सारांश : यूरोप निवासी एंथोनी (आयु ४० वर्ष) एक संगणक अभियंता (कंप्यूटर इंजीनियर) हैं । यहां उन्होंने बताया कि साधना के रूप में नामजप आरंभ करने से कैसे उनका ७ वर्ष पुराना गांजा सेवन का व्यसन समाप्त हो गया ।
उनका वास्तविक नाम एंथोनी नहीं है, निजी कारणों से हमने उनके परिवर्तित नाम का प्रयोग किया है ।
१. गांजा सेवन का व्यसन
मैंने २९ वर्ष की उम्र में जिज्ञासावश गांजा सेवन करना आरंभ किया I
इसके पश्चात, थोडा-थोडा करके गांजा सेवन नियमित साप्ताहिक स्वभाव (आदत) बन गया; क्योंकि इससे मानसिक स्तर पर अल्पकालिक आराम मिलता । जब मैंने इसका सेवन किया, तो विचारों की तीव्रता कम थी । एक प्रकार से, यह स्वयं में जीवन के विरुद्ध मेरा विद्रोह था । मैं एक संवेदनशील व्यक्ति था एवं अपनी भावनाओं में बह जाना, मेरी समस्या थी । गांजा सेवन ने मुझे इस भ्रम में रखा कि मुझमें भावनाशीलता अल्प है एवं मैं अधिकांशतः तटस्थ रह पाने लगा । जिससे मेरी संवाद-शीलता एवं रचनात्मकता में सुधार हुआI । धीरे-धीरे मैं सप्ताह में लगभग ४ बार गांजा सेवन करने लगा । उन दिनों, मैं एक दिन में औसत २ बार से अधिकतम ७ बार तक सेवन करता ।
कुछ समय पश्चात, गांजा का ‘सकारात्मक’ पहलू अदृश्य हो गया; परंतु मैंने उसका सेवन चालू रखा क्योंकि उस समय जिन लोगों के साथ मैं घूमता-फिरता था, यह उनमें प्रचलित था । प्रायः इसका सेवन करने के पश्चात, मुझे थकान, सुस्ती, उत्साह-हीनता, निष्क्रियता इत्यादि जैसे नकारात्मक दुष्प्रभावों को कम करने के लिए अपनी सम्पूर्ण ऊर्जा एवं एकाग्रता का प्रयोग करना पडता था । मैंने कई बार इस व्यसन को छोडने के प्रयत्न किए, परंतु थोडे ही समय के पश्चात एवं आंतरिक युद्ध में पराजित होकर मैं पुनः गांजा सेवन करने लगता । चूंकि व्यसन की आदत बढती जा रही थी, मुझे अनुभव हुआ कि जैसे कोई मुझे ऐसा करने के लिए प्रेरित कर रहा है ।
२. साधना आरंभ करने के पश्चात गांजा सेवन त्यागना
मेरे ३६ वर्ष के होने तक यही स्थिति रही, जब मैं स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाऊंडेशन (SSRF) से परिचित हुआ । वर्ष २००० में मैंने नियमित रूप से नामजप साधना आरंभ की । प्रारंभ में ईसाई होने के कारण मैं अपने जन्म के धर्म के अनुसार ईश्वर के नाम अर्थात भगवान यीशु का जप करता था । इसके साथ ही मैं दिन में ३-४ घंटे अपने किसी भी पितृदोष के समाधान हेतु ‘श्री गुरुदेव दत्त’ का आध्यात्मिक रक्षात्मक जप भी करता । मैं ‘श्री गुरुदेव दत्त’ इस रक्षात्मक जप की ९ मालाएं (९ X x१०८ = ९७२ बार) करता एवं अन्य समय मैं ‘भगवान यीशु’ का जप करता ।
आरंभ से ही मेरे जप की गुणवत्ता अच्छी थी । मैं साप्ताहिक सत्संग में जाने के लिए अन्य नगर की यात्रा करता था । SSRF द्वारा सुझाए गए नामजप, सत्संग में जाने, सत्सेवा इत्यादि जैसे साधना के विभिन्न पहलुओं के प्रारंभ के साथ जीवन के प्रति मेरा नकारात्मक एवं भावनात्मक दृष्टिकोण सकारात्मकता में परिवर्तित होना आरंभ हो गयाI । नकारात्मक विचारों की तीव्रता घटने लगी एवं गांजा सेवन के मध्य संयम की अवधि अब बढती गर्इ । मैंने देखा कि सेवन की इच्छा शीघ्रता से समाप्त होने लगी । एक माह पश्चात यह ५०% तक कम हो गई । ६ माह पश्चात, यह ८०% तक कम हो गई एवं एक वर्ष पश्चात यह पूर्ण रूप से समाप्त हो गई । मैंने अनुभव किया कि यह बहुत शीघ्र समाप्त हो गई I साधना आरंभ करने के एक वर्ष पश्चात, मैंने अंतिम बार गांजा सेवन का प्रयास किया; किंतु त्वरित ही तीव्र सिरदर्द हुआ तथा ऐसा दिखा जैसे काेर्इ असामान्य धूसर शक्ति के धागे मेरे मस्तिष्क को दबा रहे थे एवं मेरे मस्तिष्क के भीतर आने का प्रयत्न कर रहे थे ।
विगत इस घटना के पश्चात, मुझे कभी गांजा सेवन का विचार तक नही आया, क्योंकि मेरे अवचेतन मन से गांजा सेवन का संस्कार (केंद्र) पूर्णरूप से मिट जो गया था । उस गंदी आदत को छोडे अब ५ वर्ष से अधिक हो गए हैं ।
मैं इस बात पर बल देना चाहूंगा कि इस प्रक्रिया में, मैंने किसी भी तरह स्वयं को गांजा सेवन से मुक्त करने के लिए मजबूर नहीं किया । यह मेरी ओर से कोई भी प्रयास किए बिना स्वाभाविक रूप से हुआ । ऐसा करने की इच्छा और अधिक दुर्बल होती गई एवं साधना की वृद्धि से एवं समय के साथ अंततः लुप्त हो गई ।