१. कुंडलिनी योग के अनुसार, देह में सूक्ष्म शक्ति की पद्धतियां क्या हैं?
मात्र ईश्वर के अस्तित्व से ब्रह्मांड निरंतर बना हुआ है । कुंडलिनी योग के अनुसार, ईश्वर की शक्ति जो ब्रह्मांड को चलाती है उसे चैतन्य कहते है । एक व्यक्ति के विषय में, चैतन्य को चेतना कहते हैं और यह ईश्वरीय शक्ति का वह अंश है जो मनुष्य की क्रियाओं के लिए चाहिए होती है ।
यह चेतना दो प्रकार की होती है और अपनी कार्य करने की अवस्था के आधार पर, इसे दो नाम से जाना जाता है ।
- क्रियाशील चेतना – यह प्राण शक्ति भी कहलाती है । प्राण शक्ति स्थूल देह, मनोदेह, कारण देह और महाकारण देह को शक्ति देती है । यह चेतना शक्ति की सूक्ष्म नालियों द्वारा फैली होती है जिन्हें नाडी कहते हैं । यह नाडी पूरे देह में फैली होती हैं और कोशिकाओं, नसों, रक्त वाहिनी, लसिका (लिम्फ) इत्यादि को शक्ति प्रदान करती हैं । संदर्भ हेतु यह लेख देखें – मनुष्य किन घटकों से बना है ?
- सुप्त चेतना ( कुंडलिनी )- जो कुंडलिनी कहलाती है । जब तक कुंडलिनी को नीचे दी विधि के अनुसार जागृत नहीं किया जाता तब तक यह कुंडलिनी व्यक्ति में सुप्त अवस्था में रहती है ।
नीचे दिए रेखा चित्र में आध्यात्मिक प्रगति के लिए कुल सूक्ष्म शक्ति का, प्राण शक्ति और कुंडलिनी शक्ति में विभाजन दर्शाया गया है ।
२. कुंडलिनी का क्या उपयोग है ?
कुंडलिनी अथवा सुप्त चेतना मुख्यत: आध्यात्मिक प्रगति करने के उपयोग में आती है । नित्य शारीरिक क्रियाओं के लिए कुंडलिनी का उपयोग नहीं होता तथा न ही यह उसमें सहभागी होती है ।
३. कुंडलिनी जागरण कैसे करें ?
साधना अथवा शक्तिपात से कुंडलिनी जागृत होती है ।
३.१ साधना द्वारा कुंडलिनी जागरण
इसके अंतर्गत ईश्वर के लिए विभिन्न योग मार्गों द्वारा की गई साधना आती है जैसे कर्मयोग, भक्तियोग, हठयोग तथा गुरुकृपायोग । हठयोग से की गई साधना के अंतर्गत ब्रह्मचर्य का पालन, प्राणायाम, यौगिक क्रियाएं तथा अन्य साधनाएं आती हैं ।
कुछ लोग हठयोग के द्वारा हठपूर्वक कुंडलिनी जागृत करने का प्रयास करते हैं, इसके घातक परिणाम हो सकते हैं । कुछ इससे विक्षिप्त तक हो जाते हैं ।
३.२ शक्तिपात से कुंडलिनी जागरण
शक्तिपात योग अथवा शक्तिपात द्वारा आध्यात्मिक शक्ति एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को प्रदान की जाती है । मुख्यत: गुरु द्वारा अथवा उन्नत पुरुष द्वारा अपने शिष्य को प्रदान किया जाता है । मंत्र अथवा किसी पवित्र शब्द, नेत्रों से, विचारोंसे अथवा स्पर्श से धारक के आज्ञाचक्र पर शक्ति पात किया जा सकता है । यह योग्य शिष्य पर गुरु द्वारा की गई कृपा समझी जाती है । इस शक्तिपात से कुंडलिनी जागृत होने लगती है ।
कुंडलिनी जागृत होने के उपरांत, किस गति से कुंडलिनी ऊपर की दिशा में जाती है वह शिष्य के निरंतर और लगातार साधाना के बढते हुए प्रयासों पर निर्भर करता है ।
३.३ कुंडलिनी जागृत करने के उचित मार्ग
कोई भी साधना मार्ग हो, जब आध्यात्मिक प्रगति होती है तो कुंडलिनी जागृत होती है । SSRF साधना के छ: मूलभूत तत्वों के अनुसार साधना करने का सुझाव देता है जिससे सहज ही कुंडलिनी जागृत होती है । अप्रकट गुरु तत्व अथवा ईश्वरीय तत्व स्वयं से कुंडलिनी जागृत करता है । गुरुकृपा से जागृत होने पर यह अपने आप ही ऊपर की दिशा में यात्रा करने लगती है और साधक में आध्यात्मिक परिवर्तन करती है ।
यदि उसे साधक पर थोपा जाए जैसा कि शक्तिपात में होता है, जब किसी को एकदम से अधिक मात्रा में आध्यात्मिक शक्ति प्रदान की जाती है, तब वह अनुभव बहुत ही आनंददायी होता है तथा व्यक्ति उसका आदी हो जाता है, तब सिर्फ गुणात्मक और संख्यात्मक स्तर पर लगातार बढती हुई साधना ही आश्वस्त करती है कि निरंतर हो रही गुरु तत्व की कृपा कुंडलिनी को सही दिशा में लेकर जा रही है तथा साधक का विश्वास दृढ करती है ।
कुछ समान दृश्य उदाहरणों से इसे और अच्छे से समझ कर लेते हैं
