१. छठवीं इंद्रिय क्या है ?
छठवीं इंद्रिय अथवा सूक्ष्म-स्तरीय अनुभव की क्षमता का अर्थ है, सूक्ष्म आयाम अथवा देवदूत, भूत, स्वर्ग इत्यादि के अदृश्य शक्ति एवं जगत को अनुभूत करने की क्षमता । इसमें बुद्धि से परे अनेक घटनाओं का कार्य-कारण संबंध समझने की क्षमता भी सम्मिलित है । अतींद्रिय शक्ति, सूक्ष्म-दृष्टि, पूर्वसूचना, पूर्वाभास छठवीं इंद्रिय अथवा सूक्ष्म-ज्ञान की क्षमता के ही पर्यायवाची शब्द हैं । इस संपूर्ण जालस्थल पर हम छठवीं इंद्रिय, अतींद्रिय शक्ति और सूक्ष्म ज्ञान की क्षमता जैसे शब्दों का उपयोग एक-दूसरे के स्थान पर करेंगे ।
२. अदृश्य शक्ति एवं जगत को हम कैसे समझ और अनुभव कर सकते हैं ?
हम स्थूल अथवा दृश्य-विश्व को अपनी पंच स्थूल ज्ञानेंद्रिय (जैसे शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध), अपने मन (अपनी भावनाओं) तथा अपनी बुद्धि से (निर्णय लेने की क्षमता से) अनुभूत करते हैं; परंतु जब सूक्ष्म-विश्व अथवा अदृश्य शक्ति एवं जगत की बात आती है, तो उसे हम पंच सूक्ष्म-ज्ञानेंद्रिय, सूक्ष्म-मन और सूक्ष्म-बुद्धि से अनुभूत कर सकते हैं, जिसे छठवीं इंद्रिय कहते हैं । जब छठवीं इंद्रिय विकसित अथवा कार्यरत होती है, वह सूक्ष्म-विश्व अथवा अदृश्य शक्ति एवं जगत को अनुभूत करने में सहायक होती है । सूक्ष्म-विश्व के इसी अनुभव को आध्यात्मिक अनुभूति कहते हैं ।
अनुभव |
आध्यात्मिक अनुभव (अनुभूति) |
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क्या अनुभव होता है ? |
गुलाब के गुच्छे से महिला को गुलाबों की सुगंध आती है |
चंदन के न होते हुए भी महिला को चंदन की सुगंध आती है |
स्रोत |
दृश्यमान तथा स्थूल स्तर से |
अदृश्य तथा सूक्ष्म स्तर से |
किस माध्यम से अनुभव हुआ |
पंच-ज्ञानेंद्रियां, मन एवं बुद्धि के माध्यम से अनुभव हुआ । इस उदाहरण में गंध से संबंधित ज्ञानेंद्रिय द्वारा, अर्थात नाक द्वारा |
छठी ज्ञानेंद्रिय के माध्यम से अनुभूति हुई, अर्थात पंच सूक्ष्मज्ञानेंद्रियां, सूक्ष्म-मन और सूक्ष्म-बुद्धि से बने सूक्ष्म-ज्ञानेंद्रियों के माध्यम से । इस उदाहरण में गंध से संबंधित सूक्ष्म-ज्ञानेंद्रिय द्वारा |
उपरोक्त चित्र में हमें गुलाबों का गुच्छा सूंघती एक स्त्री दिखाई दे रही है । यह एक अनुभव हुआ क्योंकि सुगंध का एक स्त्रोत अथवा कारण है – गुलाबों का गुच्छा । दूसरे चित्र में हम एक स्त्री को देख रहे हैं, जो अपने दिन का कार्य आरंभ करने जा रही है । अचानक, बिना किसी कारण के उसे चंदन की तीव्र सुगंध आती है । आरंभ में वह विश्वास नहीं करती; क्योंकि सुगंध का कोई स्त्रोत अथवा कारण नहीं है और अपने काम में लग जाती है । परंतु