१. पूर्वजों की उपासना तथा पितृपूजा – प्रस्तावना
पूर्वजों की उपासना अथवा पितृपूजा किसी न किसी रूप में पूरे विश्व में की जाती है । प्रथा के प्रकार और विधियों में भिन्नता होती है; कुछ संस्कृतियों में पूर्वजों को देवताओं के रूप में पूजा जाता है । पूर्वजों की उपासना तथा पितृपूजा पर आधारित इस दो भाग की श्रृंखला में हम सामान्य आदर और सम्मान से लेकर पितरों की पूजा तक विभिन्न प्रथाओं और धारणाओं का आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य उपलब्ध करवाएंगे, जिससे लोग सोच-समझकर यह निर्णय ले सकें कि अपने और मृत पूर्वजों के दृष्टिकोण से उन्हें अपने मृत पूर्वजों के साथ कैसा व्यवहार करना है ।
मृत पूर्वजों के लिए सर्वप्रथम विधि है, अंत्येष्टि संस्कार और हमने प्रचलित अंत्येष्टि विधियों का आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य अपने लेख – अग्निसंस्कार विरुद्ध दफन पद्धति में दिया है ।
२. पूर्वजों की उपासना अथवा पितृपूजा के लिए उद्युक्त करनेवाली कुछ प्रचलित धारणाएं
- सुरक्षा : ऐसा माना जाता है कि मृत पूर्वजों के पास विशेष अधिकार, महान शक्तियां होती हैं, जिससे वे किसी घटनाक्रम को प्रभावित कर सकते हैं अथवा अपने संबंधियों की भलाई पर नियंत्रण रख सकते हैं । वह अपने परिवार को सुरक्षा प्रदान करते हैं, उन्हें एकजुट रखने में उनका ध्यान रहता है । जीवित लोग यह मानते हैं कि मृत पूर्वज अभिभावक देवदूत होते हैं, जो उन्हें गंभीर दुर्घटनाओं से बचाते हैं और उनके जीवन के पथ-प्रदर्शक होते हैं ।
- हस्तक्षेप : कभी कभी पितरों को भगवान (अथवा देवताओं) और उनके परिवार के बीच का मध्यस्थ माना जाता है । यह माना जाता है कि वे र्इश्वर, संत और देवताओं से परिवार की भलाई के लिए अनुनय विनय करते हैं ।
- भय एवं सम्मान : कुछ संस्कृतियों में वंशजों का पितरों के प्रति भय एवं सम्मान का मिश्रभाव रहता है । यह माना जाता है कि यदि पितरों की अनदेखी की जाए, उनकी उपासना अथवा पूजा न की जाए, तो वे रोग अथवा अन्य संकट उत्पन्न करेंगे ।
- मृत्योपरांत जीवन से संवाद : पितरों के पास स्वप्न के माध्यम से अथवा उन्हें अपने वश में कर वंशजों से संवाद करने की क्षमता होती है ।
- जीवन–संबंधी निर्णयों में सहायक : कभी कभी वंशज पूर्वजों से महत्त्वपूर्ण निर्णयों में मार्गदर्शन पाने के लिए आत्मायन और माध्यम अथवा ओजा बोर्ड का प्रयोग करते हैं ।
निम्नलिखित विभाग में हमने पितृपूजा को बढावा देनेवाली इन धारणाओं के विषय में किए आध्यात्मिक शोध का विवरण दिया है ।
३. अपने वंशजों की रक्षा करने तथा उनका ध्यान रखने की पितरों की क्षमता :
ब्रह्मांड के किसी सूक्ष्म-लोक में रहनेवाली सूक्ष्म-देह की पृथ्वी पर (भूलोक) किसी की रक्षा करने की क्षमता उस सूक्ष्म-देह के आध्यात्मिक सामर्थ्य अथवा आध्यात्मिक बल पर निर्भर रहती है । निम्न सारणी में मृत्योपरांत विविध सूक्ष्म-लोकों में जाने वाले लोगों का अनुपात दिया गया है ।
लोक का प्रकार |
मृत्योपरांत लोक में जानेवाले लोगों का अनुपात |
संबंधित आध्यात्मिक बल |
मुख्य उद्देश्य |
---|---|---|---|
