Self-Analysis-Part-2

१. मूल दोष के आत्म-विश्लेषण की प्रस्तावना2-HINDI-Download-PDR-chart-button

इस अध्याय में (पिछले अध्याय से आगे) हम आत्म-विश्लेषण का साधन जो कि स्वभावदोष निर्मूलन सारणी है उसे कैसे भरते है यह समझाना जारी रखेंगे । पिछले अध्याय में हमने चूक की तीव्रता तथा प्रभाव को समझने पर ध्यान केंद्रित किया था । इस अध्याय में हम बताएंगे कि अयोग्य कृति अथवा प्रतिक्रिया के मूल कारण का विश्लेषण कैसे करना है ।

२. आत्म-विश्लेषण की त्वरित तथा सरल प्रक्रिया

अगली बार जब आपको यह लगे कि आपसे चूक हुई है अथवा किसी और ने आपसे आपकी चूक के विषय में बताया है तो यह आत्मजागरूकता को बढाने के लिए स्वयं का आत्मनिरिक्षण तथा विश्लेषण करने हेतु अच्छा अवसर प्रदान करता है । चूक बडी अथवा छोटी हो सकती है । किसी भी प्रकार से यह व्यक्ति के मन को ठीक प्रकार से समझने का अवसर प्रस्तुत करता है । ‘मेरे किस स्वभाव दोष के कारण यह चूक हुई है ?, विश्लेषण इस पर केंद्रित होगा ।

चूक के लिए उत्तरदायी मूल स्वभाव दोष का पता लगाने के लिए स्वयं से यह प्रश्न पूछ कर विश्लेषण करना है कि हमसे वह अयोग्य कृति क्यों हुई अथवा हमसे वह अयोग्य प्रतिक्रिया क्यों व्यक्त हुई । उसके उपरांत अपने विश्लेषण को आत्म-विश्लेषण का साधन – स्वभाव दोष निर्मूलन सारणी के स्तंभ (कॉलम) जी, एच, आई तथा जे में दर्ज करना है । नीचे व्यक्ति द्वारा हुई चूक को दर्ज करने के लिए आत्म-विश्लेषण सारणी का उदाहरण स्वरुप चित्र (स्नैपशॉट) दिया गया है ।

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२.१ क्या वह स्वभाव दोष था अथवा अहं का कोई पहलू था जिसका प्रकटीकरण हुआ ? (स्तंभ जी)

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स्तंभ जी में, हमने चूक के वर्गीकरण हेतु दो विकल्प दिए हैं वे हैं, अहं अथवा काेर्इ एक स्वभाव दोष । हम स्तंभ जी से ड्रापडाऊन में से जो चुनेंगे उसके आधार पर स्तंभ एच, आई तथा जे में आपके सामने अहं के प्रकटीकरण अथवा स्वभाव दोष में से चुनने हेतु सूची आएगी ।

अतः हम यह निर्णय कैसे लेंगे कि चूक स्वभाव दोष के कारण हुई है अथवा अहं के प्रकटीकरण के परिणामस्वरूप ?

वास्तव में सभी स्वभाव दोष अहं से उत्पन्न होते है । अहं वह होता है जो मन में अधिक आरोपित है जबकि स्वभावदोष अधिकतर, अहं का सतही प्रकटीकरण होता है । अतः चूक स्वभाव दोष के कारण हुई है अथवा अहं के कारण, इसका निर्णय लेने के लिए स्वयं से प्रश्न करें कि दोष कितना दृढ है ।  यदि यह दोष के प्रकट होने का अनियमित प्रकरण है तो स्वभाव दोष चुनें, किंतु यदि यह दृढ स्वभाव दोष है तो अहं को चुनें । आप चूक का किस प्रकार वर्गीकरण कर सकते हैं, यह समझने के लिए दिशानिर्देश के रूप में विभिन्न स्वभाव दोषों तथा अहं के पहलुओं से सूचीबद्ध की हुई वर्कशीट का संदर्भ देखें ।

