१. परिचय
अनिष्ट शक्तियों अनिष्ट शक्ति (भूत, पिशाच, राक्षस इत्यादि) की आध्यात्मिक शक्ति के बढते क्रम में राक्षस पदक्रम से दूसरे स्थान पर आता है । राक्षस वर्ग वास्तव में अनिष्ट शक्तियों का एक समूह होता है, जिसमें राक्षस तथा असुर होते हैं । इसलिए उनकी तुलनात्मक आध्यात्मिक शक्ति १०-१०० होती है, सामान्य अनिष्ट शक्ति (भूत) की तुलनात्मक शक्ति १ होती है । संदर्भ हेतु देखें लेख अनिष्ट शक्ति के प्रकार । वर्तमान समय से लेकर २०२५ तक समाज की लगभग ५० प्रतिशत जनसंख्या राक्षसों से प्रभावित अथवा आविष्ट है । यही ५० प्रतिशत जनसंख्या अपने मृत पूर्वजों से भी प्रभावित होगी ।
२. सूक्ष्म-ज्ञान के आधार पर राक्षस का चित्र
कृपया ध्यान दीजिए, यह मात्र एक कच्चा दिशानिर्देश है, चूंकि अनिष्ट शक्तियां अपने हेतु के आधार पर कोई भी रूप ले सकती हैं ।
३. राक्षस की मुख्य विशेषताएं
३.१ पृथ्वी लोक पर निवास स्थान
अनिष्ट शक्ति उस परिवेश में निवास करती है, जहां की तरंगें उनके उद्गम स्थल सूक्ष्म-पाताल की तरंगों के समान हों अथवा जहां के रज-तम उनसे मेल खाते हों । राक्षस निर्जन स्थानों में रहना पसंद करते हैं । वे निर्जन छत, बडे प्रतिष्ठान, कारखानों के बरामदों अथवा बडी गुफाओं में रहते हैं ।
३.२ राक्षसों की भौतिक विशेषताएं
राक्षस से आविष्ट व्यक्ति का जब प्रकटीकरण होता है, तब वे निम्नलिखित व्यवहार दर्शाते हैं, जो राक्षस की विशेषता है :
- पैर घसीटकर चलना ।
- पैर पटककर अन्यों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना ।
- आंखें बंद कर ऊंचे स्वर में चिल्लाकर वस्तुएं फेंकना
३.३ राक्षस की मानसिक विशेषताएं
- वे घमंडी होते हैं ।
- वे सामान्य भूतों पर वर्चस्व जताते हैं ।
- वे उग्र तथा असंयमी होते हैं । आक्रमण होने पर वे गुर्राते हैं ।
- राक्षस आलसी होते हैं । वे अन्यों को प्राप्त हुई खाद्यसामग्री से अपनी भूख मिटाते हैं ।
- वे सूक्ष्म-मांत्रिकों की नहीं सुनते और इसलिए सदैव उनसे दंडित होते हैं ।
- वे बलात्कार कर अपनी काम-पिपासा शांत करते हैं ।
- वे बिरले ही असाधारण कार्यों में सम्मिलित होते हैं ।
३.४ राक्षस की आध्यात्मिक विशेषताएं
- राक्षस साधना नही करते ।
- केवल सूक्ष्म-मांत्रिकों के आदेश के बाद ही वे काली शक्ति प्राप्त करने हेतु धार्मिक विधियों में सम्मिलित होते हैं । वे इसे बडी अनिच्छा से करते है और निम्न स्तर के काम करते है।
- वे काली शक्ति का संचारण विस्फोटक रूप में करते हैं ।
४. राक्षस मनुष्यों को कैसे प्रभावित करते हैं ?
मानवजाति की हानि करने हेतु राक्षस निम्नलिखित स्तरों पर कार्य करते हैं :
४.१ वातावरण के माध्यम से
- राक्षस परिसर में भूकंप अथवा किसी निरंतर चलते यंत्र समान ध्वनियों का कष्टदायक संचारण करते हैं ।
- उनकी उपस्थिति के कारण बिना किसी स्रोत के वातावरण में दुर्गंध फैल जाती है ।
४.२ भौतिक/सांसारिक स्तर पर
- राक्षस क्रोधित होने पर कभी-कभार भित्ति (दीवार)में दरारें बना देते हैं ।
- जब कोई बैठकर नामजप कर रहा होता है वे बैठक के नीचे नमी निर्मित कर देते हैं ।
४.३ शारीरिक स्तर पर
- भूख न लगना
- खुजली होना
- चक्कर आना
- कान के समीप कष्टदायक ध्वनि सतत निर्मित करते रहना, विचित्र ध्वनियों की बौछार के फलस्वरूप जडता (सुन्न होना)आना ।
- ऐसा लगना जैसे किसी ने धक्का दिया हो अथवा ध्यान में बैठा व्यक्ति किसी स्पर्श के कारण ध्यानावस्था से बाहर आना अनुभव करता है ।
४.४ मानसिक स्तर पर
- रात में नींद न लगना;किंतु दिन के समय बहुत नींद आना
- दूसरों को पीटने तथा आक्रमण करने के विचार आना ।
- राक्षसों से प्रभावित व्यक्ति अन्यों को साधना नहीं करने देते ।
5. उपाय
- व्यक्तिगत स्तर पर:चेहरे पर पवित्र विभूति
फूंकना, पीठ पर धूप का धुंआ दिखाना, संतों द्वारा प्रयुक्त वस्तुओं जैसे हस्तलेख का प्रयोग करना - वातावरण से संबंधित : SSRF निर्मित अगरबत्ती जलाना
टिप्पणी : उपचार करनेवाले आध्यात्मिक उपचारक का आध्यात्मिक स्तर व्यक्ति को प्रभावित अथवा आविष्ट करनेवाली अनिष्ट शक्ति के स्तर से न्यूनतम २० प्रतिशत अधिक होना चाहिए । बाह्य आध्यात्मिक उपचारों से उपचार करने पर पीडित को कुछ समय के लिए अच्छा लग सकता है;किंतु इस कष्ट से (जो अनेक बार हमारे साथ अनेक जन्मों से होता है) स्थायी रूप से मुक्ति पाने के लिए, साधना करना तथा स्वयं में निरंतर तथा दीर्घ कालावधि तक रहनेवाली सकारात्मकता लाना आवश्यक है । यदि कोई आध्यात्मिक उपचार के साथ नामजप करता है, तब उसे उसके कष्ट से अल्प कालावधि में मुक्ति मिल सकती है ।