विषय सूची
- उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियों के प्रभाव से निर्जीव वस्तुओं पर दरारें उभरना
- १.निर्जीव वस्तुओं पर दरारें उभरने की प्रस्तावना
- २. अपनेआप दरारें उभरने के उदाहरण
- ३. अनिष्ट शक्तियों द्वारा निर्मित दरारें तथा मानव-निर्मित अथवा प्राकृतिक रूप से होनेवाली दरारों में अंतर कैसे करें ?
- ४. अनिष्ट शक्तियों द्वारा निर्मित दरारों की मुख्य विशेषताएं
- ५. दरार पडे चित्र का सूक्ष्म–विश्लेषण
- ६. प्रकरण अध्ययन (केस स्टडीस)
- ७. अनिष्ट शक्तियों द्वारा निर्मित दरारों के दुष्प्रभावों से स्वयं की रक्षा कैसे करें ?
उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियों के प्रभाव से निर्जीव वस्तुओं पर दरारें उभरना
१.निर्जीव वस्तुओं पर दरारें उभरने की प्रस्तावना
हममें से अधिकतर लोग अपने घर तथा कार्यालय को अपने मित्रों, परिवारजनों तथा प्रियजनों के चित्रों से सजाते हैं । अनेक साधक अपने पूजाघर अथवा वैसे स्थान जहां वे पूजा कर सकते हैं अथवा अपने भगवान तथा गुरु का स्मरण कर सके, वहां अपने इष्ट देवता तथा संतों के चित्र भी रखते हैं । यह पूर्ण रूप से सामान्य बात है कि समय के साथ चित्र तथा फ्रेम एवं कांच टूट-फूट जाते हैं, कभी कभी चटक जाते हैं तथा फीके पड जाते हैं ।
किंतु क्या होगा, यदि एक दिन हम घर आए, और देखें कि हमारे इष्ट देवता अथवा श्रद्धेय संत के चित्र पर अनायास ही विचित्र ढंग से दरारें उभर आए और वह भी बिना किसी स्पष्ट कारण के ? SSRF ने अपनेआप दरारें उभरनेवाली इस घटना का निरीक्षण किया है । ऐसा अनेक वस्तुओं के साथ हुआ है, बिना किसी बाह्य कारणों के जैसे छायाचित्रों का ऊपर से नीचे गिरना, फैलना अथवा उष्णता अथवा प्रकाश के संपर्क में आना । ये दरारें संतों तथा देवताओं के चित्रों, साथ ही पूजा, साधना, आध्यात्मिक उपचार इत्यादि से संबंधित वस्तुएं, आभूषण और यहां तक कि दैनिक वस्तुओं पर भी उभरी हैं ।
हमने इस घटना पर आध्यात्मिक शोध किया । हमें ज्ञात हुआ कि अनिष्ट शक्तियां निर्जीव वस्तुओं में दरारें उत्पन्न करने में सक्षम हैं । इस लेख में हम यह कैसे तथा क्यों होता है, इसके संदर्भ में अपने कुछ निष्कर्ष प्रस्तुत कर रहे हैं ।
२. अपनेआप दरारें उभरने के उदाहरण
३. अनिष्ट शक्तियों द्वारा निर्मित दरारें तथा मानव-निर्मित अथवा प्राकृतिक रूप से होनेवाली दरारों में अंतर कैसे करें ?
