साधना के लाभ
व्यक्तित्व का विकास
मूलभूत स्वभाव – अंतर्मन के संस्कारों के अनुसार
उपरोक्त चित्र मन को दर्शाता हैै । मन का १/१० वां भाग बाह्य मन है तथा ९/१० वां भाग अंतर्मन का है । जिस हिम शैल से टाइटैनिक जहाज टकराया था, उसके शिखर को देख कोई नहीं कह सकता था कि वह हिम शैल खतरनाक है, क्योंकि वास्तविक विपदा उस शिखर के नीचे बर्फ की ढेर से था । हमारे मन के साथ भी ठीक ऐसा ही है । हमारी भावनाएं और इच्छाएं मूलरूप से हमारे अंतर्मन में अनेक संस्कारों तथा केंद्रों में छिपी हुई हैं । इसके कुछ उदाहरण हैं :-
- वासना केंद्र
- स्वभाव केंद्र
- लेन-देन के हिसाब का केंद्र (संदर्भ के लिए लेख देखें ‘लेन-देन के नियम‘)
हमारा बाह्यमन इन संस्कारों तथा अंतर्मन के केंद्रों से अनभिज्ञ होता है; परंतु यही संस्कार तथा केंद्र हमारी क्रिया और प्रतिक्रिया का कारण तथा व्यक्तित्व का आधार होते हैं । वास्तव में हमारा व्यक्तित्व हमारे संस्कारों का दास है । क्या इस समस्या का समाधान है ? जी है, और जितना हम समझते हैं, उससे भी सरल है ! इसका विवरण विस्तार सहित ‘साधना ‘ भाग में है ।
मन कैसे कार्य करता है एवं संस्कार कैसे निर्माण होते हैं, इस विषय में अधिक जानकारी के लिए ‘मन की संरचना तथा कार्य ‘ लेख पढें ।