विषय सूची
१. कुदृष्टि लगना – एक प्रस्तावना
विश्व की अनेक संस्कृतियों में ऐसा विश्वास किया जाता है कि, अपने विचारों अथवा ईर्ष्यायुक्त दृष्टि की धारणा से कोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को रोग, चोट अथवा यहां तक मृत्य के रूप में भी हानि पहुंचा सकता है । यद्यपि इस घटना को विभिन्न प्रकार से व्यक्त किया जाता है; किंतु हम इस लेख में इसके लिए ‘‘कुदृष्टि’’ शब्द का प्रयोग करेंगे ।
कुदृष्टि की लेखमाला में हम देखेंगे कि कुदृष्टि क्या है, हम इससे कैसे प्रभावित हो सकते हैं, यदि हम इससे प्रभावित हो जाएं, तो उसके लक्षण क्या होंगे एवं इसे दूर करने के लिए हम क्या कर सकते हैं ।
२. कुदृष्टि क्या है ?
किसी अन्य व्यक्ति द्वारा संक्रमित रज-तम तरंगों से पीडित होने की प्रक्रिया को कुदृष्टि (बुरी नजर लगना) शब्द से जाना जाता है । कोई अन्य व्यक्ति जानबूझ कर अथवा अनजाने में हमें कुदृष्टि (बुरी नजर) से पीडित कर सकता है ।
आज के प्रतियोगी एवं भौतिकतावादी संसार में अधिकतर लोग ईर्ष्या, द्वेष, प्रसिद्धि की तीव्र तृष्णा आदि जैसे स्वभाव दोषों से ग्रस्त हैं । उनके दुर्गुणों से जनित रज-तम तरंगों का हम पर आध्यात्मिक रूप से कष्टदायक प्रभाव पडता है । इसी प्रभाव को कुदृष्टि लगना कहते हैं । अनिष्ट शक्तियों (भूत, प्रेत राक्षसादि) द्वारा आविष्ट अथवा प्रभावित होना भी एक प्रकार से कुदृष्टि लगना ही है ।
यद्यपि अनेक लोग इसे अंधविश्वास समझते हैं तथा ऐसा मानते हैं कि ऐसी घटना का कोई तार्किक आस्तत्त्व ही नहीं है; किंतु वे यह नहीं समझते कि आध्यात्मिक आयाम के अनेक पहलू हम पर सीधा प्रभाव डाल सकते हैं । कुदृष्टि का प्रभाव दूर करने की विविध पद्धतियां एवं धार्मिक विधियों पर हमने शोध किया । इस शोध से हमें ज्ञात हुआ कि जिन व्यक्तियों ने ये धार्मिक विधियां की, उन्हें अपनी समस्याओं से तत्काल छुटकारा मिला । इन समस्याओं का निवारण परंपरागत पद्धतियों नहीं हो सका था ।
३. किसे कुदृष्टि लग सकती है ?
कुदृष्टि किसी को भी लग सकती है । यह कोई व्यक्त, प्राणी, वनस्पति अथवा निर्जीव पदार्थ भी हो सकता है ।
४. कुदृष्टि कैसे लगती है ?
हमारी जागृत छठवीं इंद्रिय युक्त साधिका कु. प्रियांका लोटलीकर ने नीचे दिया सूक्ष्म ज्ञान पर आधारित चित्र बनाया है जिसमें कुदृष्टि लगने का सूक्ष्म-प्रभाव दर्शाया गया है । यह एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति की कुदृष्टि लगने की सूक्ष्म-प्रक्रिया दर्शाता है ।
किसी व्यक्ति की इच्छा से संचारित तरंगें दूसरे व्यक्ति की ओर प्रक्षेपित होती है, इससे उसे कुदृष्टि लग जाती है । सूक्ष्मज्ञान पर आधारित इस चित्र में हम देख सकते हैं कि, जो शक्ति अन्य व्यक्ति की ओर प्रवाहित होती है वह रज-तम प्रधान है तथा वह उसके स्थूलदेह, प्राणदेह, मनोदेह एवं कारणदेह पर आक्रमण करती है । इससे व्यक्ति के चारों ओर के सूक्ष्म कष्टदायक आवरण निर्मित होता है, फलतः उसे कष्ट अनुभव होता है ।
निम्न बिंदुओं में हमने कुदृष्टि के संप्रेरकों का उल्लेख किया है ।
४.१ इच्छा द्वारा जनित विचारों के माध्यम से
