इस विश्व का नागरिक होने के नाते जलवायु परिवर्तन और तृतीय महायुद्ध के परिणामों को कम करने के लिए मैं क्या कर सकता हूं ?
आपमें जो जलवायु परिवर्तन,तृतीय महायुद्ध और धर्मयुद्ध के विषय में लेख पढे और विचार करते हैं ‘अब आगे क्या ?’, आपमें से प्रत्येक व्यक्ति इस परिस्थिति को बदलने में क्या सहायता कर सकता है, इसके लिए हमने कुछ प्रायोगिक विवरण दिए हैं । हमारा मूल उद्देश्य है वातावरण में विद्यमान रज-तम घटक को न्यून कर समाज में सूक्ष्म मूलभूत सात्त्विक घटक को बढाना।
हमने इस कार्ययोजना को ४ भागों में विभाजित किया है ।
टिप्पणी : प्रत्येक वृत खंड में शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तर की समाधान–योजना का समाहित होना आवश्यक है । शारीरिक स्तर की समाधान–योजना के लिए, जैसे कार्बन के प्रक्षेपण की मात्राको घटाने के लिए क्या करना चाहिए, इस विषय में जानने हेतु हम climatecrisis.net जैसे अन्य जालस्थलों को देखने का सुझाव देते हैं । नीचे दी गई समाधान–योजनाएं मुख्यत: मानसिक एवं आध्यात्मिक दृष्टिकोण से दी गई हैं ।
विभाजन १ : प्राथमिक स्तर पर मैं क्या कर सकता हूं ?
- सबसे पहले थोडा समय निकाल कर जलवायु परिवर्तन, तीसरा महायुद्ध एवं धर्मयुद्ध और अच्छा विरुद्ध बुरा, इन विषयों से परिचित होकर उन्हें समझ लें । संबंधित अन्य विषयों का भी अभ्यास करें जिससे हर दृष्टिकोण से हम इस विषय के साथ एकरूप हो जाएं ।
- साधना के छ: मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार साधना करने से ही हम स्वयं में सत्त्व को बढा सकते हैं और साथ में उच्च स्तर का ईश्वरीय सुरक्षा-कवच पा सकते हैं ।
- यदि आप किसी प्रकारका आध्यात्मिक अभ्यास नहीं कर रहे हों, तो हम आपको साधना के कुछ सरल प्रायोगिक पहलू उपलब्ध करवाते हैं, जिससे आप अपनी साधना प्रारंभ कर सकते हैं । साधना प्रारंभ करने के लिए, काल करे सो आज कर, आज करे सो अब । प्रत्येक व्यक्ति जो अध्यात्म के छ: मूलभूत सिद्धांत पर आधारित साधना करता है, वह अवश्य ही सत्त्वगुण बढाने में और रज-तम को न्यून करने में सहायक होता है ।
- यदि आप वर्तमान में कोई साधना कर रहे हों, तो इस बात को गंभीरता से परख लें कि आपकी साधना अध्यात्म के छ: मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार हो रही है ना । गंभीरतापूर्वक तथा गहराई से साधना के छ: मूलभूत सिद्धांतों का चिंतन-मनन एवं मंथन करें । ऊपरी स्तर पर ये सिद्धांत बहुत सरल दिखते हैं, किंतु प्रायोगिक स्तर पर आते ही अधिकतर लोग डगमगा जाते हैं ।
- साधना करते समय हमारा दृष्टिकोण पूर्णतया व्यापक होना चाहिए । यह अभ्यास किसी संस्कृति के विषय में बिना किसी पूर्वाग्रह के हो, बिल्कुल वैसे ही जैसा दृष्टिकोण हम महाविद्यालय अथवा विश्वविद्यालय में रखते हैं । यदि हमें अध्यात्म के सिद्धांतों के विषय में स्पष्टता है तो ही हम स्वयं की साधना की दिशा निश्चित करने का योग्य निर्णय ले सकते हैं । साधक की आध्यात्मिक सोच को प्रेरित करने हेतु हम विश्व के अनेक केंद्रों में प्रवचन लेते हैं और कुछ प्रवचनों को हमने SSRF कक्षा पर उपलब्ध किए हैं ।
- यदि आपके कुछ प्रश्न हों तो संगणकीय पते की इस लिंक पर क्लिक करें,‘हमसे संपर्क करें’ |
विभाजन २ : प्राथमिक स्तर पर दूसरों की सहायता करने के लिए मैं क्या कर सकता हूं ?
