विषय-संक्षेप
यह प्रशंसनीय है कि, ज्योतिष विज्ञान प्रारब्ध एवं सूक्ष्म जगत के उन पक्षों को समझ सकता है जो कि आधुनिक विज्ञान की आकलन क्षमता से परे हैं । आध्यात्मिक शोध की कार्यप्रणाली के माध्यम से हमने यह पाया है कि ज्योतिषशास्त्र की सटीकता अधिकतम ३० प्रतिशत तक होती है । ज्योतिषशास्त्री की व्याख्या की सटीकता एवं क्षमता केवल साधना द्वारा बढ सकती है ।
१. ज्योतिषशास्त्र की सटीकता का एक परिचय
आकाश में विद्यमान खगोलीय पिंड भविष्य की रूपरेखा प्रदान कर सकते हैं, इस परिकल्पना ने मानवजाति को अनंतकाल से सम्मोहित किया है । समाचारपत्र के राशिफल खंड पर सामान्य दृष्टि डालकर से लेकर, ज्योतिषियों के परामर्श पर वैवाहिक, आर्थिक एवं यहां तक कि चिकित्सा से संबंधित आदि जीवन के महत्वपूर्ण निर्णय लेने तक, ज्योतिषशास्त्र के साथ मानवजाति का प्रेम परिलक्षित होता है । ज्ञात हो कि कुछ राज्य-प्रमुखों ने भी ज्योतिषियों से परामर्श कर ऐसे निर्णय लिए जिनसे इतिहास प्रभावित हुआ ।
अतः भविष्यवाणी करने अथवा निर्णय लेने के साधन के रूप में प्रयोग करते समय ज्योतिषशास्त्र की सटीकता क्या है ? इस प्रश्न पर प्रकाश डालने के साथ ही ज्योतिषशास्त्र की सुनिश्चितता को आध्यात्मिक दृष्टिकोण प्रदान करने एवं इसे प्रभावित कर सकनेवाले कारकों पर प्रकाश डालने में सहायता हेतु हमने आध्यात्मिक शोध कार्यप्रणालियों का प्रयोग किया है ।
ज्योतिषशास्त्र में रोचक यह है कि ज्योतिषी बहुत सीमित तथ्य जैसे कि जन्म का समय एवं जन्म के स्थान के अक्षांश और देशांतर के आधार पर लोगों के प्रारब्ध को समझने का प्रयत्न करते हैं । ज्योतिषी व्यक्ति के जीवन के कुछ विशेष पहलुओं जैसे किसी विशेष रोग अथवा बाधा का ज्योतिषीय कारण, जैसे कि विवाह न होना, व्यापार उद्यम के लिए सबसे उत्तम समय अथवा कोई अन्य व्यक्तिगत उद्यम तथा राष्ट्रीय समस्याओं के विषय में तथ्य देने का प्रयत्न करते हैं ।
अध्यात्मशास्त्र के अनुसार, प्रारब्ध हमारे जीवन का वह भाग है, जो हमारे जन्म के भी पहले से पूर्वनिर्धारित है । हमारे जीवन की सभी प्रमुख घटनाएं पूर्वनिर्धारित होती हैं, जैसे हमारे माता-पिता जिनके कारण हम जन्म लेते हैं, वह व्यक्ति जिससे हम विवाह करते हैं, अथवा हमारे जीवन को संकट में डालनेवाले भयानक रोग । प्रारब्ध स्वाभाविक रूप से आध्यात्मिक विषय है, जो पंच ज्ञानेंद्रियों, मन एवं बुद्धि द्वारा नहीं समझा जा सकता ।
ज्योतिषी दावा करते हैं कि वे अपनी ज्योतिष विद्या तथा थोडी अंतःप्रेरणा१ का प्रयोग कर, हमारे प्रारब्ध की भविष्यवाणी कर सकते हैं, उनके इस कथन ने ज्योतिष में हमारी रूचि बढार्इ, इसलिए हमने इस ज्ञान प्रणाली पर शोध करने का निर्णय लिया ।
२. ज्योतिषशास्त्र के विषय में
२.१ ज्योतिषशास्त्र क्या है ?
हमने यह पाया कि विषय के संबंध में लोगों की समझ के आधार पर ज्योतिषशास्त्र की बहुत सी परिभाषाएं हैं जो बताती हैं :
ज्योतिषशास्त्र ज्ञान की एक वृहद प्रणाली है, जिसमें नक्षत्रों और ग्रहों की स्थिति के आधार पर बहुत जटिल गणनाएं एवं उनके मध्य विद्यमान पारस्परिक संबंध तथा मानव-जीवन सहित पृथ्वी पर विभिन्न घटनाओं आदि की विशाल व्याख्याएं अंतर्भूत हैं । (संदर्भ : vedic.indastro.com, २००६)
“ज्योतिषशास्त्र ब्रह्मांड के नियमों के विषय में कोई स्पष्टीकरण नहीं देता है और ना ही ही ब्रह्मांड के अस्तित्व का कोई कारण स्पष्ट करता है । यह इसे सरल शब्दों में इस प्रकार बताता है कि स्थूल जगत और सूक्ष्म जगत के मध्य एक सामंजस्य होता है । संक्षेप में, ब्रह्मांड में एक सुर-ताल होता है, और इस सुर-ताल में व्यक्ति का स्वयं का जीवन भी सम्मिलित होता है । (हेनरी मिलर – संदर्भ : elore.com, फरवरी २००६)
ज्योतिषशास्त्र एक प्राचीन कार्य-प्रणाली है जो मानती है कि नक्षत्रों एवं ग्रहों की स्थिति का सीधा प्रभाव लोगों एवं घटनाओं पर पडता है । माना जाता है कि किसी भी व्यक्ति के जीवन का स्वरूप उसके जन्म के समय नक्षत्रों एवं ग्रहों की स्थिति का निर्धारण कर चित्रित किया जा सकता है । इसे दर्शाने का प्रयत्न करनेवाले आलेख-चित्र को जन्म-कुंडली कहते है । (संदर्भ : greatcom.org)
कुछ सामान्य वाक्यांश जिनका हमने पता लगाया :
ग्रहों एवं नक्षत्रों की स्थिति के मध्य पारस्परिक संबंध तथा मानव जीवन सहित पृथ्वी पर विभिन्न घटनाएं ।
स्थूल जगत और सूक्ष्म जगत के मध्य एक सामंजस्य होता है ।
नक्षत्रों एवं ग्रहों की स्थिति का सीधा प्रभाव लोगों एवं घटनाओं पर पडता है ।
यद्यपि ज्योतिषशास्त्र की परिभाषाओं में विविधताएं हैं; किंतु प्रत्येक जन्म-कुंडली में यह सहमति है कि जन्म के स्थान (जन्म के स्थान के अक्षांश और देशांतर) के साथ, जन्म का समय आवश्यक प्रारंभिक बिंदु है ।
२.२. ज्योतिषशास्त्र का उपयोग कैसे किया जाता है?
