१. परिचय
अनेक बार टेलीविजन कार्यक्रम अथवा प्रकाशनों में लोग अन्यों का उपचार करते हुए दिखाए जाते हैं अथवा लोग गैर-परंपरागत पद्धतियों से ठीक होने का दावा करते हैं । आध्यात्मिक उपचार कार्य कैसे करता है तथा इसके कार्यान्वन में कौनसा आधारभूत सिद्धांत उत्तरदायी है? इस लेख में, हम सभी आध्यात्मिक उपचार के पीछे का आधारभूत सिद्धांत के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करेंगे ।
२. आध्यात्मिक उपचार में निदान के सिद्धांत
वैसी समस्या जिसका मूल कारण आध्यात्मिक आयाम में है, उसका अचूक निदान केवल छठवीं इंद्रिय अथवा अतिरिक्त संवेदी क्षमता द्वारा किया जा सकता है । निदान की अचूकता भिन्न हो सकती है तथा ये तीन कारकों पर निर्भर करता है :
१. छठवीं इंद्रिय क्षमता : व्यक्ति के आध्यात्मिक स्तर सहित उसकी छठवीं इंद्रिय क्षमता विरुद्ध प्रभावित करनेवाला जीव अथवा अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, राक्षस इत्यादि)।
सामान्य नियम यह है कि औसत द्रष्टा केवल भुवर्लोक के भूत को पहचान सकते हैं । उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्ति जैसे सूक्ष्म पाताल के निम्न लोकों का सूक्ष्म-स्तरीय मांत्रिक अधिक सूक्ष्म होता है तथा औसत द्रष्टाद्वारा नहीं पहचाना जा सकता है ।
संदर्भ हेतु देखें लेख : ‘अपनी छठवीं इंद्रिय से अपसामान्य गतिविधियों को समझने हेतु क्षमता की गहनता’
२. प्रारब्ध : किसी व्यक्ति का कितने समय तक समस्या से त्रस्त रहना है तथा उसके भोगने की तीव्रता को निश्चित करने में वर्त्तमान जन्म में भोगे जानेवाला प्रारब्ध कर्म एक महत्त्वपूर्ण कारक है । जब व्यक्ति किसी भी प्रकार की साधना न कर रहा हो और उसका प्रारब्ध तीव्र हो, तो यह स्वयं ही निश्चित है कि उसे अपने प्रारब्ध पर मात करने के लिए आवश्यक उचित आध्यात्मिक सहायता नहीं प्राप्त होगी ।
३. आध्यात्मिक उपचारक का मार्गदर्शन करनेवाले संत का संकल्प : यदि आध्यात्मिक उपचारक अपने मार्गदर्शक संत (जिनका आध्यात्मिक स्तर ७० प्रतिशत से अधिक हो) के निर्देशानुसार उपचार कर रहा हो, तब किसी विशिष्ट समस्या के समाधान करने हेतु आध्यात्मिक उपचारक का आध्यात्मिक स्तर तुलना में निम्न होने पर भी वह उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियों द्वारा निर्मित कष्टों का निवारण कर सकता है । क्योंकि मार्गदर्शक संत की संकल्प शक्ति के कारण ही अधिकांश मात्रा में उपचार हो जाते हैं ।
उच्च स्तरीय सकारात्मक सूक्ष्म-शक्तियां मुख्य रूप से उपचारक को अन्यों का केवल उपचार करने के लिए नहीं; अपितु आध्यात्मिक रूप से उनकी प्रगति करने में सहायता करने के लिए उपचारी शक्ति प्रदान करते हैं । दूसरी ओर, जब उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियां उपचार करने हेतु उपचारकों को शक्ति देती हैं, तब उनका हेतु उन्हें तथा उपचारक से जुडे अन्य लोगों को अपने नियंत्रण में लेना होता है ।
यदि उपचारक ही उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियों से आविष्ट हो, तब उपचारक की निदान करने तथा आध्यात्मिक उपचार करने की शक्तियों में विशेष रूप से वृद्धि हो सकती है । वैसे व्यक्ति से उपचार करवाने की विनती कर रहा सामान्य व्यक्ति यह समझने में सक्षम नहीं है कि वह वास्तव में उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्ति के साथ सीधे लेन-देन कर रहा है ।
