विषय सूची
१. घोल रंध्र (सिंक होल) की घटना का परिचय
पिछले कुछ वर्षों से संसार भर में एक विचित्र घटना बढती हुई दिख रही है । पूरे संसार में विविध स्थानों के निवासी अपने आसपास के क्षेत्रों में अनायास ही भूमि धंसने से अचरज में पड गए । अनेक बार तो इससे हानि भी होती है । घोल रंध्र भूमि में हुआ एक गड्ढा अथवा छेद होता है जो भूमि के ऊपरी सतह के किसी प्रकार से धंस जाने के कारण होता है । भूमि अनायास ही नीचे धंस जाती है और भूमि पर विशाल गड्ढे बन जाते हैं । कभी-कभी तो पूरा भवन ही गड्ढे में धंस जाता है ।
क्यों इन घोल रंध्र अथवा विलयन रंध्रों (सिंक होल) की संख्या बढती हुई दिखती है, तथा इसका कारण क्या है ? क्या घोल रंध्र की इतनी सारी घटनाएं किसी बात का संकेत है ? इस लेख में हम इस घटना को एक समग्र दृष्टिकोण से देखेंगे जिसमें भौतिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक कारकों को ध्यान में रखा गया है ।
२. घोल रंध्र का पूरे विश्वभर में होना
नीचे दिए गए स्लाईड शो में, हमने विश्वभर में हुए विविध घोल रंध्र अथवा विलयन रंध्रों (सिंक होल) के कुछ चित्र दर्शाए हैं ।
३. बडे छिद्रों अथवा ज्वालामुख (विवर) होने के वैज्ञानिक कारण
भूगर्भशास्त्रियों ने घोल रंध्र के प्राकृतिक कारणों के अनेक सिद्धांत प्रस्तुत किए हैं, जैसे मिट्टी अथवा कुछ प्रकार की चट्टानों का वर्षा के जल तथा भूमिगत जल को मार्ग देना । विशेषज्ञों द्वारा दिए गए अन्य प्राकृतिक कारण हैं उल्का आघात, भारी वर्षा, ग्लोबल वार्मिंग, भूमिगत गैसों का विस्फोट इत्यादि । घोल रंध्र कृत्रिम माध्यमों द्वारा भी हो सकता है, जैसे खान उत्खनन । भूमिगत जल तथा उप स्तरों के द्रवों के अति निष्कासन से भी घोल रंध्र की घटना हो सकती है । कुछ के संदर्भ में वैज्ञानिक अभी भी उत्तर ढूंढ रहे हैं । उदाहरण के लिए, उत्तरी रूस के यमल प्रायद्वीप में हुए आश्चर्यकारी घोल रंध्र के कारण पर अभी भी चिंतन किया जा रहा है ।
आध्यात्मिक शोध से हमें ज्ञात हुआ कि ये भौतिक कारण घोल रंध्र होने के मात्र एक भाग हैं ।
४. घोल रंध्र पर आध्यात्मिक शोध
हमारे लेख तृतीय विश्वयुद्ध की भविष्यवाणी तथा धर्मयुद्ध में, हमने बताया है कि ब्रह्मांड अभी एक प्रलयंकारी सूक्ष्म-युद्ध के मध्य है । इस युद्ध का अधिकांश भाग, सूक्ष्म में अर्थात अदृश्य स्तर पर लडा जा रहा है । इस सूक्ष्म-युद्ध का एक अंश पृथ्वी लोक (भूलोक) में भी प्रकट हो रहा है तथा इससे मानवता गंभीर रूप से प्रभावित हुई है तथा भविष्य में भी होगी । इसके परिणामस्वरूप अनेक वैश्विक समस्याएं जैसे युद्ध तथा तीव्र प्राकृतिक आपदाएं इत्यादि होंगी ।
सूक्ष्म-युद्ध के पीछे पाताल की अति बलशाली आसुरी शक्तियां है जिन्हें सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक कहते हैं । अनिष्ट शक्ति को प्रसारित करने के साथ पृथ्वी पर सत्त्वगुण को अल्प करने तथा रज-तम गुण बढाने के लिए ऐसी बहुत सारी गतिविधियां हैं, जो ये सूक्ष्मस्तरीय-मांत्रिक कर सकते हैं ।
घोल रंध्र की निर्मिति के संदर्भ में SSRF द्वारा किए गए आध्यात्मिक शोध से यह ज्ञात हुआ कि इसका प्राथमिक कारण आध्यात्मिक स्वरूप का है तथा विश्वभर में हो रही ऐसी घटनाओं के पीछे सूक्ष्मस्तरीय-मांत्रिक हैं । इन छेदों की निर्मिति सूक्ष्मस्तरीय-मांत्रिक नकारात्मक काली शक्ति को संग्रहित करने के लिए करते हैं । इसके उपरांत अनिष्ट शक्तियां इन नकारात्मक काली शक्ति के भंडारों का उपयोग निरंतर आध्यात्मिक रूप से नकारात्मक प्रकृति के रज-तम स्पंदनों को प्रसारित कर वायुमंडल को आध्यात्मिक रूप से प्रदूषित करने के लिए करती हैं । उदाहरण के लिए साइबेरिया के यमल प्रायद्वीप में हुए घोल रंध्र की क्षमता ५००-१००० किलोमीटर दूरी तक अनिष्ट शक्ति प्रसारित करने की है । छोटे घोल रंध्र की क्षमता अल्प होगी ।
४.१ सूक्ष्मस्तरीय-मांत्रिक घोल रंध्र कैसे निर्मित करते हैं ?
