इस लेख को समझने हेतु हमारा सुझाव है कि आप आगे दिए लेख से परिचित हो जाएं :
- SSRF में हुई भयावह अतींद्रिय घटनाएं – प्रस्तावना
१. विकृतीकरण की प्रस्तावना
हमने SSRF द्वारा अध्ययन किए गए अपने पूर्व के लेखों में वर्ष २००० से उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियों द्वारा किए गए आक्रमण के कारण हुई अनेक असामान्य घटनाओं का परिचय करवाया है । हमने उन आक्रमणों के कारणों का उल्लेख किया है तथा आक्रमण की हुई कुछ वस्तुओं के छायाचित्र अपने दो गैलरी में प्रदर्शित किए हैं ।
हम एक रोचक घटना से परिचित हुए और वह थी छायाचित्र तथा चित्रों का धूमिल तथा विकृत हो जाना । प्रारंभ में हमारा विश्वास था कि धूमिल हो जाने के ये परिवर्तन स्वाभाविक हैं । किंतु प्रतिवर्ष होनेवाले इन परिवर्तनों की गति तथा विस्तार ने हमारे विश्वास को परिवर्तित कर दिया । सावधानीपूर्वक जांच तथा व्यवस्थित आध्यात्मिक शोध से हमें ज्ञात हुआ कि ये क्रूर परिवर्तन संयोगवश नहीं थे । हमारे ध्यान में यह भी आया कि संतों के छायाचित्र ही सर्वाधिक विकृत हुए हैं ।
इस लेख में, हम इस घटना के उदाहरण तथा इसके होने की सूक्ष्म-प्रक्रिया प्रस्तुत कर रहे हैं ।
२. विकृतीकरण के उदाहरण
आईए विकृतीकरण की सूक्ष्म-प्रक्रिया के कारण परिवर्तित हुए कुछ चित्रों तथा छायाचित्रों के उदाहरण देखते हैं ।
२.१ परम पूज्य डॉ.आठवलेजी के विकृत हुए छायाचित्रों के उदाहरण
उपर्युक्त उदाहरण परम पूज्य डॉ.आठवलेजी के क्रूरतापूर्वक विकृत किए छायाचित्र दिए हैं, यहां तक कि वास्तविक चित्र को पहचाना भी नहीं जा सकता । छायाचित्र में हुए ये सभी परिवर्तन बिना किसी यांत्रिक अथवा भौतिक हस्तक्षेप के हुए हैं ।
२.२ एक पूर्वज के विकृत हुए छायाचित्र का उदाहरण
बाईं ओर का छायाचित्र एक साधक के मृत पिता का है । जब इसके पार्श्वभाग पर भगवान दत्तात्रेय का चित्र लगाया गया, १५ दिनों के उपरांत पूर्वजों के कष्ट के प्रकटीकरण होने के कारण यह विकृत हो गया था । भगवान दत्तात्रेय ईश्वर के वो तत्व हैं जो अतृप्त मृत पूर्वजों के कष्ट से हमारी रक्षा करते हैं । इसी चित्र को जब भारत के गोवा स्थित SSRF शोध केंद्र तथा आश्रम में लाया गया, तब एक वर्ष के उपरांत का चित्र दांयी ओर रखा है । छायाचित्र और अधिक विकृत हो गया, क्योंकि आश्रम के चैतन्य के कारण कष्ट और अधिक प्रकट हुए ।
३. विकृतीकरण का अध्यात्मशास्त्र
हमने ये चित्र प्रगत छठवीं इंद्रिय वाली संत पूजनीया (श्रीमती)अंजली गाडगीळजी को दिखाएं । उन्होंने इसका परीक्षण किया तथा पाया कि इस विकृतीकरण का कारण आध्यात्मिक है । उन्होंने यह भी बताया कि यह आध्यात्मिक स्तर पर एक विशिष्ट प्रक्रिया द्वारा हुआ है ।
३.१ उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण के कारण हुआ विकृतीकरण
पूजनीया (श्रीमती)अंजली गाडगीळजी के ध्यान में आया पहला बिंदु यह था कि इन छायाचित्रों का विकृतीकरण उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियों जिसे सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक कहते हैं, उनके आक्रमण का परिणाम था । इस विशिष्ट प्रकार की कुरुपता दर्शाती है कि केवल छठे पाताल का सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक ही यह कर सकता है । इसका अर्थ है कि अत्यधिक शक्तिशाली अनिष्ट शक्तियां ही विकृतीकरण द्वारा हानि पहुंचाने में सक्षम होती हैं । इसके लिए सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक वायुतत्व की सहायता लेते हैं ।
३.२ छायाचित्र की छवि को विकृत तथा विघटित करने की सूक्ष्म-प्रक्रिया
प्रक्रिया को समझने हेतु हमने एक उदाहरण के रूप में कागज अर्थात सेल्यूलोज जिस पर छायाचित्र की छपाई की जाती है, के एक अणु को आलेख के रूप में दर्शाया है ।
३.३ विकृतीकरण का आध्यात्मिक प्रभाव
विकृतीकरण का आध्यात्मिक स्तर पर अति गंभीर प्रभाव पडता है, क्योंकि यह वस्तु की वास्तविक उपस्थिति अथवा अस्तित्व को नष्ट कर देता है ।