इस प्रकार का उपचार ‘मायावी’ अथवा भ्रामक/धोखादायक है । वैसे उपचार को प्रभावित करने के लिए अनिष्ट शक्ति संकल्प शक्ति का प्रयोग करती है । उपचारक के माध्यम से कार्यरत उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियां उपचारक की क्षमता को विलक्षण रूप से बढा देती हैं । इससे ऐसा प्रतीत होता है कि उपचारक के पास चमत्कारिक उपचार करने की क्षमता है । वैसे उपचारक अत्यधिक शक्तिशाली व्यक्ति प्रतीत होंगे । उपचार करना जैसे चमत्कार, प्रायः एक बडे जनसमुदाय को आकर्षित करता है । यद्यपि उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियां उपचारक के माध्यम से बडी सरलता से लोगों को आध्यात्मिक स्तर पर दिशाभ्रमित कर सकती हैं ।
उनकी रणनीति यह होती है कि :
१. जिन लोगों को अनिष्ट शक्तियों ने आविष्ट किया है, उनका उपचारक पर विश्वास बिठाने के लिए वे चमत्कार करते हैं, जिससे वे उपचारक के पास पुनः-पुनः जाते रहते हैं ।
२. अनिष्ट शक्तियां उपचारक के माध्यम से लोगों में काली शक्ति प्रविष्ट करा कर उन्हें सतत उपचारक की सहायता की आवश्यकता पडे, इस हेतु वे अथवा अन्य किसी के द्वारा उनके जीवन में कुछ न कुछ समस्याएं उत्पन्न करती हैं ।
३. अंतिमतः अनिष्ट शक्तियां केवल उपचारक को ही नहीं अपितु उसके पास आध्यात्मिक उपचार हेतु आनेवाले लोगों को भी अप्रत्यक्ष रूप से अपने नियंत्रण में ले लेती हैं ।
३. किसी भी प्रकार के खरे आध्यात्मिक उपचार की प्रक्रिया
अध्यात्मशास्त्र के अनुसार, समस्त ब्रह्मांड त्रिगुणों से मिलकर बना है – सत्त्व, रज तथा तम । सत्त्व गुण आध्यात्मिक शुद्धता तथा ज्ञान, रजोगुण कार्य तथा आवेग तथा तमोगुण अज्ञान एवं निष्क्रियता को दर्शाता है । किसी से भी अथवा सभी से प्रक्षेपित होनेवाले सूक्ष्म-स्पंदन जिस सूक्ष्म-गुण से उनकी निर्मिति हुर्इ है, उस पर निर्भर करता है । इसके पूर्ण सिद्धांत का सविस्तार वर्णन हमने त्रिगुण – सत्त्व, रज तथा तम लेख में किया है ।
ऊपरोक्त तथ्य को ध्यान में रखते हुए, विश्व में कहीं भी, किसी भी प्रकार का किया जानेवाला आध्यात्मिक उपचार का मूलभूत सिद्धांत आगे दिया गया है I
यदि व्यक्ति पर आध्यात्मिक आयाम के अनिष्ट शक्तियों अथवा जीवोंद्वारा आक्रमण किया जाता है, तब उसके जीवन में अनेकों समस्याएं हो सकती हैं । जब अनिष्ट शक्ति व्यक्ति पर शारीरिक अथवा मानसिक समस्याएं अथवा उससे संबंधित अन्य समस्याएं उत्पन्न कर उस पर आक्रमण करती है, तब वह (अनिष्ट शक्ति) वास्तव में प्रभावित व्यक्ति अथवा वस्तु में तथा उसके चारों ओर रज-तम की मात्रा बढाकर सत्त्वगुण की मात्रा घटाती है । अनिष्ट शक्ति उस व्यक्ति के चारों ओर काली शक्ति का आवरण का भी निर्माण करती है अथवा उसमें काली शक्ति भर देती है । काली शक्ति आध्यात्मिक शक्ति होती है जिसका उपयोग कष्टकारी उद्देश्यों के लिए किया जाता है ।
मूलतः आध्यात्मिक उपचारों को (शारीरिक उपचार सहित) अपनाकर ठीक होनेवाले व्यक्ति को निम्नलिखित लाभ होते हैं :
- अनिष्ट शक्तियों द्वारा निर्मित रज-तम में न्यूनता आती है ।
- सत्त्वगुण में वृद्धि होती है
- रज-तम का वहन करनेवाली काली शक्ति को हटाने अथवा उसे न्यून करने के लिए कार्यरत होती है ।
संदर्भ हेतु पढें लेख ‘अनिष्ट शक्ति व्यक्ति को आविष्ट कैसे करती है (अर्थात भूतावेश की कार्यविधि)?’