वह सुगंध उसका पीछा करती है और पूरे दिन उसके साथ रहती है । वह लोगों से पूछती है कि क्या उन्हें कोई सुगंध आ रही है, परंतु सभी का उत्तर नहीं होता है । यह एक आध्यात्मिक अनुभूति हुई । इस प्रकरण में उस स्त्री ने सूक्ष्म-आयाम से आती सुगंध अनुभव की और उसे सूक्ष्म घ्राणेंद्रिय के (सूक्ष्म-स्तरीय सूंघने की क्षमता के) माध्यम से अनुभूत किया । पंच-सूक्ष्म ज्ञानेंद्रिय, सूक्ष्म मन और सूक्ष्म बुद्धि द्वारा अनुभूत करने की इसी क्षमता को किसी व्यक्ति की छठवीं इंद्रिय कहते हैं ।
३. अदृश्य शक्ति एवं जगत का पंच सूक्ष्म ज्ञानेंद्रियों द्वारा छठवीं इंद्रिय का अनुभव
संपूर्ण विश्व पंचतत्त्वों से बना है । ये पंचतत्त्व अदृश्य हैं; परंतु चराचर विश्व इन्हीं से बना है । जब हमारी छठवीं इंद्रिय कार्यरत होती है, हमें इन पंचतत्त्वों की अनुभूति स्थूलतम से सूक्ष्मतम इस क्रम में होती है । अतएव हम पंचतत्त्व पृथ्वी, आप, तेज, वायु, आकाश को क्रमश: गंध, रस, रूप, स्पर्श, ध्वनि के माध्यम से अनुभूत कर सकते हैं । यहां दी गर्इ सारणी सकारात्मक एवं नकारात्मक अनुभूतियों के उदाहरण दर्शाती है, जो हमें हमारी छठवीं इंद्रिय से, अर्थात पंच ज्ञानेंद्रियों के माध्यम से मिलती हैं ।
छठवीं सूक्ष्म-ज्ञानेंद्रिय |
ब्रह्मांड का संबंधित मूलतत्त्व |
संबंधित अनुभूति का उदाहरण
अच्छी अनुभूति |
संबंधित अनुभूति का उदाहरण
बुरी अनुभूति |
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गंध |
मूल पृथ्वीतत्त्व |
दृश्य अथवा स्थूल स्रोत के न होते हुए भी चंदन की सुगंध आना |
बिना किसी कारण घर के सर्व ओर मूत्र की गंध आना |
स्वाद |
मूल आपतत्त्व | मुख में प्रत्यक्ष में कुछ रखे बिना ही मधुर स्वाद का अनुभव होना | मुख में कडवा स्वाद आना |
रूप |
मूल तेजतत्त्व |
देवता के दर्शन होना अथवा स्पंदन /आभामंडल को अनुभव करना |
अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) दिखाई देना |
स्पर्श |
मूल वायुतत्त्व |
किसी के आसपास न होते हुए भी सिर पर हाथ रखने का अनुभव होना |
रात में किसी अनिष्ट शक्ति द्वारा (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) त्रस्त किया जाना |
ध्वनि |
मूल आकाशतत्त्व |
घंटी अथवा शंख न होते हुए भी घंटी अथवा शंख की ध्वनि सुनने का अनुभव होना |
किसी के आसपास न होते हुए भी विचित्र और भयप्रद संभाषण सुनाई देना |
जब किसी व्यक्ति को सूक्ष्म घ्राणेंद्रिय के माध्यम से (गंध की) अनुभूति होती है, तो स्त्रोत सकारात्मक उदा. देवता हो सकते हैं अथवा नकारात्मक जैसे अनिष्ट शक्ति हो सकती है ।
४. अदृश्य शक्ति एवं जगत को जानने हेतु छठवीं इंद्रिय कैसे विकसित होती है ?