शोध द्वारा हमने यह पाया कि ज्योतिषशास्त्र के अनेक प्रकार हैं एवं उनके मुख्य अनुप्रयोग निम्नांकित सूची अनुसार हैं :
अनुप्रयोग अथवा उपयोग | अर्थ |
---|---|
भविष्यसूचक | भविष्य में होने वाली घटना के विषय में जानने के लिए |
Diagnostic निदानकारी | जटिल चिकित्सीय प्रकरणों में निदान के लिए एक सहायक रूप में कार्य करने हेतु, अथवा जीवन के किसी पहलू को प्रभावित करनेवाली समस्या के मूल कारण को समझने हेतु । उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति ज्योतिषी से यह प्रश्न कर सकता है कि अच्छी आय होने के पश्चात भी उसे आर्थिक समस्याओं का सामना क्यों करना पड रहा है । |
मूल स्वभाव एवं अनुकूलता | जन्म-कुण्डली अथवा एक-दूसरे के राशिचक्र के आधार पर किसी व्यक्ति के मूल स्वभाव, तथा व्यवसाय अथवा जीवनसाथी के साथ परस्पर अनुकूलता को समझने के लिए । |
निर्णय लेना | सुनियोजित प्रसंग, जैसे विवाह अथवा किसी के व्यापार के उद्घाटन के लिए उपयुक्त शुभ समय जानने के लिए अथवा किसी विशिष्ट प्रश्न का उत्तर देने के लिए जैसे कि व्यक्ति को विवाह कब करना चाहिए, इसमें सम्मिलित हैं । |
इस खंड में आगे हमने ज्योतिषशास्त्र के इन अनुप्रयोगों की परिशुद्धता का विवरण आध्यात्मिक दृष्टिकोण से दिया है ।
यहां यह भी बताना आवश्यक है कि हम अपनी समस्याओं के निदान हेतु सहायता के लिए किसके पास जाते हैं, यह उस पर भी निर्भर करता है; क्योंकि समस्याओं का कारण जांचने की उनकी पद्धति में भिन्नता हो सकती है । संस्कृत में एक छंद है जो किसी भी समस्या की स्थिति में बताता है कि :
यदि कोई आयुर्वेद विज्ञान का व्यवसाय करनेवाले व्यक्ति, अर्थात वैद्य (आयुर्वेदिक चिकित्सक) से परामर्श ले, तो वह यह कहेगा कि यह तीन देहद्रव; पित्त, कफ एवं वात के मध्य असंतुलन के कारण यह (समस्या) है ।
यदि कोई ज्योतिषी से परामर्श ले तो वह कहेगा कि नक्षत्रों एवं ग्रहों के विशिष्ट स्थिति में होने के कारण ऐसा (समस्या) है ।
यदि कोई चिकित्सक से परामर्श करे तो वह बताएगा कि शरीर के किसी भाग को प्रभावित करनेवाले रोग के कारण ऐसा (समस्या) है ।
यदि कोई आध्यात्मिक उन्नत व्यक्ति से परामर्श ले तो वह कहेगा कि यह (समस्या) प्रारब्ध के कारण है ।
अतः किस निदान (लक्षणों से रोग के निर्णय) पर विश्वास किया जाए?
अध्यात्मशास्त्र के अनुसार, इसका उत्तर है कि सभी सत्य हैं, क्योंकि ये उत्तर परस्पर अनन्य अथवा एक-दूसरे से भिन्न नहीं हैं; अपितु उल्लेख के आधार पर, समस्या के पीछे के एक ही (समान) सत्य को व्यक्त करने की विभिन्न पद्धतियां मात्र हैं । उदाहरण के लिए, व्यक्ति के प्रारब्धानुसार जो कुछ होता है उसे नक्षत्रों एवं ग्रहों की स्थिति की भाषा में भी वर्णित किया जा सकता है ।
३. ज्योतिषशास्त्र की विश्वसनीयता एवं यथार्थता के विरुद्ध आधुनिक विज्ञान के तर्क
ऊपर दिए खंड २.१ में दी गई ज्योतिषशास्त्र की परिभाषाओं में उल्लेखित भविष्य बताने का सामर्थ्य होने के वादे की दूर तक संभावनाएं हैं । यद्यपि इसकी यथार्थता एवं विश्वसनीयता के संदर्भ में कुछ पंथों और आधुनिक विज्ञान ने कडे विरोध किए हैं । आधुनिक विज्ञान ज्योतिषशास्त्र को एक नकली अथवा छद्म विज्ञान के रूप में देखता है ।
शोध करने से हमें ज्योतिषशास्त्र के विरुद्ध अनेक मूल आपत्तियां मिलीं । ज्योतिषशास्त्र की यथार्थता एवं विश्वसनीयता के विरोध में आधुनिक विज्ञान के कुछ मुख्य तर्क :
३.१ स्वेच्छा के विषय में क्या ?
यदि ग्रहों (विशाल संसार) की स्थिति, मानव (सूक्ष्म संसार) को प्रभावित एवं उसमें संबंधित प्रतिक्रिया निर्मित करती है; जो मानव को ब्रह्मांड में एक प्यादे (कठपुतली) समान बनाती है जिसमें उसका जीवन तथा कर्म पूर्व निर्धारित एवं अपरिवर्तनीय होता है । तो किसी के भविष्य का निर्धारण करने के लिए सक्षम होने में स्वेच्छा के विषय में क्या ?