ब्रह्मांड के उच्च लोक (महर्लोक एवं उससे आगे) |
०.१ % से कम |
+१०० से असंख्य |
आध्यात्मिक प्रगति |
स्वर्ग |
१ % से कम |
+ ५ |
अपने पुण्य कर्मों का फल भोगना |
भुवर्लोक |
८५ % |
+ १ |
उत्तरजीविता |
नरक का पहला और दूसरा लोक (पाताल) |
१० % |
-१० से -२० |
उत्तरजीविता एवं दूसरों को कष्ट देना |
नरक का तीसरा लोक और उससे नीचे |
५ % |
-३० से नकारात्मक असंख्यता से थोडी कम |
दूसरों को कष्ट देना |
टिप्पणी : आध्यात्मिक बल के नकारात्मक अंक यह दर्शाते हैं कि शक्ति शैतानी आध्यात्मिक शक्ति है । यही काली शक्ति के नाम से जानी जाती है ।
प्राय: पितर एक से तीन पीढियों में पृथ्वी के अपने पूर्वजीवन की आसक्ति से मुक्त हो पाते हैं । एक पीढी का अर्थ लगभग ३० वर्ष है । दूसरे शब्दों में लोग अपने माता-पिता से लेकर अपने परदादा-दादी तक की पीढियों से प्रभावित होते हैं । एक अन्य पहलू जो यह कालावधि निश्चित करता है, वह है पृथ्वी पर किए अपने अनुचित कर्मों का फल जो व्यक्ति को सूक्ष्म-लोक में यातना के रूप में भोगना पडता है । पितर जब इन यातनाओं को भोग रहे होते हैं, तब उन्हें पता होता है कि उनके पृथ्वी के जीवन काल का कौन सा भाग इस यातना का कारण है । इस कालावधि में उनका अपने पूर्व सांसारिक जीवन से जुडाव रहता है और इससे उनके वंशज अवश्य प्रभावित होते हैं ।
- केवल वही सूक्ष्म-देह पृथ्वी के अपने वंशजों के लिए कुछ कर सकते हैं, जो आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नत हैं और ब्रह्मांड के उच्च लोकों में उदा. महर्लोक, जनलोक आदि में रहते हैं । इन सूक्ष्म-देहों का आध्यात्मिक स्तर ६० प्रतिशत (समष्टि) अथवा ७० प्रतिशत (व्यष्टि) रहता है । परंतु व्यवहार में लोगों को इन उन्नत सूक्ष्मदेहों से कोई सांसारिक सहायता नहीं मिल पाती । इसके दो कारण हैं :
- पहला, हमारे ०.१ प्रतिशत पूर्वज ब्रह्मांड के उच्च लोकों में जाते हैं; क्योंकि इसके लिए व्यक्ति का स्तर ६० प्रतिशत (समष्टि) अथवा ७० प्रतिशत (व्यष्टि) होना चाहिए ।
- दूसरा, यद्यपि हमारे पितर उच्च आध्यात्मिक स्तर के हों, वे किसी भी प्रकार की सांसारिक सहायता नहीं करना चाहेंगे । जब कोई व्यक्ति उन्नति करता है, उसका ध्यान केवल अपनी आध्यात्मिक उन्नति की ओर ही रहता है । इसलिए वे दूसरों की जो सहायता करते हैं, वह भी उन लोगों की आध्यात्मिक उन्नति की दृष्टि से ही होती है । साथ ही उनका अपने परिजनों के साथ जुडाव घटता जाता है; क्योंकि उनका दृष्टिकोण अधिक व्यापक होता जाता है, जैसे पूरी मानवता की आध्यात्मिक उन्नति में सहायता करना ।
- उच्च और कनिष्ठ स्वर्ग के सूक्ष्म-देह आध्यात्मिक दृष्टि से थोडे उन्नत होते हैं; तथापि स्वर्ग में उनका अधिकांश ध्यान पृथ्वी पर किए अपने पुण्यकर्मों के फल का उपभोग करना पर होता है । इसलिए वे कदाचित ही पृथ्वी के अपने वंशजों की सहायता करते हैं । साथ ही उन का आध्यात्मिक बल न्यून होता है, इसलिए यदि वे अपने वंशजों की सहायता करते भी हैं, तो भी छोटे-मोटे सांसारिक कार्यों में । हमारे कुल पूर्वजों में १ प्रतिशत से भी अल्प मृत पूर्वज स्वर्गलोक में जाते हैं ।