सूक्ष्म-विश्व सर्वत्र विद्यमान है, परंतु हम उसकी अनुभूति नहीं ले पाते । भले ही हमें उसकी अनुभूति न हो, उसका हमारे जीवन पर बहुत बडा प्रभाव होता है । इस सूक्ष्म-विश्व ( अदृश्य शक्ति) के स्पंदन पकड पाने के लिए, हमारे पास ‘आध्यात्मिक ऐंटीना’ होना चाहिए अर्थात हमारी छठवीं इंद्रिय जागृत होनी चाहिए । जब हम साधना करते हैं, हमारी छठवीं इंद्रिय जागृत होती है । अध्यात्म के छ: मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार नियमित साधना करने से हमारा आध्यात्मिक स्तर बढता है और हम अधिक गहराई से अदृश्य शक्ति एवं सूक्ष्म-विश्व को समझकर अनुभव कर सकते हैं ।
यह दूरदर्शन की भांति है, जब उस पर एंटेना नहीं लगा होता, उसमें काली-सफेद धारियां आती हैं । यद्यपि दूरदर्शन के स्टेशन से तरंगें भेजी जाती हैं, दूरदर्शन सेट उसे तब तक नहीं पकड सकता, जब तक उसमें एंटेना न लगा हो । उसी प्रकार सूक्ष्म-विश्व (अदृश्य शक्ति) और ईश्वर का अस्तित्त्व सदैव हमारे आसपास रहता है, परंतु हम उसे तब तक अनुभूत नहीं कर पाते, जब तक कि हम साधना आरंभ न कर दें, जिससे हमारी छठवीं इंद्रिय कार्यक्षम हो जाए ।
छठवीं इंद्रिय अथवा सूक्ष्म-संवेदी क्षमता विकसित करने हेतु कृपया हमारा साधनासंबंधी विभाग देखें ।
कभी-कभी हम ऐसे लोगों को देखते हैं जिनमें अल्पायुमें ही सूक्ष्म-विश्व (अदृश्य शक्ति) को समझ पाने की क्षमता होती है, जबकि उनकी इतनी साधना नहीं रहती । इसका कारण यह होता है कि पूर्वजन्म की (वर्तमान जन्म से पूर्व के जन्म की) साधना से ही उन्होंने आवश्यक आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर लिया है । अन्य एक कारण यह भी हो सकता है कि वे बचपन से ही किसी अनिष्ट शक्ति उदा. सूक्ष्म-स्तरीय मांत्रिक द्वारा आवेशित हों । ऐसे प्रकरणों में वास्तव में सूक्ष्म-स्तरीय मांत्रिक की छठवीं इंद्रिय ही प्रकट होती है ।
५. अदृश्य शक्ति एवं जगत को जानने हेतु छठवीं इंद्रिय एवं आध्यात्मिक स्तर में सम्बन्ध
जैसे-जैसे हमारा आध्यात्मिक स्तर बढता है, हम अपनी सूक्ष्म-संवेदी क्षमता अर्थात अपनी छठवीं इंद्रिय से सूक्ष्म-विश्व (अदृश्य शक्ति) को क्रमश: अधिक गहराई से जानने लगते हैं । निम्नलिखित सारणी में दर्शाया गया है कि कैसे बढते आध्यात्मिक स्तर के साथ हमारी छठवीं इंद्रिय विकसित होती है ।
व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर (%) |
पंच सूक्ष्मज्ञानेंद्रियां |
सूक्ष्ममन एवं सूक्ष्मबुद्धि |
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४०% |
१०% |
४०% |
५०% |
३०% |
५०% |
६०% |
७०% |
६०% |
७०% |
१००% |
७०% |
८०% |
१००% |
८०% |
९०% |
१००% |
९०% |
१००% |
१००% |
१००% (अद्वैत) |
उपरोक्त सारणी से हम यह देख सकते हैं कि ७०% आध्यात्मिक स्तर पर सूक्ष्म-ज्ञानेंद्रिय से अधिकतम अनुभव होते हैं । अत: इसके उपरांत होनेवाली आध्यात्मिक स्तर की बढोतरी से पंच सूक्ष्म ज्ञानेंद्रियों द्वारा मिलनेवाली सूक्ष्म-संवेदी क्षमता नहीं बढती । तथापि सूक्ष्म-मन एवं सूक्ष्म-बुद्धि का विश्व-मन एवं विश्व-बुद्धि से होनेवाली एकरूपता की प्रक्रिया १०० % आध्यात्मिक स्तर तक चालू रहती है । यदि केवल आध्यात्मिक स्तर ही किसी की छठवीं ज्ञानेंद्रिय की कार्यरतता का सूचक हो, तो निम्नलिखित सारणी वह न्यूनतम आध्यात्मिक स्तर दर्शाती है जो कि प्रत्येक सूक्ष्म पंचज्ञानेंद्रिय द्वारा अनुभूति लेने हेतु आवश्यक है । उदाहरणार्थ व्यक्ति ४०% आध्यात्मिक स्तर पर सूक्ष्म-गंध की अनुभूति ले सकता है । यद्यपि यह दंडालेख (बार ग्राफ) आध्यात्मिक स्तर एवं छठवीं इंद्रिय के मध्य सीधा संबंध स्थापित करने में मार्गदर्शक है, तथापि निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है :