३.२ व्याख्या में मानकीकरण नहीं
ज्योतिषशास्त्र की अनेकों प्रणालियां है, प्रत्येक की अपनी पद्धति है जो एक-दूसरे से पूर्णतया विपरीत हैं । व्याख्या के मानकीकरण में एकमतता नहीं है । उदाहरण के लिए, पश्चिम में ज्योतिषी राशिफल की व्याख्या चीनी ज्योतिषी के समान नहीं करेंगे ।
३.३ अत्यधिक सामान्य
व्यवहार एवं व्यक्तित्व की अधिकांश भविष्यवाणियां इतनी सामान्य होती हैं कि उनका न्यूनतम आंशिक रूप से भी सटीक न हो पाना लगभग असंभव बात ही होगी !
३.४ सभी ग्रहों का उपयोग नहीं किया जाता
ज्योतिषशास्त्र का आधार सौर मंडल में ग्रहों की संख्या से संबंधित होता है । अभी तक अधिकांश ज्योतिषीय मानचित्र इस मान्यता पर आधारित हैं कि हमारे सौर मंडल में सात ग्रह हैं (सूर्य एवं चंद्र सहित) । प्राचीन काल में, यूरेनस, नेपच्यून और प्लूटो नग्न आंखों से नहीं देखे जा सकते थे । परिणामस्वरूप, ज्योतिषियों ने अपनी प्रणाली को सात ग्रहों पर आधारित कर दिया, जिन्हें वे पृथ्वी की परिक्रमा करनेवाले मानते थे । चूंकि एक समय यह सिद्ध हो गया कि सौरमंडल का केंद्र पृथ्वी नहीं अपितु सूर्य है और वे तीन ग्रह भी सौरमंडल में विद्यमान हैं । और ज्योतिषीय सिद्धांत के अनुसार (कि ग्रहों की स्थिति का मानवीय व्यवहार एवं घटनाओं पर निश्चित प्रभाव होता है), पूर्व में अपरिचित इन तीनों ग्रहों को भी व्यवहार को प्रभावित करना चाहिए, अतः एक सटीक जन्म-कुंडली बनाने में उनका भी विचार होना चाहिए । उनका विचार प्रायः नहीं किया जाता, इससे ज्योतिषीय सिद्धांत असत्य प्रमाणित होता है; सभी ग्रहों एवं उनके अपेक्षित प्रभावों का विचार किए बिना अचूक जन्म-कुंडली नहीं बन सकती ।
३.५ नक्षत्रों का स्थानांतरण
अग्रगमन अथवा नक्षत्रों के स्थानांतरण के तथ्य के कारण ज्योतिषशास्त्र अवैज्ञानिक है । पहले के ज्योतिषी अग्रगमन को नहीं जानते थे एवं इसलिए इसको अपनी प्रणाली में डालने में विफल रहे । राशिचक्र की बारह राशियां मूलरूप से समान नामों के बारह नक्षत्रों से संबंधित हैं । तथापि अग्रगमन के कारण, लगभग पिछले २००० वर्षों में नक्षत्र स्थानांतरित हो चुके हैं । इसका अर्थ है कि कन्या (Virgo) अब तुला (Libra) राशि के नक्षत्र में है, तुला अब वृश्चिक (Scorpio) राशि के नक्षत्र में है इत्यादि ।
३.६ शिशु के जन्म को प्रभावित करनेवाले अन्य घटक
ज्योतिषशास्त्र सौरमंडल से भिन्न पिंडों (non-solar system bodies) के गुरुत्वाकर्षण बल की अनदेखी करता है, उदाहरण के लिए नवजात शिशु पर प्रसूति विशेषज्ञ (the obstetrician) द्वारा लगाए गए बल का खिंचाव मंगल की तुलना में लगभग छः गुणा अधिक है । (संदर्भ : ह्यूग रॉस, पी. एच. डी.)
संपादक SSRF: स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाऊंडेशन में अनेक चिकित्सक हैं जो इसके मार्गदर्शन में साधना करते हैं । वे इस कथन की पुष्टि करते हैं कि प्रसूति विशेषज्ञ द्वारा प्रयुक्त किए गए शारीरिक बल का प्रभाव मंगल के गुरुत्वाकर्षण बल से कई गुणा अधिक है, वे तर्क देते हैं कि यह ह्यूग रॉस द्वारा किए गए छः गुना अधिक के दावे से भी अधिक है ।
आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य : ज्योतिषी ग्रहों के प्रभाव को मुख्य रूप से महत्वपूर्ण मानते हैं । परंतु क्या ज्योतिषशास्त्र ग्रहों के भौतिक प्रभाव से संबंधित है अथवा क्या यह ग्रहों की स्थितियों से सम्बंधित है जो हमारे प्रारब्ध की रूपरेखा के रूप में कार्य करती हैं ? खंड ५.२ का संदर्भ लें ।
३.७ ज्योतिषशास्त्र के लिए आलेख (कुंडली) बनाते समय गर्भाधान के समय की अपेक्षा जन्म के समय पर क्यों विचार किया जाता है ?
