इस लेख को अच्छे से समझने के लिए, गुरु कौन होते हैं ? इस लेख का कृपया अध्ययन करें ।
१. गुरु की कृपा का मार्ग – प्रस्तावना
ईश्वर तक जाने वाले अनेक सर्वसामान्य मार्ग हैं, इनमें से गुरु की कृपा का मार्ग (गुरुकृपायोग) आध्यात्मिक उन्नति का सर्वोच्च शिखर (मोक्ष) पाने की दृष्टि से सबसे महत्त्वपूर्ण है । जीवन के सभी अंगों में समझने, सिखने और प्रगति करने के लिए; हमें शिक्षक अथवा मार्गदर्शक होना बहुत ही आवश्यक है । यह विश्वमान्य नियम आध्यात्मिक प्रगति के लिए कोई अपवाद नहीं है । केवल देहधारी गुरु के माध्यम से कार्य करने वाले निर्गुण गुरु तत्त्व की कृपा द्वारा (ईश्वर का शिक्षा प्रदान करने वाला तत्त्व) ही शिष्य शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति करता है ।
साधना मार्ग कौन सा भी हो, यदि हम साधना केवल अपने ही प्रयत्नों से करते होंगे, हम एक विशिष्ट स्तर तक ही पहुंच सकते हैं । इसके आगे के चरण में पहुंचने के लिए गुरु की कृपा अत्यंत आवश्यक होती है ।
२. गुरुकृपायोग की व्याख्या
‘कृपा’ शब्द की व्युत्पत्ति, संस्कृत धातु ‘कृप’ से हुई है, जिसका अर्थ है, दयालु । “कृपा” शब्द दया, स्वीकार (अंगीकार) और आशीर्वाद का द्योतक है । गुरुकृपायोग, एक ऐसा साधना मार्ग है, जहां गुरु की कृपा के माध्यम से देह में बन्धा जीव ईश्वर से एकरुप हो जाता है ।
३. गुरुकृपायोग का महत्त्व
३.१ प्रगति के लिए कालावधि
- आध्यात्मिक प्रगति के लिए लगने वाली अल्प कालावधि, गुरुकृपायोग का सबसे बडा लाभ है । गुरु के अध्यात्म प्रसार के जीवन कार्य में सेवा कर, शिष्य उनकी कृपा प्राप्त कर शीघ्र आध्यात्मिक प्रगति करता है । सांसारिक जीवन के किसी भी सर्वोच्च ध्येय प्राप्ति की तुलना गुरु की कृपा प्राप्त करने के साथ नहीं हो सकती । आगे का उदाहरण इस वाक्य का अर्थ समझने के लिए उपयुक्त होगा । कल्पना करें कि किसी निर्धन विध्यार्थी पर उसके प्रयत्नवश किसी करोडपति का ध्यान पडता है और वह उसे विश्व के सर्वोच्च विश्वविद्याल के लिए छात्रवृत्ति देकर उसके भविष्य के शैक्षिक और व्यावसायिक प्रगति का संपूर्ण दायित्व लेता है । इस उदाहरण में जिस प्रकार प्रगति की सीढियां चरणबद्ध पद्धति से चढने में लगने वाले विद्यार्थी के अनेक वर्ष बच जाते हैं, उसी प्रकार जो साधक गुरु की कृपा प्राप्त करता है, उसके अन्य मार्ग से लगने वाले अनेक वर्ष बच जाते हैं ।
- किसी भी साधना मार्ग के अनुसार औसतन आध्यात्मिक उन्नति प्रति वर्ष ०.२५% होती है । गुरु के बताएनुसार साधना करने से शिष्य की प्रगति प्रति वर्ष २-३% हो सकती है । शिष्य द्वारा गुरुकृपा के पात्र हो जाने पर आध्यात्मिक उन्नति प्रतिवर्ष ५-८% भी हो सकती है ।
३.२ विशिष्ट चरण के आगे प्रगति होना
- संस्कृत में एक सर्वश्रुत उक्ति है : ‘गुरुकृपा हि केवलम शिष्य परममंगलम’ । इसका अर्थ यह है कि केवल गुरु की कृपा से ही शिष्य का परम मंगल, अर्थात आध्यात्मिक उन्नति होती है ।
- सन्त पद प्राप्त करना (अर्थात ७०% आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करना) और मनोलय तथा बुद्धिलय साध्य करना, गुरु की कृपा बिना सम्भव नहीं है ।
- गुरुकृपा के अतरिक्त किसी भी साधना मार्ग से साधना करने से मनोदेह, कारणदेह तथा महाकारणदेह की शुद्धि पूर्णतः कर पाना सम्भव नहीं है । साथ ही इन सभी मार्गों में मोक्ष (मुक्ति का अंतिम शिखर) प्रदान करने की क्षमता नहीं है
- कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग जैसे साधना मार्ग शिष्य के जीवन में केवल गुरुकृपा प्राप्त होने तक ही महत्त्व रखते हैं । गुरुकृपा प्राप्त होने के पश्चात शिष्य केवल गुरु द्वारा बताई साधना ही करता है । इसलिए केवल गुरुकृपा का मार्ग ही शेष रहता है । सभी मार्ग अंत में साधक द्वारा ईश्वर प्राप्ति हेतु गुरुकृपा प्राप्त करने में विलीन हो जाते हैं
४. गुरुकृपा कार्य कैसे करती है ?
गुरुकृपा २ प्रकारसे कार्य करती है :
- संकल्प : जब गुरु संकल्प करते हैं कि, शिष्य की आध्यात्मिक उन्नति हो, तभी खरे अर्थ से शिष्य की आध्यात्मिक उन्नति होती है । इसी को गुरुकृपा कहा जाता है । ऐसा हो जाए,ऐसा केवल विचार ही गुरु के मन में आना इसके लिए पर्याप्त है । अन्य किसी की आवश्यकता नहीं रहती । तथापि यह केवल उस सन्तके लिए सम्भव होता है, जिनका आध्यात्मिक स्तर ८०% से अधिक होता है । ७०% स्तर के सन्तों का संकल्प शिष्य की केवल सांसारिक सहायता के लिए उपयुक्त होता है ।
- अस्तित्व : गुरु का केवल अस्तित्व, समीप होना अथवा साथ होना ही शिष्य की साधना के लिए पर्याप्त होता है और प्रगति अपने आप होती है । इसका एक अच्छा उदाहरण है सूर्य, जिसके उदय के साथ सब जग जाते हैं और फूल खिलने लगते हैं । यह मात्र अस्तित्व से साध्य होता है । सूर्य कभी किसी को जगनेके लिए अथवा फूलों को खिलने के लिए नहीं कहता । ९०% से अधिक आध्यात्मिक स्तर के गुरु का जीवन कार्य इस प्रकार का होता है ।
५.गुरुकृपायोगानुसार साधना
एसएसआरएफ परामर्श देता है कि इसी जीवन में शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति के लिए गुरुकृपायोगानुसार साधना करें और वर्तमान समय, जो कि आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत अनुकूल है,उसका लाभ लें ।
गुरुकृपायोगानुसार साधना के ८ अंग हैं :
इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी हमने हमारे आध्यात्मिक साधना इस पृष्ठ पर रखी है