अनिष्ट शक्तियों द्वारा निर्मित तथा मानव निर्मित दरारों में अथवा नियमित पहनने-फटने से बनी दरारों में कुछ कारकों के आधार पर अंतर करना संभव है । जैसे –
१. बाह्य प्रभाव की अनुपस्थिति : वस्तु का संरक्षण सुरक्षित पद्धति से किए जाने तथा कोर्इ भी बाहरी स्थूल कारक अथवा कीडे-मकोडों इत्यादि द्वारा परिवर्तन का कारण ना होने पर भी दरारों का होना । कर्इ बार निकट से जांच करने पर यह ध्यान में आया कि दरारें कांच अथवा फ्रेम के भीतर से उभरी है जबकि कांच की बाहरी सतह अपरिवर्तित रहती है ।
२. घटित होने की गति : किसी भी बाह्य उद्दीपक (संवेदना) के बिना दरारों का गति से उभरना अनिष्ट शक्तियों द्वारा दरार उत्पन्न किए जाने की एक प्रमुख विशेषता है । उदाहरण के लिए, एक प्रकरण अध्ययन में कुदृष्टि हटाना अर्थात बुरी नजर हटाने के लिए की जानेवाली धार्मिक विधि हेतु रखा गया बिना दरारवाला (संपूर्ण) नारियल उस विधि के होने से पूर्व अनायास ही चटक गया ।
३. दरारों में होनेवाले परिवर्तन : समय के साथ दरारों के आकार तथा माप में परिवर्तन होना ।
४. दरारों का स्वरूप: दरारें प्रायः अनियमित आकार की होती हैं । लेमिनेटेड चित्र के प्रकरण में, दरारें लेमिनेशन को आंशिक अथवा पूर्णतः फाड देती हैं ।
अनेक बार दरारों के साथ वस्तुओं में अन्य प्रकार के परिवर्तन भी होते हैं, जैसे चित्र के रंग को फीका कर देना, धब्बे, धारीदार रेखाएं तथा दुर्गंध । ये परिवर्तन प्रायः विकसित छठवीं इंद्रिय के माध्यम से किए गए परीक्षण से ही समझा जा सकता है ।
४. अनिष्ट शक्तियों द्वारा निर्मित दरारों की मुख्य विशेषताएं
कारण :
- अनिष्ट शक्तियां द्वारा दरारें उत्पन्न करने के कारणों का उल्लेख हमने हमारे लेख भयावह असाधारण घटनाओं का परिचय में किया हैं ।
उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियां दरारों का निर्माण कैसे करती हैं ?
- यद्यपि वस्तुओं को प्रत्यक्ष विरूपित करने का कार्य निम्न स्तरीय अनिष्ट शक्तियां करती हैं, तथापि अंतिमतः उच्चतर स्तरीय अनिष्ट शक्तियां जैसे सूक्ष्म स्तरीय-मांत्रिक द्वारा दी गई शक्ति से दरारें उत्पन्न होती हैं ।
- अनिष्ट शक्तियां मुख्यतः अपनी अनिष्ट साधना जैसे ध्यान, मंत्रोच्चारण अथवा अघोरी विधियों से प्राप्त आध्यात्मिक शक्ति का उपयोग आक्रमण हेतु गति निर्मिति के लिए करती हैं । इसके उपरांत वे अपनी सिद्धियों का प्रयोग पृथ्वीतत्त्व, तेजतत्त्व अथवा आकाशतत्त्व पर करके दरारें निर्मित करती हैं ।
आवश्यक आध्यात्मिक शक्ति
- सामान्य व्यक्ति की निर्जीव वस्तुओं पर दरारें उभारने के लिए अनिष्ट शक्ति के लिए आवश्यक न्यूनतम आध्यात्मिक शक्ति चौथे पाताल के सूक्ष्म स्तरीय-मांत्रिक की होती है ।
- साधक अथवा आश्रम के परिसर से संबंधित वस्तुओं पर दरारें उभारने के लिए अनिष्ट शक्ति के लिए आवश्यक न्यूनतम आध्यात्मिक शक्ति पांचवे पाताल के सूक्ष्म स्तरीय-मांत्रिक की होती है ।
- जब वस्तु देवता अथवा संत से संबंधित हो तब उसमें दरारें उभारने के लिए अनिष्ट शक्ति के लिए आवश्यक न्यूनतम आध्यात्मिक शक्ति पांचवे पाताल के सूक्ष्म स्तरीय-मांत्रिक की होती है ।
अनिष्ट शक्ति के संचारण में दरारें प्राथमिक पसंद के रूप में क्यों हैं ?