जन्म-कुंडली व्यक्ति के जन्म के समय के सही आंकडों पर आधारित होती है । तथापि जन्म के समय को ही क्यों लिया जाता है एवं गर्भाधान के समय को क्यों नहीं ? वैज्ञानिक अब विश्वास करते हैं कि शिशु के व्यक्तित्व के अनेक पहलू उसके जन्म के बहुत पहले ही निर्धारित हो जाते हैं – इसलिए जन्म-कुंडली में जन्म से पहले के जीवन का भी विचार होना चाहिए ।
३.८ सांख्यिकीय प्रमाण
वर्षों से ज्योतिषशास्त्र की यथार्थता को सत्यापित करने के लिए प्रयास हेतु विभिन्न सांख्यिकीय अध्ययनों को आयोजित किया गया है । Astrology-and-science.com एक प्रयोग का वर्णन करता है, जिसमें अनेक जन्मकुंडलियों को उनके स्वामी के विवरणों के साथ ऊपर-नीचे कर एकसाथ मिला दिया गया । ज्योतिषियों के लिए कार्य था उन जन्मकुंडलियों का स्वामियों से मिलान करना ।
उन्होंने बताया, ”ज्योतिषशास्त्र की पुस्तकों में वे हर समय यही करते हैं । अतः हम सफल मिलानों के अनुपात को १०० प्रतिशत के लगभग करने की अपेक्षा करते हैं । अब तक कुल ५४ अध्ययनों में कुल ७४२ ज्योतिषियों एवं १४०७ जन्मकुंडलियों का उपयोग करते हुए इस परीक्षण को किया गया है । इन प्रभावशाली संख्याओं के होने के उपरांत भी औसत सफलता दर संयोगवश अपेक्षित ५० प्रतिशत से भिन्न नहीं थी । अर्थात् यह किसी सिक्के को उछालने जैसा ही था ।”
४. कुछ पंथ ज्योतिषशास्त्र को अस्वीकार करते हैं
कुछ पंथ जैसे ईसाई पंथ ज्योतिषशास्त्र को निम्न कारणों से स्पष्ट रूप से अस्वीकार करते हैं :
एक ईसाई जालस्थल absolutetruth.net बताता है कि जादू-टोना एवं दैवी गुह्यतंत्र के समान ज्योतिषशास्त्र भी बाइबल द्वारा दृढतापूर्वक निंदित है । यह बताता है, “यदि ज्योतिषशास्त्र का आधारभूत सिद्धांत सत्य है कि नक्षत्रों की स्थिति प्रभावित करती है, भविष्यवाणी करती है अथवा अन्य किसी रूप में मानव गतिविधि को निर्धारित करती है, तो कुछ उलझनों पर विचार करें ।”
> “मानव को उसके अच्छे अथवा बुरे कर्म के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता । क्योंकि किसी ब्रह्मांडीय गतिविधि के कारण यदि व्यक्ति बलात् कोर्इ व्यवहार करने के लिए बाध्य होता है तो उसके व्यवहार को योग्य अथवा अयोग्य ठहराने हेतु कोई आधार नहीं होगा ।”
> “हमारे विकल्प अर्थहीन हो जाएंगे । ग्रहों एवं नक्षत्रों की चाल का अनुमान लगाकर भविष्य को पहले से ही बताया जा सकना तो यह सिद्ध करता है कि हम केवल स्वतंत्र इच्छा के भ्रम में जी रहे हैं (कर्म हेतु स्वतंत्र हैं नहीं) । तो अंत में हमारे करने अथवा न कर पाने का कोई औचित्य नहीं होगा । हम अपने ‘प्रारब्ध’ द्वारा ‘फंसा’ लिए जाएंगे ।”
बाइबल की मुख्य अवधारणाओं में से एक, ‘जीवन-परिवर्तन’, असंभव होगा क्योंकि ज्योतिषशास्त्र के अनुसार हमारा जीवन जन्म के समय पर एक विशेष पथ पर स्थापित हो जाएगा ।
> ईसाई मानते हैं कि राक्षसी आध्यात्मिक शक्तियां उन लोगों के जीवन की घटनाओं को प्रभावित करती है जो जादू-टोने से प्रभावित होने के लिए स्वयं अग्रसर हो गए हैं जैसे ज्योतिषशास्त्र एवं जन्म-कुंडली । पवित्र बाइबल इस संबंध में कडी चेतावनी देती है ।
५. ज्योतिषशास्त्र की सटीकता एवं विश्वसनीयता के संबंध में आध्यात्मिक दृष्टिकोण
आध्यात्मिक शोध के समय हमें आगे दिए कुछ बिंदु ज्ञात हुए; ये ज्योतिषशास्त्र की ज्ञान-प्रणाली एवं इसकी सुनिश्चितता पर प्रकाश डालेंगे ।
५.१ हमारे जीवन में वास्तव में हमारी अपनी स्वतंत्र इच्छा (क्रियमाण कर्म) कितनी है ?
अध्यात्मशास्त्र के अनुसार, वर्तमान युग में हमारे जीवन का औसतन ६५ प्रतिशत भाग प्रारब्ध द्वारा एवं ३५ प्रतिशत भाग क्रियमाण कर्म (चयन करने की स्वतंत्रता) द्वारा नियंत्रित होता है । प्रारब्ध हमारे जीवन का वह भाग है जिसके अंतर्गत जीवन की स्थितियों पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है । क्रियमाण कर्म हमारे जीवन का वह भाग है जिस पर हमारा नियंत्रण है ।
ज्योतिषशास्त्र केवल एक सीमा तक ही यह समझ सकता है कि किसी के प्रारब्ध में क्या है और व्यक्ति अपने मूल स्वभाव पर आधारित अपने क्रियमाण कर्म का किस प्रकार प्रयोग करेगा । प्रारब्ध के संदर्भ में जानने पर भी साधारणतया कोई इससे बच नहीं सकता । प्रारब्ध स्वाभाविक रूप से एक आध्यात्मिक पहलू है, इससे मात्र आध्यात्मिक साधन अर्थात साधना अथवा गुरु (अर्थात ७० प्रतिशत से अधिक आध्यात्मिक स्तर के आध्यात्मिक गुरु) की कृपा से ही मुक्त हुआ जा सकता है ।
अपने प्रारब्ध की तीव्रता जानने का क्या लाभ है ?