कई बार जब कोई किसी मुस्कुराते हुए स्वस्थ शिुशु को देखता है तो अनजाने में ही उसके मन में इच्छा संबंधी विचार आते हैं । ये विचार चूंकि रज-तम प्रधान होते हैं, शिशु पर इसका त्वरित दुष्प्रभाव होता है क्योंकि उसकी सूक्ष्म-देह अतिसंवेदनशील होती है ।
इसका अन्य उदाहरण है, जब कोई स्त्री उत्तेजक वस्त्र पहनती है तब विपरीत लिंग के व्यक्ति के मन में उसके प्रति किसी प्रकार के इच्छायुक्त विचार आ सकते हैं । जब ऐसे विचारों मन में निर्मित होते है, तब उस व्यक्ति के मन में आए इच्छायुक्त विचार के कारण रज-तम बढते हैं, जो उस स्त्री को तो प्रभावित करते ही हैं साथ ही वातावरण को भी प्रभावित करते हैं ।
४.२ ईर्ष्यायुक्त विचारों के माध्यम से
कुछ परिस्थितियों में कोई व्यक्ति अथवा कोई अनिष्ट शक्ति; अन्य व्यक्ति, प्राणी अथवा वस्तु के संबंध में अयोग्य विचार करते हैं अथवा उनकी उन्नति से उन्हें ईर्ष्या होती है । ऐसी स्थिति में उत्पन्न नकारात्मक तरंगें व्यक्ति, प्राणी अथवा वस्तु को प्रभावित करती हैं ।
एक महिला का अनुभव था, एक नृत्य प्रतिस्पर्धा में सम्मिलित होकर प्रथम आने के कारण वह बीमार पड गई एवं अगले कुछ दिन बिस्तर पर पडी रही । उसकी मां ने जब कुदृष्टि हटाने की विधि की तब वह त्वरित स्वस्थ हो गई । उसके प्रथम आने के कारण दूसरे प्रतिस्पर्धियों के ईर्ष्यात्मक विचारों से उसे उनकी कुदृष्टि लग गई जिसके परिणामस्वरूप वह सीधे प्रभावित हो गई ।
४.३ काले जादू के कारण
कालाजादू इस शब्द का प्रयोग ऐसी विधि के संदर्भ में किया जाता है, जिसमें दूसरे को हानि पहुंचाने के उद्देश्य से विशिष्ट मंत्रों एवं साधनों का उपयोग किया जाता है । समाज के कुछ व्यक्ति एवं कुछ उच्च अनिष्ट शक्तियां काले जादू की विधि करती हैं । प्राय: समाज के जो लोग अनिष्ट शक्तियों से प्रभावित होते हैं, वे ऐसी विधि करते हैं ।
काले जादू के अतिरिक्त कुदृष्टि के अन्य प्रकारों में कुदृष्टि लगानेवाले व्यक्ति का उद्देश्य पर कुदृष्टिक की क्षमता ३० प्रतिशत तक निर्भर होती है, किंतु यदि कुदृष्टि काले जादू के माध्यम से लगी हो तब उद्देश्य की क्षमता ३० प्रतिशत से अधिक होती है तथा उसकी तीव्रता भीषण होती है ।
४.४ अनिष्ट शक्तियों के माध्यम से
ऐसे लोग जो अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से पीडित हैं वे अनिष्ट शक्तियों द्वारा प्रक्षेपित कष्टदायक शक्ति से प्रभावित होते हैं । यह भी एक प्रकार से कुदृष्टि लगना ही है ।
ऐसे साधक जो ईश्वरप्राप्ति के लिए समष्टि साधना करते हैं वे अनिष्ट शक्तियों की कुदृष्टि में प्रथम आते हैं, क्योंकि वे ईश्वरीय राज्य की स्थापना के उद्देश्य से कार्यरत होते हैं तथा अनिष्ट शक्तियों का उद्देश्य आसुरी राज्य स्थापित करना होता है जिससे साधकों को कष्ट दिया जा सके ।
आसुरी शक्तियों के आक्रमण होने पर भी साधकों को ईश्वरीय सुरक्षा प्राप्त होती है एवं उनकेद्वारा की जानेवाली साधना उन्हें अनिष्ट शक्ति जनित कष्ट तथा अवरोंधों पर विजय प्राप्त करने में सक्षम बनाती है ।
४.५ कुदृष्टि की तीव्रता किस पर निर्भर करती है ?
