प्रार्थना – यह शब्द ‘प्र’ और ‘अर्थ’ से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है पूर्ण तल्लीनता के साथ निवेदन करना । दूसरे शब्दों में प्रार्थना से तात्पर्य है, ईश्वर से किसी वस्तु के लिए तीव्र उत्कंठा से किया गया निवेदन ।
प्रार्थना में आदर, प्रेम, आवेदन एवं विश्वास समाहित हैं । प्रार्थना के माध्यम से भक्त अपनी असमर्थता को स्वीकार करते हुए ईश्वर को कर्ता मान लेता है । प्रार्थना में ईश्वर को कर्ता मानने से तात्पर्य है कि हमारा अंतर्मन यह स्वीकार कर लेता है कि ईश्वर हमारी सहायता कर रहे हैं और कार्य पूर्ति भी करवा रहे हैं । भक्ति के आध्यात्मिक (भक्तियोग के) पथ पर अग्रसर होने हेतु प्रार्थना, साधना का एक महत्त्वपूर्ण साधन है ।