अपने प्रारब्ध की तीव्रता जानने पर, हम उससे पूर्णतया मुक्त अथवा सुरक्षित होने के लिए उसके अनुरूप योग्य साधना कर सकते हैं । तीव्र प्रारब्ध की स्थिति में, कम से कम हम सचेत हो सकते हैं और इस तरह हम सशक्त एवं मानसिक रूप से तैयार हो सकते हैं । प्रारब्ध के प्रकार एवं उससे मुक्त होने के लिए साधन जानने के लिए नीचे दिए गए चित्र का संदर्भ लें ।
प्रारब्ध के प्रकार
मंद | मध्यम | तीव्र | |
---|---|---|---|
उदाहरण |
छोटी व्याधियां, विवाह निश्चित करने के लिए औसत से अधिक प्रयत्नों की आवश्यकता |
भौतिक समस्याएं, आर्थिक हानियां, संतान पाने में असमर्थता |
बडी दुर्घटनाएं एवं अंततः मृत्यु, अत्यधिक प्रयास करने पर भी विवाह निश्चित करना संभव न हो पाना |
कैसे मुक्त हुआ जाए ? |
मध्यम साधना |
तीव्र साधना |
साधना से परिवर्तित नहीं किया जा सकता I केवल गुरुकृपा ही इसे परिवर्तित कर सकती है । |
कृपया ध्यान दें :
मात्रा के संदर्भ में ‘तीव्र साधना’ का अर्थ प्रतिदिन लगभग १२-१४ घंटे की साधना करना होगा । गुणवत्ता के संदर्भ में, इसका अर्थ है कि ईश्वर को प्राप्त करने के मूल उद्देश्य एवं तीव्र उत्कंठा के साथ व्यक्ति अपने समस्त दैनंदिन कृत्य ईश्वर की सेवा के रूप में करता है ।
मात्रा के संदर्भ में ‘मध्यम साधना’ का अर्थ प्रतिदिन ४-५ घंटे की साधना करना होगा । गुणवत्ता के संदर्भ में, इसका अर्थ है कि व्यक्ति अपने अधिकांश दैनंदिन कृत्य ईश्वर की सेवा के रूप में करता है ।
कृपया संदर्भ के लिए प्रारब्ध, क्रियमाण कर्म एवं कर्म के सिद्धांत पर आधारित लेख देखें ।
५.२ ग्रह एवं नक्षत्र मानव व्यवहार को प्रभावित करते हैं, तथापि वे संकेत-चिह्नों के रूप में कार्य करते हैं ।
अध्यात्मशास्त्र के अनुसार :
- मानव का जीवन अथवा पृथ्वी पर होनेवाली घटनाएं केवल खगोलीय पिंडों अथवा उनकी स्थिति द्वारा ही प्रभावित नहीं होतीं । यदि हम स्थूल अथवा भौतिक प्रभावों को लेते हैं तो अन्य अनेक ऐसी बातें है जो हमारे जीवन को प्रभावित कर सकती हैं, अतएव यह बात खगोलीय पिंड तक ही सीमित नहीं है ।
- तथापि यह स्वीकार्य है कि खगोलीय पिंड मानव जीवन पर एक सीमित प्रभाव डालते हैं, उदाहरण के लिए मानव जीवन पर पूर्णिमा एवं अमावस्या का प्रभाव भलीभांति प्रलेखित किया गया है । इसके साथ यह भी कि खगोलीय पिंड व्यक्ति के जीवन के लिए संकेत-चिह्नों अथवा रूपरेखा के रूप में कार्य करते हैं ।
व्यक्ति के जीवन में होनेवाले सभी प्रमुख प्रभावों के सन्दर्भ में खंड ५.४ को देखें ।
५.३ ज्योतिषशास्त्र एक विज्ञान के रूप में
ज्योतिषशास्त्र आधुनिक विज्ञान की तरह ही सर्वव्यापक अध्यात्मशास्त्र का एक भाग है । इसका यह कारण है कि आधुनिक विज्ञान के समान अवलोकन, अनुमान और निष्कर्ष के आधार पर ज्योतिषशास्त्र की भी पुष्टि एवं पुनः पुष्टि की गर्इ है । तथापि ज्योतिषशास्त्र में अंतर्ज्ञान का प्रयोग तभी संभव है यदि ज्योतिषी उच्च आध्यात्मिक स्तर का हो ।
ज्योतिषशास्त्र की जडें प्राचीन भारतीय वैदिक शास्त्रों में हैं । प्राचीन भारत के ऋषियों को हजारों वर्ष पहले ही हमारे ब्रह्मांड के ऐसे अनेक तथ्यों का पता था जो आधुनिक विज्ञान को निकट अतीत में ही ज्ञात हुए हैं । इन तथ्यों में से कुछ हैं:
- यह कि हमारा सूर्य अन्य प्रकाशग्रहों की तुलना में बहुत छोटा है और भारत के प्राचीन ऋषियों को ७००० वर्ष पहले ही यह ज्ञात था ।
- आधुनिक विज्ञान द्वारा प्रतिपादित आकाशगंगाओं का वर्णन हजारों वर्ष पूर्व के ऋग्वेद में पाया गया है ।
- यह कि वीगा नक्षत्र (जो संस्कृत में अभिजीत कहलाता है) १२००० ईसा पूर्व में आकाश से फिसल गया था जिसके विषय में आधुनिक खगोलविदों को अब ज्ञात हुआ है, इसका उल्लेख पहले ही महर्षि व्यास द्वारा ५५६१ ईसा पूर्व में कर दिया गया था । (संदर्भ: डॉ. पी.वी. वर्तक द्वारा रचित पुस्तक द बुक वैदिक साइंस एंड वैदिक टाइम केल्कुलेशंस)
- वैदिक खगोल-विज्ञान में, हमें यह कथन मिलता है कि ‘पृथ्वी एक गतिशील पिंड है फिर भी स्थिर दिखाई देता है’; अर्थात् वैदिक भविष्यद्वक्ताओं ने गैलीलियो द्वारा इसे खोजने से बहुत पूर्व ही यह घोषित कर दिया । (संदर्भ: The Storehouse of Wisdom Dr. R.N. Aralikatti)
- भारत के ऋषियों ने मानव जीव तथा ब्रह्मांड की गुप्त प्रक्रियाओं के बीच सूक्ष्म एवं गहन मनो-जैवभौतिक संबंधों की खोज आश्चर्यजनक रूप से की । पूर्वकाल के उन दिनों में लोग बिना किसी प्रयोग अथवा उपकरण के, बाह्य अंतरिक्ष से लेकर पृथ्वी के भीतरी भाग तक, उन परिस्थितियों एवं कारकों (कारणों) के विषय में कैसे इतना अधिक जान सके, विशेष रूप से खगोलीय पिंडों के प्रभाव को; सूर्य एवं चंद्र तथा अन्य कारकों जो कि महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं के कार्यप्रणाली को, और मानव एवं प्रकृति के मध्य परस्पर क्रिया के स्वरूप को नियंत्रित करते हैं ? निदान और उपचार, दोनों में इन सबको (उपरोक्त को) ध्यान में रखा गया था ! क्या यह संस्कृति के एक आश्चर्यजनक रूप से उच्च स्तर को नहीं दर्शाता है और क्या इससे हममें प्रशंसापूर्ण कृतज्ञता और अध्ययन करने की इच्छा जागृत नहीं होनी चाहिए ? (संदर्भ: प्रोफेसर एलेक्जेंडर स्पिर्किन, एक जाने माने मनोवैज्ञानिक, जैसा कि com में बताया गया है)
