अध्यात्म शास्त्र शोध संस्थान (SSRF) के अनुसार ईश्वर का नाम साधना की नींव के रूप में कार्य करता है । हो सकता है कि हमारे कुछ पाठकों को यह स्वीकार करने में कठिनाई हो सकती है विशेषतः जब वे पहले से ही किसी साधना पद्धति का अनुसरण कर रहे हों । इसके कारण यह हो सकते हैं :
- पूजा, श्लोक गायन, ग्रंथ पाठ, मंदिर, मस्जिद जाना अथवा गिरिजा घर जाना, ध्यान अथवा योग के प्रति लगाव
- नामजप साधना प्रारंभ करने के लिए अपनी वर्तमान साधना पद्धति छोड देने का विचार
- कुछ नया खोज करने में विरोध
ऐसी दशा में हम पाठक के लिए हमारे निम्नलिखित सुझाव है :
- किसी भी साधना को बढाना : ईश्वर का नामजप प्रारंभ करने के लिए अपनी वर्तमान साधना पद्धति छोडने की आवश्यकता नही है वास्तव में नामजप से इसमें वृद्धि हो सकती है ।
- वर्तमान साधना को अच्छा करना : अनेक जिज्ञासुओं का अनुभव है कि नामजप करने से उनकी वर्तमान साधना पद्धति में गुणात्मक वृद्धि हुई है । उदाहरण के लिए जिज्ञासुओं ने पाया कि नामजप से पूजा, ग्रंथपाठ, ध्यान के समय उनकी एकाग्रता और श्रद्धा में वृद्धि हुई है ।
- साधना में निरंतरता : अध्यात्मिक उन्नति के लिए साधना में निरंतरता बहुत आवश्यक है । यह निरंतरता नामजप द्वारा बहुत अच्छी तरह प्राप्त हो सकती है क्योंकि मानसिक नामजप कभी भी, कहीं भी और दैनिक कार्य करते हुए किया जा सकता है । यह वर्तमान साधना पद्धति के साथ व्यक्ति को साधना में निरंतरता बनाए रखने में सहायक है । नियमित और निरंतर नामजप :
- मन को शांति प्रदानकर, मानसिक और शारीरिक स्तर पर लाभदायक है ।
- यह विश्वास और श्रद्धा बढाकर अध्यात्मिक उपाय के रूप में कार्य करता है ।
- वर्तमान युग की साधना : अध्यात्म शास्त्र के अनुसार कलियुग में अपने जन्म के पंथ अनुसार नामजप करना सर्वश्रेष्ठ साधना है । अतः जो जिज्ञासु पहले से कुछ साधना कर रहे है उनकी साधना में वृद्धि के लिए नामजप साधना सहायक है । संदर्भ : साधना का पांचवां मूलभूत सिद्धांत
- अतिरिक्त लाभ : यदि कोई कुछ समय तक नया प्रयोग करता है तो वह इसका लाभ अनुभव कर सकता है । अन्यथा साधना को सुदृढ करने का एक अच्छा अवसर खो सकता है ।