- हमारे अधिकांश पूर्वज भुवर्लोक और नरक के पहले और दूसरे लोक में जाते हैं । यहां का वातावरण बहुत यातनाओं भरा होता है । साधना के अभाववश तथा अनेक आसक्तियों, अतृप्त इच्छाओं के कारण मृत पूर्वजों के सूक्ष्म-देह इन लोकों में दुख अनुभव करते हैं । अधिकतर वे अपने वंशजों को कष्ट पहुंचाना चाहते हैं । पूर्वज अपने वंशजों को कष्ट क्यों पहुंचाना चाहते हैं, इसके दो कारण हैं-
- मृत्योपरांत गति न मिल पाने के कारण और उच्च सकारात्मक लोक अथवा उपलोक न पाने के कारण
कृपया पढें हमारा लेख – क्यों मेरे मृत प्रियजन एवं अन्य पूर्वज मुझे पीडा देना चाहेंगे ? यदि पूर्वजों द्वारा सहायता उपलब्ध कराई जाती है, तो वह केवल सहायता करने की उत्कट इच्छा द्वारा । वह भी प्राय: छोटी-मोटी बातों जैसे नौकरी पाना आदि के लिए । परंतु यदि पृथ्वी पर वंशज के साथ तीव्र प्रारब्ध के कारण कोई त्रासदी (कष्टदायी घटना) होनी हो, तो वंशजों द्वारा स्वयं साधना किए बिना इस घटना में परिवर्तन असंभव है ।
- जो पूर्वज नरक के निचले लोकों में रहते हैं, वे सामान्यतया अपने वंशजों को केवल कष्ट पहुंचाते हैं और कभी सहायता नहीं करते ।
मृत पूर्वजों द्वारा सहायता करने की प्रक्रिया
लगभग सभी प्रकरणों में, पूर्वजों के पास लंबे समय तक किसी अन्य लोक जैसे पृथ्वी की घटनाओं को प्रभावित करने की सीमित क्षमता होती है । कभी कभी उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियां (भूत, राक्षस, चुडैल आदि) मृत पूर्वजों को इच्छापूर्ति की क्षमता प्रदान करती हैं । ये उच्च स्तरीय शक्तियां इन सूक्ष्म-देहों के साथ लेन-देन का हिसाब निर्माण करने हेतु मृत पूर्वजों को शक्ति प्रदान करती हैं, जिससे आगे उन्हें अपने वश में कर लें ।
४. क्या मृत पूर्वज ईश्वर अथवा देवताओं से हमारे लिए अनुनय विनय कर सकते हैं ?
ऐसा प्रकरण दुर्लभ है । कुछ प्रकरणों में स्वर्गलोक अथवा भुवर्लोक के सूक्ष्म-देह अपने वंशजों की ओर से स्वर्गलोक के कनिष्ठ देवताओं से अनुनय विनय कर सकते हैं । यह पृथ्वी पर कुछ पाने के लिए अपने पुण्य देने से होता है । तथापि कनिष्ठ देवताओं के पास भी सीमित शक्ति होती है और वे केवल छोटे-मोटे कार्यों में ही सहायता कर सकते हैं । अधिकांश प्रकरणों में कनिष्ठ देवता अपने कार्य के लिए कुछ पाने की आकांक्षा रखते हैं । यदि किसी ने बहुत साधना की हो, तो वह उच्च देवताओं से भी वरदान मांग सकता है, परंतु इसमें साधना व्यय हो जाती है ।
५. यदि पूर्वजों की अनदेखी हो अथवा उनकी पूजा न हो, तो क्या वे संकट ला सकते हैं ?
आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य में अनदेखी का अर्थ है आवश्यक विधियां अथवा पूर्वजों को आगे की गति देने हेतु साधना न करना । यदि आवश्यक विधियां न हो, तो मृत पूर्वज अपने वंशजों को कष्ट दे सकते हैं ।
अगले लेख में हम वैश्विक स्तर पर प्रचलित कुछ विधियों और प्रथाओं का परीक्षण करेंगे और देखेंगे मृत पूर्वजों से उत्पन्न कष्ट दूर करने में उनका महत्त्व क्या है ?
अवश्य पढें हमारा लेख – क्यों मेरे मृत प्रियजन एवं अन्य पूर्वज मुझे पीडा देना चाहेंगे ?
६. क्या मृत पूर्वज अपने वंशजों के साथ संवाद कर सकते हैं ?