- जब किसी को सूक्ष्म-गंध की आध्यात्मिक अनुभूति होती है, तो इसका तात्पर्य यह नहीं होता कि उसने अवश्य ही ४०% आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर लिया है । प्राय: यह आध्यात्मिक स्तर अथवा क्षमता में क्षणिक अथवा आवेगी उछाल होता है, जिसका कारण तीव्र साधना जैसे देवता का नामजप अथवा संतों का सत्संग इत्यादि होता है ।
- कुछ अन्य कारण भी अनुभूति को प्रभावित करते हैं । उदाहरण के लिए, यदि कोई अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, पिशाच आदि) चाहती है कि किसी व्यक्ति को अपने घर के आसपास से पेशाब की दुर्गंध आए जिससे वह भयभीत हो जाए, तो वह अपनी आध्यात्मिक शक्ति के बल पर ऐसा कर सकती है । ऐसे में उस व्यक्ति का स्तर बढे बिना ही ऐसा हो जाता है ।
- इसका अर्थ यह भी नहीं होता कि ४०% आध्यात्मिक स्तर के सभी लोगों को सूक्ष्म-गंध की अनुभूति होगी । किसी व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर उसकी अनेक विशेषताओं का कुल योग होता है, छठवीं इंद्रिय उनमें से एक है । आध्यात्मिक स्तर पर लेख देखें ।
- इसका अर्थ यह भी नहीं होता कि ऐसे लोग सभी प्रकार की उपलब्ध सूक्ष्म-गंधों को १००% अनुभव कर लेंगे अथवा यह भी नहीं कि पूरा समय और किसी भी समय वे इन्हें अनुभव कर सकते हैं ।
- इसका अर्थ यह भी नहीं है कि जो व्यक्ति ४०% आध्यात्मिक स्तर पर होगा, वह सूक्ष्म-गंध अवश्य ही अनुभव करेगा । कोई व्यक्ति एकबार भी पंच-सूक्ष्म ज्ञानेंद्रियों की अनुभूति लिए बिना भी संतत्व (अर्थात ७०% आध्यात्मिक स्तर) प्राप्त कर सकता है । इस प्रकार की अनुभूति न होने का एक कारण यह भी हो सकता है कि व्यक्ति को इस प्रकार की अनुभूतियां पूर्वजन्म में हो चुकी हों, तथा अब उसे इनकी आवश्यकता न हो । तथापि सभी संतों के पास छठवीं इंद्रिय होती है जिसका संबंध सूक्ष्म-मन एवं बुद्धि से होता है ।
- इस आलेख से आप यह भी देख सकते हैं कि स्पर्श और शब्द की सूक्ष्म-अनभूति उच्च आध्यात्मिक स्तर पर ही हो सकती है । इसका कारण यह है कि पंच सूक्ष्म ज्ञानेंद्रियों में ये अधिक सूक्ष्मतर हैं ।
६. अदृश्य शक्ति एवं जगत को जानने हेतु छठवीं इंद्रिय (सूक्ष्म-संवेदी क्षमता) तथा लिंग में सम्बन्ध
सामान्यतया स्त्रियों की छठवीं इंद्रिय पुरुषों की तुलना में अधिक बलवान होती है । सूक्ष्म-संवेदी क्षमता प्राकृतिकरूप से स्त्रियों में अधिक होती है और पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक पूर्वाभास होते हैं । इसका मुख्य कारण यह है कि पुरुषों का बौद्धिकता की ओर झुकाव अधिक होता है तथा उनकी प्रवृत्ति अधिक बुद्धिवादी होती है ।
७. अदृश्य शक्ति एवं जगत की सूक्ष्म-मन एवं सूक्ष्म-बुद्धि से जुडी अनुभूतियां
कभी कभी किसी अनजान घर में जाकर भी अपने ही घर आने जैसा अनुभव होता है, कभी कोई अनहोनी होने की आशंका होती है अथवा किसी अन्यथा अरुचिकर व्यक्ति को देखकर भी अटूट प्रेम अनुभव होता है । ये सूक्ष्म-मन की अनुभूतियां हैं । इन भावनाओं को हम समझा नहीं सकते । कभी कभी हम किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में सुनते हैं जिन्हें सूक्ष्म-आयाम से जानकारी मिलती है अथवा जो सूक्ष्म-लोकवासियों से बात कर सकते हैं । अगले परिच्छेद में हम इस घटना को विस्तृतरूप से समझेंगे ।
७.१ अदृश्य शक्ति एवं जगत की लोगों को ऐसी जानकारी कैसे मिलती है ?