भूमि पर विशाल छिद्र निर्मित होने के कारण | कारण की प्रतिशतता | रज-तम में वृद्धि के कारण छिद्रों का निर्मित होना | घटना का वातावरण पर हुआ नकारात्मक प्रभाव |
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भौतिक १ तथा मानसिक कारण२ |
३० |
५ प्रतिशत (जिस स्थान पर छिद्र होता है, वहां की नकारात्मकता नित्य से ५ प्रतिशत अधिक होना आवश्यक होता है, जिससे छिद्र बन सके) | १०० किलोमीटर – ५०० किलोमीटर(अधिकतर छिद्रों के लिए एक ही) ४ |
आध्यात्मिक३ | ७० |
टिप्पणियां:
१. भूगर्भशास्त्रियों द्वारा पहले ही विस्तृत रूप से स्पष्ट किए भौतिक कारणों का उल्लेख ऊपर खंड ४ में संक्षेप में कर दिया गया है ।
२. मानसिक कारक का तात्पर्य घोल रंध्र बननेवाले स्थान के लोगों के सामूहिक विचार से है । यदि आसपास रहनेवाले लोगों में अत्यधिक नकारात्मक तथा अन्यों को हानि पहुंचाने के विचार रहेंगे, तो इससे वातावरण में नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित होंगे । परिणामस्वरूप बलशाली अनिष्ट शक्तियां इन नकारात्मक विचारों को और बढाती है और इस प्रकार उस क्षेत्र में नकारात्मक स्पंदनों को स्थापित करने के लिए उन्हें अल्प परिश्रम करना पडता है । इस प्रकार वे उन घोल रंध्र की निर्मिति अधिक सरलता से कर सकती है ।
३. आध्यात्मिक कारक : घोल रंध्र होने का ७० प्रतिशत कारण उच्च स्तरीय सूक्ष्म-मांत्रिकों का संकल्प है । सूक्ष्मस्तरीय-मांत्रिक घोल रंध्र निर्मित करने के लिए उस क्षेत्र के भौतिक तथा मानसिक कारकों का पूर्ण लाभ उठाते हैं । ये घोल रंध्र ही तृतीय विश्वयुद्ध तथा धर्मयुद्ध के समय प्रयोग में आनेवाले नकारात्मक शक्तियों के भंडार गृह बन जाते हैं । जहां पर छिद्र होना है वहां की नकारात्मकता उस स्थान पर छिद्र होने के लिए औसत से ५ प्रतिशत अधिक नकारात्मक होना आवश्यक है । प्रत्येक घोल रंध्र में भौतिक तथा मानसिक एवं आध्यात्मिक कारकों की मात्रा में भिन्नता होगी । कुछ प्रकरणों में इन कारकों की मात्रा भौतिक/मानसिक १० प्रतिशत तथा ९० प्रतिशत आध्यात्मिक हो सकती है । यद्यपि औसत रूप से यह मात्रा ३० प्रतिशत और ७० प्रतिशत होती है ।
४. वातावरण को प्रभावित करने की इसकी क्षमता औसत रूप में भी दी गई है । यदि घोल रंध्र बहुत विशाल हो तो यह १००० किलोमीटर तक प्रभाव डाल सकता है ।
पृथ्वीलोक में विनाश हेतु सूक्ष्मस्तरीय-मांत्रिक अपनी सिद्धियों से पंचतत्वों का प्रयोग करते हैं ।
४.२ सुंदर दिखनेवाले घोल रंध्र अथवा विलयन रंध्रों के संदर्भ में
सभी घोल रंध्र विनाशपूर्ण नहीं दिखते जैसे कि ऊपर उल्लेख किया गया है । विश्व के कुछ घोल रंध्र पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र तब बन गए जब लोग वहां तैराकी करने अथवा पानी में छलांग लगाने के लिए आने लगे । वैसे घोल रंध्र अथवा विलयन रंध्रों (सिंक होल) के उदाहरण आगे दिएनुसार हैं :
१. ओमान का बीमाह घोल रंध्र
