साधना के लाभ
प्रारब्ध पर विजय प्राप्त करना
प्रारब्ध तथा क्रियमाण कर्म क्या हैं ?
इस विषय को समझने हेतु हमें यह जानना होगा कि प्रारब्ध क्या है :
- पाश्चात्य दृष्टिकोण से हमारे जीवन पर हमारा नियंत्रण है तथा जीवन में घटनेवाली हर घटना हमारी स्वेच्छा से घटती है ।
- इसके विपरीत प्रसिद्ध पूर्वी दृष्टिकोण यह है कि हमारे साथ घटित कुछ भी हमारे नियंत्रण में नहीं है और हम पूर्वनिर्धारित नियोजन की कठपुतलियों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं हैं ।
परंतु इन दोनों में से कोई भी दृष्टिकोण पूर्णतया सही नहीं है । अध्यात्मशास्त्र के अनुसार हमारे जीवन का ६५% प्रारब्ध से तथा शेष ३५% क्रियमाण कर्म से नियंत्रित होता है ।
किंतु हम अपने ३५% क्रियमाण कर्म से उचित साधना करके ६५% प्रारब्ध पर विजय प्राप्त कर सकते हैं ।
जो हमारे हाथ में नहीं होता उसे प्रारब्ध कहते हैं । जीवन का जो भाग हमारे नियंत्रण में हो उसे क्रियमाण कर्म कहते हैं ।
क्रियमाण कर्मका एक उदाहरण : जैसे कोई व्यक्ति अत्यधिक मदिरा पीकर, अपनी बुरी स्थिति में रखी हुई गाडी को तीव्र ढलानवाली पहाडी पर बहुत तेज चलाता है । गाडी चलाते समय सडक पर फिसल कर दुर्घटनाग्रस्त हो जाए तो इसमें किसका दोष होगा ? क्या इस दुर्घटना को प्रारब्ध कहेंगे अथवा अनुचित क्रियमाण के कारण हुई दुर्घटना कहेंगे ?
निश्चय ही यह क्रियमाण है क्योंकि उसे मदिरा पी कर गाडी नहीं चलानी चाहिए थी, उसे पहले देखना चाहिए कि उसकी गाडी अच्छी स्थिति में है, और गाडी धीरे चलानी चाहिए ।
प्रारब्ध से संबंधित एक अन्य उदाहरण लेते हैं : एक अन्य चालक जो सौम्य है, सतर्कता पूर्वक गाडी चलाता है तथा गाडी भी पूर्ण व्यवस्थित स्थिति में रखता है । वह भी उसी पहाडी के ढालान पर सतर्कता पूर्वक जा रहा होता है कि अकस्मात भूस्खलन (landslide) के कारण सडक टूट जाती है और एक दुर्घटना होती है । यहां भूस्खलन पर उसका कोई नियंत्रण नहीं था अत: यह उसका प्रारब्ध था ।
प्रारब्धवश जो कुछ होता है, उसका कारण आध्यात्मिक ही है तथा साधना जैसे आध्यात्मिक उपाय से ही हम प्रारब्ध पर विजय प्राप्त कर सकते हैं । प्रारब्ध की तीव्रता के अनुसार उस पर विजय प्राप्त करने हेतु उपयुक्त स्तर की साधना करनी पडती है । निम्नांकित सारिणी में हमें भिन्न प्रकार के प्रारब्ध एवं उन पर विजय प्राप्त करने के उपाय बताए गए हैं :
रारब्ध के प्रकार | |||
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मंद | मध्यम | तीव्र | |
उदाहरण | छोटी-मोटी बीमारियां, विवाह होने के लिए सामान्य से अधिक प्रयत्न करने पडते हैं । | छोटा अपघात, विवाह होने हेतु अत्यधिक प्रयत्न करने पडते हैं । | बडे अपघात एवं मृत्यु योग, अत्यधिक प्रयत्न करने पर भी विवाह तय न होना । |
विजय कैसे प्राप्त करें ? | मध्यम साधना | तीव्र साधना | साधना से नहीं बदला जा सकता । केवल गुरुकृपा से ही बदला जा सकता है । |
प्रमाणानुसार, तीव्र साधना का तात्पर्य प्रतिदिन १२-१४ घंटों के अभ्यास से है । गुणवत्ता की दृष्टि से इसका अर्थ है कि व्यक्ति ईश्वर प्राप्ति का मुख्य ध्येय रखकर, अपने प्रतिदिन के कार्य ईश्वर की सेवा समझकर, तीव्र तडप से करता है ।
कृपया ध्यान दें :
मध्यम स्तर की साधना में प्रमाणानुसार ४-५ घंटे का दैनिक अभ्यास एवं गुणवत्ता के अनुसार व्यक्ति अपने अधिकांश कार्य ईश्वर की सेवा समझकर करता है ।