- साधना में सुधार : प्रार्थना हमारी साधना को तीन स्तरों पर प्रभावित करती है । कर्म, विचार और भाव :
- कर्म : प्रार्थना कर हम जो कार्य आध्यात्मिक लाभ हेतु करते हैं, वे भावपूर्वक होते हैं । इसलिए चूकें, गलतियां अल्प होती हैं । अतः प्रार्थना से साधना के विभिन्न प्रयास (जैसे नामजप, सत्संग, सत्सेवा आदि) ईश्वर अथवा गुरु (ईश्वर का मार्गदर्शक तत्व) की अपेक्षा के अनुरूप होते हैं ।
- विचार : जब तक मन सक्रिय रहता है, विचारों की श्रृंखला बनी रहती है । वे मन के विलय में बाधक हैं । व्यर्थ के विचार उर्जा का भी अपव्यय करते हैं । इसे रोकने के लिए प्रार्थना अत्यंत उपयोगी साधन है । प्रार्थना चिन्ता घटाती है और चिंतन बढाती है ।
- भाव : भावपूर्ण प्रार्थना से साधक में चिंतन प्रक्रिया आरंभ होती है और उसे अंतर्मुख बनने में सहायता करती है ।
- नामजप के प्रभाव में वृद्धि : साधकईश्वर की प्राप्ति के लिए नामजप करता है । ईश्वर प्राप्ति की इच्छा और भाव तीव्र हो, तब ही नामजप वास्तव में प्रभावकारी होता है । एक संत नामजप में इतना मग्न हो जाते कि उन्हें बाह्य जगत की सुध ही न रहती । इतने तीव्र भाव से नामजप करने वाला कोई विरला ही होता है । तथापि उत्कृष्ट नामजप होने हेतु बारम्बार प्रार्थना करने से भाव जागृत होता है और हमारा नामजप ईश्वर के चरणों तक पहुंचता है ।
- साधना में दैवी सहायता : जब कोई साधक अपनी साधना के लिए पूरक कोई वांच्छित प्रयास होने, विचार करने, दृष्टिकोण अपनाने हेतु ईश्वर से निष्ठा पूर्वक प्रार्थना करता है तब असाध्य प्रतीत होने वाला कार्य भी गुरु की कृपा से सहज संपन्न हो जाता है ।
- गलतियों के लिए क्षमा प्राप्त करना : गलती होने पर यदि हम शरणागत भाव से ईश्वर अथवा गुरु से प्रार्थना करते हैं, तब वे हमें क्षमा कर देते हैं । तथापि प्रार्थना और शरणागत भाव गलती की तीव्रता के अनुरूप होने चाहिए ।
- अहंकार क्षीण होना : प्रार्थना करते समय हम ईश्वर के समक्ष याचना करते हैं । उस समय अपना घमंड त्याग कर हम विनीत भाव से अपनी इच्छा, मानवीय दुर्बलता तथा ईश्वर पर निर्भरता को स्वीकारते हैं । फलस्करूप हमारा अहंकार शीघ्र घटता है । संदर्भ – प्रार्थना का महत्त्व
- अनिष्ट शक्ति से रक्षा : अनिष्ट शक्ति से (भूत, प्रेत, पिशाच इनसे ) रक्षा हेतु प्रार्थना एक बहुत ही प्रभावी साधन है । इससे प्रार्थना करने वाले के सर्व ओर सुरक्षा कवच बन जाता है ।
- आस्था में वृद्धि : जब प्रार्थना का उत्तर मिलता है तब गुरु और ईश्वर के प्रति विश्वास भी बढता है । साधना की यात्रा में एकमात्र चलन (करन्सी) है आस्था ।