अपने प्रियजन को खो देना किसी के लिए भी एक अत्यंत दु:खद अनुभव होता है । कभी-कभी लोग भावनावश होकर मृत देह का आलिंगन तथा चुंबन करते हैं । ऐसा करना मृत व्यक्ति की सूक्ष्म देह एवं उस व्यक्ति, दोनों के लिए हानिकारक हो सकता है ।
मृतदेह से उत्सर्जित वायु की मात्रा अधिक होती है । इस कारण मृतदेह के आसपास का परिसर कष्टप्रद स्पंदनों से आवेशित हो जाता है । उस परिसर मे नकारात्मकता बढ जाने के कारण वह अनिष्ट शक्तियों के लिए अनुकूल हो जाता है तथा भूत (पिशाच, आसुरी एवं अनिष्ट शक्तियों आदि) के क्रिया-कलापों को बढाता है ।
मृतदेह की हथेली या ललाट का चुंबन करने वाले व्यक्ति के अंदर कष्टप्रद स्पंदन प्रवेश कर सकते हैं । परिसर कष्टप्रद स्पंदनों से आवेशित होता है, इसलिए चुंबन करने वाला व्यक्ति भी उससे प्रभावित हो जाता है तथा अनिष्ट शक्तियों से पीडित होने की उसकी संभावना बहुत अधिक बढ जाती है ।
यदि चुंबन करने वाला व्यक्ति अनिष्ट शक्तियों से पीडित हो, तो उसके स्पर्श के माध्यम से वह अनिष्ट शक्तियां मृत देह में प्रवेश कर उसे अपने नियंत्रण में ले सकती हैं और इस प्रकार उसकी सूक्ष्म देह की आगे की यात्रा में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं ।
आवश्यकता के अनुसार अंतिम संस्कार में सहभागी व्यक्ति को तो मृत देह का स्पर्श करना ही होता है । यह एक प्रकार की आवश्यक विधि है, जैसे कि एक्स-रे विभाग में कार्यरत व्यक्ति को अपनी आजीविका के कारण एक्स-रे किरणों के संपर्क में आने का जोखिम उठाना पडता है । किरणों से स्वयं की सुरक्षा के लिए वह सीसे (lead) का कवच पहनता है । इसी प्रकार शवयात्रा में सम्मिलित व्यक्ति भी आध्यात्मिक स्तर पर प्रभावित हो सकते हैं । अत: अंतिम संस्कार के इस काल में उन्हें निरंतर श्री गुरुदेव दत्त का जप करनेका सुझाव दिया जाता है । साथ ही दृढता से उन्हें प्रतिदिन साधना करने के लिए कहा जाता है । साधना के छ: मूलभूत तत्त्वों के अनुसार ही यह साधना करना अपेक्षित है, अन्यथा इससे दीर्घकालीन सुरक्षा प्राप्त नहीं होगी ।