१. परिचय
हम सभी का अपना एक घर होता है । हम किस प्रकार के घर में रहते हैं, यह हमारी जीवनशैली पर निर्भर करता है । हम कहां रहते हैं, हमारा घर कैसा बना है, हम इसे कैसे रखते हैं इत्यादि के आधार पर हमारा घर विविध आध्यात्मिक स्पंदन प्रक्षेपित करता है ।
हमारे आध्यात्मिक शोध दिखाते हैं कि घर के आध्यात्मिक स्पंदनों को सुधारने से अनेक सकारात्मक प्रभाव पड सकते हैं, जैसे – आर्थिक सुरक्षा में बढोतरी, घर में रहनेवालों के संबंधों में सुधार आना, अधिक आनंद मिलना तथा घर में जो साधना करते हैं उनकी साधना की बाधाएं न्यून हो जाना ।
इस लेख में, हम अपने घर के आध्यात्मिक स्पंदनों को प्रभावित करनेवाले कारकों के संदर्भ में समझने का प्रयास करेंगे ।
२. वास्तु के स्पंदनों का अध्ययन
आध्यात्मिक शोध में, आध्यात्मिक विश्व के अध्ययन को महत्त्व दिया जाता है । इस अध्ययन के माध्यम से हम किसी भी अनुभव के वास्तविक कारण तथा प्रभाव को समझना प्रारंभ कर पाए हैं । उदाहरण के लिए, आध्यात्मिक शोध के माध्यम से हम समझ पाए हैं कि वैवाहिक जीवन में कलह हमारे पितृदोष (अतृप्त मृत पूर्वजों से उत्पन्न समस्याएं ) के कारण हो सकता है ।
ठीक इसी प्रकार, आध्यात्मिक शोध हमें ये समझने में सहायक हो सकता है कि क्यों कुछ घर सौभाग्य तथा खुशियां लाते हैं जबकि कुछ घर उसमें रहनेवालों को कष्ट देते हैं । घर के आध्यात्मिक स्पंदनों को अध्ययन करने हेतु, चलिए समझ लेते हैं, वास्तुशास्त्र के कुछ मूलभूत सिद्धांत, जो अगले अनुभाग में दिए हैं ।
२.१ वास्तुशास्त्र क्या है ?
परिभाषा : वास्तुशास्त्र एक वैदिक विज्ञान है, जो वास्तु में निर्मित आह्लाददायक तथा कष्टदायक तरंगों के मध्य के अंतर का विवेचन करती है ।
२.२ वास्तु क्या है ?
वास्तु (परिसर)का अर्थ उस खुले स्थान से है, जो चारों ओर से दीवार से घिरा है, उसपर छत हो अथवा नहीं ।
इस प्रकार की बनी सभी रचनाओं में एक शक्ति का केंद्र होता है, जिसे उस वास्तु के देवता भी कहते हैं । उनका कार्य वहां होनेवाली अच्छी अथवा कष्टदायक घटना को शक्ति देना है ।
२.३ वास्तु में तरंगें
वास्तु में निर्मित अच्छी अथवा कष्टदायक तरंगों में अंतर समझने के लिए, प्रथम ये समझ लेते हैं कि इनकी निर्मिति कैसे होती है ।
रिक्त वास्तु में तीन प्रकार की तरंगें होती हैं :
- पहले प्रकार की तरंगें उस भूखंड से प्रक्षेपित होती हैं, जिसपर घर बना हो । (कृपया संदर्भ हेतु नीचे दिया गया चित्र ‘अ’ देखें ।)
- दूसरे प्रकार में ३६० तरंगें होती है, जो भूलोक के समांतर होती हैं । ये तरंगें वास्तु में वृत्ताकार शैली में घूमती रहती हैं ।
- तीसरे प्रकार में विचारों की तरंगें होती हैं, जो वास्तु का निर्माण करनेवालों, वहां रहनेवालों तथा जो वहां आनेवालों के कारण निर्मित होती हैं ।
ये तीनों प्रकार की तरंगें आपस में टकराती हैं और परिणामस्वरूप वास्तु में तरंगों की कुल गति अस्थिर (अव्यवस्थित) हो जाती है । (कृपया संदर्भ हेतु ऊपर दिए गए चित्र ‘आ’ देखें ।)
वास्तुशास्त्र इन अस्थिर (अव्यवस्थित) स्पंदनों के प्रभाव को कैसे दूर किया जा सकता है, यह समझने में हमारी सहायता करता है ।
३. वास्तु में स्पंदनों को प्रभावित करनेवाले घटक
३.१ वास्तुशास्त्र के अनुसार, वास्तु में स्पंदनों को प्रभावित करनेवाले घटक
वास्तुशास्त्र हमें इस संदर्भ में विस्तार से परामर्श देता है कि हम वास्तु का निर्माण किस प्रकार करें जिससे कष्ट को टाला जा सके तथा वहां आध्यात्मिक रूप से सकारात्मक स्पंदनों को आकर्षित किया जा सके । इसे मार्गदर्शन के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं :
३.१.१ भूखंड के स्पंदन
घर के लिए भूमि चुनते समय, यह जांचना आवश्यक है कि वह भूमि किस प्रकार के स्पंदन आकर्षित करती है । उदाहरण के लिए :
- चौकोर अथवा आयताकार भूखंड सकारात्मक प्रभाव निर्मित करते हैं जबकि अन्य आकार के भूखंड का प्रभाव कष्टदायक होता है ।