- विज्ञान एवं ज्ञान-प्रणाली के रूप में ज्योतिषशास्त्र सर्वथा अनूठा है क्योंकि यह उस सूक्ष्म जगत को एक निश्चित सीमा तक समझ सकता है जिसे कि पंच ज्ञानेंद्रियों, मन एवं बुद्धिद्वारा नहीं समझा जा सकता । उदाहरण के लिए- यदि कोई पूर्वजों (पितरों) से प्रभावित है तो ज्योतिषशास्त्र इसे खगोलीय पिंडों की स्थिति के आधार पर बता सकता है ।
दूसरी ओर, आधुनिक विज्ञान पंच ज्ञानेंद्रियों, मन एवं बुद्धि के माध्यम से ब्रह्मांड को समझने का प्रयत्न करता है । तथापि ज्ञात भौतिक ब्रह्मांड की तुलना में सूक्ष्म अथवा आध्यात्मिक आयाम का विस्तार-क्षेत्र १:अनंत है । आधुनिक विज्ञान आधुनिक वैज्ञानिक उपकरण द्वारा जीवन की उन समस्याओं एवं कठिनाइयों का पता नहीं लगा सकता जिनका मूल कारण आध्यात्मिक पार्श्व में है । उदाहरण के लिए, यदि व्यक्ति पितृ दोषों से प्रभावित है तो आधुनिक विज्ञान इस लक्षण का निदान अथवा उपचार नहीं कर सकता । यह सराहनीय है कि बुद्धि की आकलन क्षमता से अनुभवी ज्योतिषी (अर्थात वैदिक ज्योतिषी, हमारे ज्योतिषियों के पूर्वज) सूक्ष्म आयाम का कम से कम कुछ भाग देखने, अतएव उसका निदान करने में समर्थ हैं; जैसे कि किसी के पितर (पूर्वज) किसी निम्न-लोक (भुवलोक) में अटक गए हैं और अपने वंशजों की सहायता चाहते हैं ।
ज्योतिष एक विज्ञान है अथवा नहीं तथा इसके विपक्ष में प्रतिपादित कारणों अथवा तर्कों-वितर्कों के विषय में संपूर्ण वाद-विवाद से भी मन में आगे दिए गए संबंधित बिंदु उभर सकते हैं । ऐसा लगता है कि आधुनिक विज्ञान द्वारा इसे आंकने की दृष्टि से ज्योतिषशास्त्र छडी (पैमाने) का छोटा सिरा (छोर) बन चुका हैं । विज्ञान को विज्ञान मानने के लिए उसे १०० प्रतिशत सही होना आवश्यक नहीं होता है ! उदाहरण के लिए, यदि एक भूवैज्ञानिक (अनुदान के रूप में अरबों डॉलर के होते हुए भी) यह नहीं बता सकता कि अगला भूकंप कहां और कब आएगा, तब हम यह तो नहीं कहते कि भूविज्ञान विज्ञान नहीं हैं । यदि एक चिकित्सक गलत निदान करता है तो हम संपूर्ण चिकित्सा व्यवसाय को दोष नहीं देते । ऐसा करना तो नहाने के पानी के साथ बच्चे को बाहर फेंकने के समान होगा । निष्पक्षता के संदर्भ में हमें आधुनिक विज्ञान के लिए भी उसी कठोर निर्णय प्रणाली का प्रयोग करना चाहिए जैसा कि हम ज्योतिषशास्त्र जैसी ज्ञान प्रणाली के लिए करते हैं ।
५.४ ज्योतिषशास्त्र की सटीकता
जैसा कि पहले बताया गया था, ज्योतिषशास्त्र प्रायः चार प्रकार से प्रयुक्त होता है । सुनिश्चितता की अधिकतम मात्रा क्या है इसे औसत रूप से ज्योतिषशास्त्र के इन चार अनुप्रयोगों में प्राप्त किया जा सकता है ? किए गए आध्यात्मिक शोध ने निम्न परिणामों को दर्शाया :
अनुप्रयोग |
अनुप्रयोग का अर्थ |
अधिकतम संभव सुनिश्चितता द्२
(आध्यात्मिक शोध वारा) |
---|---|---|
भविष्यसूचक |
आगे घटित होनेवाली घटना के विषय में जानने के लिए |
३० प्रतिशत |
निदानकारी |
जीवन के किसी पहलू को प्रभावित करनेवाली समस्या के मूल कारण को समझने हेतु सहायक रूप में । |
२७ प्रतिशत |
मूल स्वभाव एवं अनुकूलता |
जन्म-कुंडली अथवा एक-दूसरे के राशिचक्र के आधार पर किसी व्यक्ति के मूल स्वभाव, तथा व्यवसाय अथवा जीवनसाथी के साथ परस्पर अनुकूलता को समझने के लिए । |
२७ प्रतिशत |
निर्णय लेना |
सुनियोजित प्रसंग, जैसे विवाह अथवा किसी के व्यापार के उद्घाटन के लिए उपयुक्त शुभ समय जानने के लिए अथवा किसी विशिष्ट प्रश्न का उत्तर देने के लिए जैसे कि व्यक्ति को विवाह कब करना चाहिए, इसमें सम्मिलित हैं । |
५ प्रतिशत |
२ यह सुनिश्चितता भौतिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक तीनों आयामों में होनेवाली समस्याओं के मूल कारण का पता लगाने की क्षमता पर आधारित है ।
- ज्योतिष गणना की सटीकता को प्रभावित करनेवाले कारकों के विषय में कृपया खंड ५.५ पढें । हमारे जीवन में घटनेवाली घटनाओं के कारण विविध हैं एवं ज्योतिषशास्त्र सभी को नहीं समझ सकता है । इसके अंतर्गत – लेन देन के साथ प्रारब्ध, अनिष्ट शक्तियां (दानव, दैत्य, नकारात्मक शक्तियां, इत्यादि) , सकारात्मक शक्तियां, हम अपनी स्वतंत्र इच्छा (क्रियमाण कर्म) का प्रयोग कैसे करते हैं, शरीर में विद्यमान आध्यात्मिक ऊर्जा एवं हमारे आसपास का वातावरण आदि सम्मिलित हैं ।
- हममें से कुछ लोग ऊपर दिए गए आंकडों के आधार पर ज्योतिषशास्त्र को एक विज्ञान के रूप में नकारने के लिए प्रयत्न कर सकते हैं ।
- वास्तव में इसकी संभावना बहुत अधिक है जब आप इसकी तुलना अन्य विषयों के साथ उनसे संबंधित क्षेत्रों में करते हैं । नीचे उद्धृत आंकडों के साथ, इस तथ्य पर भी विचार करें कि ज्योतिषशास्त्र मात्र एक कागज के टुकडे के साथ इन प्रतिशतों को प्राप्त करने में समर्थ है; जबकि इसके विपरीत आधुनिक विज्ञान जो कि अनुदान के रूप में अरबों डॉलर के द्वारा समर्थित है और सबसे अधिक परिष्कृत उपकरणों का उपयोग कर रहा है !
