आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य से किसी की मृत्यु होने पर उसके संबंधी एवं शुभचिंतक काले रंग के अतिरिक्त अन्य कोई भी सौम्य रंग के वस्त्र पहन सकते हैं । हल्के रंगों के वस्त्र उदाहरणार्थ श्वेत तथा हल्का नीला रंग, अधिक सात्त्विक होते हैं । अनेक समुदायों में तथा सभ्यताओं में काले वस्त्र पहनने का चलन है; परंतु आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य से यह स्वगर्वासी एवं शोकाकुल परिवार दोनों के लिए घातक है ।
काला रंग मूलतः तामसिक होता है, इसलिए इसमें वातावरण से नकारात्मक एवं कष्टदायक स्पंदनों को आकर्षित एवं प्रक्षेपित करने की क्षमता लगभग ७०% तक होती है । इसका अर्थ यह है कि काला रंग वातावरण के समस्त नकारात्मक स्पंदनों (अनिष्ट शक्तियों सहित) को ७०% तक आकर्षित कर सकता है ।
साथ ही दिवंगत व्यक्ति के सगे-संबंधी, जो शोक से ग्रस्त हैं, निराश हैं, उनके कारण भी वातावरण में रज-तम के स्पंदनों में और वृद्धि होती है ।
इन दोनों बातों के सम्मिलित प्रभाव से शोकग्रस्त व्यक्तियों को उनके काले वस्त्रों तथा भावनात्मक दृष्टि से दुर्बल हो जाने के कारण अनिष्ट शक्तियों के लिए उन्हें आविष्ट करना सरल हो जाता है । परिणामस्वरूप रज-तम बढने के कारण दिवंगत के सूक्ष्म-देह को भी कष्ट होता है और मरणोपरांत उसकी आगे की यात्रा बाधित होती है ।
इसके विपरीत अंतिम संस्कार में श्वेत वस्त्र, रज-तम स्पंदनों का प्रतिरोध करते हैं एवं सात्त्विक स्पंदनों को आकर्षित करते हैं, जिससे शोकग्रस्त व्यक्तियों को आविष्ट करना अनिष्ट शक्तियों के लिए सरल नहीं होता और न ही वे मृत के सूक्ष्म-देह को प्रताडित कर पाती हैं ।
शोक के समय निरंतर काले वस्त्रों का प्रयोग, स्थिति को और गंभीर बनाता है, साथ में शोक को भी बढाता है । काले रंग के नकारात्मक स्पंदन पूर्वजों की आगे की यात्रा को अवरुद्ध करते हैं तथा अनिष्ट शक्तियों के कार्य में सहयोग देते हैं ।
पूर्वजों की सूक्ष्म-देह, जो सूक्ष्म-विश्व में अपनी आगे की यात्रा नहीं कर पातीं, अपने परिजनों के घर में ही रहती हैं तथा उनके लिए समस्या उत्पन्न कर सकती हैं । समस्याएं निर्माण करके वह मरणोपरांत आगे की गति के लिए आध्यात्मिक सहायता मांगती हैं ।
इस संदर्भ का लेख देखें – मेरे दिवंगत परिजन एवं अन्य पूर्वज मुझे यातना क्यों देना चाहते हैं ?