परिवार के किसी सदस्य के निधन के उपरांत, हमारी संस्कृति और परंपरा के अनुसार, हम उन्हें अनेक प्रकार से श्रद्धांजलि देते हैं जैसे
- उनकी समाधि पर फूल चढाना
- समाचारपत्र के निधन सूचना पृष्ठ पर उनकी स्मृति में आभार छपवाना
- उनका छायाचित्र घर में टांगना
सामान्य रूप से की जानेवाली उपरोक्त सर्व विधियां हमारे दिवंगत पूर्वजों के मृत्योपरांत के जीवन में सहायता करने हेतु कोई महत्त्व नहीं रखतीं , वास्तव में ये उनके लिए हानिकारक हो सकती हैं । नीचे दी गई सारणी में हमने वंशजों द्वारा अपने पूर्वजों के लिए किए जानेवाले कुछ सामान्य विधियों का तुलनात्मक महत्त्व दिखाया है । इस सारणी में दिए गए आंकडे ४० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर से अल्प स्तरवाले लोगों के संदर्भ में हैं । जैसे-जैसे व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर ४० प्रतिशत से अधिक बढता जाता है, नीचे दी गई विधियों का तुलनात्मक महत्त्व में परिवर्तन हो सकता है । यह ज्ञान आध्यात्मिक शोध से प्राप्त हुआ है ।
विधियां | तुलनात्मक प्रतिशत महत्त्व |
---|---|
दिवंगत व्यक्ति की निधन-सूचना लिखनी | ०% |
पेशेवर शोक मनानेवाले को नियुक्त करना | नकारात्मक प्रभाव२ |
अंतिम संस्कार के समय प्रशस्ति भाषण | ०% |
दिवंगत व्यक्ति के चित्र को और / अथवा माला पहनाकर घर में रखना | नकारात्मक प्रभाव |
कब्र पर जाना तथा फूल चढाना | नकारात्मक प्रभाव |
अंतिम संस्कार के उपरांत कुछ समय के लिए काले कपडे पहनना | ०% |
दिवंगत व्यक्ति के नाम से स्मारक बनाना | नकारात्मक प्रभाव |
दिवंगत व्यक्ति के लिए उनके परिवार तथा प्रियजनों का प्रार्थना करना | १०% |
‘श्री गुरुदेव दत्त’ का सुरक्षात्मक नामजप करना१ | १००% |
टिप्पणियां :
१. श्री गुरुदेव दत्त के नामस्मरण का कुल लाभ विभिन्न पहलू ओं पर निर्भर करता है जैसे – पूर्वज कष्ट की तीव्रता का प्रतिकार करने लिए किए जानेवाले नामजप की संख्या, ध्यानपूर्वक नामजप करना, नामजप करनेवाले व्यक्ति की श्रद्धा तथा भाव इत्यादि ।
२. ‘नकारात्मक प्रभाव’ का अर्थ है, ऐसी विधियां करने से कुछ समय पहले दिवंगत हुए व्यक्ति की सूक्ष्म-देह उनके पृथ्वी पर के पूर्व जन्म से भावनात्मक रूप से जुडे रख सकती है । अनिष्ट शक्तियां उनके इस आसक्ति अथवा जुडाव का उपयोग दिवंगत पूर्वज को अपने नियंत्रण में करने तथा मृत्योपरांत उनके आगे की गति को बाधित करने के लिए कर सकती हैं। ऐसा मुख्यतः निम्न आध्यात्मिक स्तरवाले दिवंगत पूर्वज के संदर्भ में होता है ।
आध्यात्मिक शोध द्वारा ज्ञात हुआ है कि मृत्यु पश्चात लभगभ ६०% पूर्वजों को पर्याप्त आध्यात्मिक स्तर के अभाव में एवं तीव्र वासनाओं के कारण गति मिलने में कठिनाई होती है और भूलोक को पार करना भी उनके लिए कठिन हो जाता है । इसलिए उनमें से अधिकतर पारिवारिक घरों में ही निवास करते हैं ।
मृत्युके पश्चात तथा मृत्युपरांतके जीवन में हम अपने पूर्वजों की सहायता के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं । आगामी लेखों में हम इससे संबंधित विविध सूत्रों को समझ लेंगे ।
१. आध्यात्मिक दृष्टि से सुरक्षा-कवच – ‘श्री गुरुदेव दत्त’ का जप
अपने पूर्वजों की तत्काल सहायता के लिए, हमारा अनुरोध है कि श्री गुरुदेव दत्त का जप आरंभ करें । यह आध्यात्मिक दृष्टि से सुरक्षा प्रदान करता है । आध्यात्मिक दृष्टि से सुरक्षा प्रदान करनेवाले ‘श्री गुरुदेव दत्त’ के जप का अर्थ क्या है ?, इस लेख का संदर्भ लें ।