उदाहरण के लिए, परम पूज्य डॉ.आठवलेजी के छायाचित्रों पर होनेवाले आक्रमणों के प्रकरण में, सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक का उद्देश्य उनकी वास्तविक उपस्थिति को नष्ट करना है । किंतु उनके आध्यात्मिक बल के कारण वे ऐसा करने में असमर्थ होते हैं और इसलिए वे उनके छायाचित्रों पर आक्रमण करने का विकल्प अपनाते हैं । इस प्रकार सूक्ष्म स्तरीय मांत्रिक छायाचित्र में भी विद्यमान चैतन्य के लाभ से समाज को वंचित रखते हैं ।
साथ ही वायुतत्व रूपी कष्टदायक शक्ति के कारण प्रभावित व्यक्ति की स्थूल देह उसके सर्व कोषों सहित अल्पकाल में ही कष्टदायक शक्ति से भर सकती है । यही कारण है कि प्राणशक्ति में हुई आकस्मिक न्यूनता से व्यक्ति को मृत्युसमान अनुभव हो सकता है । [परम पूज्य डॉ.आठवलेजी अनेक वर्षों से प्राणशक्ति में तीव्र न्यूनता से ग्रस्त हैं ।]
४. विकृत छायाचित्र का सूक्ष्म-विश्लेषण
हमने सर्वोच्च स्तर के संत परम पूज्य भक्तराज महाराजजी के चरणों का भी निरीक्षण किया, जो अनिष्ट शक्तियों द्वारा विकृत किए गए थे ।
वास्तविक छायाचित्र १४ सेंमी.चौडा तथा १० सेंमी. ऊंचा है । छायाचित्र के लेमिनेशन में विरूपता का कोई भी प्रभाव नहीं था ।
आप देख सकते हैं कि दाहिने चरण का अंगूठा उसके मूल तक इस प्रकार नष्ट हुआ है जैसे किसी ने उसे खा लिया हो, बांए चरण का अंगूठा तथा उसके पास की अंगुली भी कुछ मात्रा में विकृत हो गई है तथा अन्य अंगुलियां पूर्णतः विकृत हो गई हैं । वृक्षों पर पायी जानेवाली गांठों समान गांठें उनके चरण तथा चरण के बाजू में उभर आई हैं ।
नीचे दिया गया सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र SSRF की संत पूजनीया (श्रीमती) योया वालेजी ने अपने विकसित छठवीं इंद्रिय के प्रयोग से बनाया है ।
पूजनीया योयाजी सूक्ष्म आयाम में देखकर सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र बनाने में सक्षम हैं । यह वे अपनी साधना हेतु सत्सेवा के रूप में करती हैं ।
अनिष्ट शक्तियों द्वारा परम पूज्य भक्तराज महाराजजी के चरणों पर हुए आक्रमण के समय आध्यात्मिक आयाम में जो कुछ हुआ और उन्होंने उसे ग्रहण किया, उसे सूक्ष्म-ज्ञान पर आधारित चित्र नीचे दर्शाया गया है ।
संत के चरणों से पाताल की दिशा में चैतन्य की तरंगों का संचारण होने से पाताल से भूमि में कष्टदायक शक्ति प्रक्षेपित करनेवाले अनेक केंद्र नष्ट हो गए । इससे साधकों के पैरों के माध्यम से प्रक्षेपित होनेवाली कष्टदायक तरंगों की क्षमता न्यून हो गई । इसे रोकने के लिए अनिष्ट शक्तियों ने मायावी रूप धारण कर परम पूज्य भक्तराज महाराजजी के चरणों के छायाचित्र पर आक्रमण करने का प्रयास किया ।
छायाचित्र पर आक्रमण चौथे पाताल की एक स्त्री बेताल ने किया था ।
स्त्री बेताल ने परम पूज्य भक्तराज महाराजजी के छायाचित्र पर मन एकाग्र किया तथा अपनी इच्छा शक्ति की सहायता से उनके श्रीचरणों के निकट अनेक मायावी यंत्र निर्मित किए । चूंकि उनके चरणों से चैतन्य के मारक रूप का संचारण हो रहा था, इसलिए उसने मायावी यंत्रों की गति बढा दी तथा मायावी यंत्रों से निकलनेवाले चिपचिपे पदार्थ की सहायता से उसने श्रीचरणों पर अनेक धब्बे प्रभावी रूप से निर्मित किए तथा चरणों को विकृत कर दिया ।
५. सारांश – साधना अनिष्ट शक्तियों से हमारी रक्षा करती है
विकृतीकरण की सूक्ष्म-प्रक्रिया से उच्च स्तरीय अनिष्ट शक्तियां सामान्य व्यक्ति पर आक्रमण करें, इसकी संभावना नगण्य होती है ।
वर्त्तमान काल में हम सभी अनिष्ट शक्तियों से अनेक प्रकार से प्रभावित हैं अथवा निकट भविष्य में उनके प्रभाव अनुभव करनेवाले हैं । स्वयं की रक्षा के लिए सर्वोत्कृष्ट आध्यात्मिक उपचार है अध्यात्म के छः मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार नियमित साधना करना ।
६. प्रकरण अध्ययन