कोई भी व्यक्ति अकेला नहीं होता, हम सब इस समाज के घटक हैं । जहां पूरा विश्व गंभीर परिणामों से प्रभावित है, वहां कोई भी व्यक्ति इन परिणामों से नहीं बच सकता । इसलिए यह अत्यावश्यक है कि विश्व को सकारात्मकता से प्रभावित करने के लिए हम कदम बढाएं क्योंकि इसी विश्व में हमारे प्रियजन, संबंधी, मित्र, सहयोगी, सहकर्मचारी आदि हैं ।
- यह लेख अपने मित्र, परिवार, परिचित और इस विषय में आस्था रखने वालों को भेजें । हम सभी को इन घटनाओं के मूल कारण ज्ञात होना आवश्यक है । उसके उपरांत हम क्या करते हैं, यह हम पर निर्भर है ।
- जैसे ही आप अध्यात्म के सिद्धांत का अभ्यास करें, उसका पालन करें तथा उसे समझ लें, शीघ्र ही आप उसे दूसरों को बताएं । दूसरों को बताने के लिए अच्छे अभ्यासी होने तक प्रतीक्षा न करें । यदि आप ‘अ’ जानते हैं तो दूसरों को ‘अ’ के विषयमें बताएं, ‘ज्ञ’ तक अभ्यास हो, इसके लिए न रुकें।
विभाजन ३ : व्यक्तिगत स्तर के अगले उपाय क्या हैं ?
साधना प्रारंभ करने के उपरांत यह आवश्यक है कि हम साधना में गुणात्मक और संख्यात्मक सुधार करें । उदाहरणार्थ, यदि हम प्रतिदिन एक घंटा नामजप कर पाते हैं तो अगले माह हम प्रयत्नपूर्वक उसे दो घंटों तक बढा सकते हैं । यथार्थ में हमें ईश्वर का साधक बनना है । साधक अर्थात :
- जो ईश्वर प्राप्ति के लिए ही साधना करता है ।
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व्यावहारिक जीवन व्यतीत करते हुए भी जिसके जीवन का केंद्रबिंदु साधना और आध्यात्मिक प्रगति है ।
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जो प्रतिदिन साधना करता है ।
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जिसकी साधना अध्यात्म के छ: मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित है ।
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जो सत्संग में रहने के लिए और नए सिद्धांत सीखने के लिए नियमित रूप से साधकों के संपर्क में रहता है ।
- जो नियमित आध्यात्मिक प्रगति के लिए विशिष्ट ध्येय रखता है और उसकी साधना किसी एक स्तर पर अटक न जाए, इस विषय में सतर्क रहता है ।
- जो स्वभावदोष और अहं-निर्मूलन के लिए प्रयास करता है ।
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जो आपातकाल में उपायस्वरूप प्रदूषण न्यून (कम) करने के लिए अग्निहोत्र करता है ।
जब कोई ऐसी स्थितिमें होता है तो वह प्रभावकारी रूप से पृथ्वी पर सत्त्वगुण बढाने में योगदान कर सकता है ।
विभाजन ४ : समाज की सहायता करने के लिए अगले प्रयास क्या हैं ?
- उपरोक्त साधक के गुण हममें आने पर हम ईश्वरीय कार्य करने के लिए प्रभावी माध्यम बनते हैं ।
- समाज में सर्वव्यापी अध्यात्म के प्रसार में सहायता करना, यह गुरुतत्त्व की अर्थात गुरु की कृपा पाने का सबसे गतिमान मार्ग है ।