सूक्ष्म-आयाम से ज्ञान-प्राप्तकर्ताओं को सामान्यतया तीन प्रकार से ज्ञान मिलता है ।
- संदेश लिखने के लिए किसी सूक्ष्म-शक्ति को अपने हाथ का उपयोग करने देने से (जिसे स्वचलित लेखन (ऑटोमैटिक राइटिंग) भी कहते हैं ।)
- किसी दृश्य द्वारा जहां वे वास्तव में कुछ शब्द अथवा परिच्छेद अपनी आंखों के सामने देखते हैं ।
- विचारों के माध्यम से उपरोक्त सभी प्रकारों में से विचारों के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करना सर्वाधिक सूक्ष्म है ।
उपरोक्त सभी प्रकारों में से विचारों के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करना सर्वाधिक सूक्ष्म है ।
७.२ अदृश्य शक्ति एवं जगत के ज्ञान का स्त्रोत
सूक्ष्म-आयाम से ज्ञान प्राप्तकर्ताओं को निम्नलिखित में से किसी एक प्रकार से ज्ञान मिलता है
- विश्व-मन एवं विश्वबुद्धि में प्रवेश कर पाने की अपनी क्षमता के कारण अपनेआप अथवा
- सूक्ष्म-शक्तियों को पूछे अपने प्रश्नों के उत्तर के रूप में । वे अपनी छठवीं इंद्रिय द्वारा सूक्ष्म-मन एवं बुद्धि के माध्यम से यह कर पाते हैं ।
उपरोक्त दोनों प्रकरणों में, व्यक्ति सूक्ष्म आयाम को समझता है, परंतु केवल आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नत व्यक्ति ही बता सकता है कि ज्ञान पहले अथवा दूसरे प्रकार से मिल रहा है । अधिकांश प्रकरणों में, व्यक्ति विभिन्न सूक्ष्म-लोक उदा. भुवर्लोक और पाताल के सूक्ष्म-देह से बात करता है और अल्प प्रकरणों में देवता अथवा ईश्वर अर्थात विश्व-मन और बुद्धि से बात करता है ।
प्राप्त जानकारी का प्रकार तथा कोटि (श्रेणी) अथवा स्तर, उसे पानेवाले के आध्यात्मिक स्तर पर निर्भर करता है ।
निचले स्त्रोतों से मिलनेवाली जानकारी
निचले लोकों के उदा. भुवर्लोक अथवा पाताल के सूक्ष्म-देहों से प्राप्त जानकारी, अधिकांशत: मायासंबंधी होती है और उसका महत्त्व केवल विश्व के सीमित क्षेत्र तक और अल्पकालिक होता है । इस प्रकार की जानकारी का एक उदाहरण है किसी के विवाह अथवा नौकरी संबंधी ज्ञान । किसी देश का कौनसा राजनीतिक दल चुनाव जीतेगा, यह भी सूक्ष्म आयाम के निम्न-स्तरीय सूक्ष्म-देहों से प्राप्त ज्ञान का उदाहरण है ।
उच्च स्त्रोतों द्वारा ज्ञानप्राप्ति :
उच्च लोकों के उदा. महर्लोक (स्वर्ग के परे) एवं उससे आगे के लोकों के सूक्ष्म-देहों से प्राप्त ज्ञान आध्यात्मिक स्वरूप का होता है । यह ज्ञान अधिक वैश्विक होता है एवं युगों तक महत्त्व रखता है । विश्व-मन एवं विश्व-बुद्धि से प्राप्त ज्ञान (अर्थात ईश्वर के मन एवं बुद्धि से प्राप्त ज्ञान) उच्चतम होता है । उपरोक्त चित्र में दर्शाए अनुसार, केवल संत ही यह ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं । इसका एक उदाहरण है प्राचीन भारत के ऋषि-मुनियों द्वारा प्राप्त वेदों का ज्ञान । ज्ञान के स्त्रोत की वास्तविकता सुनिश्चित करने हेतु अथवा उसका प्रामाणिकरण करने हेतु व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर बहुत उच्च होना चाहिए अर्थात ९०% अथवा उससे अधिक स्तर के संत । सूक्ष्म-विश्व एवं लोकों के विषय में अधिक जानकारी के लिए कृपया पढें –‘स्थूल मृत्यु के उपरांत व्यक्ति कहां जाता है ?’