मृत्यु के समय उत्सर्जित वायु मृतदेह के बाहर फेंकी जाती हैं । ये उत्सर्जित वायु नित्यरूप में शरीर से बाहर फेंकी जानेवाली निरुपयोगी स्थूल वायु होती हैं । इनके स्पंदन तथा तरंगें (कम्पनसंख्या) नकारात्मक अर्थात अनिष्ट होने से संलग्न वायुमंडल में तमोगुण बढता है । अनिष्ट शक्तियां इन कष्टप्रद स्पंदनों की ओर आकर्षित होकर मृतदेह से संलग्न वायुमंडल में प्रवेश करती हैं ।
ये अनिष्ट शक्तियां पंचप्राणों की तथा पंचउपप्राणों की शक्तियों पर, जो मृत्यु के समय ब्रह्मांड में मुक्त (विलीन) होने की प्रक्रिया में होती हैं, नियंत्रण प्राप्त कर मृतदेह पर आक्रमण करती हैं । वे मृतदेह पर धुएं समान काली शक्ति प्रक्षेपित करती हैं और उसे सर्व ओर से घेरकर काला आवरण निर्माण करती हैं । अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण के कारण काली तरंगें मृतदेह में संक्रमित होकर प्रेत काले तरंगों से प्रभारित हो जाता है ।
पंचप्राण एवं उपपंचप्राणों की शक्ति पर नियंत्रण पाने पर अनिष्ट शक्ति सूक्ष्मदेह को जाल में फंसाने के लिए काली शक्ति के भंवर संक्रमित करती है । इस प्रकार वह मृत पूर्वज की सूक्ष्मदेह को उसके आक्रमण क्षेत्र में खींचती है । तदुपरांत वह सूक्ष्म-देह को उसकी काली तरंगों के जाल में फंसाकर मृत्युपरांतके जीवन में उसकी आगे की यात्रा में बाधा निर्माण करती है । कुछ समय के उपरांत अनेक अनिष्ट शक्तियां सूक्ष्मदेह पर काली शक्ति के भंवर निर्मित कर उनके द्वारा आक्रमण कर उसे अपने संपूर्ण नियंत्रण में लेती हैं । अनिष्ट शक्तियां मृतदेह पर और मृत पूर्वज के सूक्ष्म-देह पर योजनाबद्ध पद्धति से नियंत्रण प्राप्त करती हैं।
स्पिरिच्युअल साईंस के अनुसार मृत्यु के समय अनिष्ट शक्तियों द्वारा किए जाने वाले आक्रमणों से सूक्ष्म-देह की सुरक्षा हेतु विशिष्ट धार्मिक संस्कार आवश्यक होते हैं । अधिकतर प्रसंगों में लोगों को ये संस्कार अथवा इन्हें प्रत्यक्ष कैसे करना है, इसके संदर्भ में जानकारी नहीं होती ।
३. ‘श्री गुरुदेव दत्त’ का जप करने से लाभ
आध्यात्मिक सुरक्षा प्रदान करनेवाले ‘श्री गुरुदेव दत्त’ का जप करने से होने वाले प्रमुख लाभ निम्न प्रकार से हैं ।
- रज-तम न्यून करना : दत्त देवता हमारे पूर्वजों को गति प्रदान करने वाला ईश्वरीय तत्त्व है । ‘श्री गुरुदेव दत्त’ के नामजप से लक्षणीय तेजःपुंज तरंगें प्रक्षेपित होती हैं । ये तरंगें मृत पूर्वज की सूक्ष्मदेह के सर्व ओर विद्यमान इच्छा तरंगों की तीव्रता न्यून करती हैं । इससे सूक्ष्मदेह का रज-तम न्यून होता है और परिणामस्वरूप उसका भार न्यून होता है । इससे सूक्ष्म-देह को उसकी आगे की यात्रा के लिए शक्ति प्राप्त करना संभव होता है ।
- सुरक्षा-कवच : मृत शरीर तथा सूक्ष्म-देह के सर्व ओर सुरक्षा-कवच निर्मित होता है ।
- गति प्राप्त होना : इच्छारूपी आसक्ति भी न्यून होने से सूक्ष्म-देह को अल्पावधि में भूलोक पार करना संभव होता है ।
- आध्यात्मिक स्तर पर वायुमंडल की शुद्धि : नामजप करने से वायुमंडल में चैतन्य के कण निर्मित होते हैं । इससे सूक्ष्म-देह को लाभ होता है । वायुमंडल में विद्यमान कष्टप्रद तरंगों से नामजप करने वालों को भी सुरक्षा मिलती है ।
- निरंतर सुरक्षा : प्रतिदिन ‘श्री गुरुदेव दत्त’ का नामजप करने से हमें पूर्वजों द्वारा निर्मित कष्ट से सुरक्षा मिलती है । इससे हम अपने पूर्वजों को मृत्युपरांत के जीवन में आवश्यक सत्त्वगुण देकर उनकी आगे की यात्रा में सहायता करते हैं ।
४. आपके कौन से पूर्वजों को इस नामजप से लाभ होगा ?
जो पूर्वज हमें अत्यधिक कष्ट देता है, उसे इससे अत्यधिक लाभ होता है तथा उस पूर्वज को प्रधानता से ‘गुरुदेव दत्त’ के नामजप से आध्यात्मिक सुरक्षा मिलने में सहायता होती है ।