आध्यात्मिक स्तर अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, राक्षस, इत्यादि) के विरुद्ध कितनी मात्रा में सुरक्षा-कवच प्रदान करता है ?

अनिष्ट शक्तियां (भूत, प्रेत, राक्षस, इत्यादि) हमें कई कारणों से कष्ट देती हैं, हमारे लेख अनिष्ट शक्तियों का उद्देश्य क्या है, में उनका विवरण दिया गया है । वे हमें भौतिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक, अनेक प्रकार से प्रभावित कर सकती हैं ।

(कृपया हमारा लेख जीवन में आनेवाली समस्याओं के (सतही) ऊपरी एवं मूल कारणों के उदाहरण पढें ।)

अनिष्ट शक्तियों द्वारा (अर्थात आध्यात्मिक कारणों से) उत्पन्न समस्याओं के समाधान हेतु हमें आध्यात्मिक उपचारों की ही आवश्यकता होती है । साधना और इसके फलस्वरूप होनेवाली आध्यात्मिक स्तर में बढोतरी अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, राक्षस, इत्यादि) से सुरक्षा और बचाव की मुख्य कुंजी है, जो अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण से हमारी रक्षा करती है । यहां सिद्धांत यह है, कि आध्यात्मिक स्तर पर जो अधिक शक्तिशाली होगा, विजय उसी की होगी ।

(कृपया लेख, आध्यात्मिक स्तर क्या है ? पढें ।)

व्यावहारिक स्तर पर यह सिद्धांत किस प्रकार कार्य करता है, इसकी कुछ विविधताओं को देखते हैं :

  • हमारा पहला उदाहरण एक ऐसे व्यक्ति का है, जिसने साधना द्वारा ४० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त किया है । यदि २५ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर का कोई सामान्य भूत उस पर आक्रमण करता है, तो उस व्यक्ति पर इस आक्रमण का प्रभाव अति सीमित अथवा नगण्य होगा । कृपया नीचे चित्र देखें ।

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अनिष्ट शक्तियां अति उच्च आध्यात्मिक स्तर की हो सकती हैं, उदाहरण के लिए ६-७वें पाताल के कुछ मांत्रिकों का अति उच्च आध्यात्मिक स्तर अर्थात ८०-९० प्रतिशत है । ये वे लोग हैं जिन्होंने अनेक जन्मों तक नियमित साधना की है; किंतु कोई जघन्य पाप करने अथवा अहं अत्यधिक बढ जाने के कारण वे अनिष्ट शक्ति (प्रेत, राक्षस, इत्यादि) के रूप में पाताल के निम्नतम लोकों में जाते हैं । तथापि पूर्व जन्मों की साधना के फलस्वरूप इनका आध्यात्मिक स्तर अति उच्च होता है इसलिए इनकीआध्यात्मिक शक्ति भी अत्यधिक होती है ।
  • मान लें कि सामान्य भूत (२५ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर की) किसी शक्तिशाली अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, राक्षस, इत्यादि) जैसे पाताल के निचले लोक के सूक्ष्मस्तरीय-मांत्रिक के आदेश पर कार्य कर रहा है, तब उपरोक्त मनुष्य (४० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर पर) के लिए स्थितियां हानिकारक हो सकती है । सूक्ष्म-मांत्रिक अपने काम करवाने के लिए सामान्य अनिष्ट शक्तियों का प्रयोग करते हैं । साथ ही उन्हें उच्च आध्यात्मिक स्तर के मनुष्य को कष्ट देने के लिए आवश्यक काली शक्ति भी प्रदान करते हैं ।

सूचना : पाताल के लोकों के संदर्भ में, लोक जितना निम्न होगा, नकारात्मकता की तीव्रता उतनी ही अधिक होगी । उदाहरण के लिए, सातवां पाताल ऊपर के छः पाताल लोकों के नीचे है तथा उसमें उच्चतम आध्यात्मिक स्तर की अर्थात उच्चतम काली शक्ति युक्त अनिष्ट शक्तियां (भूत, प्रेत, राक्षस, इत्यादि) निवास करती हैं ।

