गुरुपूर्णिमा से अधिकतम लाभ कैसे प्राप्त करें

ईश्वर हमारी आध्यात्मिक यात्रा अर्थात साधना में सहायता करते हैं, यह प्रत्येक साधक ने कभी न कभी यह अनुभव किया ही होगा । ईश्वर का जो तत्त्व साधकों का मार्गदर्शन करता है, वह है गुरुतत्त्व । यही तत्त्व साधक को साधना में लेकर आता है तथा उसकी साधनायात्रा के प्रत्येक चरण पर उसका मार्गदर्शन करता है । इसीलिए गुरुतत्त्व साधक के लिए विशेष महत्त्व रखता है । स्वाभाविक रूप से, एक सच्चा साधक जीवन में सभी प्रकार से प्रकट हुए गुरुतत्त्व के प्रति कृतज्ञता अनुभव करता है । वैसे तो गुरुतत्त्व के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु प्रत्येक दिन ही उत्तम है, परंतु गुरुपूर्णिमा का दिन विशेष महत्त्वपूर्ण होता है । ऐसा इसलिए क्योंकि इस दिन ब्रह्मांड में गुरुतत्त्व अन्य दिनों की तुलना में सहस्र (१०००) गुना कार्यरत रहता है । वास्तव में, इस अवधि में गुरुतत्त्व सबसे अधिक कार्यरत रहता है ।

इसका अर्थ है कि यदि कोई उचित दृष्टिकोण रखकर प्रयास करता है, तो वह गुरुपूर्णिमा से पूर्व की अवधि में तथा गुरुपूर्णिमा के दिन, ऐसे दोनों ही समय आध्यात्मिक स्तर पर बहुत लाभ प्राप्त कर सकता है । इस वर्ष गुरुपूर्णिमा 21 जुलाई (भारत समय अनुसार) को है । यहां कुछ प्रयास बताए गए हैं जिनसे आप इस अवधि में बढे हुए गुरुतत्त्व से लाभ प्राप्त कर सकते हैं ।

सीखने की वृत्ति बनाए रखना

कभी-कभी हमारे जीवन में ऐसी स्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं, जो हमें विभिन्न प्रकार की चुनौतियां देती हैं । जीवन की सभी परिस्थितियों के प्रति सीखने की वृत्ति बनाए रखने से, हम स्वयं को गुरुतत्त्व के साथ जोड पाते हैं तथा वह हमें जो दिखा रहा है, उसका लाभ प्राप्त कर सकते हैं । एक कहावत है कि “स्थिति स्वयं ही गुरु होती है”, अतः हम यह भाव रख सकते हैं कि हमारे सामने जो भी स्थिति उत्पन्न होती है, वह ईश्वर ने ही हमें सिखाने के लिए उत्पन्न की है । प्रत्येक घटना में हम ईश्वर से पूछ सकते हैं कि इससे वे हमें क्या सिखा रहे हैं ।

ईश्वर हमें जो कुछ भी दे रहे हैं उसके प्रति कृतज्ञता भाव बढाना

ईश्वर ने सम्पूर्ण ब्रह्मांड की रचना की है । उन्होंने हमें यह जीवन दिया है तथा प्रतिक्षण इसे संभाल रहे हैं । वे हमें वही प्रदान करते हैं, जो हमारे लिए आवश्यक होता है । जिससे हम साधना पर ध्यान केंद्रित कर सकें; परंतु अधिकांश समय हमें इसका भान नहीं रह पाता । ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के प्रयास बढाने से कृतज्ञता का भाव निर्माण होने तथा वह बने रहने में सहायता प्राप्त होती है, जो हमारी आध्यात्मिक उन्नति होने में सहायक सिद्ध होती है ।

संख्यात्मक एवं गुणात्मक रूप से साधना के प्रयास बढाना

गुरुपूर्णिमा से पूर्व की अवधि आध्यात्मिक उन्नति के अत्यधिक अनुकूल होती है । इस अवधि में साधना का अधिकाधिक प्रयास करने से, हम गुरुतत्त्व को अपनी ओर अधिक आकर्षित कर सकते हैं तथा उसका अधिकतम लाभ ले सकते हैं । संख्यात्मक एवं गुणात्मक दोनों प्रकार से हम अपने प्रयास बढा सकते हैं । प्रयासों को संख्यात्मक रूप से बढाना अर्थात नामजप करने का समय बढाना, स्वभावदोष निर्मूलन के प्रयास अधिक करना, सत्सेवा करने का समय बढाना इत्यादि । प्रयासों की गुणात्मकता बढाना अर्थात भाव के साथ नामजप करना, सत्सेवा एकाग्रता तथा चूक रहित करने का प्रयास करना, गंभीरता से चूकों का आत्मनिरीक्षण करना तथा उन्हें कहां और कैसे सुधार सकते हैं इत्यादि ।

अपने पास जो कुछ है, उसे ईश्वर को अर्पण करना

ईश्वर हमें सब कुछ देने के लिए तैयार हैं, किंतु वे हमें जो दे रहे हैं, उसे प्राप्त करने के लिए हम पात्र कैसे बनें ? हमारे पास जो कुछ है, उसे ईश्वर को अर्पण करने पर, हम अपने भीतर उनकी कृपा प्राप्त करने का स्थान निर्माण करते हैं । नामजप द्वारा और गंभीरतापूर्वक स्वभाव दोष निर्मूलन के प्रयास करके हम अपना मन ईश्वर को अर्पण कर सकते हैं । हम विभिन्न सत्सेवाओं के माध्यम से अपना तन, मन और बुद्धि अर्पण कर सकते हैं । हम संतों को अथवा ऐसे आध्यात्मिक संगठन जो सार्वभौमिक सिद्धांतों के आधार पर अध्यात्मप्रसार की सेवा में समर्पित हैं, उन्हें अर्पण देकर अपना धन अर्पण कर सकते हैं । SSRF इच्छुक साधकों को उनके तन, मन, बुद्धि अथवा धन अर्पण करने हेतु विविध माध्यम प्रदान करती है । इनमें से अपने धन का त्याग करना सबसे सरल है । तथापि सर्वाधिक लाभ तभी प्राप्त होंगे, जब यथासंभव हम सभी स्तरों पर त्याग/अर्पण करेंगे ।

इस अवधि में हम आपकी साधना में वृद्धि एवं आनंदमय गुरुपूर्णिमा की कामना करते हैं ।

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