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चूक में योगदान देने वाले स्वभावदोषों अथवा अहं के बिन्दुओं को समझने/विश्लेषण करने के उपरांत अगला चरण है स्तंभ एच, आई तथा जे को भरना ।

नीचे दिए गए खंड २.२ से २.६ में हम यह विस्तृत रूप में बताएंगे कि सारणी को सही ढंग से भरने के लिए इसका विश्लेषण कैसे करते हैं ।

२.२ आत्म-विश्लेषण का व्यावहारिक उदाहरण १ – अयोग्य कृति/अकर्मण्यता

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मान लिजिए कि आपको इसका भान है कि आगे दी गई चूक हुई है – “कॉफी पीने के उपरांत मैंने कॉफी का प्याला नहीं धोया ।  

अतः यह अयोग्य कृति है । इस अयोग्य कृति की आत्म विश्लेषण प्रक्रिया को सुगम बनाने के लिए आपको स्वयं से प्रश्न करना होगा कि, ‘मैंने कॉफी का प्याला क्यों नहीं धोया ?’

संभव है कि आपको निम्नलिखित में से कुछ उत्तर प्राप्त हो सकते हैं । मूल दोष का विश्लेषण इस बात पर निर्भर करेगा कि कॉफी का प्याला नहीं धोने की अकर्मण्यता/अकर्मण्यता के पीछे (आपके मन) में कौनसा विचार प्रबल था । आगे दी गई सारणी में हम आपको बताएंगे कि विश्लेषण किस प्रकार किया जा सकता है ।

 

चूक के पीछे का विचार संभावित मूल स्वभावदोष
मैंने कॉफी का प्याला नहीं धोया क्योंकि मुझे लगा यह मेरी गरिमा को नीचे दिखाने समान है । मेरे समय का प्रयोग कुछ महत्वपूर्ण कार्यों को करने में होना चाहिए जैसे संगणक का कार्य, जबकि ये सब दिनचर्या के काम मेरी पत्नी कर सकती है । अहंकार
मेरा कॉफी का प्याला धोने का इरादा था; किंतु मैं अन्यों कार्यों को करने में अत्यधिक व्यस्त था तथा उपरांत मैंने यह नहीं किया । नियोजन एवं व्यवस्थापन में कमी अथवा अव्यवस्थित होना
मेरा मन उसे अभी धोने का नहीं था, मैंने सोचा मैं पश्चात धो दूंगा । मैं अपने सोफे पर लेटना तथा आराम करना चाहता था । आलस्य
मैंने वैसे ही बहुत काम किया है तथा मेरे परिवार के लोगों को कॉफी का प्याला धोने में मेरे सहायता करनी चाहिए । अपेक्षाएं

जैसा कि आप देख सकते है कि कॉफी का प्याला न धोने के पीछे निहित विचार के आधार पर, आपको उस विचार से सम्बंधित स्वभावदोष को स्तंभ एच, आई तथा जे में भरना होगा ।

२.३ आत्म-विश्लेषण का व्यावहारिक उदाहरण २ – अयोग्य प्रतिक्रिया

इस खंड में हम अयोग्य प्रतिक्रिया का विश्लेषण करेंगे ।

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जोअन्नी को उसके द्वारा व्यक्त हुई अपनी प्रतिक्रिया का भान था । जब मेरे मेनेजर ने मेरे स्थान पर मेरी सहकर्मी (टीना) की प्रशंसा की तो मुझे उन पर क्रोध आ गया ।

आत्म-विश्लेषण की प्रक्रिया को आरंभ करने से पूर्व जोअन्नी को आगे दिया गया प्रश्न पूछना चाहिए, “ जब मेरे मेनेजर ने टीना की प्रशंसा की तो मुझे क्रोध क्यों आया ?”