७.३ अदृश्य शक्ति – यह कैसे जानें कि प्राप्त ज्ञान बाहरी स्त्रोत से मिल रहा है अथवा व्यक्ति के अवचेतन में छुपे विचार हैं ?
कुछ सूचक हैं जिनसे यह पता चलता है कि ज्ञान बाहरी स्त्रोत से मिल रहा है, व्यक्ति की अपनी कल्पना नहीं है ।
- जब ज्ञान का सार प्राप्तकर्ता की जानकारी के क्षेत्र से बाहर का हो । उदाहरणार्थ, एक साधक हैं, जिन्होंने अधिक से अधिक उच्च-माध्यमिक शिक्षा ली है, परंतु उन्हें यंत्रों के जटिल रेखाचित्रों का ज्ञान मिलता है ।
- ज्ञान की मात्रा भी एक अन्य सूचक है । SSRF की एक साधिका को २८ अक्टूबर २००३ से सूक्ष्म-आयाम से दिव्य ज्ञान प्राप्त हो रहा है । प्रतिदिन उन्हें ए४ आकार के १५-२० पृष्ठों का ज्ञान मिल रहा है । मानवहित में इस आध्यात्मिक ज्ञान की जांच एवं वर्गीकरण किया जा रहा है ।
७.४ अदृश्य शक्ति एवं जगत का ज्ञान सूक्ष्म-बुद्धि से किसे मिल सकता है, यह निर्धारित करनेवाले कुछ घटक
अनेक घटक मिलकर यह निर्धारित करते हैं कि सूक्ष्म से किसे ज्ञान मिल सकता है । आध्यात्मिक स्तर इन घटकों में एक महत्त्वपूर्ण घटक है । आध्यात्मिक स्तर के अतिरिक्त वे घटक जो उच्चतर आध्यात्मिक अनुभूतियां, जैसे कि ज्ञानप्राप्ति निर्धारित करते हैं, वे इस प्रकार हैं :
- व्यक्ति की प्रेरणा एवं तीव्र उत्कंठा
- ईश्वरीय कार्य हेतु आवश्यकता
- गुरु का (७०% आध्यात्मिक स्तर से आगे के आध्यात्मिक शिक्षक एवं मार्गदर्शक का ) संकल्प एवं आशीर्वाद
- व्यक्ति का प्रारब्ध
यहां ध्यान देने की बात यह है कि यदि किसी उच्च आध्यात्मिक स्तर के व्यक्ति की रुचि निम्न प्रकृति का ज्ञान पाने में है, जैसे पृथ्वी पर होनेवाली दैनिक गतिविधियों के विषय में, तो यद्यपि उस में उच्च स्तरीय सूक्ष्म-देहों से ज्ञान प्राप्त करने की क्षमता है, तथापि उसे निम्न-स्तरीय सूक्ष्म-देहों से ही ज्ञान मिलेगा । इसके विपरीत यदि किसी व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर न्यून है, उदा. ५०% है, परंतु उसमें अध्यात्मशास्त्र के उच्चतर सिद्धांतों का ज्ञानप्राप्त करने की तीव्र उत्कंठा है, तो उसे उच्च-स्तरीय सूक्ष्म-देहों से अथवा उच्च लोकों के सूक्ष्म-देहों से ज्ञान प्राप्त होता है, विशेषत: जब उसके साथ गुरु के आशीर्वाद हों ।
७.५ अदृश्य शक्ति एवं जगत को जानने हेतु छठवीं इंद्रिय, पूर्वाभास तथा काल एवं अंतरिक्ष
कभी कभी लोगों को आगामी घटनाओं का पूर्वाभास होता है, अथवा भूतकाल में हो चुकी घटनाओं के विषय में आभास होता है । यह दो प्रकार से हो सकता है :
१. सूक्ष्म देहों के माध्यम से : सूक्ष्म-देह उनके अवचेतन मन में पूर्वाभास (जानकारी) देते हैं । अधिकांशतया ये सूक्ष्म-देह अथवा शक्तियां भुवर्लोक अथवा पाताल की अनिष्ट शक्तियां होती हैं । कुछ प्रकरणों में इन सूक्ष्म-देहों के पास काल के परे देख पाने की क्षमता होती है । यदि उनके स्वयं के पास क्षमता न हो, तो वे ऐसी क्षमता से युक्त उच्च-स्तरीय अनिष्ट शक्तियों, उदा. सूक्ष्म-स्तरीय मांत्रिकों से यह जानकारी प्राप्त करते हैं ।
