१२ मई २००५, मैं भारत के धामसे, गोवा स्थित SSRFके आध्यात्मिक शोध संस्थान जाने हेतु यात्रा कर रही थी । तब बिना किसी दृढ प्रयास के अपनेआप मेरी दुर्गादेवी से प्रार्थना होने लगी । जब मैंने अपनी प्रार्थना के आध्यात्मिक कारण के संदर्भ में विस्मयता तथा जिज्ञासा व्यक्त की, तब हमारे साथ आए स्थानीय साधक ने बताया कि धामसे आश्रम की ईश्वरीय शक्ति उस स्थान तक पहुंचती है (अर्थात धामसे से ११ किलोमीटर दूर)।
मैं अपने पैरों से लेकर पूरे शरीर में शक्ति का प्रवाह अनुभव कर सकती थी । अपनी आंखों के समक्ष मुझे पीला प्रकाश दिखाई दे रहा था, जो मेरे आज्ञा-चक्र से होकर मेरे शरीर के भीतर जा रहा था । जब हम आध्यात्मिक शोध संस्थान से ३-४ किलोमीटर दूर थे, मुझे नाक के नीचे कुछ सूक्ष्म-तरंगें तथा एक अलग ही प्रकार की सूक्ष्म-सुगंध अनुभव हुई । मुझे उस प्रकार की सूक्ष्म-सुगंध पहले कभी अनुभव नहीं हुई थी । मेरा मन आनंद से भर गया था । – श्रीमती सावित्री इचलकरंजीकर, भारत.
इस अनुभूति का अध्यात्मशास्त्र
सूक्ष्म (बाह्य स्रोत के बिना) सुगंध का अनुभव ४५ से ५० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर पर होता है । परंतु यदि व्यक्ति सक्रिय रूप से भक्तिभावसे साधना करे, तो ४५ प्रतिशत से अल्प आध्यात्मिक स्तर पर भी इसकी अनुभूति हो सकती है । आध्यात्मिक स्तर तात्कालिक रूप से बढ जाता है ।
यह अनुभूति आत्मा साधना कर रही है अर्थात जीवात्मा स्थिति में हुई है । इस स्थिति में र्इश्वर के प्रति भाव जागृत हो जाता है । इस कारण मन आत्मा से प्रक्षेपित होनेवाली चैतन्य के प्रकट तरंगों पर केंद्रित हो जाता है । यह तरंगें पृथ्वीतत्त्व से संबंधित होती हैं । पृथ्वीतत्त्व की सूक्ष्म-अनुभूति सुगंध है ।
जिस आध्यात्मिक शोध केंद्र में शिल्पा जा रही थीं, वह दैवी शक्ति तत्त्व अर्थात दुर्गादेवी के संरक्षण में है, जो उस परिवेश की देवता भी हैं । शिल्पा उस केंद्र में साधना तथा सेवा करती हैं और उनमें उत्कट भाव है । इस कारण केंद्र में अत्यधिक मात्रा में दैवी शक्ति तत्त्व आकर्षित हुई है । इससे केंद्र आध्यात्मिक रूप से सक्रिय हो गया है । जिस प्रकार घर के एक कोने में हीटर जलाने से उसकी उष्णता उसके आसपास की परिधि में अनुभव की जा सकती है, उसी प्रकार दैवी शक्ति भी उसके आसपास अनुभव की जा सकती है । इस प्रकरण में यह केंद्र से ११ किमी. दूर अनुभव की गई । इस कारण शिल्पा को सूक्ष्म-सुगंध की अनुभूति हुई ।
हमारी आध्यात्मिक यात्रा में अनुभूति एक मील का पत्थर सिद्ध होती है । यह र्इश्वर की यह बताने की पद्धति है कि, हम योग्य मार्ग पर हैं ।