नीचे दी गई सारिणी में कुदष्टि के विभिन्न स्रोत, उसकी तीव्रता एवं उसके आध्यात्मिक बल की तुलना की गई है ।
कुदृष्टि का स्रोत |
कुदृष्टि के प्रभाव की तीव्रता |
प्रभाव की तीव्रता किस पर निर्भर है |
---|---|---|
इच्छा एवं ईर्ष्यायुक्त विचार | अत्यल्प | कुदृष्टि लगानेवाले करनेवाले की इच्छाशक्ति |
कालाजादू | अधिक | कालाजादू करनेवाले की आध्यात्मिक क्षमता |
अनिष्ट शक्तियां | सर्वाधिक | अनिष्ट शक्ति का आध्यात्मिक बल |
५. कुदृष्टि लगने के लक्षण
कुदृष्टि से प्रभावित होने के कुछ लक्षण निम्नानुसार हैं :
भौतिक समस्यांएं | व्यसन, पुनः-पुनः रोगग्रस्त होना, पुन: पुन: चर्मरोग होना, तीव्र सिरदर्द, कर्णशूल, आंखों में वेदना, स्मृतिहीनता, हाथ-पैरों में संवेदनहीनता, तीव्र हृदय गति, शरीर की ऊष्मा में कमी एवं शक्तिहीनता अनुभव होना |
मानसिक समस्याएं | निरंतर मानसिक दबाव तथा निराशा, अत्यधिक भय, अन्यों के संदर्भ में अनावश्यक विचारों तथा शंकाओं में वृद्धि |
शैक्षणिक समस्याएं | मेहनत करने पर भी फरीक्षाओं में अनुतीर्ण होना, तीव्र बुद्धि होते हुए भी विस्मरण होना |
आर्थिक समस्याएं | नौकरी न मिलना, व्यापार में असफलता, आर्थिक हानि अथवा ठगे जाना |
वैवाहिक एवं पारिवारिक समस्याएं | विवाह न होना, वैवाहिक जीवन में असामंजस्य, संतान न होना, गर्भपात होना, शिशु का पूर्ण विकास न होना, शारीरिक एवं मानसिक रूप से विकलांग शिशु का जन्म होना तथा अल्प आयु में मृत्यु होना |
कुदृष्टि लगने के लक्षण एक अन्य आध्यात्मिक समस्या से समानता रखते हैं जिसे हम पितृदोष अर्थात पूर्वजों के कारण होनेवाले कष्ट कहते हैं । हमारी समस्या का मूल आध्यात्मिक कारण क्या है इसका निदान केवल वही कर सकता है जो आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नत है (जिसका आध्यात्मिक स्तर ७० प्रतिशत से अधिक है)। अत: यदि आप उपरोक्त लक्षणों को पाते हैं, तो उत्तम यह होगा कि आप इन दोनों ही समस्याओं अर्थात कुदृष्टि लगने एवं पितृदोष का उपचार करें ।
६. वर्तमान समय में कुदृष्टिपात
कलियुग के वर्तमानकाल में प्राय: अधिकांश लोग साधना नहीं करते जिसके फलस्वरूप उनमें तथा वातावरण में तमोगुण की मात्रा अत्यधिक बढ गई है । उनके मन पर लोभ, ईर्ष्या आदि की गहरे संस्कार होते हैं एवं अनेक लोगों को भौतिक वस्तुओं से गहरा लगाव होता है । इस प्रकार के विचार इच्छारूपी प्रतिक्रिया से संलग्न होते हैं । ये संस्कार एवं इच्छाएं आज के सामाजिक परिप्रेक्ष्य में सर्वाधिक हैं । इनसे निर्मित तमोगुण प्रत्येक व्यक्ति को किसी न किसी प्रकार से प्रभावित करता ही है । इसके तथा अनिष्ट शक्तियों की गतिविधियां अत्यधिक होने के कारण कुदृष्टि लगने की घटनाएं भी आज के समय में अधिक हो गई हैं ।
७. कुदृष्टि दूर करने की पद्धतियां एवं कुदृष्टि से रक्षा होने के लिए साधना का महत्त्व
कुदृष्टि दूर करने की अनेक पद्धतियां हैं जिनमें ऐसे पदार्थ प्रयोग में लाए जाते हैं जिनमें अनिष्ट तरंगों को अवशोषित करने की क्षमता होती है । तदुपरांत उन पदार्थों का अग्नि अथवा जल में विसर्जन कर दिया जाता है ।
हम अपने अन्य लेखों में कुदृष्टि दूर करने की पद्धतियों के संबंध में चर्चा करेंगे एवं उन विधियों को संपादित करने का विवरण साझा करेंगे ।
वे विधियां निम्नलिखित हैं :
- पद्धति : नमक एवं सरसों का प्रयोग
- पद्धति : नमक, सरसों एवं मिर्च का प्रयोग
- पद्धति : नारियल का प्रयोग
- पद्धति : फिटकरी का प्रयोग
यद्यपि ये पद्धतियां निश्चित ही कुदृष्टि से प्रभावित व्यक्ति को त्वरित राहत दिला सकती हैं किंतु ये अस्थाई उपाय हैं क्योंकि राहत मिलने के उपरांत पुन: उस व्यक्ति को कुदृष्टि लग सकती है । नियमित छ: मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार साधना करने के कारण वातावरण से ईश्वरीय चैतन्य प्राप्त करने की हमारी क्षमता कई गुना बढ जाती है । फलस्वरूप, हमारे चारों ओर एक सूक्ष्म सुरक्षाकवच का निर्माण हो जाता है, जो कुदृष्टि से हमारी रक्षा करता है ।
टिप्पणी : कुदृष्टि लगने के विषय मे आध्यात्मिक वैज्ञानिक सिद्धांत एवं कुदृष्टि दूर करना विषय पर एक ग्रंथ शीघ्र ही प्रकाशित किया जाएगा ।