1-HIN-full-moon-landing

१. प्रस्तावना

गत कुछ दशकों से मनुष्य के आचरण पर चंद्रमा के प्रभावों के समर्थन एवं विरोध में अनेक वैज्ञानिक प्रतिवेदन दिए गए हैं । इन प्रतिवेदनों में मानसिक क्रियाकलापों में वृद्धि, सामान्य अथवा आपातकालीन मनोचिकित्सा विभाग में भेंट की दर में वृद्धि तथा शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं में वृद्धि की शिकायत का विश्लेषण किया गया ।

स्पिरिच्युअल साइंस रिसर्च फाऊंडेशन (एस.एस.आर.एफ.) ने मनुष्य के आचरण पर चंद्रमा के प्रभावों का आध्यात्मिक शोध पद्धतियों द्वारा परीक्षण किया । मनुष्य के आचरण पर चंद्रमा के प्रभावों का पता लगाने के लिए किए आध्यात्मिक शोध का संक्षिप्त उत्तर है हां, यह मानव को प्रभावित करता है । चंद्रमा हमारे जीवन को किस प्रकार प्रभावित करता है, इसके निम्नलिखित विविध पहलू हैं –

२.  चंद्रमा के व्यापक सूक्ष्म (अनाकलनीय) प्रभाव

तारे, ग्रह एवं उपग्रह सहित सर्व वस्तुएं (पदार्थ) अपनी स्थूल (आकलनीय) तरंगों के साथ सूक्ष्म (अनाकलनीय) तरंगें प्रक्षेपित करते हैं । ये स्थूल स्वाभाविक विशेषताएं और सूक्ष्म-स्पंदन हमें न्यूनाधिक मात्रा में स्थूल तथा सूक्ष्म स्तर पर प्रभावित करते हैं ।

चंद्रमा से प्रक्षेपित स्पंदन मनोदेह को, अर्थात मानव मनको प्रभावित करते हैं । मन, अर्थात हमारी संवेदनाएं, भावनाएं और इच्छाएं (वासनाएं) । मन के दो भाग होते हैं – चेतन मन और अवचेतन मन । अवचेतन मन में अनेक संस्कार होते हैं, जो हमारा स्वभाव और व्यक्तित्व निर्धारित करते हैं । हमें अपने अवचेतन (सुप्त) मन में विद्यमान विचार एवं संस्कारों का कोई भान नहीं होता । ये संस्कार अनेक जन्मों से संचित होते हैं ।

मनके ये संस्कार हमारे विचार और उनके अनुसार होने वाली क्रियाओं को उत्प्रेरित करते हैं । संस्कारों तथा विचारों के अपने सूक्ष्म-स्पंदन होते हैं ।

मन में विद्यमान संस्कार किस प्रकार हमसे कार्य करवाते हैं ? इस लेख का संदर्भ लें ।

2-HIN-model-of-mind

चंद्रमा के स्पंदन हमारे विचारों के सूक्ष्म-स्पंदनों की तुलनामें अधिक सूक्ष्म (अनाकलनीय) होते हैं; परंतु हमारे मन में विद्यमान संस्कारों के स्पंदनों की तुलना में अल्प सूक्ष्म होते हैं । अंतर्मन में विद्यमान संस्कारों द्वारा निर्मित विचारों के स्पंदनों को बाह्यमन में लाने की क्षमता चंद्रमा के स्पंदनों में होती है । बाह्यमन में उभरने पर हमें उनका भान होता है । इस प्रकार मन में विद्यमान संस्कारों की तीव्रता के अनुसार व्यक्ति का आचरण प्रभावित होता है । इसका विस्तृत स्पष्टीकरण हमने अगले विभागमें दिया है ।

इसी प्रकार चंद्रमा पशुओं के मन को भी प्रभावित करता है । तथापि प्राणियों के अवचेतन मन में आहार, निद्रा एवं मैथुन जैसी मूल प्रवृत्ति के ही संस्कार होते हैं, इसलिए तीव्रता से आने वाले विचार भी इन्हीं सहज प्रवृत्तियों के अनुरूप ही होते हैं ।

३. चंद्रमा के प्रकाश अथवा चंद्रमा की कलाओं पर आधारित परिणाम

अमावस्या के दिन चंद्रमा का अप्रकाशित, अर्थात अंधेरा भाग पृथ्वी की ओर होता है । अंधकार मुख्यतः रज-तमात्मक स्पंदन प्रक्षेपित करता है । इसलिए प्रकाशित भाग की तुलना में पृथ्वी की ओर अधिक मूलभूत सूक्ष्म रज-तमात्म के स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं ।