जी हां, यह संभव है । वे विभिन्न पद्धतियों से यह करते हैं :
- वंशजों के जीवन में समस्याएं उत्पन्न कर उसके माध्यम से संवाद करना : मृत पूर्वज अधिकतर वंशजों के जीवन में समस्याएं उत्पन्न कर उनसे संवाद करते हैं । मृत पूर्वज आध्यात्मिक शक्ति के बल पर वंशजों के जीवन में समस्याएं उत्पन्न करते हैं, जिससे वंशज उनकी आवश्यकताओं पर ध्यान दें । अर्थात पूर्वजों द्वारा कष्ट पहुंचाने का मुख्य औचित्य अपने दुख को वंशजों तक पहुंचाना होता है । जब वंशजों को लगता है कि अनेक सर्वश्रेष्ठ प्रयासों से भी समस्याएं दूर नहीं हो रहीं, तो वे प्राय: आध्यात्मिक मार्गदर्शन लेते हैं ।
देखें : पूर्वजों के कष्ट से उत्पन्न दाद (एक्जिमा) के प्रकरण का अध्ययन
- माध्यम एवं औजा बोर्ड : कभी कभी पृथ्वी के वंशज अथवा मृत्योपरांत जीवन से मृत पूर्वजों, माध्यम अथवा औजा बोर्ड के माध्यम से संवाद करने का प्रयास करते हैं । अधिकांश प्रकरणों में संवाद करनेवाला, हमारा पूर्वज नहीं होता । कृपया पढें हमारा लेख – किसी मध्यस्थों का (माध्यम बनने वाले जिन व्यक्तियों का) अथवा Ouija बोर्ड की सहायता से अपने किसी मृत रिश्तेदारों से संपर्क करने का आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य क्या है ? इसके अनुसार सर्वश्रेष्ठ यही है कि इन माध्यमों से कोई भी अपने जीवन संबंधी निर्णयों के लिए परामर्श न लें; क्योंकि बहुत बार इसमें हम किसी अन्य भूत अथवा अनिष्ट शक्ति से बात कर रहे होंगे । और आरंभ में परामर्श उचित हो, तो भी इसमें लोगों को अनुचित दिशा अथवा हानिकारक मार्ग पर ले जाने का अनुचित परामर्श छिपा हुआ होता है ।
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स्वप्न : कभी कभी पूर्वज स्वप्न के माध्यम से संवाद करते हैं । मूर्त पृथ्वी, जिसमें हम रहते हैं, उसकी तुलना में अधिक अमूर्त (सूक्ष्म) लोक में पूर्वज रहते हैं । स्वप्नावस्था में हम अधिक सूक्ष्म आयाम में पहुंचते हैं और वहां हमसे संवाद कर पाना पूर्वजों के लिए सरल होता है । अधिकांश स्वप्न मानसिक स्तर के होते हैं । परंतु कुछ ऐसे भी उदाहरण मिले हैं, जहां स्वप्न आध्यात्मिक स्तर के थे । प्राय: कोई भी सपना लगातार तीन बार आए, तो वह आध्यात्मिक होता है । यदि जो सपने में हुआ था, वही वास्तव में हो, तब भी, हम यह मान सकते हैं कि सपना आध्यात्मिक था । कुछ सपने पूर्वजों के संवाद की पद्धति है । उदाहरणार्थ, लगातार सपने में पूर्वज अथवा सांप दिखना । सपने में कोबरा सांप दिखने का अर्थ है पूर्वज अच्छे हैं, जबकि किसी अन्य प्रजाति के सांप के दिखने का अर्थ है हानिकारक पूर्वज ।
६.१ संवाद साधने की प्रक्रिया
सभी क्रियाएं पंचतत्त्वों में से किसी एक का उपयोग कर की जाती हैं । पूर्वज की आध्यात्मिक क्षमता के आधार पर, वे अधिकाधिक उच्च पंचतत्त्व का प्रयोग कर संवाद कर सकते हैं ।
पंचतत्त्व | प्रकटीकरण |
---|---|
पृथ्वी | सामान्य तौर पर बिना किसी कारण वातावरण में फैली दुर्गंध । उदा. घर में मूत्र की गंध । यह पूर्वज से संबंधित कोई इत्र भी हो सकता है । |
आप | मुख में किसी प्रकार का स्वाद रहना |
तेज | स्वप्नावस्था में मृत पूर्वज का रूप लेना, मृत पूर्वज को देख पाने की क्षमता अथवा मृत पूर्वज का रूप |
वायु | बिना किसी की उपस्थिति के ऐसा लगना कि कोई स्पर्श कर रहा है, घर में वस्तुएं गुमना |
आकाश | आवाजें सुनाई देना |
सभी प्रकरणों में जहां मृत पूर्वज अपने वंशजों से संवाद करने का प्रयास करते हैं, पूर्वज की अतृप्त इच्छाएं होना अवश्यंभावी है और वंशजों को अपनी ओर से पूर्वजों को गति देने हेतु सर्वश्रेष्ठ प्रयास करने चाहिए ।