मनुष्य के दो देह होते हैं – स्थूलदेह और सूक्ष्मदेह । इसके अतिरिक्त उसमें प्राणशक्ति विद्यमान होती है जो इन देहों में संबंध स्थापित करती है । यह सूत्र जानने से हम यह समझ सकेंगें कि मृत्यु के उपरांत व्यक्ति को आध्यात्मिक सहायता की आवश्यकता क्यों होती है । नीचे दिए गए चित्र में देखें :
टिप्पणी – हमारा सुझाव है कि इस लेख को और अच्छे से समझने के लिए आप यह लेख अवश्य पढें : हम मृत्यु के उपरांत कहां जाते हैं ?
जब व्यक्ति की मृत्यु होती है तब प्राणशक्ति ब्रह्मांड में उत्सर्जित हो जाती है । स्थूल देह भूलोक पर ही रहती है जबकि सूक्ष्मदेह अपने पाप-पुण्य एवं आध्यात्मिक स्तर के अनुसार सूक्ष्मलोकों में यात्रा करती है । अपने पाप तथा अत्यधिक अहं के कारण सूक्ष्मदेह भारी हो जाती है । जिसके कारण यह निम्न स्तर के सूक्ष्मलोक जैसे – भुवर्लोक आदि में अटक जाती है । यदि पाप बहुत अधिक है तो सूक्ष्मदेह पाताल में जाती है ।
दूसरी ओर, अच्छे कर्मों (पुण्यों) तथा साधना की तडप के कारण सूक्ष्मदेह हलकी हो जाती है । जितना आध्यात्मिक स्तर अधिक होगा सूक्ष्मदेह उतनी ही हलकी होगी और उतनी ही तीव्र गति से आगे बढेगी ।
जिनकी साधना तीव्र नहीं है, वे मृत्यु के पश्चात भुवर्लोक में अटक जाते हैं । साधना के कारण साधक की सूक्ष्मदेह हलकी हो जाती है और शीघ्र ही भुवर्लोक को पीछे छोड उच्च सूक्ष्मलोक जैसे – स्वर्गलोक में चली जाती है ।
जबकि साधना की उर्जा के अभाव में सूक्ष्मदेह को भुवर्लोक में रहना पडता है और कष्ट भोगना पडता है । आध्यात्मिक शक्ति एवं सत्त्वगुण के अभाव में उसे गति प्राप्त नहीं होती । इसलिए वह भुवर्लोक के जड वातावरण में फंसी रहती है ।
आगे की यात्रा के लिए इन सूक्ष्मदेहोंको आध्यात्मिक सहायता की आवश्यकता होती है । इसके लिए वे अपने वंशजों की ओर देखती हैं कि वे उनके लिए कुछ करें । वंशज अपने पूर्वजों की संपत्ति के अधिकारी होते हैं, इसलिए वे आध्यात्मिक रूप से अपने पूर्वजों की आवश्यक सहायता करने के लिए बाध्य होते हैं; तथापि अनेक प्रकरणों में वंशज उन विधि-विधानों से परिचित नहीं होते जिन्हें अध्यात्मशास्त्र के अनुसार मृत पूर्वजों की सहायता हेतु योग्य पद्धति से करने की आवश्यकता होती है । अत: वे पूर्वज जिनकी मृत्यु हो गई है उन्हें भुवर्लोक में कोई सहायता नहीं मिलती । वंशजों का ध्यान अपनी ओेर आकर्षित करने के लिए पूर्वज उन्हें कष्ट (जैसा कि एक अन्य लेख में बताया है) देते हैं । पृथ्वी पर जब वंशजों जीवन में ऐसी समस्याएं आती हैं जो दूर ही न हो रही हों, तो वे पारंपरिक विधियों से दूर अन्य समाधान ढूंढते हैं । कुछ प्रसंगों में, पीडित परिवार के लोग आध्यात्मिक सहायता लेते हैं, जिससे मृत पूर्वजों थोडी राहत मिलती है ।