यहां आधुनिक विज्ञान के अंतर्गत आनेवाले विभिन्न विषयों के कुछ उदाहरण हैं जो कि अपने संबंधित क्षेत्रों में, सफलता दर के कारण सही दिखते हैं ।
१. भूविज्ञान : यहां बडे भूकंपों की विनाशकारी क्षमता के कारण उनके स्थान एवं समय की भविष्यवाणी करने में बहुत रूचि है । यद्यपि भूकंप कहां होनेवाला है इसके विषय में पता करना एक बडा कार्य है, वर्तमान में उस दिन और माह की भविष्यवाणी करने के लिए कोई विश्वसनीय पद्धति नहीं है जो बता सके कि किसी विशिष्ट स्थान पर कोई घटना कब घटित होगी । (संदर्भ : पृथ्वी और अंतरिक्ष विज्ञान विभाग – वाशिंगटन विश्वविद्यालय)
२. मनोचिकित्सा : मद्य के दुरुपयोग और मद्यपता पर राष्ट्रीय संस्थान ने कुछ वर्षों पहले लगभग १,७०० रोगियों का अध्ययन किया । उपचार और उपरांत देखभाल प्राप्त करने हेतु भर्ती किए गए (आवासी) रोगियों में से मात्र ४४ प्रतिशत तीन माह के लिए संयमित रहने में सफल रहे जबकि बाह्यरोगी उपचार प्राप्त करनेवालों में से मात्र २६ प्रतिशत तीन माह के संयम में सफल रहे । (संदर्भ: Pulitzer.org)
३. चिकित्सा : यह देखा गया है कि फेफडों के कैंसर के प्रकरण में जीवित रहने की दर १० प्रतिशत से भी कम है । (संदर्भ: cancerresearchuk.org)
क्या हम इन विज्ञानों एवं विषयों को मात्र इस कारण से अनदेखा कर दें कि इन क्षेत्रों में हमारी सफलता दर अल्प है ?
५.५ ज्योतिषशास्त्र की सटीकता को प्रभावित करनेवाले तत्व
५.५.१ प्रयुक्त किए गए ज्योतिषशास्त्र की परंपरा पर निर्भरता
ज्योतिषशास्त्र में विभिन्न परम्पराओं का प्रयोग होता है । प्रत्येक की भिन्न-भिन्न पद्धति है । नीचे दी गई सारणी में आध्यात्मिक शोध द्वारा प्राप्त कुछ महत्वपूर्ण प्रथाओं द्वारा सटीकता प्राप्त करने की क्षमता का तुलनात्मक लेखा-चित्र दर्शाया गया है ।
टिप्पणी : सटीकता ज्योतिषी की उसी क्षमता पर आधारित है जो वैदिक ज्योतिषशास्त्र में ३० प्रतिशत सटीकता प्राप्त करने में सक्षम है ।
५.५.२ ज्योतिषी के आध्यात्मिक स्तर पर आधारित
ज्योतिषी के आध्यात्मिक स्तर के अनुसार सटीकता में भिन्नता हो सकती है I
ज्योतिषी का आध्यात्मिक स्तर |
सटीकता |
---|---|
२० प्रतिशत३(अर्थात एक औसत व्यक्ति, कोई साधना नहीं) |
२७ प्रतिशत |
३० प्रतिशत |
३१ प्रतिशत |
४० प्रतिशत४ |
३४ प्रतिशत |
५० प्रतिशत |
३८ प्रतिशत |
६० प्रतिशत |
४२ प्रतिशत |
७० प्रतिशत से अधिक५ |
ज्योतिषशास्त्र की आवश्यकता नहीं |
टिप्पणियां (उपरोक्त सारणी की संख्याओं के आधार पर)
३ वर्तमान में अधिकतर लोग कोई साधना नहीं करते । परिणामस्वरूप वर्तमान संघर्ष के युग (कलियुग) में औसत आध्यात्मिक स्तर २० प्रतिशत है ।
४ सामान्यतः, वर्तमान युग में प्रत्येक १००० व्यक्ति में से लगभग ४ व्यक्ति ४०-४९ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर पर हैं ।
५ वर्ष २०१६ तक विश्वभर में ७० से १०० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर के लगभग १००० संत थे । परंतु २०० से भी कम संत अध्यात्मप्रसार में सक्रिय हैं ।
५.५.३ साधना करनेवाले व्यक्ति पर आधारित
प्रारब्ध से मुक्त अथवा इससे सुरक्षित होने के लिए एक मात्र मार्ग है साधना करना । ऐसा इसलिए क्योंकि प्रारब्ध जो कि एक आध्यात्मिक समस्या है उससे केवल आध्यात्मिक उपचार से ही मुक्त हुआ जा सकता है । तथापि उस साधना एवं धार्मिक अनुष्ठानों का प्रभाव सारणी में नहीं दर्शाया गया है जो उस समस्या से मुक्त होने के लिए किये जाते हैं जिसका मूल कारण आध्यात्मिक प्रकृति का है । अतः एक ज्योतिषीय गणना व्यक्ति द्वारा की जा रही साधना को प्रतिबिंबित नहीं करती है ।
उदाहरण के लिए, जन्म के समय यदि ज्योतिषी व्यक्ति की जन्म-कुंडली में पितृदोष को पहचान लेता है और यदि वह व्यक्ति अनुष्ठान इत्यादि करता है तो वह दोष समाप्त हो जाता है; परंतु उपरांत अन्य ज्योतिषी अब भी इसकी (पितृदोष की) उसी रीति से गणना करेगा । इस दृष्टिकोण से, हस्तरेखाशास्त्र ज्योतिषशास्त्र से अधिक श्रेष्ठ है क्योंकि (अनुष्ठान उपरांत आया) परिवर्तन हाथों की रेखाआें में दिखाई देता है । चूंकि एक औसत व्यक्ति सही अर्थों में (योग्य प्रकार से) कोई साधना (अथवा अनुष्ठान) नहीं करता है, अतएव वह ज्योतिषशास्त्र के इस निहित दोष से वास्तव में प्रभावित नहीं होता ।