क्रोध को बढाने वाला विचार कौनसा था उसके आधार पर, जोअन्नी स्वयं का आकलन करने में सक्षम हो सकेगी कि उसके किस स्वभाव दोष के कारण प्रतिक्रिया उत्पन्न हुई ।

क्रोध की प्रतिक्रिया की पीछे निहित विचार संभावित मूल स्वभाव दोष
मेरा मेनेजर सदैव टीना की प्रशंसा करता है और मेरे प्रयोसों की सराहना कभी नहीं करते । मैं चाहे कितना भी कठिन प्रयास कर लूं , मुझ पर ध्यान कभी नहीं जाएगा । ईर्ष्या
मेरी पिछली नौकरी में भी किसी ने मेरी प्रशंसा नहीं की । यहां तक कि घर पर भी कोई मेरे कार्यों की सराहना नहीं करता । क्या मैं उतनी अच्छी नहीं हूं ? असुरक्षा
मेरा मेनेजर पक्षपात करता है । मैंने टीना से अच्छा कार्य किया है । पूर्वाग्रह
मैं टीना का पर्दाफाश करूंगी क्योंकि मुझे नहीं लगता कि वह इस योग्य है । क्रोध तथा प्रतिशोध की भावना

२.४ आत्म-विश्लेषण व्यावहारिक उदाहरण २ – अयोग्य कृति (गहरा अभ्यास)

कुछ प्रकरणों में, गहन विश्लेषण हेतु व्यक्ति को स्वयं से अधिक प्रश्न पूछने पडते है जिससे कि जिस स्वभाव दोष के कारण अयोग्य कृति अथवा प्रतिक्रिया हुई है उसके मूल का पता लगाया जा सके । आइए एक उदाहरण से समझते हैं :

घटना : अनेक वर्षों के उपरांत अपने वर्ग के छात्रों से पुनर्मिलन के समय जब मैं अपने विद्यालय के मित्रों से मिला तो मैं अत्यधिक मजाक कर रहा था । उनमें से कुछ ने मेरे अत्यधिक मजाक करने पर नकारात्मक टिप्पणी की ।

(हास्य स्वयं में बुरी बात नहीं है – किंतु अत्यधिक हास्य करना दूसरों के लिए कष्टकर हो सकता है । इसलिए, अत्यधिक हास्य/विनोद करना अपने आप में एक चूक हो सकती है, किंतु यदि इसका आगे और विश्लेषण करना हो तो इसके लिए स्वयं के विषय में गहन अभ्यास करना होगा । अतः इसके लिए ‘क्यों यह प्रश्न पूछने की आवश्यकता है, । तब तक जब तक उसे चूक करने के विभिन्न कारण मिलते हैं ।)

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२.५ सारणी भरना

यह ध्यान देने की बात है कि हमें ऐसा लग सकता है कि चूक के लिए योगदान देने में स्वभाव दोषों का संयोजन है । इसीलिए हमने इन दोषों/अहं के पहलू को सूचीबद्ध करने हेतु ३ स्तंभ उपलब्ध करवाएं है Iस्तंभ एच में हमें प्रधान दोष को लिखना है तथा स्तंभ आई तथा जे में हम द्वितीयक दोषों/अहं के पहलू को लिख सकते हैं ।

उदाहरण, इस चूक में – “रात्रिभोज के उपरांत बर्तन धोने में मुझे आलस्य आया” । यहां प्रधान स्वभावदोष “आलस्य” हो सकता है जबकि चूक होने का द्वितीयक स्वभावदोष ‘टालमटोल करना’ हो सकता है । इसके अनुसार, स्तंभ जी में स्वभावदोष चुनने के उपरांत इस विशिष्ट चूक के लिए आपको दोष १ (स्तंभ एच) के रूप में आलस्य तथा दोष २ (स्तंभ आई) के रूप में ‘टालमटोल करना’ भरना होगा । यदि किसी को अन्य कोई दूसरा उत्तरदायी स्वभावदोष न लगे तो वह दोष ३ (स्तंभ जे) को रिक्त छोड सकता है । कृपया ध्यान दें यह आनिवार्य तथा महत्वपूर्ण है कि प्रत्येक चूक के लिए कम से कम एक दोष को तो भरना ही है ।

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