२. विश्व-मन एवं बुद्धि में प्रवेश कर : विश्व-मन एवं बुद्धि की सात सतहें (लेयर) होती हैं । व्यक्ति की छठवीं इंद्रिय की श्रेणी के अनुसार, वह विश्व-मन एवं बुद्धि की ऊपरी अथवा निचली सतह में प्रवेश कर ज्ञान प्राप्त कर सकता है । पूर्वाभास (भविष्य की घटनाओं का आभास) परोक्ष-दर्शन (किसी दूरवर्ती स्थल से जानकारी मिलना) एवं पूर्वबोध (दूर के काल से जानकारी मिलना) की लगभग सभी घटनाओं में जानकारी सूक्ष्म-देहों से मिलती है, न कि व्यक्ति की विश्व-मन एवं बुद्धि तक पहुंच पाने की क्षमता के कारण । सूक्ष्म-देहों से संभावित हानि आगामी विभाग में स्पष्ट की है ।
७.६ सूक्ष्म-विश्व (अदृश्य शक्ति) से प्राप्त जानकारी की सत्यता
सामान्यतया किसी व्यक्ति को समान आध्यात्मिक स्तर के सूक्ष्म-देहों से ज्ञान मिलता है और उस ज्ञान की सत्यता एवं कोटि भी उस व्यक्ति के समान ही होती है । इस बात को समझने हेतु हम शून्य (०) % १०० % के मापक की कल्पना करते हैं, जहां ज्ञान के अभाव को ० % समझेंगे । यहां बुद्धि से समझ में आनेवाले न्यूनतम ज्ञान की मात्रा १ % है और विश्व-बुद्धि से प्राप्त ज्ञान की मात्रा १०० % है ।
- ४०% आध्यात्मिक स्तर का कोई व्यक्ति समान आध्यात्मिक स्तर अर्थात ४०% स्तर की सूक्ष्म-देह से ज्ञान प्राप्त करता है । इस ज्ञान की सत्यता भी ४०% रहती है तथा गुणवत्ता भी ४०% रहती है ।
- ७०% आध्यात्मिक स्तर तक अधिकतर अनिष्ट शक्तियों से (भूत, राक्षस, चुडैल आदि) ज्ञानप्राप्ति होती है, इसलिए उस ज्ञान के साथ कुछ अनुपात में काली शक्ति रहती है । जिन्हें ज्ञानप्राप्ति प्रक्रिया की जानकारी नहीं रहती वे इस पहलू से अनजान रहते हैं और आंख मूंदकर प्राप्त ज्ञान पर पूर्णतया विश्वास करते हैं । यदि यह ज्ञान सूक्ष्म-देहों से प्राप्त हो रहा है, तो ज्ञान का कुछ भाग अथवा पूर्ण ज्ञान त्रुटिपूर्ण होने की आशंका रहती है । सूक्ष्म-देह आरंभिक ज्ञान उचित देते हैं, जिससे उन पर विश्वास होने लगे । विश्वास प्राप्त करने पर आगे वे विभिन्न कोटि की त्रुटिपूर्ण अथवा दिशाहीन करनेवाली जानकारी देते हैं ।एक अन्य महत्त्वपूर्ण बात जो सभी को ध्यान में रखनी चाहिए कि सूक्ष्म-देहों से प्राप्त ज्ञान सदैव काली-शक्ति से ओतप्रोत रहता है । इससे ज्ञान-प्राप्तकर्ता विभिन्न प्रकार से प्रभावित होते हैं उदा. स्वास्थ्यगत समस्याएं, मानसिक अस्वस्थता, विचारों में अस्पष्टता इत्यादि; परंतु यह प्रक्रिया इतनी धीरे-धीरे होती है कि व्यक्ति, परिवार अथवा मित्रों का ध्यान इस ओर नहीं जाता । यदि ज्ञान-प्राप्ति की प्रक्रिया कुछ समय तक चालू रहे, तो ज्ञान- प्राप्तकर्ता सूक्ष्म-देह के हाथ की कठपुतली बन जाता है, जिसका उपयोग वह सूक्ष्म-देह अपने लाभ के लिए विभिन्न प्रकार से करता है ।