५.५.४ ज्योतिषी से पूछे गए प्रश्न के प्रकार के आधार पर
(ज्योतिषशास्त्र की) सटीकता ज्योतिषी से पूछे गए प्रश्न के प्रकार पर भी निर्भर करती है ।
उदाहरण के लिए, ज्योतिषी से कोई यह पूछ सकता है कि इस उद्योग में निवेश करे अथवा अन्य में । दूसरा व्यक्ति यह पूछ सकता है कि वह व्यक्ति अ से विवाह करे अथवा व्यक्ति ब से ।
यदि व्यक्ति ने प्रथम यह पूछा होता कि निवेश करना है अथवा नहीं अथवा वह विवाह करे अथवा नहीं तो अधिक परिशुद्ध परिणाम प्राप्त किया जा सकता था ।
यदि किसी के प्रश्नों की पंक्ति निम्नलिखित क्रम के अनुसार हो, तो अधिक परिशुद्ध उत्तर मिलने की संभावना बढ जाती है ।
प्रश्न १: क्या निवेश करना चाहिए ?
प्रश्न २: यदि करना है तो तो किसमें ?
प्रश्न ३: मुझे कब निवेश करना चाहिए ?
— अथवा —
प्रश्न १: क्या मुझे विवाह कर लेना चाहिए ?
प्रश्न २: यदि करना है तो किससे करुं ?
प्रश्न ३: उचित समय कब है ?
५.५.५ व्यक्ति के जन्म के समयानुसार
यदि जन्मकुंडली को गर्भाधान के समय के आधार पर बनाया जाए तो सटीकता का स्तर बढ जाता है ।
जितना हम गर्भावस्था के समय से पीछे जाते है तो सटीकता में वृद्धि होने के निम्न कारण हैं :
- सिद्धांत यह है कि जैसे-जैसे सांसारिक घटकों का प्रभाव बढता है सटीकता घटती जाती है ।
- गर्भाधान के समय भ्रूण पर माता एवं उसके आस-पास का प्रभाव न्यूनतम होता है । समय के साथ यह बढता जाता है और सटीकता अल्प होती जाती है ।
तथापि गर्भाधान के वास्तविक समय को अचूकता से बताने में कौन सी माता समर्थ होगी ? हमारे शरीर में लाखों कोशिकाएं हैं उनमें से, एक कोशिका में क्या परिवर्तन हो रहे है यह समझना बहुत कठिन है । कौन सी स्त्री यह समझ सकती है ? केवल वही जो ९० प्रतिशत अथवा उससे अधिक आध्यात्मिक स्तर के संत के स्तर पहुंच चुकी हो, एवं यदि वह जानना चाहती हो तो । तथापि सामान्यतः इस उच्च आध्यात्मिक स्तर पर कोई भी (स्त्री) गर्भ धारण नहीं करती । प्राचीन समय में, ऋषियों की पत्नियां, जो आध्यात्मिक रूप से उन्नत होती थी, अपने गर्भावस्था के प्रारंभ होने का वास्तविक समय जानती थीं ।
१०० प्रतिशत की सटीकता केवल ९० प्रतिशत अथवा उससे अधिक के आध्यात्मिक स्तर के संत ही प्राप्त कर सकते हैं और वह भी केवल तब जब वे स्वयं जानना चाहें । अधिकांशतः वे अपनी आध्यात्मिक क्षमता का प्रयोग इसे प्राप्त करने के लिए नहीं करेंगे जब तक कि जन्म लेनेवाली संबंधित आत्मा ८० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर से अधिक की न हो और शिशु के जन्म के संबंध में वस्तुस्थिति को ईश्वर की इच्छानुसार पहले से न पता करना हो । चूंकि इस प्रकार के जन्म का प्रयोजन मानव जाति के आध्यात्मिक कल्याण के लिए होता है और यहां परम सत्य (सत्) अधिकतम मात्रा में है, अतः प्राप्त उत्तर भी अत्यधिक यथार्थ होंगे । यदि यह एक सामान्य जन्म है तो सांसारिक घटक (असत्) अधिक होगा और इस कारण से सटीकता घटती है ।
६. सारांश
- जन्मकुंडली की सटीकता ज्योतिषी की व्याख्या की शक्ति पर सीधे निर्भर करती है ।
- यदि हम वर्तमान ज्योतिषी (जो कि अधिकतम ३० प्रतिशत सटीकता की भविष्यवाणी करने में सक्षम है) की व्याख्या की शक्ति को १ के रूप में मानें तो १०० प्रतिशत यथार्थ उत्तर प्राप्त करने के लिए वर्तमान व्याख्या-शक्ति से १००० गुणा अधिक व्याख्या-शक्ति की आवश्यकता है ।
- व्याख्या और अंतर्ज्ञान की शक्ति को केवल साधना के द्वारा बढाया जा सकता है ।
इस वर्तमान युग में हमारे जीवन की ६५ प्रतिशत घटनाएं प्रारब्ध के कारण हैं । यदि हम अपनी क्रियमाण का ३५ प्रतिशत भाग साधना हेतु प्रयोग करें तो हम अपने प्रारब्ध से मुक्त अथवा सुरक्षित हो सकते हैं । साधना ही प्रतिकूल प्रारब्ध को प्रभावहीन करने का एकमात्र मार्ग है ।