- लगातार साधना करने का प्रयास करना वैसा ही है जैसे कि कठिन परिश्रम से स्वयं का भाग्य बनाना
- सीधे शक्तिपात से कुंडलिनी जागृत करना वैसा ही है जैसे किसी अरबपति के घर पर जन्म लेना जहां पिता पुत्र को तुरंत धन उपलब्ध करा कर देता है ।
दोनों में से, परिश्रम से कमाया गया धन (आध्यात्मिक धन) सदैव अधिक टिकनेवाला है और भविष्य में प्रगति के लिए एक विश्वसनीय विकल्प है ।
जैसे कि हृदय रक्तवहन तंत्र का मुख्य केंद्र है और तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) का मस्तिष्क है, वैसे ही सूक्ष्म शक्ति प्रणाली की भी विविध चक्र, नाडियां और वाहिनियां होती हैं ।
हमारे देह में ७२,००० सूक्ष्म नाडियां होती हैं । इन नाडियों में से तीन मुख्य सूक्ष्म-नाडियां हैं :
- सुष्मना नाडी, यह मध्य नाडी है और रीढ की हड्डीके मूल (मूलाधार चक्र) से लेकर सिर के ऊपर तक जाती है
- पिंगला नाडी अथवा सूर्य नाडी, यह नाडी सुष्मना नाडी के दांए से जाती है ।
- इडा नाडी अथवा चंद्र नाडी, यह नाडी सुष्मना नाडी के बांए से जाती है ।
प्राण शक्ति देह में सूर्य नाडी, चंद्र नाडी एवं अन्य छोटी नाडियों के माध्यम से संचार करती है । प्राण शक्ति सूर्य नाडी और चंद्र नाडी में बारी बारी से संचार करती है ।
कुंडलिनी एक आध्यात्मिक शक्ति है तथा यह सामान्य व्यक्ति में सुप्त अवस्था में, सर्पीले आकार में सुषुम्ना नाडी के मूल में (मूलाधार चक्र) रहती है । साधना से यह रीढ के मूल से ऊपर की ओर सुषुम्ना नाडी से होते हुए मस्तिष्कतक जाती है । जब वह ऐसा करती है तब कुंडलिनीमार्ग में प्रत्येक चक्र को जागृत करती हुई जाती है ।
जब कुंडलिनी सुषुम्ना नाडी से प्रवाहित होते हुए प्रत्येक चक्र से गुजरती है, तब एक पतला सूक्ष्म द्वार रहता है जिसे प्रत्येक चक्र पर खोलकर वह अपनी आगे की ऊपर की दिशा में यात्रा करती है । जब वह द्वार को बार बार धकेलती है तब कभी कभी सुष्मना नाडी के द्वारा उस चक्र पर आध्यात्मिक उर्जा का प्रमाण बढ जाता है । तब कहीं और जाने का मार्ग न मिलने पर वह आसपास की सूक्ष्म वाहिनियों में प्रवाहित होने लगती है और प्राण शक्ति में परिवर्तित होती है । उस समय व्यक्ति उस क्षेत्र से संबंधित महानतम क्रियाकलापों का अनुभव लेता है । उदाहरण के तौर पर प्राण शक्ति में वृद्धि अथवा स्वाधिष्ठान चक्र के आसपास की प्राण शक्ति काम वासना बढा देती है ।
जैसे कि हमने पहले ही चर्चा की है, किसी भी मार्ग से जाएं साधना करने से ही कुंडलिनी जागृत होती है । मार्ग के अनुसार हम उसे कैसे समझते हैं इसका संदर्भ बदल सकता है । उदाहरण के रूप में जब कुंडलिनी अनाहत चक्र से गुजरती है :
- भक्तिमार्ग के अनुसार कहा जाता है कि साधक का भाव जागृत हुआ है ।
- ज्ञानमार्ग के अनुसार साधक को दिव्य ज्ञान की अनुभूति होने लगती है ।
योगा पत्रिका में डेविड.टी. ईस्टमेन के १९८५ लेख के अनुसार, कुंडलिनी जागृति के सामान्य लक्ष्ण हैं :
- अपने आप झटके लगना अथवा कंपकंपाना
- अत्यंत उष्णता, विशेषकर जब चक्रों से शक्ति के प्रवाहित होने का अनुभव होता है ।
- सहज प्राणायाम, आसन, मुद्रा अथवा बंध
- विशेष चक्र से संबंधित दृश्य दिखाई देना अथवा नाद सुनाई देना
- दिव्यानंद की अनुभूति
- भावनात्मक शुद्धि जिसमें कोई एक विशेष भावना थोडे समय के लिए प्रबल हो जाती है ।
संदर्भ – Kundalini, Wikipedia.org, Sep 2010
संपादक की टिप्पणी – शक्तिपात के माध्यम से जब कुंडलिनी जागृत की जाती है तब इस प्रकार के परिणाम अधिक देखने को मिलते हैं । जो साधक अपनी आध्यात्मिक प्रगति के प्रति गंभीर हैं उन्हें सतर्क रहना चाहिए कि इस प्रकार के अनुभव बहुत ही वास्तविक और आकर्षक लगते हैं; परंतु ये प्रारंभिक परिणाम हैं और अचानक प्रदान की हुई आध्यात्मिक शक्ति के कारण अनुभव होते है । परंतु यह साधना का अंत नहीं है अथवा हमारे जीवन के लक्ष्य की अंतिम रेखा नहीं है ।