सत्त्व, रज और तम, तीन मूलभूत गुण, इस लेख का संदर्भ लें ।

इसके विपरीत, पूर्णिमा के दिन अधिक प्रकाश के कारण रज-तम अल्प होता है; तथापि सूत्र २ में बताए अनुसार पूर्णिमा के दिन चंद्रमा के स्पंदन अधिक कार्यरत रहने से मानसिक क्रियाकलापों में वृद्धि पाई जाती है । अंतर्मन में जागृत हुए संस्कारों के प्रकार के अनुसार मानसिक क्रियाकलापों में किसी यादृच्छिक (अचानक आने वाले किसी भी) विचार में अथवा किसी विशिष्ट विचार की तीव्रता में वृद्धि हो सकती है ।

उदाहरणार्थ, यदि कोई व्यक्ति लेखक है और पुस्तक लिखने पर मन केंद्रित कर रहा है, तो पुस्तक संबंधी उसके विचारों में तथा लेखन प्रतिभा में वृद्धि होती है । इस प्रकारके विचारों का उद्गम प्रतिभाकेंद्र से होता है । अतः उसे लगता है कि पूर्णिमा के दिन वह विपुल लेखन कर सकता है ।

तथापि अधिकांश लोगों के मन में यादृच्छिक विचार आते हैं । यदि व्यक्ति में क्रोध, लोभ जैसे प्रबल दोष होंगे, तो इस कालखंड में बाह्यमन में आकर वे उसके अन्य विचार को प्रभावित करते हैं । उदाहरणार्थ, किसी मद्यपी को इस दिन पर मद्यपान करने के प्रबल विचार आते हैं ।

किसी आध्यात्मिक व्यक्ति के अंतर्मन में स्थित सुप्त आध्यात्मिक / साधना संबंधी विचारों को जागृत कर मानसिक क्रियाकलापों में हुई वृद्धिका लाभ उठाकर पूर्णिमा के दिन अधिक साधना करवाना संभव होता है ।

४. चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण पर आधारित परिणाम

पूर्णिमा अथवा अमावस्या के दिन चंद्रमा और सूर्य का गुरुत्वाकर्षण एकत्रित हो जाता है । अन्य दिनों में भी चंद्रमा पृथ्वी को आकृष्ट करता है; परंतु पूर्णिमा अथवा अमावस्या की तुलना में यह आकर्षण इतना शक्तिशाली नहीं होता ।

जब हम गहरी श्वास लेते हैं, तो सामान्य श्वास से तिगुनी वायु मुख में प्रविष्ट होती है । अब इस उदाहरण को चंद्रमा तथा उसका पृथ्वी पर खिंचाव के संदर्भ में देखते हैं । पूर्णिमा अथवा अमावस्या के दिन पूरा चंद्रमा पृथ्वी को आकर्षित करता है । इसका परिणाम उपर्युक्त उदाहरण में बताए अनुसार गहरी श्वास लेने जैसा होता है । हमें यह ज्ञात हुआ है कि पृथ्वी के वलयांकित वायुमंडल का चंद्रमा से तिगुना भाग खिंचता है ।

3-HIN-Gravitational-Pull

पूर्णिमा तथा अमावस्या के दिन पृथ्वी पर विद्यमान ब्रह्मांड के मूलभूत तत्त्व (पंचतत्त्व), उदा. मूल पृथ्वीतत्त्व, मूल आपतत्त्व और मूल वायुतत्त्व चंद्रमा की ओर आकर्षित होते हैं । इससे एक प्रकार का सूक्ष्म-स्तरीय उच्च दबाव का क्षेत्र निर्मित होता है ।

इस प्रक्रिया में स्थूल स्तर पर जब जल चंद्रमा की ओर आकर्षित होता है, तब जल की अपेक्षा जल में विद्यमान वायुरूप घटक (जलकी भाप) जल के ऊपर आती है और सूक्ष्म-स्तरीय उच्च-दबाव के क्षेत्र में प्रवेश करती है । अनिष्ट शक्तियां मुख्यतः वायुरूप होती हैं, इसलिए वे इस सूक्ष्म उच्च-दबाव के क्षेत्र में आकर्षित होती हैं । यहां पर वे सभी एकत्रित होती हैं और उन्हें एक-दूसरे से अधिक शक्ति मिलती है । अतः इन दिनों में वे मानवता पर बडा आक्रमण करती हैं । इस सबके परिणामस्वरूप मनुष्य पर अनिष्ट शक्तियों का आक्रमण शारिरीक और मानसिक स्तरपर तीन गुना बढ जाता है।