- जब उत्तर तथा दक्षिण किनारे के मध्य की दूरी पूर्व तथा पश्चिम किनारे की दूरी से अधिक हो तो वह भूमि अच्छे स्पंदन प्रक्षेपित करता है । इसके विपरीत रचना होने पर कष्ट ही होता है ।
- जब भूमि का आगे का (अगला)भाग पिछले भाग से संकरा हो, तो वह भूमि स्वामी को समृद्धि तथा मनः शांति प्रदान करती है । जब भूमि का आगे का (अगला)भाग पिछले भाग से अधिक चौडा हो, तो वह भूमि नकारात्मक स्पंदन प्रदान करती है जिससे उस भूमि के स्वामी को कष्ट होता है ।
- एक छोटा भूखंड यदि दो बडे भूखंडों के मध्य हो तो इससे कष्ट होता है, क्योंकि बडे भूखंडों की तरंगें छोटे भूखंड को विशेष रूप से प्रभावित करती हैं ।
इसके अतिरिक्त, चढाव तथा ढलान कैसे भूखंड को प्रभावित करती है, किस प्रकार का परिवेश अच्छा अथवा कष्टदायक होता है, नदी, झील, तालाब के रूप में जल की उपस्थिति अच्छी है अथवा नहीं, इत्यादि के संदर्भ में वास्तुशास्त्र विस्तृत वर्णन करता है । उदाहरण के लिए कब्रिस्तान अथवा श्मशान के समीप घर नहीं बनाना चाहिए । क्योंकि मृत लोगों के सूक्ष्म-देह तथा अनिष्ट शक्तियां (भूत, प्रेत, राक्षस आदि)उन स्थानों कर आती हैं जिससे कष्ट हो सकता है ।
३.१.२ वास्तविक वास्तु के स्पंदन
वास्तुशास्त्र के अनुसार, वास्तविक वास्तु के आध्यात्मिक स्पंदन अनेक कारकों पर निर्भर करते हैं :
- निर्माण हेतु उपयोग किए जानेवाले पदार्थ जैसे – पत्थर तथा गीली मिट्टी में सकारात्मक तरंगों को आकर्षित करने की क्षमता अधिक होती है ।
- मुख्य द्वार, रसोईघर, शौचालय इत्यादि की दिशा
- वास्तु का उददेश्य जैसे – घर, शॉपिंग मॉल, महल, मंदिर इत्यादि हेतु ।
३.१.३ दोषयुक्त वास्तु में रहने से अनुभव हुए कष्ट
अनुचित रूप से बनी वास्तु के कारण वहां रहनेवालों को विविध प्रकार के कष्ट हो सकते हैं :
- गर्भस्थ शिशु पर बुरा प्रभाव पडना ।
- मानसिक समस्याएं, जैसे चिंता, निराशा इत्यादि ।
- शारीरिक रोग जैसे पेट की समस्याएं, गठिया, पक्षाघात (लकवा) इत्यादि ।
- यदि वास्तु में कक्ष की संरचना गलत हो तो विशिष्ट प्रकार के कष्ट हो सकते हैं ।
३.२ वास्तु में स्पंदनों को बढावा देनेवाले कारक :
हमारे पूर्व के एक लेख आध्यात्मिक रूप से अनिष्ट शक्तियों से घर की शुद्धि कैसे करें, में हमने दिखाया है कि उपरोक्त कारक पूरे वास्तु के स्पंदनों को कितनी मात्रा में प्रभावित करते हैं ।
यह विभाजन स्पष्ट करता है कि मकान तथा भूखंड के भौतिक गुणों से अधिक घर में रहनेवालों तथा वे क्या करते हैं, इससे वास्तु के स्पंदन निर्धारित होते हैं ।
३.३ वास्तु में तरंगों के आध्यात्मिक कारण
सामान्यतः वर्तमान समय में वास्तु रज-तमप्रधान होते हैं, इसलिए वहां विद्यमान शक्ति का स्वरूप राक्षसों समान होता है देवता के समान नहीं ।
इसके अतिरिक्त, कुछ वास्तु अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, राक्षस आदि)को आकृष्ट करती है । उदाहरण के लिए अस्पताल, पुलिस स्टेशन, जेल, ऐसा स्थान जहां गलत प्रकार के लेन-देन होते हैं, ऐसा स्थान जहां किसी की हत्या की गई हो, कब्रिस्तान अथवा श्मशान इत्यादि में कष्टदायक तरंगें अनुभूत होती हैं । क्योंकि वहां के लोग दुखी अथवा बुरी प्रवृत्ति के होते हैं ।
अध्यात्म के मूलभूत छः सिद्धांतों के अनुसार नियमित साधना करने तथा सत्त्वप्रधान जीवनशैली अपनाने से, वास्तु में सकारात्मक तरंगें आकर्षित हो सकती हैं । इसी विषय पर कुछ व्यावहारिक (प्रेक्टिकल)सूत्र हमारे अगले लेख में दिए गए हैं ।
४. सारांश – घर में आध्यात्मिक स्पंदन
वास्तुशास्त्र, सुखदायक घर के लिए भूमि के चयन तथा भवन-निर्माण हेतु अत्यंत लाभदायक सुझाव देता है; तथापि यह समझना महत्त्वपूर्ण है, घर में रहनेवालों का स्वभाव तथा वहां होनेवाली गतिविधियां यह निर्धारित करने में अधिक महत्त्व रखती है कि हम घर में क्या अनुभव करते हैं ।