात्मिक स्तर के व्यक्ति में सूक्ष्म ऊर्जा जैसे कुंडलिनी शक्ति का जागरण होता है I इस चिकित्सा पद्धति में औषधि की आवश्यकता नहीं होती ।
स्रोत : स्पिरिच्युअल साइंस रिसर्च फाउंडेशन
६. होमियोपैथी की परिभाषा
यह चिकित्सा पद्धति उस सिद्धांत पर आधारित है जिसमें रोग का उपचार उस औषधि (अत्यंत अल्प मात्र में) से किया जाता है जिसमें एक स्वस्थ व्यक्ति में उस रोग के लक्षण उत्पन्न करने की क्षमता हो I
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७. आयुर्वेद की परिभाषा
५००० से ६००० वर्ष प्राचीन चिकित्सा शास्त्र की वह शाखा, जिसमें शरीर के उपचार के साथ-साथ मन एवं आत्मा पर भी उपचार किया जाता है I इस चिकित्सा का उद्देश्य व्यक्ति के स्वास्थ्य संतुलन को पुनः पहले जैसा करना है I एक आयुर्वेदिक चिकित्सक रोगी से उसके जीवन के अनेक निजी प्रश्न कर, नाडी , जीभ , नख अथवा अन्य अवयव की जांच कर उसके उपापचयी (metabolic) संबंधी प्रकार (दोष) [वात (वायु), पित्त अथवा कफ] का परीक्षण कर, शरीर के किसी अंग अथवा संपूर्ण स्वास्थ्य की रूपरेखा और असंतुलन का पता लगाता है I चिकित्सक रोगी की शारीरिक रचना को ध्यान में रखते हुए उसके शरीर में आए असंतुलन के आधार पर रोगी के पुनः स्वास्थ्य लाभ हेतु उचित उपचार की योजना बनाता है । इसमें आहार-परिवर्तन, व्यायाम, योग, ध्यान, मर्दन (मालिश), जडीबूटीयुक्त स्फूर्तिदायक पेय और अन्य उपचार भी सम्मिलित हो सकते हैं I
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