टिप्पणी : इस प्रकरण अध्ययन की पृष्ठभूमि समझने के लिए और ऐसी घटनाएं विशेष रूप से SSRF के संबंध में क्यों हो रही हैं, कृपया पढें – भयभीत करनेवाली असाधारण घटनाओं का परिचय
१. प्रस्तावना
इस प्रकरण अध्ययन में हमने एक पूजाघर तथा उसमें रखे सभी देवताओं के चित्र कैसे अपने आप जल उठे, इसका वर्णन किया है । यह घटना परम पूजनीय डॉ.आठवलेजी के मार्गदर्शन में नियमित रूप से साधना कर रही साधिका श्रीमती प्रीति घोगारे के शब्दों में वर्णित है ।
२. अपनेआप दहन की घटना का विवरण
वर्ष २००५ में हम तेलंगाना राज्य के भाग्नयनगर में स्थालांतरित हुए । उस समय, भाग्यनगर में अध्यात्मप्रसार हेतु साधकों के प्रयास को गति नहीं मिल रही थी । भाग्यनगर में कोई सेवाकेंद्र (सेवाकेंद्र वैसा स्थान होता है जहां साधक अध्यात्मप्रसार हेतु सामूहिक रूप से सेवा करते हैं) नहीं था और न ही कोई सत्संग होता था । हमने अपने घर में एक कक्ष को ध्यानमंदिर बना दिया तथा प्रतिदिन दो बार आरती करनी आरंभ की । शीघ्र ही अध्यात्मप्रसार हेतु साधकों के प्रयासों को गति मिलनी प्रारंभ हो गई । ध्यानमंदिर का उपयोग करनेवाले सभी साधकों को वहां ईश्वरीय शक्ति का अनुभव होता ।
एक दिन सदा की भांति मैंने सुबह ५.३० बजे ध्यानमंदिर में आरती की । हम आरती के लिए घी के दीपक का प्रयोग करते थे । जब दीपक की लौ बुझ गई, मैंने सदा की भांति कक्ष का द्वारा बंद कर दिया । दिन के ११ बजे मुझे घर में जलने की गंध आई । पूरे घर का निरीक्षण करने के उपरांत मैंने देखा कि काला धुंआ ध्यान मंदिर के द्वार के नीचे से आ रहा था । मैंने ध्यानमंदिर के कक्ष का द्वार खोला और पाया कि वहां देवताओं के सभी चित्रों में आग लगी है । चित्रों के नीचे जो कपडा रखा था वह भी जल रहा था, उस कपडे के जले काले टुकडे नीचे रखे परम पूजनीय डॉ.आठवलेजी के चित्र पर गिरे हुए थे । कक्ष में मेरे साथ उपस्थित साधकों को अनुभव हुआ कि ध्यानमंदिर से प्रवाहित होनेवाली ईश्वरीय शक्ति को साधकों द्वारा ग्रहण किए जाने से रोकने के लिए यह आग अनिष्ट शक्तियों के सूक्ष्म-आक्रमण का परिणाम थी ।
आगे दिए गए स्लाईड शो में ध्यानमंदिर का दृश्य तथा देवताओं के जले चित्रों को दर्शाया गया है ।
पूजाघर का अपने आप जलना
आध्यात्मिक शोध दल की टिप्पणी: देवता का प्रत्येक चित्र ऐसे जल गया था मानो किसी ने जानबूझकर प्रत्येक चित्र पर एक-एक करके आक्रमण किया हो । यह एक सामान्य दहन नहीं था जिसमें सभी वस्तुएं एकसमान जल जाती हैं ।
३. आक्रमण का सूक्ष्म विश्लेषण
हमने विकसित छठवीं इंद्रिय का प्रयोग कर इस स्वतः दहन के प्रकरण का आध्यात्मिक शोध अर्थात सूक्ष्म-परीक्षण किया । इसमें यह निश्चित करना था कि बिना किसी स्पष्ट कारण के आग के भौतिक क्षेत्र में अपने आप प्रकट होने के पीछे आध्यात्मिक आयाम में क्या घटित हुआ । इस प्रकरण में, सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र भी है, जो सूक्ष्म में हुए आक्रमण को वर्णित करता है । विकसित छठवीं इंद्रिय से संपन्न साधिका पूजनीया (श्रीमती) योया वालेजी ने सूक्ष्म से काल में पीछे जाकर देखा कि सूक्ष्म में क्या घटित हुआ था तथा आक्रमण करनेवाली अनिष्ट शक्ति किस प्रकार की थी । नीचे दर्शाया गया चित्र देखें ।
पूजनीया योयाजी ने जो देखा उसके पुष्टिकरण के लिए उनके सभी चित्र परम पूजनीय डॉ. आठवलेजी द्वारा जांचे गए । इस चित्र ने ८० प्रतिशत सत्यता का अंक प्राप्त किया जो कि उच्च श्रेणी की अचूकता को दर्शाता है ।
लेख के चारोंओर श्रीकृष्ण तत्त्व की किनारी (बॉर्डर) इसलिए खींची गई है, जिससे पाठकों को ऊपर दिए गए सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र अथवा जानकारी पढते समय कष्ट अनुभव ना हो ।
आरंभ में पूजनीया योयाजी ने ध्यान मंदिर में काली शक्ति की तीन आकृतियों को प्रकट होते देखा । जैसे वे आकृतियां साकार होती गईं, तब उन्हें ध्यान में आया कि वे तीनों राक्षस थे । ऊपर दिया गया सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र दर्शाता है कि पीछे से राक्षस कैसे दिखते हैं । ये तीनों राक्षसीय शक्तियां कंकालसमान रूप के होते हैं और सदा साथ में काम करते हैं । जो राक्षस मध्य में था वह प्रमुख था और वह शक्ति का संचारण अन्य दो में उनके हाथों को पकडकर कर रहा था । मध्य के प्रमुख राक्षस के मस्तिष्क के सर्व ओर काली शक्ति का एक वलय दिख रहा था । यद्यपि तीनों राक्षस आक्रमण के मुख्य कर्त्ता थे; किंतु वे पांचवे पाताल के सूक्ष्म-स्तरीय मांत्रिक के आदेशानुसार काम कर रहे थे ।
मध्य का राक्षस सूक्ष्म-स्तरीय मांत्रिक से और अधिक काली शक्ति प्राप्त करने के लिए ध्यान लगाना आरंभ करता है । तब काली शक्ति अन्य राक्षसों में संचारित होती है, वे उसे आगे ध्यानमंदिर में प्रसारित करते हैं । अनिष्ट शक्ति वहां व्याप्त हुई और पूरा कक्ष उससे घिर गया तथा अकस्मात ही यह एक आग के गोले में परिणत हो गया । शीघ्र ही पूजाघर की मेज पर पडे कपडे ने आग पकड ली और धू-धूकर जलने लगा । इसके उपरांत आग की लपटें देवता के सभी चित्रों की ओर फैल गईं । लगभग उसी समय राक्षसों का विघटन आरंभ हुआ और वे उस स्थान से अदृश्य हो गए ।