निर्जीव वस्तुओं पर छिद्र उभारने, फाडने, दरारें उत्पन्न करने जैसे प्रहार को वे प्रधानता देते हैं । क्योंकि इनके माध्यम से वे सकारात्मक आध्यात्मिक शक्ति के वस्तु से होकर प्रवाहित होने में बाधा निर्मित करते हैं । दरारें इस सकारात्मक शक्ति के रिसने हेतु एक छिद्र (लीक) की भांति काम करती है । इससे भी अधिक, नकारात्मक काली शक्ति के भंडार गृह जैसे भी प्रयुक्त होती है ।
दरारों के प्रभाव
यदि कोर्इ व्यक्ति अनिष्ट शक्तियों द्वारा निर्मित दरारों से प्रभावित हो तो उसे निम्नलिखित स्तरों में से कोर्इ एक अथवा सभी कष्ट हो सकते हैं । कष्ट के कुछ उदाहरण आगे दिएनुसार हैं :
१. शारीरिक : सिर में तीव्र वेदना, आंखों में जलन तथा उनका लाल हो जाना, भारीपन, वमन, पेट में वेदना, शरीर में (छाती, कमर, हाथ) वेदना, सिर का सुन्न हो जाना, सांस लेने में कठिनार्इ होना, शरीर की उष्णता तथा वातावरण के तापमान में वृद्धि होना, सिर चकराना, हाथ एवं पैरों में सूर्इ चुभोने जैसी संवेदना होना इत्यादि ।
२. मानसिक : स्पष्ट विचार करने की क्षमता का ह्रास, निराशा, बेचैनी इत्यादि ।
३. आध्यात्मिक : साधना हेतु उत्साह का अभाव, साधना को टालने का विचार करना इत्यादि ।
५. दरार पडे चित्र का सूक्ष्म–विश्लेषण
SSRF के आध्यात्मिक शोध स्वरूप, हमने दरारें पडी अनेक वस्तुओं का सूक्ष्म विश्लेषण किया । सूक्ष्म विश्लेषण विकसित छठवीं इंद्रियवाले साधक करते हैं, वे आध्यात्मिक आयाम में अचूकता से देख पाने में सक्षम होते हैं । यह दृष्टि की सूक्ष्म क्षमता के माध्यम से होता है अथवा विचार, प्रतिशतता इत्यादि के स्वरूप में प्राप्त होनेवाले र्इश्वरीय ज्ञान के स्वरूप में होता है ।
नीचे दिए गए चित्र में, हम एक संत (परम पूजनीय भक्तराज महाराजजी) का चित्र देखते हैं, यह दरारों के माध्यम से अति दुष्प्रभावित हुआ है ।
SSRF के साधकों ने जब विकसित छठवीं इंद्रिय से चित्र का निरीक्षण किया, तब उन्हें इन दरारों का कारण ज्ञात हुआ । ये दरारें एक तीसरे पाताल के दास राक्षस द्वारा किया गया आक्रमण था, जो उच्चतर स्तरीय मांत्रिक के आदेशों का पालन कर रहा था । इस आक्रमण का उद्देश्य था इस चित्र से प्रक्षेपित हो रही र्इश्वरीय शक्ति की गति में बाधा डालना ।
अति विकसित छठवीं इंद्रियवाली संत पूजनीया (श्रीमती) योया वालेजी द्वारा सूक्ष्म में जो देखा गया, वह आगे दिएनुसार है :
आक्रमण करनेवाले राक्षस का सविस्तार वर्णन पढें ।
परम पूजनीय भक्तराज महाराजजी के चित्र पर दरारों के माध्यम से आक्रमण करनेवाली कष्टदायक शक्ति का सूक्ष्म परीक्षण
१ अ. ‘सूक्ष्म-चित्र की सत्यता : ८० प्रतिशत
१ आ. सूक्ष्म-चित्र में विद्यमान कष्टदायक स्पंदन : ४ प्रतिशत – डाॅ. आठवले
१ इ. ‘संख्या : १
१ र्इ. प्रकार : राक्षस
१ उ. काली शक्ति की मात्रा : वर्ष २००६ में परम पूजनीय भक्तराज महाराजजी के चित्र पर आक्रमण करते समय उसकी काली शक्ति ३० प्रतिशत थी । वर्ष २०१० में उसकी शक्ति २० प्रतिशत हो गर्इ ।
१ ऊ. कार्य करवानेवाले मांत्रिक की पाताल संख्या : ४
१ ए. विशेषताएं
१ ए १. शारीरिक
१ ए १ अ. कद : ५’ १’’
१ ए १ आ. रंग : गहरा हरा रंग
१ ए १ इ. त्वचा : खुरदुरी; किंतु जब वह क्रोधित हो जाता है, तब त्वचा कांटे समान हो जाती है और इससे वातावरण में काली शक्ति का संचारण होने लगता है ।
१ ए १ र्इ. रूप : गोल तथा भिन्न
१ ए १ उ. सिर : सिर पर केश नहीं है तथा त्वचा कांटेदार है ।
१ ए १ ऊ. आंखें : लाल, गोल तथा बडे आकार की
१ ए १ ए. मुख : बडा जबडा तथा अनेक छोटे नुकीले दांत
१ ए १ ऐ. हाथ : अनियमित तथा चार अंगुलियोंवाले