पूरे विश्व में फैले एसएसआरएफ के आश्रमों में पूर्णिमा तथा अमावस्या के दिन अनिष्ट शक्तियों के आक्रमणों में और सूक्ष्म-स्तरीय अनिष्ट दबाव में वृद्धि पाई जाती है । यह पूर्णिमा अथवा अमावस्या के पहले दो दिन आरंभ होता है और उसके दो दिन उपरांत समाप्त होता है ।

५. पूर्णिमा एवं अमावस्या को चंद्रमा के बढे हुए प्रभाव के परिणाम

अमावस्या के दिन, रज-तम फैलाने वाली अनिष्ट शक्तियां (भूत, प्रेत, पिशाच इ.), गूढ कर्मकांडों में (काला जादू) फंसे लोग और प्रमुखरूप से राजसिक और तामसिक लोग अधिक प्रभावित होते हैं और अपने रज-तमात्मक कार्य के लिए काली शक्ति प्राप्त करते हैं । यह दिन अनिष्ट शक्तियों के कार्य के अनुकूल होता है, इसलिए अच्छे कार्य के लिए अपवित्र माना जाता है । चंद्रमा के रज-तमसे मन प्रभावित होने के कारण पलायन करना (भाग जाना), आत्महत्या अथवा भूतों द्वारा आवेशित होना आदि घटनाएं अधिक मात्रा में होती हैं । विशेषरूप से रात्रि के समय, जब सूर्य से मिलने वाला ब्रह्मांड का मूलभूत अग्नितत्त्व (तेजतत्त्व) अनुपस्थित रहता है, अमावस्या की रात अनिष्ट शक्तियों के लिए मनुष्य को कष्ट पहुंचाने का स्वर्णिर्म अवसर होता है ।

पूर्णिमा की रातमें, जब चंद्र का प्रकाशित भाग पृथ्वी की ओर होता है, अन्य रात्रियों की तुलना में मूलभूत सूक्ष्म-स्तरीय रज-तम न्यूनतम मात्रा में प्रक्षेपित होता है । अतः इस रात में अनिष्ट शक्तियों, रज-तमयुक्त लोगों अथवा गूढ कर्मकांड (काला जादू) करने वाले लोगों को रज-तमात्मक शक्ति न्यूनतम मात्रा में उपलब्ध होती है । तथापि, अनिष्ट शक्तियां (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) पूर्णिमा के दिन चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण का लाभ उठाकर कष्ट की तीव्रता बढाती हैं ।

आध्यात्मिक शोध द्वारा यह भी स्पष्ट हुआ है कि अमावस्या और पूर्णिमा के दिन मनुष्य पर होने वाले प्रभाव में सूक्ष्म अंतर होता है । पूर्णिमा के चंद्रमा का प्रतिकूल परिणाम साधारणतः स्थूलदेह पर, जबकि अमावस्या के चंद्रमा का परिणाम मन पर होता है । पूर्णिमा के चंद्रमा का परिणाम अधिकांशत: दृश्य स्तर पर होता है, जबकि अमावस्या के चंद्रमाका परिणाम अनाकलनीय (सूक्ष्म) होता है । अमावस्या के चंद्रमा का परिणाम दृश्य स्तर पर न होने से व्यक्ति के लिए वह अधिक भयावह होता है । क्योंकि व्यक्ति को इसका भान न होनेसे वह उस पर विजय प्राप्त करने के कोई प्रयास नहीं करता ।

पूर्णिमा पर चंद्रमा की तुलना में अमावस्या पर चंद्रमा का प्रभाव अल्प दृष्टिगत होता है । तथापि अमावस्या के चंद्रमा का प्रभाव अधिक प्रतिकूल (नकारात्मक) होता है । इसका कारण यह है कि अमावस्या के दिन मनुष्य पर चंद्रमा का प्रभाव पूर्णिमा के चंद्र की तुलना में अधिक सूक्ष्मस्तरीय होता है । पूर्णिमा के दिन विचारों में होने वाली वृद्धि का भान रहता है ।