२. बेलीज, एम्बरग्रीस केय के निकट द ग्रेट ब्लू होल
ये दोनों घोल रंध्र सूक्ष्मस्तरीय-मांत्रिकों द्वारा मायावी अनिष्ट शक्ति से निर्मित हैं । ये दोनों चित्रों का पूर्ण गोल आकार उन घोल रंध्र के भीतर की आध्यात्मिक नकारात्मकता को ढंक देता है । जो लोग इसके पानी में तैरते हैं, वे उसमें विद्यमान अनिष्ट शक्ति से प्रभावित होंगे ।
आप इन घोल रंध्र अथवा विलयन रंध्रों (सिंक होल) का सूक्ष्म-प्रयोग कर अपनी छठवीं इद्रिय की जांच कर सकते हैं ।
४.३ निर्जन क्षेत्रों में घोल रंध्र
इन विशाल छिद्रों अथवा विवरों के संदर्भ में अन्य रोचक तथ्य है, इनका उजाड स्थानों, अति निर्जन तथा अल्प जनसंख्यावाले क्षेत्रों में होना । बाह्य ओर से यह प्रतीत होता है कि इनका निर्जन क्षेत्रों में होना अच्छा है क्योंकि इससे जीवन और संपत्ति की क्षति होने से बचा जाता है । वास्तव में सत्य तो इसके विपरीत है । यदि आध्यात्मिक शोध के माध्यम से कोई इसकी जांच पडताल करे, तब सूक्ष्मस्तरीय-मांत्रिकों के सूक्ष्म-स्तर पर और अधिक मात्रा में किए जानेवाले दुष्टतापूर्ण उद्देश्य को समझा जा सकता है । निर्जन क्षेत्रों में ऐसे छिद्र बनाने का एक अतिरिक्त लाभ यह है कि किसी का भी उस पर उतना ध्यान नहीं जाता । इसलिए अनिष्ट शक्तियों के लिए उनमें काली शक्ति संग्रहित करना और अधिक सरल हो जाता है, जब तक कि वे केंद्र अति शक्तिशाली न बन जाएं । उदाहरण के लिए, सूक्ष्मस्तरीय-मांत्रिकों ने विशाल गड्ढे अथवा विवर बनाने के लिए जानबूझकर निर्जन क्षेत्र का चयन किया (जैसे साइबेरिया) , क्योंकि वह क्षेत्र अधिकतर व्यक्तियों के लिए जाने योग्य नहीं है ।
SSRF की एक संत पूजनीया (श्रीमती) योया वालेजी ने घोल रंध्र के आध्यात्मिक घटना के संदर्भ में टिप्पणी देते हुए कहा, वर्त्तमान काल में अधिकतर लोग अपने अहं तथा माया में लिप्त होने के कारण ईश्वर को भूल गए हैं । इसलिए पृथ्वी की जनसंख्या रज-तमप्रधान हो गई है । इसके फलस्वरूप अनिष्ट शक्तियों द्वारा संचारित कष्टदायक शक्तियों को पाताल से लाकर भूमि के नीचे संग्रहित करना संभव हो गया है । इन विशाल घोल रंध्र के माध्यम से भूमि के नीचे विद्यमान कष्टदायक शक्ति अब वायुमंडल में उत्सर्जित हो रही है । पृथ्वी पर तथा वायुमंडल में रज-तम की मात्रा में हुई वृद्धि तथा उनके संकटपूर्ण बन जाने का एक कारण घोल रंध्र भी है ।
५. ऐसी घटनाओं को होने से रोकने के लिए हम क्या कर सकते हैं ?
आध्यात्मिक अशुद्धि को निष्क्रिय करने का एक मार्ग है आध्यात्मिक रूप से शुद्ध जीवनशैली अपनाना । अधिक से अधिक लोगों के सात्त्विक जीवनशैली अपनाने से समग्र सत्त्वगुण में वृद्धि होने से रज-तम की मात्रा घटेगी । शुद्धता में हुई वृद्धि से सूक्ष्मस्तरीय-मांत्रिकों अथवा अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण की संभावना अल्प होगी । इसका स्थायी उपाय है अध्यात्म के मूलभूत छः सिद्धांतों के अनुसार नियमित साधना करना ।