१ ए १ ओ. नाखून : लंबे, मोटे तथा दृढ । इसलिए वह किसी भी वस्तु को सरलता से नष्ट कर सकता है ।
१ ए १ औ. पैर : छोटे तथा पतले
१ ए १ औ. १. नाखून : छोटे तथा कटीले
१ ए १ अं. वह शक्तिशाली है ।
१ ए १ क. उसका शरीर लचीला है । इसलिए उसकी गतिविधि जैसे बैठना, खडा रहना, चलना, कूदना बंदर के समान है । वह गति से दौड तथा कूद सकता है ।
१ ए २. आध्यात्मिक
१ ए २ अ. उसके शरीर से महीन केश की भांति काली शक्ति की असंख्य तरंगों का वातावरण में सतत संचारण होना : उसके शरीर से महीन केश की भांति काली शक्ति की असंख्य तरंगें वातावरण में सतत संचारित होती हैं । जब उसकी गतिविधि की गति बढती है, तब वे तीर के समान वातावरण में संचारित होने लगती हैं ।
१ ऐ. सूक्ष्म से चित्र को क्षति पहुंचाने की प्रक्रिया : चौथे पाताल के मांत्रिक के निर्देशानुसार, राक्षस ने परम पूजनीय भक्तराज महाराजजी के चित्र को विकृत कर दिया । वह बंदर के समान दौडते एवं कूदते हुए आया । अपने मोटे तथा नुकीले नाखूनों से उसने चित्र के अगले भाग में दरारें निर्मित की । उसके शरीर से काली शक्ति वातावरण में संचारित हो रही थी । इसलिए सर्वत्र दुर्गंध फैल गर्इ ।
– श्रीमती योया वाले, यूरोप, SSRF (२१.१.२०१०)
पूजनीया (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को प्राप्त र्इश्वरीय ज्ञान के अनुसार, आक्रमण के पीछे के अनिष्ट जीव ने पाताल के अंधेरे कोनों से अनेक सूक्ष्म काले यंत्र उस चित्र की ओर भेजे थे । उसने काले धुंए का प्रयोग कर यंत्रों को सिद्धियों तथा पृथ्वीतत्व की सहायता से गति प्रदान की तथा ऊपर की दिशा में यंत्र को भेजा । इसलिए चित्र ने भूकंप के समान झटके अनुभव किए, दरारें उभरीं तथा चित्र का लेमिनेशन निकल गया । चित्र के चारों ओर काले आवरण से काला धुंआ निकला और इसलिए देखनेवालों की आंखों में जलन हो सकती है तथा वातावरण धुंए से भरा तथा घुटन समान हो गया ।
इस आक्रमण से आक्रमण करनेवाला सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक भी प्रभावित हुआ – उसका बाह्य सुरक्षा कवच टूट गया और उससे काला धुंआ निकलने लगा । वर्ष २००६ में परम पूजनीय भक्तराज महाराजजी के चित्र पर आक्रमण करते समय उसकी काली शक्ति ३० प्रतिशत थी । वर्ष २०१० में अब उसकी शक्ति २० प्रतिशत रह गर्इ ।
६. प्रकरण अध्ययन (केस स्टडीस)
विविध वस्तुओं पर अनिष्ट शक्तियों द्वारा निर्मित दरारों से संबंधित कुछ अन्य प्रकरण अध्ययनों तथा जीवन की सच्ची घटनाओं के लिंक आगे दिए गए हैं ।
७. अनिष्ट शक्तियों द्वारा निर्मित दरारों के दुष्प्रभावों से स्वयं की रक्षा कैसे करें ?
जैसे कि हम हमारे भयकारी असाधारण घटनाओं के खंड के इस लेख तथा अन्य लेखों में देख सकते हैं कि किसी विशिष्ट वस्तु तथा उससे संबंधित व्यक्ति पर आक्रमण करने के लिए अनिष्ट शक्तियों के पास विविध पद्धतियों का संपूर्ण संग्रह है । किसी वस्तु पर अनिष्ट शक्तियों द्वारा निर्मित दरारों के प्रभाव को कम अथवा निष्प्रभ करने के लिए हमारे आध्यात्मिक उपचार के खंड में वर्णित विभिन्न पद्धतियों को आप अपना सकते हैं । अनिष्ट शक्तियों के इस प्रकार के आक्रमण से सुरक्षित होने का सर्वोत्तम तथा सर्वाधिक स्थायी उपाय है, अध्यात्म के छः मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार साधना में वृद्धि करते रहना । साधना से प्राप्त आध्यात्मिक शक्ति में हुर्इ वृद्धि से अनिष्ट शक्तियों द्वारा किए गए आक्रमण के फलस्वरूप हुआ दुष्प्रभाव घटने लगता है । केवल र्इश्वर की कृपा से ही हम आज सुरक्षित हैं ।