जो साधक आध्यात्मिक साधना के छः मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार बहुत साधना करते हैं, वे मुख्यतः स्वभाव से सात्त्विक होते हैं । परिणामस्वरूप साधारण मनुष्य की तुलना में (जो स्वयं रज-तमयुक्त होता है), उसकी तुलना में वे वातावरण के रज-तमके प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं । साधकों के लिए अच्छी बात यह है कि उन्हें अनिष्ट शक्तियों से बचने की ईश्वर द्वारा सुविधा प्राप्त होती है । कितने आध्यात्मिक स्तर पर अनिष्ट शक्तियों से (भूत,प्रेत, पिशाच इ.) बचने के लिए सुरक्षा कवच प्राप्त होता है ? इस लेख का संदर्भ लें ।

६. मानव स्वभाव पर चंद्रमा के प्रभाव के प्रमाण जुटाने में वर्तमान ब्यौरे क्यों असफल रहे ?

कुछ आरंभिक चिकित्सकीय / मनोवैज्ञानिक अध्ययन मनुष्य पर चंद्रमा के प्रभाव का उल्लेख करते हैं । परंतु कुछ वर्ष पूर्व किया अध्ययन ऐसा संबंध दर्शाने में असफल रहा । इसका कारण यह है कि गत दशक से विश्व के कुल रज-तम में अभूतपूर्व वृद्धि हो गई है । रज-तम में हुई इस वृद्धि का प्राथमिक कारण है, अनिष्ट शक्तियों का (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) सुनियोजन ।

अच्छी एवं बुरी शक्तियों का युद्ध, इस लेख का संदर्भ लें ।

रज-तम की इस कुल वृद्धि से विश्व की सर्व विषयवस्तएं व्यापकरूप में प्रभावित हुई हैं । इन प्रभावों की व्याप्ति व्यक्तिगत स्तर पर मानसिक व्याधि में वृद्धि से लेकर पारिवारिक कलह तक , आतंकवाद से लेकर प्राकृतिक आपदाआें तक फैली हैं । अमावस्या और पूर्णिमा पर चंद्रमा आज भी प्रभावित कर रहा है; किंतु मनुष्यजाति द्वारा पूरे माह में हो रहे कुल विलक्षण आचरण के कारण सांख्यिकी अध्ययन में उनकी ओर ध्यान नहीं जाता ।

७. हानिप्रद परिणामों से सुरक्षा पाने के लिए हम क्या कर सकते हैं ?

अमावस्या तथा पूर्णिमा के दिन चंद्रमा के हानिकारी प्रभाव आध्यात्मिक कारणों से होते हैं, इसलिए केवल आध्यात्मिक उपचार अथवा साधना ही इनसे बचने में सहायक हो सकती है ।

वैश्विक स्तर पर इन दिनों में महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने अथवा क्रय-विक्रय करने से बचना चाहिए; क्योंकि अनिष्ट शक्तियां इन माध्यमों से अपना प्रभाव डाल सकती हैं । पूर्णिमा और अमावस्या के २ दिन पहले तथा २ दिन पश्चात आध्यात्मिक साधना में संख्यात्मक एवं गुणात्मक वृद्धि करें । अपने पंथ अथवा धर्म के अनुसार देवताका नामजप करना लाभदायी होता है और आध्यात्मिक सुरक्षा के लिए श्री गुरुदेव दत्त का जप करें ।

चंद्रमा की कलाओं के क्षयकाल में, अर्थात पूर्णिमा और अमावस्या के मध्य की कालवधि में जब चंद्रमा का आकार उत्तरोत्तर न्यून होता जाता है, उससे प्रक्षेपित मूलभूत सूक्ष्म-स्तरीय स्पंदन उत्तरोत्तर बढते जाते हैं । ऐसा चंद्रमा के अंधेरे भाग में उत्तरोत्तर हो रही वृद्धि के कारण होता है । इसलिए अपने आप को रज-तम की वृद्धि के कारण होने वाले प्रतिकूल प्रभाव से बचाने के लिए इस कालवधि में साधना बढाना महत्त्वपूर्ण है ।

चंद्रमा के क्षय काल में, पहले के पखवाडे में वृद्धिंगत किए प्रयत्नों को न्यूनतम स्थिर रखने का प्रयास हमें करना चाहिए । इस प्रकार से हम अगले क्षयकाल में अधिक साधना करने के लिए पुनः प्रयास आरंभ कर सकते हैं ।