  • यहां तक कि उच्च आध्यात्मिक स्तर के संत पर भी उच्च स्तरकी अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण होते हैं । इस प्रसंग में अनिष्ट शक्ति संत के मन तथा बुद्धि को प्रभावित नहीं कर पाती क्योंकि विशिष्ट मात्रा में वे ईश्‍वर से एकरूप हो चुके होते हैं । इसलिए वे संत के भौतिक शरीर को लक्ष्य बनाती हैं । उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, राक्षस, इत्यादि) द्वारा दिए जा रहे कष्टों के कारण ही संतों तीव्र शारीरिक कष्ट जैसे रक्त बहते रहना अथवा प्राणशक्ति का ह्रास जैसी पीडा सहते हैं ।
  • व्यक्तिगत (व्यष्टि) साधना करनेवाले साधकों की तुलना में समाज की उन्नति के लिए (समष्टि) साधना करनेवाले साधक विशेष रूप से अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण के संकट से घिरे होते हैं । अनिष्ट शक्तियां साधकों पर आक्रमण क्यों करती हैं, इसका कारण, हमारे लेख अनिष्ट शक्तियों का उद्देश्य क्या है, में दिया गया है । समाज के उत्थान के लिए साधना के रूप में अध्यात्मप्रसार हेतु प्रयास करनेवाले साधक ईश्‍वर की सुरक्षात्मक छतरी के अंतर्गत आते हैं तथा उनकी कृपा उन्हें अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, राक्षस, इत्यादि) से सुरक्षा प्रदान करती है ।

आगे दी गई सारणी में अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, राक्षस, इत्यादि) के आक्रमण के कारण व्यक्ति द्वारा अनुभव किए जानेवाले कष्ट उसके आध्यात्मिक स्तर तथा उसकी साधना के प्रकार के अनुसार दिए गए हैं ।

आध्यात्मिक स्तर के अनुसार अनुभूत होनेवाले अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, राक्षस इत्यादि) के कष्ट

आध्यात्मिक स्तर व्यक्तिगत (व्यष्टि) साधना समाज के उत्थान के लिए की गर्इ (समष्टि) साधना
 लोक भुवर्लोक / पाताल कष्ट की तीव्रता  लोकभुवर्लोक / पाताल  कष्टकी तीव्रता
२० प्रतिशत पूर्वज १० पूर्वज १०
३० प्रतिशत पूर्वज १० पूर्वज/ भुवर्लोक २०
४० प्रतिशत पूर्वज २० भुवर्लोक, १ एवं २ ३०
५० प्रतिशत भुवर्लोक २५ ३५
६० प्रतिशत भुवर्लोक तथा १ ३० ४०
७० प्रतिशत ४० ५०
८० प्रतिशत% ३० ७०
९० प्रतिशत १० ८०
१०० प्रतिशत

ऊपर दी गई सारणी से हम देख सकते हैं कि :

  • बढते आध्यात्मिक स्तर के साथ, व्यक्ति पर उच्चतर स्तर की अनिष्ट शक्तियों का आक्रमण होता है । ऐसा इसलिए क्योंकि व्यक्ति अपने आध्यात्मिक स्तर से १० प्रतिशत न्यून स्तर की अनिष्ट शक्ति के आक्रमण से अप्रभावित रहता है । उदाहरण के लिए ४० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर का व्यक्ति ३० प्रतिशत से न्यून आध्यात्मिक स्तर की अनिष्ट शक्ति के आक्रमण से अप्रभावित रहता है ।
  • अनिष्ट शक्ति द्वारा दिए गए कष्ट से निम्न आध्यात्मिक स्तर के व्यक्ति का पीडित होना मुख्य रूप से उनके पूर्वजों <> की सूक्ष्म-देहों के कारण होता है । विशेष रूप से इसलिए क्योंकि वह व्यष्टि साधना कर रहा होता है ।

टिप्पणियां :

१. यह स्तंभ सूक्ष्म-लोक अथवा अस्तित्व के लोक, जहां से अनिष्ट शक्ति आती है, वह दिखाता है । यह भुवर्लोक अथवा सप्त पाताल में कोई एक लोक हो सकता है । इस स्तंभ में दिए गए आंकडे पाताल के लोक दर्शाते हैं । पाताल का लोक जितना नीचे होगा जैसे छठा तथा सातवां, अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, राक्षस, इत्यादि) उतनी ही शक्तिशाली होगी ।

पूरा ब्रह्मांड अस्तित्व के १४ मुख्य लोकों (स्तरों) से मिलकर बना है । उनमें से ७ लोक सकारात्मक हैं और ७ नकारात्मक । पृथ्वी ही एकमात्र स्थूल लोक है, अन्य सर्व लोक सूक्ष्म-स्तर के हैं । इसके उपरांत स्वर्ग सकारात्मक लोकों में से एक है, जहां हम मृत्यु के उपरांत जा सकते हैं ।