- तथापि ७०% से आगे के आध्यात्मिक स्तर पर ज्ञान सकारात्मक सूक्ष्म-देह उदा. स्वर्ग के आगे के उच्च लोक में रहनेवाले संत अथवा ऋषि-मुनियों से प्राप्त होता है । दूसरी संभावना यह है कि ज्ञान विश्व-मन और बुद्धि से प्राप्त होता है जिसके साथ कोई काली शक्ति नहीं रहती ।
- ७०% आध्यात्मिक स्तर प्रात करने पर व्यक्ति को विश्व-मन और बुद्धि से परम-सत्य का ज्ञान होता है ।
सूक्ष्म-आयाम के नकारात्मक पहलु ओं को समझने के विविध स्तर हैं उदा. अनिष्ट शक्तियां (भूत, प्रेत, पिशाच इत्यादि) अनिष्ट शक्तियों से आवेशित होना एवं अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण । कभी कभी व्यक्ति को जो अनुभव होता है, वह मात्र एक एक झलक होता है । केवल ९०% से आगे के आध्यात्मिक स्तर पर ही व्यक्ति सूक्ष्म-आयाम का पूरा चित्र देख पाता है ।
कृपया अवश्य पढें हमारा लेख अतींद्रिय गतिविधियों को अपनी छठवीं इंद्रिय द्वारा अनुभव करने की क्षमता की गहराई
८. अदृश्य शक्ति एवं जगत को जानने हेतु छठवीं इंन्द्रिय का (अतींद्रिय-संवेदी-क्षमता का) दुरुपयोग
छठवीं इंद्रिय का उपयोग केवल आध्यात्मिक उन्नति करने के लिए, अर्थात ईश्वरप्राप्ति अर्थात आध्यात्मिक उन्नति के सर्वोच्च शिखर को प्राप्त करने हेतु होना चाहिए । शुद्ध आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य में, छठवीं इंद्रिय का किसी और उद्देश्य हेतु उपयोग जैसे सांसारिक कार्यकलापों हेतु उपयोग, दुरुपयोग माना जाता है । दूसरे शब्दों में, यदि कोई अतींद्रिय-दर्शी अपनी अतींदिय शक्ति का उपयोग यह जानने हेतु करता है कि क्या किसी व्यक्ति का विवाह होगा अथवा उसे नौकरी मिलेगी, तो आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य में इसे दुरुपयोग माना जाता है । जब किसी अतींद्रिय-दर्शी द्वारा छठवीं इंद्रिय का दुरुपयोग किया जाता है, समय के साथ दो बातें हो सकती हैं
१. वे अपनी क्षमता खो बैठते हैं । यह लगभग ३० वर्षों में होता है ।
२. वे उच्च आध्यात्मिक क्षमता वाले सूक्ष्म-स्तरीय मांत्रिक के ग्रास बन जाते हैं । सूक्ष्म-स्तरीय मांत्रिक आरंभ में उचित जानकारी देते हैं, जिससे वे व्यक्ति का विश्वास जीत सकें । आगे वे उन्हें दिशाहीन करते हैं और उन लोगों को भी जिनका वे मार्गदर्शन करते हैं । ऐसे प्रकरणों में, उनकी अतींद्रिय क्षमताएं लंबे समय तक बनी रहती हैं और कभी कभी बढती हुई प्रतीत होती हैं । परंतु ये अतींद्रिय क्षमताएं व्यक्ति की अपनी अंगभूत क्षमता नहीं रहती, अपितु उस सूक्ष्म-स्तरीय मांत्रिक की होती है, जो उस अतींद्रिय-दर्शी का मार्गदर्शन कर रहा है । ऐसे प्रकरणों में व्यक्ति को मिली छठवीं इंद्रिय की अनमोल देन जिसका उपयोग ईश्वप्राप्ति हेतु होना चाहिए था, वह निम्न-स्तरीय कार्यों में व्यर्थ होती है ।