२. यद्यपि अधिकतर पूर्वज भुवर्लोक में रहते हैं, तथापि हमने सारणी में पूर्वजको भुवर्लोक की अनिष्ट शक्ति से पृथक दिखाया है । यहां भुवर्लोक का अर्थ है, भुवर्लोक की अनिष्ट शक्ति द्वारा किया गया आक्रमण, व्यक्ति के पूर्वज नहीं ।

३. जो व्यक्ति अपनी साधना को एक अंग मानकर अध्यात्मप्रसार करते हैं, उन पर अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, राक्षस, इत्यादि) अधिक तीव्रता से आक्रमण करती है । किंतु उन्हें अतिरिक्त सुरक्षा भी मिलती है । दूसरी ओर, जो व्यक्ति व्यष्टि साधना करते हैं, उन पर आक्रमण अल्प होता है, उनका आध्यात्मिक स्तर ७० प्रतिशत हो जाने पर अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, राक्षस, इत्यादि) उन पर आक्रमण कर अपनी शक्ति व्यर्थ नहीं करती क्योंकि उन्हें इस बात की निश्‍चिति रहती है कि ये लोग केवल व्यष्टि साधना करते हैं । वैसे लोग जिन्हें केवल स्वयं से अभिप्राय (मतलब) है तथा वे केवल अपनी भलाई (स्वार्थ) के लिए साधना करते हैं, अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, राक्षस, इत्यादि) को उनसे कोई संकट नहीं रहता । दूसरी ओर, जो व्यक्ति अध्यात्मप्रसार करते हैं, वे समाज की सात्त्विकता बढाने में सहायता करते हैं । यह अनिष्ट शक्तियों की जीवन पद्धति के लिए प्रत्यक्ष संकट होता है क्योंकि वे रज-तमप्रधान होती हैं तथा सात्त्विकता सहन नहीं कर सकतीं ।

४. यह स्तंभ अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण के कारण व्यक्ति को अनुभव होनेवाले कष्ट की तीव्रता दर्शाता है । यहां कष्ट की तीव्रता ० से १०० प्रतिशत के पैमाने (स्केल) पर है, वहां १०० प्रतिशत का अर्थ व्यक्ति की मृत्यु से है ।

अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत, राक्षस, इत्यादि) के आक्रमण की तुलना में ईश्‍वर का संरक्षण व्यष्टि साधना करनेवालों के लिए १०प्रतिशत तथा समाज की भलाई हेतु साधना करनेवालों के लिए २०प्रतिशत अधिक होता है । ईश्‍वर का संरक्षण सभी के लिए एकसमान है; किंतु उच्च आध्यात्मिक स्तर के तथा समाज की भलाई हेतु साधना करनेवालों का अहं अल्प होने के कारण वे उसे अधिक मात्रा में ग्रहण कर पाते हैं ।

इसका अर्थ यह नहीं कि ईश्‍वर का संरक्षण मिलने के कारण व्यक्ति पूर्ण रूप से अप्रभावित रहेगा । ईश्‍वर का संरक्षण मिलने का अर्थ है :

  • व्यक्ति के लिए आक्रमण को अल्प कष्टकारी बनाना, अर्थात व्यक्ति कष्ट सह सके ।
  • व्यक्ति के जीवन की रक्षा करना
  • समाज की भलाई हेतु साधना करनेवालों के संदर्भ में उन्हें आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करना क्योंकि अध्यात्मप्रसार करने के लिए उन्हें अधिक आध्यात्मिक शक्ति की आवश्यकता होती है । यह भी एक कारण है, कि समाज में अध्यात्मप्रसार करने हेतु व्यक्ति को अधिक सुरक्षा की आवश्यकता क्यों रहती है, अन्य कारण यह है कि उन पर होनेवाले आक्रमण की तीव्रता अधिक होती है ।

जो व्यक्ति साधना नहीं करते, वे ईश्‍वर का आवश्यक संरक्षण प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं । इसका कारण यह है कि उनकी आत्मा के सर्व ओर अत्यधिक अहं होता है । फलस्वरूप, अनिष्ट शक्ति के आक्रमण की तुलना में प्राप्त संरक्षण न्यून होता है । इस कारण इन लोगों के जीवन में अनिष्ट शक्ति (भूत, प्रेत, राक्षस, इत्यादि) शारीरिक, भावनिक, बौद्धिक तथा आध्यात्मिक स्तर पर विध्वंस कर सकती है ।